निगमों पर प्रमंडलीय आयुक्त का नियंत्रण समाप्त






गया नगर निगम की सशक्त स्थायी समिति के गठन का रास्ता साफ़




निगमों पर प्रमंडलीय आयुक्त का नियंत्रण समाप्त





लोक प्रहरी का प्रावधान


बिहार नगर पालिका अधिनियम २००७ के पारित होने के साथ हीं , उक्त अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का भरपूर शोषण राज्य स्तर से लेकर जिले के अधिकारियों के द्वारा किया जाने लगा। जब जिस अधिकारी को जैसी ईच्छा हुई , वैसा आदेश पारित किया । वस्तुत: बिहार के निगम और पंचायतें अधिकारियों की रखैल बन कर रह गई थीं। अधिकारियों के रवैये के कारण उच्च न्यायालय में मुकदमें की लाईन लग गई । नौबत यहां तक आई कि पटना उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के द्वारा एल पी ए ६१८/२०१० में सशक्त स्थायी समिति के सदस्यों के गठन पर दिये गये निर्णय के कारण मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया । सशक्त स्थायी समिति की तुलना राज्य के मंत्रीमंडल से की जा सकती है जिसके सदस्यों का मनोयन मेयर करता है । पटना उच्च न्यायालय का वह निर्णय अत्यंत हीं पेचीदा था , कानून की साधारण जानकारी रखनेवाले भी अचंभित रह गयें। उक्त निर्णय के अनुसार मेयर द्वारा एक बार बनाई गई सशक्त स्थायी समिति भंग नही हो ्सकती न हीं उसे बदला जा सकता है भले हीं मेयर बदल जाय । इस निर्णय की आलोचना भी हुई । बाद में पटना नगर निगम के मेयर और उप मेयर के पद पर नये लोग आयें । पटना के मेयर ने नगरपालिका अधिनियम के प्रावधानों के तहत नई सशक्त स्थायी समिति के गठन का प्रस्ताव सरकार को भेजा , लेकिन अनुमति नही प्राप्त हुई । पटना उच्च न्यायालय ने भी पूर्ण बेंच के फ़ैसले को आधार मानते हुये कोई राहत नही दी , मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा। इस पुरे प्रकरण का सबसे मजेदार पहलू यह है कि बिहार सरकार के नगर एवं आवास विभाग में उप सचिव सह निदेशक अरविंद कुमार सिंह ने सभी नगर निगमों को पत्र भेजकर यह निर्देश दिया की भविष्य में सशक्त स्थायी समिति के बारे में कोई पत्रचार न करें। अरविंद कुमार सिंह के बारे में यह कहा जाता है कि अगर पैसा हो तो उनसे किसी भी तरह का आदेश निकलवाया जा सकता है और अरविंद कुमार सिंह भी खुद को सरकार तथा कानून से उपर समझते हैं। खैर उच्चतम न्यायालय के द्वारा अपील सं० २८४३/१० के द्वारा पटना उच्च न्यायालय की पूर्ण खंडपीठ द्वारा दिये गये निर्णय को खारिज कर दिया गया । लेकिन उसके बाद भी बिहार सरकार के अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी और उन्होने समझा की उच्चतम न्यायालय का उक्त आदेश सिर्फ़ पटना नगर निगम पर लागू है। गया में पुरानी सशक्त स्थायी समिति , उप मेयर मोहन श्रीवास्तव के प्रभाव में थीं। निगम के कामों में रस्साकसी का खेल शुरु हो गया , वैसे गया नगर निगम की सशक्त स्थायी समिति का रेट चार्ट बना हुआ है , जो भी प्रस्ताव वहां से पास कराना हो , उसके सदस्यों को पैसे दे दें वे कर देंगें। खैर इसी बीच गया नगर निगम के पार्षद लालजी प्रसाद जो एक अच्छे समाजसेवी के रुप में जाने जाते हैं, उन्होनें बिहार सरकार तथा नगर विकास विभाग के पास उच्चतम न्यायालय के आदेश के साथ एक पत्र लिखासरकार के द्वारा आज आदेश आ गया कि मेयर नई सशक्त स्थायी समिति का गठन कर सकती हैं। सरकार ने इस दरम्यान एक संशोधन भी नगरपालिका अधिनियम में कर दिया जिसकी अधिसुचना बिहार गजट (असाधारण ) २७ मई २०११ के द्वारा बिहार सरकार ने जारी कर दी. । नगरपालिका अधिनियम के पुराने प्रावधान के तहत निगमों पर प्रमंडलीय आयुक्त का नियंत्रण था, तथा धारा २५ के तहत आयुक्त को मेयर तथा उप मेयर को हटाने का भी प्रावधान था । नये अधिनियम में यह समाप्त कर दिया गया है और उसकी जगह लोक प्रहरी को यह अधिकार प्रदान ्किया गया है जिसकी अनुशंसा पर सरकार मेयर एवं उप मेयर को हटा सकती है। गया नगर निगम में नगर विकास विभाग के उप सचिव अरविंद कुमार सिंह का पत्र प्राप्त होते हीं , जोड-तोड की राजनीति शुरु हो गई है । बिहार मीडिया को प्राप्त जानकारी के अनुसार नई सशक्त स्थायी समिति में आने वाले नाम हैं, चितरंजन प्रसाद वर्मा , धर्मेन्द्र कुमार , मो० जावेद, मो० पाले, सुरेन्द्र यादव विधायक की बहन उषा देवी, कमांडर की मां लेकिन एक नाम पर जीच कायम है , वह नाम है लालजी प्रसाद का। इन नामों में चितरंजन प्रसाद वर्मा, तथा धर्मेन्द्र कुमार पुरानी सशक्त स्थायी समिति में भी थें। नये नामों में शामिल जावेद गया शहर के आतंक रह चुके हैं। गया नगर निगम का कार्यकाल भी अगले साल समाप्त हो रहा है। अभी से हीं उप मेयर का विरोधी खेमा विक्की शर्मा नामक एक अपराध के लिये चर्चित व्यक्ति को उप मेयर बनाने के लिये प्रयत्नशील है । इस से यह अंदाज लगाया जा सकता है कि ्गया नगर निगम का भविष्य बहुत अच्छा नही है । लाख बुराईंयों के वावजूद गया नगर निगम के उप मेयर मोहन श्रीवास्तव एक सामाजिक आदमी हैं , अगर अपनी कुछ गंदी आदतों और बुराइंयों पर नियंत्रण कर ले तो उनके अंदर शहर को नई दिशा देने की क्षमता है । सबसे बडी बुराई भ्रष्टाचार है । हर काम में कमीशन के कारण गया की जनता कराह रही है। राहत देनेवाली एक हीं बात हैं , वह है गया की मेयर शगुफ़्ता परवीन की खुबसुरती और उप मेयर मोहन श्रीवास्तव की स्टाईल ।
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