बेशर्मी मोर्चा




बेशर्मी मोर्चा

उपभोक्तावाद का प्रदर्शन

स्लट वाक की तर्ज पर दिल्ली मे एक बेशर्मी मोर्चा आज निकाला गया । बेशर्मी मोर्चा की मुख्य आयोजनकर्ता 19 वर्षीय उमंग सबरबाल नामक एक लडकी हैं। यह मोर्चा टोरंटो के स्लट वाक की तर्ज पर निकाला गया था। स्लट का शाब्दिक अर्थ है अनेक मर्दों के साथ सेक्स करने वाली महिला । दुसरा अर्थ है आलसी या बेतरतीब तरीके से रहनेवाली महिला ।
भारत में हो रहे बेशर्मी मोर्चा को एक अलग अर्थ देने के लिए महिलाओं से जुडे छेडखानी, बलात्कार , यौन शोषण जैसे मुद्दे को शामिल किया गया है। स्लट वाक की शुरुआत कनाडा के टोरंटो से हुई थी और उसका सिर्फ़ यह कारण था कि एक पुलिस अधिकारी ने लडकियों द्वारा कामोतजना पैदा करनेवाले छोटे कपडे पहनने पर टिपण्णी की थी कि लडकियों को छेडखानी से बचने के लिए स्लट जैसे कपडे पहनने से बचना चाहिये ।
दिल्ली मे आज हुये बेशर्मी मोर्चा को पर्दानशीन मोर्चा कहना ज्यादा उचित है । दिल्ली के मोर्चे में शामिल लडकियों ने बहुत हीं शालीन कपडे पहने थें। जिंस , टी शर्ट , शलवार समीज , या टाप । टोरंटो मे हुये मोर्चा में शामिल महिलाएं अपने वक्ष को दिखा रही थीं , यह बहुत बडा अंतर था । अंतर का कारण है संस्कर्ति । टोरंटो में हुये मार्च में हाथ में तख्ती थी उसपर लिखा था “मुझे जिसके साथ मन होगा उसके साथ सेक्स करुंगी “ , भारत में तख्तीनजर आई उसपर लिखा था “ सोच बदल कपडे नही “मतलब टोरंटो की नकल करने का मात्र एक कारण उभर कर आता है वह है ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित करना। हां इस मोर्चे के आयोजनकर्ताओं ने जो वीडियो तैयार किया था मोर्चे में भाग लेने के लिये लोगों को आमंत्रित करने का, वह समाज की सोच और महिलाओं की समस्याओं पर नये सिरे से विचार करने के लिये बाध्य करनेवाला था। मोर्चा के संयोजकों ने भी अपने विजुअल संदेश के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया था कि इस मार्च का उद्देश्य छोटे या तंग वस्त्र पहनने के लिये जनमत तैयार करना नही है बल्कि यह सम्मान के साथ महिलाओं के लिये भयमुक्त सुरक्षित समाज के निर्माण के लिये है।
परन्तु इतने गंभीर मसले के लिये क्या यही नाम मिला था ? और मोर्चे के नाम का मोर्चे के उद्देश्यों से क्या संबंध है । टोरंटो के स्लट वाक से भी इसका कोई संबंध नही दिखता । टोरंटो का स्लट वाक सिर्फ़ अपनी मर्जी के वस्त्र पहनने और समाज या संकर्ति से हटकर जी जीने के लिये आयोजित किया था ।
जहांतक पहनावे की बात है तो उसके निर्धारक बहुत सारे तत्व हैं। मौसम , वातावरण , संस्कर्ति , सामाजिक परिवेश , धर्म वगैरह । रह गई महिलाओं के साथ छेडछाड , यौन शोषण और बलात्कार तो यह बहुत हीं गंभीर मसला है । यौन शोषण का अप्रत्यक्ष संबंध आर्थिक आजादी, शिक्षा की कमी, सामाजिक सोच और नारी को एक वस्तु मानने वाली मानसिकता है ।
मोर्चा का मुद्दा निसंदेह सराहनीय था लेकिन उसे सुलझाने का सनसनीखेज तरीका उपभोक्तावाद से प्रभावित था। शायद इसके पिछे मीडिया को आकर्षित करना भी एक कारण रहा हो। मीडिया कैंडल लाईट विरोध के तरीके को तरजीह देती है और उस कसौटी में यह मोर्चा सफ़ल कहा जा सकता है । बेशर्मी मोर्चा बदलाव की बजाय सिर्फ़ सनसनी और उत्सुकता पैदा कर पाया और महानगरों के एक खास वर्ग तक हीं सिमट कर रह गया । सबसे ज्यादा यौन शोषण की शिकार छोटे शहर और गांवो की सामान्य घरों और गरीब परिवारों की महिलाये हैं। जो मन मसोसकर सबकुछ बर्दास्त करती हैं , अगर कभी विरोध करने की हिम्मत भी की तो लांछन लगाकर उल्टे उन्हें अपमानित किया जाता है , जैसा बिहार की रुपम पाठक के साथ हुआ । बिहार के उप-मुख्यमंत्री तक ने रुपम पाठक के चरित्र को कठघरे में खडा कर दिया। बेशर्मी मोर्चा अच्छे उद्देश्यों के लिये आयोजित होने के बावजूद उपभोक्तावाद का प्रदर्शन भर बन कर रह गया । फ़िर भी इसे एक अच्छा प्रयास मानना चाहिये और आशा करनी चाहिये कि आनेवाले दिनों में यह एक गंभीर प्रयास के रुप में उनतक पहुंचेगा जिनका यौन शोषण तो हो रहा है लेकिन उसके प्रतिकार के लिये कोई आवाज उनके साथ नही है ।






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