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Showing posts from March, 2015

M. chidanand murthy ousted humiliated

बेंगलुरु। 84 साल के मशहूर कन्नड लेखक, शोधकर्ता और इतिहासकार डॉ. एम. चिदानंद मूर्ति को बुधवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सामने एक कार्यक्रम में घसीटा गया। मूर्ति को कार्यक्रम से बाहर कर हिरासत में भी लिया गया। विधान सभा के बैंक्वेट हॉल में यह हैरान कर देने वाली घटना मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सामने हुई। राज्य सरकार ने कन्नड कवि देवार दासिमैय्या का जन्मशती मनाने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया था। मुख्यमंत्री बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। मशहूर लेखक चिदानंद मूर्ति अपने समर्थकों के साथ कार्यक्रम में पहुंचे। मूर्ति को इस बात पर आपत्ति थी कि दासिमैय्या को वछाना कवि माना गया। वछाना कन्नड में लेखन का एक रूप है, जो 11वीं सदी में ईजाद हुआ था। मूर्ति का कहना था कि जेडारा दासिमैय्या वछाना कवि हैं, देवारा दासिमैय्या नहीं। इस बात से खफा आयोजकों ने मूर्ति को घसीटकर हॉल से बाहर निकाल दिया। आयोजकों ने सिविल ड्रेस में मौजूद पुलिसकर्मियों का भी सहयोग लिया। बाद में मूर्ति को समर्थकों के साथ हिरासत में ले लिया गया। कार्यक्रम के बाद जब मुख्यमंत्री से इस पर सवाल किया गया तो वह टालमटोल करते दिख

मेरी भूल और सोशल मीडिया पर कट्टर संघपंथियो का सेंसर

मैंने फेसबुक से विदा ले लिया । किसी कट्टरपंथी के भय से नहीं बस कुछ ऐसा घटित हुआ 10 मार्च को वही एकमात्र कारण रहा । लेकिन सोशल मीडिया पर खासकर फेसबुक पर जिसे कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक मंच माना जाता था उस मंच पर अघोषित सेंसर लगाने का कार्य बहुत ही षडयंत्रकारी तरीके से आर एस एस के द्वारा चलाया जा रहा है जिसे मैंने बेहद करीब से महसूस किया । मोदी के सतासीन होने के बाद असहिष्णुता का जो दौर शुरू हुआ है उसकी तुलना इस्लामिक स्टेट यानी ISIS की असहिष्णुता से की जा सकती है । इसे अच्छी तरह समझने के लिए फेसबुक की कार्यप्रणाली, उपयोगकर्ताओं के लिए अपने अकाउंट की सेटिंग की व्यवस्था , पोस्ट शेरिंग, टैगिंग  और कमेन्ट की अनुमति की सेटिंग को समझना आवश्यक है । फेसबुक के उपयोगकर्ता अगर चाहे तो अपने पोस्ट को सभी उपयोगकर्ता  ( public ) के लिए खुला रख सकते है । उन्हें कमेन्ट , शेयर और टैग की अनुमति प्रदान कर सकते है । अन्यथा पोस्ट को सिर्फ पढने की अनुमति प्रदान कर सकते है , लाइक और शेयर की अनुमति प्रदान कर सकते है परन्तु कमेन्ट की नहीं । उपयोगकर्ता अगर चाहे तो अपने पोस्ट को सिर्फ अपने मित्र या व

दो कवितायें

अबूझ रिश्ते: क्या खोया क्या पाया यह कभी न समझ मे आया । बनते रिश्ते टूटते रिश्ते रिश्तो का यह खेल अजीब । जब जब जिसको चाहा मैंने काहें उसको न पाया । अबूझ पहेली जीवन की मै नादा कभी समझ न पाया । माता तूने कैसा यह अनयाय किया काहें को फिर दुनिया में मेरा तूने  निर्माण किया । कुछ को त्यागा मैंने कुछ ने मेरा त्याग किया । दोनों ने बस अपने अपने संबंधो का निर्वाह किया ।। हम भारत के लोग : तेज रफ़्तार से आती गाडी छोटा सा वह पिल्ला । उसके सर पे चढ़कर गुजरती यही है उसकी नियति कहाँ जुदा है इंसान की किस्मत उस बदकिस्मत पिल्लै से बीमारों का इलाज है मुश्किल जेब में नहीं है पैसा फुटपाथो पर मरना यही है उनकी नियति भले खड़ा हो सामने महंगा आरोग्यशाला यह कैसा इन्साफ यह कैसी सरकारें पैसा नही तो मर जाते है " हम भारत के लोग "। काश चिता में जला पाते हम भारत का संविधान ।

caste system and genetic relation

The caste system in South Asia — which rigidly separates people into high, middle and lower classes — may have been firmly entrenched by about 2,000 years ago, a new genetic analysis suggests. Researchers found that people from different genetic populations in India began mixing about 4,200 years ago, but the mingling stopped around 1,900 years ago, according to the analysis published today (Aug. 8) in the American Journal of Human Genetics. Combining this new genetic information with ancient texts, the results suggest that class distinctions emerged 3,000 to 3,500 years ago, and caste divisions became strict roughly two millennia ago. Though relationships between people of different social groups was once common, there was a "transformation where most groups now practice endogamy," or marry within their group, said study co-author Priya Moorjani, a geneticist at Harvard University. Ancestral populations Hindus in India have historically been born into one of four major

मिश्र ने दिखाई हिम्मत : मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख को फांसी की सजा

यह एक एतिहासिक फैसला है । मिश्र में क्रान्ति के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड ने आन्दोलन का फ़ायदा उठाते हुए वहां अपने समर्थक मोरसी की सरकार बनाई जिसका बाद में वहां की आवाम ने कडा विरोध किया परिणाम मोरसी को वहां के सेना के समर्थन से सता से बेदखल कर के सैन्य समर्थित सरकार स्थापित की गई थी जिसके खिलाफ मुस्लिम ब्रदरहुड ने अगस्त 2013 में दंगा भड़काने का प्रयास किया जिसमे 1000 लोग मारे गए थे । मिश्र की एक अदालत में मुकदमा चल रहा था जिसमे मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख मोहम्मद बदी सहित 13 को फांसी की सजा दी गई है । मुस्लिम ब्रदरहुड दुनियाभर के इस्लामिक आतंकियों की मदद अपने पच्चीसो संगठन के माध्यम से करता है और इस्लामिक आतंकवादी इसी संगठन की देंन हैं । भारत में इसका कट्टर समर्थक जमाते इस्लामी हिन्द है जिसके छात्र संगठन OIS  ने मेरे उपर गलत मुक़दमा हापुड़ में किया था । बांग्ला देश में जमाते इस्लामी बैन हो चूका है और उसके प्रमुख को फांसी दी जा चुकी है परन्तु भारत में सरकार ने जमाते इस्लामी हिन्द के खिलाफ कोई कदम कभी नहीं उठाया । भारत के बुद्धिजीवी तबका खासकर मुस्लिम बुद्धिजीवी इस मुस्लिम ब्रदरहुड की विभिन्

टुकुर टुकुर ताके काहें रे बहेलिया

कड़ा जतन से पिंजड़ा बनवले , बड़ा लगवले लासा चतुर चिरईया हाथ न आईल , उड़ गईल  देके झांसा । तोड़ के पिंजरा चिरइया त उड़ी गइल , तोड़ के पिंजरा चिरइया त उड़ गइल । टुकुर टुकुर ताके काहें रे बहेलिया , टुकुर टुकुर ताके काहें रे बहेलिया । छोड़ के धरती छुए असमनवा पीछे पीछे भागे काहें रे बहेलिया पीछे पीछे भागे काहें रे बहेलिया । काहे तू फेके सोनवा के दनवा , काहे तू फेके सोनवा के दनवा । सोनवा देखा के ललचाये मोरा मनवा  , सोनवा देखा के ललचाये मोरा मनवा।। बगिया के मैना त ले गईले सुगना , बगिया के मैना त ले गईले सुगना अग्गल बग्गल झांके काहें रे बहेलिया , अग्गल बग्गल झांके काहें रे बहेलिया ।। तोड़ के पिंजरा चिरइया त उड़ गइल । हमरा त भावे बलम परदेशिया ,हमरा त भावे बलम परदेशिया लोगवा के लागे काहे भलवा गडसिया , लोगवा के लागे काहे भलवा गडसिया , चाँद सुरुज के नजरिया न ठहरे , चाँद सुरुज के नजरिया न ठहरे , जग्गर मग्गर लागे सैयां के सुरतिया , जग्गर मग्गर लागे सैयां के सुरतिया ।। तोड़ के पिंजरा चिरइया त उड़ गइल । पूर्व जनम के हमरा पिरितिया ,हम नाही जानी मानी दुनिया के रीतिया । तोड़ किनारा उमड़ गईली नदिया ,

भूमिहार :पहचान की तलाश में भटकती एक नस्ल

हिन्दुस्तान की हर जाती का कही न कही जिक्र प्राचीन धार्मिक - इतिहासिक पुस्तको में मिल जाएगा परन्तु भूमिहार जाति का कही कोई जिक्र प्राचीन ग्रंथो में नहीं मिलेगा । इनकी उत्पति के विषय में विभिन्न मिथ लिजेंड मिलेगा परन्तु प्रमाणिक शोध  पुस्तको में इनका जिक्र  कही शुद्र , कहीं मंगोल मुजफ्फरपुर बिहार  के हुसैनी ब्राहमण , कहीं राजपूत पिता और ब्राहमण माता की सन्तान , कहीं बुद्धिस्ट ब्राह्मण से हिन्दू धर्म में वापस आई जाति के रूप में मिलता है । चुकि प्रमाणिक शोध पुस्तके इन्हें ब्राहमण नहीं मानती और मिश्रित जाती यानी hybrid मानती है जिसके कारण जातीय व्यवस्था वाले भारत में ये खुद को असहज महसूस करते है और कुछ हद तक हीन  भी इसलिए शोध पुस्तको को ये स्वीकार नहीं करते है । खुद को ब्राहमण साबित करने के लिए ये स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा 1916 में  लिखित पुस्तक " भूमिहार ब्राह्मण एक परिचय  " को प्रस्तुत करते हैं  । इस पुस्तक में हिन्दुओ के अनेको धार्मिक ग्रंथो का हवाला देते हुए ब्राहमणों को दो वर्ग में सहजानंद ने विभाजित किया था " याचक " एंव अयाचक "" यानी एक भिक्षाटन करन

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

हिन्दुस्तान की हर जाती का कही न कही जिक्र प्राचीन धार्मिक - इतिहासिक पुस्तको में मिल जाएगा परन्तु भूमिहार जाति का कही कोई जिक्र प्राचीन ग्रंथो में नहीं मिलेगा । इनकी उत्पति के विषय में विभिन्न मिथ लिजेंड मिलेगा परन्तु प्रमाणिक शोध  पुस्तको में इनका जिक्र  कही शुद्र , कहीं मंगोल मुजफ्फरपुर बिहार  के हुसैनी ब्राहमण , कहीं राजपूत पिता और ब्राहमण माता की सन्तान , कहीं बुद्धिस्ट ब्राह्मण से हिन्दू धर्म में वापस आई जाति के रूप में मिलता है । चुकि प्रमाणिक शोध पुस्तके इन्हें ब्राहमण नहीं मानती और मिश्रित जाती यानी hybrid मानती है जिसके कारण जातीय व्यवस्था वाले भारत में ये खुद को असहज महसूस करते है और कुछ हद तक हीन  भी इसलिए शोध पुस्तको को ये स्वीकार नहीं करते है । खुद को ब्राहमण साबित करने के लिए ये स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा 1916 में  लिखित पुस्तक " भूमिहार ब्राह्मण एक परिचय " को प्रस्तुत करते हैं  । इस पुस्तक में हिन्दुओ के अनेको धार्मिक ग्रंथो का हवाला देते हुए ब्राहमणों को दो वर्ग में सहजानंद ने विभाजित किया था " याचक " एंव अयाचक "" यानी एक भिक्षाटन करन

अभिव्यक्ति की आजादी और गालियाँ

"Miss a meal if you have to, but don't miss a book." --Jim Rohn अभिव्यक्ति की आजादी का बहुत सरल अर्थ है । " आप जो कहना चाहते है उसे कहने की आजादी " freedom to express what you wish " दिक्कत यह है कि इस छोटे से शब्द का दायरा बहुत बड़ा है जिसके कारण अक्सर गलतफहमियां पैदा हो जाती है जिनका परिणाम कभी कभी बहुत ही भयानक होता है । हमने देखा मोहम्मद के कार्टून के लिए charlie hebdo शार्ली एब्दो । इतेफाक से जब वह  घटना हो रही थी मै  एक विदेशी ब्लॉग पर था । तत्क्षण न्यूज फ्लैश हुआ । पहले से विवाद था। हमले हुए थे । मुकदमा चला था। शायद दुनिया का पहला व्यक्ति था मै जिसने तुरंत कार्टून को अपने फेसबुक वाल पर लोड किया , घटना के खिलाफ पोस्ट लिखा।   इस्लामिक संगठनो के संयुक्त राष्ट्र संघ वाला ग्रुप organisation of islamic countries. पूर्व से ही ईशनिंदा को अंतराष्ट्रीय स्तर पर लागू करवाने की योजना बनाता रहा और प्रस्ताव भी संयुक्त राष्ट्र संघ में ला चुका था जो पारित नहीं हुआ ।  यह इस्लामिक राष्ट्रों के संगठन के 57 सदस्य है इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में इन्हें ignore करना संभव न

आप दिखते कैसे हैं राहुल जी ?

उल्लू , मुर्ख । पकडाने की नौबत आ गई थी तो और कोई बहाना नहीं सुझा ? चपंदुस सोचा भी नहीं जिसके लिए SPG सेक्युरिटी  है उसका हुलिया पता करने का बहाना बनाओगे तो लोग हसेंगे ही न ? कल को पीएम के घर चोरी करने घुस जाना । पकडाने पर कहना हुलिया पता लगा रहे थे । नाकाबिल , कमबख्तो , आधी नाक जो थी उसे भी कटवा दिया । क्या करे साब जी । आपने भी कहाँ बताया था कौन से नम्बर वाला बहाना बनाना है पकडाने पर ? एक एस एम एस मार दिया होता । ख़ाक एस एम एस मारता ?मुझे हीं कहाँ पता था नौबत यहाँ तक आ जायेगी । खैर छोडो साब खुश है  , दोनों साब बहुत खुश है । चंगु साब तो हीहीही कर के हस रहा था । जब से सेवको के प्रधान  की नौकरी लगी है साब की मुस्कान की लंबाई चौड़ाई वो क्या कहते है स्माइलोजिस्ट तय करता है । चंगु साब ज्यादा चौड़ा मुह फ़ैला ही नहीं सकता । काहे नाही फैला सकता साब जी ? यह तो हसी है बरबस निकल आती है भला इसको कंट्रोल कैसे किया जा सकता है ? तू रहा फटीचर का फटीचर । एकदम पक्क़ा दिल्ली पुलिस तू ही तो है । मुर्ख चंगु साब के मुह के अन्दर दोनों तरफ गाल पर निकोप्लास्ट जैसा चिपका देता है । मुह फैलेगा ही नाही । उ उ

Comedy hunger with Nitish

Nitish on hunger strike against amemdmemt in  Land acquisition  bill.when these politicians will be mature enough to admit improvement in literacy rate after independence ?  First CM Late Shri krishna singh is still glorified . Staunch supporter of Mr. Nitish are not only worship Shri krishna singh rather leave no opportunity to project him ideal and reformer.  In the year of 1950 Bihar land reform act was made and for equal distribution of land ceiling act was enacted . after abolition of Zamindari , land excess of ceiling limit was vested in state ,this shri Krishna singh 1st CM, stalled reform and brought drastic changes in both the act in order to provide land lords to hold land beyond ceiling , in the of Kachahri,deity,temple,garden .  Those amendments were much more burdening than that of this one made by Modi. I am not favouring amendment in land acquisition act but showing hypocritic face of politicians.  Mr. Nitish is still in power , NDA was in power for eight years, now afte

फेसबुक मेरी नजर से भाग 3 : गर कभी भिक्षुक बन आये गोपा तेरे द्वार .......

फेसबुक मेरी नजर से भाग 3  : गर कभी भिक्षुक बन आये गोपा तेरे द्वार ....... मन के सावंरिया बन गईल तूं चुपके से इ का कईल तूं नस नस में तू गइल समा डाल दिहल परेशानी में सुबह के साथ ,टी के पहले, फेसबुक । मुड ठीक रहा तो चंद पंक्तियों की पोस्ट , कभी शायरी, कभी कोई कविता , कभी कोई कटाक्ष, कभी फिल्मो की चंद लाईने । हमें थोड़े ही न पता था कि फेसबुक के जंगल  में भेडियो के दल ने कब्जा ज़माना शुरू कर दिया है । पता भी कहाँ से रहता ? जहां शुरुआत के दौर में ही यशवत सिंह , विनायक विजेता , अनिता गौतम जैसे लोग वास्तविक जीवन में भी आभासी से बेहतर मिले थे । यह सबकुछ प्रारंभ हुआ लोकसभा चुनाव के पूर्व । हालांकि फेसबुक का आन्दोलन एंव  राजनितिक के लिए नियोजित ढंग से उपयोग की शुरुआत IAC ( इंडिया अगेंस्ट करप्शन ) यानी अन्ना के आन्दोलन के दौरान केजरीवाल टीम ने बृहद पैमाने पर शुरु किया । बहस, तर्क वितर्क का वह सबसे अच्छा दौर था । मै अन्ना सहित केजरीवाल की पुरी टीम के खिलाफ था । जोरदार बहसे होती थीं । गर्मागर्म , ठीक तुरंत कढ़ाही से निकाल कर परोसे गए पकौडो की तरह जीभ को जला देने वाली लेकिन शायद

मारे गये ग़ुलफाम उर्फ तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु

मारे गये ग़ुलफाम उर्फ तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है। लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में! कंट्रोल का जमाना! हिरामन कभी भूल सकता है उस जमाने को! एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गाँठों से भरी गाड़ी, जोगबानी में विराटनगर पहुँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था। फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता। उसके बैलों की बड़ाई बड़ी गद्दी के बड़े सेठ जी खुद करते, अपनी भाषा में। गाड़ी पकड़ी गई पाँचवी बार, सीमा के इस पार तराई में। महाजन का मुनीम उसी की गाड़ी पर गाँठों के बीच चुक्की-मुक्की लगा कर छिपा हुआ था। दारोगा साहब की डेढ़ हाथ लंबी चोरबत्ती की रोशनी कितनी तेज होती है, हिरामन जानता है। एक घंटे के लिए आदमी अंधा हो जाता है, एक छटक भी पड़ जाए आँखों पर! रोशनी के साथ कड़कती हुई आवाज - 'ऐ-य! गाड़ी रोको! साले, गोली मार देंगे?' बीसों ग