अभिव्यक्ति की आजादी और गालियाँ

"Miss a meal if you have to, but don't miss a book."

--Jim Rohn

अभिव्यक्ति की आजादी का बहुत सरल अर्थ है । " आप जो कहना चाहते है उसे कहने की आजादी " freedom to express what you wish " दिक्कत यह है कि इस छोटे से शब्द का दायरा बहुत बड़ा है जिसके कारण अक्सर गलतफहमियां पैदा हो जाती है जिनका परिणाम कभी कभी बहुत ही भयानक होता है । हमने देखा मोहम्मद के कार्टून के लिए charlie hebdo शार्ली एब्दो । इतेफाक से जब वह  घटना हो रही थी मै  एक विदेशी ब्लॉग पर था । तत्क्षण न्यूज फ्लैश हुआ । पहले से विवाद था। हमले हुए थे । मुकदमा चला था। शायद दुनिया का पहला व्यक्ति था मै जिसने तुरंत कार्टून को अपने फेसबुक वाल पर लोड किया , घटना के खिलाफ पोस्ट लिखा। 


 इस्लामिक संगठनो के संयुक्त राष्ट्र संघ वाला ग्रुप organisation of islamic countries. पूर्व से ही ईशनिंदा को अंतराष्ट्रीय स्तर पर लागू करवाने की योजना बनाता रहा और प्रस्ताव भी संयुक्त राष्ट्र संघ में ला चुका था जो पारित नहीं हुआ । 


यह इस्लामिक राष्ट्रों के संगठन के 57 सदस्य है इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में इन्हें ignore करना संभव नहीं है । इसाईं कट्टरपंथी भी इस प्रस्ताव के पक्ष में थे । 


दुर्भाग्य तो यह था कि हिन्दू कट्टरपंथी भी चाहते थे कि ईशनिंदा कानून बने ।


आश्चर्य ! जहां आपसी संवाद , तर्क वितर्क , शास्त्रार्थ की गुंजाइश न हो उस खेमे से ईशनिंदा कानून के लिए प्रयास तो समझ में आता है परन्तु हिन्दू, बौद्ध,जैन,सिक्ख, क्न्फ्युसियस, ताओ , लाओजी , मार्क्स के अनुयायी भी मौन धारण कर के समर्थंन करे यह समझ में नहीं आता ।


खैर फिलहाल विषय तक सिमित रहता हूँ ।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जो तत्व है उनका ध्यान रखना आवश्यक है ।


यह आपको नग्नता का अधिकार सार्वजनिक स्थल पर प्रदान नहीं करता है सिवाय किसी अधिकार के हनन के विरोध में वस्त्र उतारने को छोड़कर ।


दीमापुर की घटना , kiss day, बेशर्मी मार्च , सउदी अरब में दस साल और 1000 कोड़े  की सजा काट रहे #Raif_badawi के समर्थन में महिलाओं द्वारा फ्रांस में किया गया अर्द्ध नग्न प्रदर्शन जैसी घटनाओं को नग्नता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है क्योकि इससे किसी अन्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता है ।


इसे बेहतर तरीके से समझना हो तो न्यूड पेंटिंग और कामोतेजक फोटो के बीच के अंतर से समझा जा सकता है । 


माँ बहन की गालियाँ कभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं आ सकती हैं । 


किसी व्यक्ति से किसी भी प्रकार के कार्य या गतिविधियों से गुस्सा होकर भी आप उसकी माँ बहन को गालियाँ नहीं दे सकते । उनका कोई वास्ता आपसे नहीं होता है ।


यह तो हजारो साल पुरानी पुरुषवादी मानसिकता है जिसने मर्दों को अभय दिया महिलाओ को श्राप ।
मैंने भी गलतियाँ की फेसबुक पर भी की । 


एक पोस्ट में लिखा । "" भाजपाई अपनी बहनों का रिश्ता करे अमित शाह से "" 


मेरे इस पोस्ट पर एक कमेन्ट आया महिला का ही । एक दम से कोड़े मारने वाला कमेन्ट बगैर किसी गाली के ।


उसने मात्र यह पूछा "" भजपाइयो से दुश्मनी हो सकती है उनकी माँ बहन ने आपका क्या बिगाड़ा है ""
ओह ! घडो पानी फिर गया । उस महिला का आज भी आभारी हूँ । उसने मुझे कुछ सिखाया । 


पोस्ट को तो एडिट किया ही , यह भी निश्चय किया कि आयन्दा कभी भी इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करूंगा । अब नहीं करता हूँ ।

गालियाँ सिर्फ आपकी कमजोरी को दर्शाती है और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता की लड़ाई को कमजोर बनाती है ।

कुछ फोटो , पेंटिंग , कार्टून दे रहा हूँ । आप नग्नता और विरोध के लिए वस्त्र उतारने का अंतर समझ जायेंगे ।

Comments

  1. साले भड़वे

    हरियाणा के जाटों पर जो तूने नस्लभेदी व अश्लील टिप्पनी करी व फेसबुक पर पोस्ट करी
    वो तेरी अभिव्यक्ता आज़ादी?
    और हम उस पोस्ट के विरोध में तुझे कुछ बोलें तो हम कानून तोड़ रहे हैं?

    गाण्ड में डाल ले अपनी में एैसी आज़ादी साले दल्ले !!

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  2. हनुमान जी पर उल्टी सीधी टिप्पनी किस अभिव्यक्ता की आज़ादी है?

    और जब हम तेरी इस गलती पे तुझे खरी खोटी सुनाऐं तो पहले फेसबुक से, फिर टविट्टर पर हमको बलाक करता है !
    धमकी भी हमको तू ही देता है
    और जब हम तेरे को काॅल करें तो तू फोन भी नहीं उठाता
    उल्टा हमारा एैडरैस पूछता है

    चूतिऐ
    फोन उठा अपना
    और बात कर हम से
    अगर ऐक बाप की औलाद बै तो

    ReplyDelete

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