टाइम्स आफ़ इण्डिया, पटना के कर्मचारी पन्द्रह दिन से धरने पर





टाइम्स आफ़ इण्डिया, पटना के कर्मचारी पन्द्रह दिन से धरने पर



टाइम्स ऑफ़ इण्डिया, पटना संस्करण १५ जुलाई २०११ को कुम्हरार स्थित टाइम्स समूह के प्रिंटिग प्रेस में ही छपा था लेकिन १६ जुलाई २०११ का टाइम्स ऑफ़ इण्डिया टाइम्स हाउस के अपने प्रिंटिंग प्रेस की बजाय प्रभात खबर के प्रिंटिंग प्रेस से क्यों छपने लगा...? अख़बार समूह ने प्रिंटिंग प्रेस बंद करने की इजाजत बिहार सरकार से क्यों नहीं ली...?
एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र में कॉरपोरेट सेक्टर के सभी कार्य राष्ट्रीय कानून के तहत निर्धारित होते हैं लेकिन टाइम्स ऑफ़ इण्डिया प्रबंधन ने अपने कार्यरत कर्मचारियों को कोई सूचना दिए बिना अचानक सेवामुक्त करने का अधिकार कहाँ से प्राप्त कर लिया..? क्या मनिसाना आयोग का बकाया वेतन देने और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित वेजबोर्ड को लागू करने से पहले वेज बोर्ड के प्रेस कर्मियों को सेवा से निकाल बाहर करना मानवाधिकार का हनन नहीं है..? बिहार में सुशासन की सरकार मीडिया प्रायोजित ख़बरों पर टिकी है और वजीरे-सदर नितीश कुमार टाइम्स ऑफ़ इण्डिया जैसे बड़े मीडिया हाउस से अपना रिश्ता मधुर रखना चाहते हैं.
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया प्रिंटिंग प्रेस को गैर क़ानूनी तरीके से बंद किये जाने से अचानक ४४ कर्मचारी छंटनीग्रस्त होकर सड़क पर आ गए है .गौरतलब है कि टाइम्स ऑफ़ इण्डिया एम्लाानक ई यूनियन समाचार समूह से जुड़ा देश का सबसे सशक्त ट्रेड -यूनियन है, जो अपने हक़ के लिए वर्षों से पटना हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में लडाई लड़ रहा है. टाइम्स यूनियन १९९८ से लागू मनिसाना आयोग के आधार पर बकाया वेतनमान के भुगतान के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है. SLP(C)NO-34045/२००९ पर सुप्रीम कोर्ट ३१ अक्तूबर २०११ को अंतिम फैसला सुनाएगा.
ज्ञात हो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ५ जनवरी २०११ और ११ मार्च २०११ को टाइम्स कर्मियों क़ी याचिका के सन्दर्भ में टाइम्स समूह को यथास्थिति (स्टेटस को )बनाये रखने का निर्देश दिया था. माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश के बावजूद याचिकाकर्ता यूनियन के कर्मचारियों को सेवामुक्त करने के लिए प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने का निर्णय माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों क़ी अवमानना है. स्मरण हो कि १९९५ में टाइम्स समूह के स्वामी समीर जैन ने पटना स्थित नवभारत टाइम्स को बेवजह बंद कर दिया था, जिस से २५० पत्रकार -गैर पत्रकारों की छंटनी हो गयी थी.

टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के छंटनीग्रस्त कर्मचारी १४ दिनों से टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पटना के फ्रेज़र रोड स्थित पटना कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हैं, पर बिहार के किसी मीडिया समूह के लिए यह प्रकाशन योग्य समाचार नहीं है. पटना दूरदर्शन और आकाशवाणी को धन्यवाद देना चाहिए जिसने इस खबर को प्रमुखता से प्रसारित किया है. बिहार के मीडिया समूह ने जिस तरह से गरीब छंटनीग्रस्त अखबारी कर्मियों के १४ दिनों से जारी धरने की खबर को प्रकाशन से बाहर रखा है, इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि बिहार में गरीब और सताए हुए समाज की पत्रकारिता बंद हो चुकी है. टाइम्स ऑफ़ इण्डिया इम्प्लाहइज यूनियन के अध्यक्ष (सदस्य, भारतीय प्रेस परिषद) अरुण कुमार, सचिव लाल रत्नाकर ने भड़ास समूह को पीपुल्स जर्नलिज्म के लिए आभार भेजा है, जिसने लगातार पटना के टाइम्सकर्मियों की पीड़ा को अपनी आवाज़ दी है. नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने पटना के टाइम्सकर्मियों के आन्दोलन को अपना समर्थन भेजा है.
बिहार के सभी अखबारों के लिए यह शर्म की बात है कि वर्षो से सेवारत इन कर्मचारियों को निकाल दिया गया और कोई अखबार इनकी आवाज को नही उठा रहा है । उल्टे प्रभात खबर अपने प्रेस में टाइम्स आफ़ इण्डिया को छपाई की सुविधा प्रदान कर रहा है । यह प्रभात खबर पाठक को बहलाने के लिये अपने अखबार में निकालता है कि वह उनके दुख दर्द को उठायेगा जबकि प्रेस के कर्मचारियों की आवाज को उठाना तो दूर रहा और टाइम्स का साथ दे रहा है । नपुंसक पत्रकार और नपुंसक अखबार ।
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