ग्रेटर नोएडा जमीन अधिग्रहण रद्द का आदेश सही : उच्चतम न्यायालय

सीआरपी भर्ती घोटाला में चार्जशीट
सीबीआई ने २००७ में बिहार और झारखण्ड में केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल में भर्ती में अनियमितताओं के मामले में महानिरीक्षक पुष्कर सिंह और कुछ कांस्टेबलों सहित २८ कर्मियों के खिलाफ पटना में सीबीआई अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया है। इन सभी २८ व्यक्तियों को १८ जुलाई को सीबीआई अदालत में हाजिर होने को कहा गया है। बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब में कांस्टेबलो की भर्ती में गृहमंत्रालय को सरसरी तौर पर गड़बड़ी मिलने के बाद ये मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। झारखण्ड और बिहार में २००७ और २००९ के बीच एक हजार से अधिक कांस्टेबल भर्ती किये गये थे, तभी ये गड़बड़ी सामने आई। सीबीआई सूत्रों का कहना है कि उत्तरप्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में इस घोटाले में शामिल और लोगों का पता लगाने की कोशिश जारी है।
ग्रेटर नोएडा जमीन अधिग्रहण रद्द का आदेश सही : उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा में किसानों से १५६ हैक्टेयर से अधिक जमीन लेकर बिल्डर्स को देने के उत्तरप्रदेश सरकार के फैसले को रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया है। न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण से दस लाख रूपये की लागत वसूली करने को कहा है और निर्देश दिया है कि ये जमीन गांव वालों और किसानों को लौटाई जाए।
न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और ए के गांगुली की पीठ ने कहा कि ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने जिस उद्देश्य के लिए जमीन का अधिग्रहण किया था, उसका पूरी तरह उल्लंघन करते हुए जमीन बिल्डर्स को दे दी। न्यायाधीशों का कहना था कि भूमि का उपयोग औद्योगिक से बदलकर रिहायशी करने के लिए सरकार की मंजूरी मिलने से पहले ही प्राधिकरण ने ये जमीन कुछ बिल्डर्स को आवंटित कर दी।
न्यायालय ने ये आदेश ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और सुपरटैक तथा आम्रपाली सहित कुछ डेवलपर्स और बिल्डर्स की याचिका पर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।


गुजरात सिरियल बम ब्लास्ट का ट्रायल जल्द शुरु
उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में २००८ में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के ५० से अधिक आरोपियों पर मुकदमा चलाने का रास्ता खोल दिया है। इन विस्फोटों में ५६ लोग मारे गये थे। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और सिरियाक जोसेफ की पीठ ने आरोपियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि भाजपा शासित राज्य में मुकदमे की सुनवाई निष्पक्ष ढंग से नहीं हो सकती, क्योंकि २००२ के गोधरा रेल अग्निकाण्ड के बाद साम्प्रदायिक माहौल बहुत उग्र है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तब से मामला काफी शांत हो गया है इसलिए आरोपियों का ये दावा महज आशंका है। लेकिन न्यायालय ने आरोपियों को ये छूट दे दी कि अगर उन्हें लगे कि मुकदमें की सुनवाई वास्तव में खराब माहौल में हो रही है तो वे दोबारा अपील कर सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय ने २००९ में मुकदमे की सुनवाई पर स्थगन आदेश दे दिया था, क्योंकि आरोपियों ने दलील दी थी कि जांच एजेंसिया और सरकारी वकील पूरी तरह सत्तारूढ़ दल के पक्ष में हैं, इसलिए मुकदमे की सुनवाई राज्य से बाहर कराई जाए।
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