मंडी की बेटियां

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बिहार के मुजफ़्फ़रपुर जिले के चतुर्भुज स्थान नामक जगह पर स्थित वेश्यालय का इतिहास मुगलकालीन है ।यह जगह भारत नेपाल सीमा के पास है । इसका नाम वहां स्थित प्राचीन चतुर्भुज मंदिर के नाम पर है। यहां तकरीबन दस हजार की आबादी है और वेश्यावर्ति परिवारिक पारंपरिक पेशा है यानी मां के बाद उसकी बेटी की नियति भी यह पेशा हीं है । हालांकि बदलाव की किरण यहां नजर आ रही है । चतुर्भुज स्थान की सेक्स वर्कर द्वारा ३२ पेज की हस्तलिखित मासिक मैगजीन जुगनू का प्रकाशन किया जाता है ।उन्होने एक गैर सरकारी संगठन “परचम “की स्थापना भी की है । नसीमा नाम की मंडी की एक बेटी ने इस पत्रिका के प्रकाशन के लिये मेहनत की अब वह मेहनत रंग ला रही है । इस पत्रिका का प्रसार अमेरिका सहित बहुत सारे देशों में हो रहा है । नसीमा चतुर्भुज स्थान में पैदा हुई थी । नसीमा जब आठ साल की थी , उसकी मां ने नसीमा के पिता को छोडकर दुसरी शादी कर ली ।उसने नसीमा को भी छोड दिया । नसीमा के पिता भी उन सबको छोडकर गांव चले गयें । नसीमा की परवरिश चतुर्भुज स्थान की एक बुढी महिला जिसे वह दादी कहती है ,उसने की । उस महिला ने वेश्यावर्‍ति से कमाकर नसीमा को पढाया –लिखाया । चतुर्भुज स्थान के ३०० वर्षों के इतिहास में नसीमा पहली लडकी थी जिसने शिक्षा प्राप्त की। नसीमा ने चतुर्भुज स्थान में शरीर बेचने के परंपरागत धंधे को अपनाने की बजाय कुछ अलग करने का निश्चय किया । उसने स्थानीय बैंकों से कर्ज लेकर मोमबती , माचिस, बिंदी, अगरबती जैसे छोटे-छोटे व्यवसाय के माध्यम से वहां की वेश्याओं को शरीर को बेचकर पैसा कमाने की जगह पर आय के अन्य विकल्प उपलब्ध कराना शुरु किया । उसने वहां की सेक्स वर्करों को इस बात के लिये राजी किया की वे अपने बच्चों को स्कुल भेजें । आज तकरीबन हर बच्चा स्कुल जाता है । पहले शरीर व्यवसाय में लिप्त रहीं पचासों सेक्स वर्कर नसीमा के साथ कार्य कर रही हैं , वह उन्हें, पढना-लिखना सिखाती है , पत्रिका का संचालन करती हैं। नसीमा और ये सभी मिलकर दुसरी महिलाओं को इस व्यवसाय में आने से रोकती हैं। विशेषकर पडोसी देशों मुल्क नेपाल और बांग्लादेश से , विगत वर्ष तकरीबन २० नई लडकियों को उनके घर वापस भेजने में ये कामयाब हुइं।
लेकिन इनके कामों ने दुश्मन भी पैदा कर दियें । वेश्यालय की प्रमुख रानी बेगम को आर्थिक क्षति होने लगी , परिणाम था उसके गुंडों और दलालों द्वारा नसीमा तथा उसके सहयोगियों को खुलेआम अपमानित किया गया और मारपीट की गई । एक फ़िल्मकार गौतम सिंह ने नसीमा , उसके संघर्ष और मंडी की जिंदगी पर फ़िल्म बनाने की सोची । क्या-क्या समस्या पैदा हुई और कैसा रहा उनका अनुभव यह भी रोमांचक है । रानी बेगम तथा उसके गुंडो से कोई समस्या न पैदा हो , इसलिये फ़िल्म की टीम ने रानी से जो एक विशाल मकान में रहती थी , मुलाकात की । हालांकि रानी बेगम ने नसीमा के कार्यों पर कटा क्ष भी किया लेकिन यह वादा किया कि फ़िल्म बनाने में वह रुकावट नही पैदा करेगी। बिहार के नारी सुधार केन्द्रों की स्थिति भी चिंतनीय है। नारी सुधार घर के प्रभारी ्भी पुरुष भी हैं इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वहां किस तरह का सुधार होता होगा। आम आदमी की संवेदनहीनता की दास्तां है सीतामढी जिले के बोहा टोला नाम की वह वेश्या मंडी जिसे वहां के गांववालों ने २००८ में जलाकर खाक कर दिया तथा एक वर्ष के बच्चे को भी उस जलती आग में फ़ेक दिया । एक साठ वर्षीय बुढी –बिमार महिला के साथ दस गांव वालों ने बलात्कार भी किया । परचम की सद्स्या जब वहां गई , तथा उनके समर्थन में धरने पर बैठीं तो उनको जेल जाना पडा । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शिकायत करने पर , उन्होनें उल्टा सेक्स वर्करों के व्यवहार को इस आग लगाने वाली घटना का दोषी कहा लेकिन जब नसीमा तथा उसकी सहयोगियों ने पुछा कि क्या गलत व्यवहार करनेवालों को आग में जलाना सही है ? मुख्यमंत्री ने जवाब नही दिया । बाद में सरकार ने एक टीम बनाकर सेक्स वर्करों की समस्या का हल ढुंढने की जिम्मेवारी सौंपी । ३२ वर्षीय नसीमा ने परचम के कार्यों को आगे बढाने के लिये अपनी जैसी अन्य लडकियों को भी प्रेरित किया है और आज परचम में सेकेंड लाईन भी तैयार है जो नसीमा के न रहने की स्थिति में भी उसके कार्यों को सुचारु रुप से संचालित करेगी

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Comments

  1. बेहद दुखद पर सच यही है। जिसे हम समाज कहते है उसे आइना देखना पसंद नहीं और फिर नसीमा जैसी साहस हर किसी के पास कहां। नसीमा के साहस को सलाम।

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