तबाही के रास्ते पर ईरान

तबाही के रास्ते पर ईरान
ईरान और इजराइल के बीच युद्ध के टलने की कोई संभावना अब नहीं दिखती । ईरान अपने गुप्त परमाणु कार्यक्रमों को बंद नहीं करनेवाला और इजराइल कभी भी ईरान को परमाणु संपन्न राष्ट्र नहीं बनने देगा । परमाणु संपन्न ईरान, इजराइल के अस्तित्व के लिये खतरा है । ईरान ने कभी भी इजराइल को मान्यता नही दी और हमेशा यह दुहराता रहा है कि येरुशलम को इजराइल से मुक्त करायेगा । लेबनान में हजीबुल्लह और गाजापट्टी में हमास को भी ईरान ने हमेशा मदद की है । इजरायल को पता है , अगर ईरान परमाणु बम का निर्माण कर लेता है तो उसका पहला निशाना इजराइल हीं होगा वैसे हालात के पैदा होने से बेहतर है पहले हीं हमला करके ईरान की परमाणु क्षमता को नष्ट कर देना । इस युद्ध का अंजाम भी सभी को पता है । ईरान में तबाही । हालांकि आबादी के हिसाब से ईरान , इजराइल से दस गुणा बडा है । जहां इजराइल की आबादी मात्र ७५ लाख है वहीं ईरान की सात करोड से उपर । ईरान के पास सैन्य हथियार भी इजरायल से बहुत अधिक हैं। लेकिन इन सबके बावजूद युद्ध की स्थिति में इजरायल का पलडा भारी रहेगा और ईरान बचाव की मुद्रा में नजर आयेगा यानी वह इजरायल पर हमला करने की स्थिति में नही होगा। कारण है युद्ध की परिस्थितियां । इजरायल के पास आधुनिक अमेरिकी जहाज हैं जिनकी अहमं भूमिका ईरानइजरायल युद्ध के दौरान होगी । यह युद्ध आकाश में लडा  जायेगा और इजरायल का उद्देश्य मात्र ईरान के मुख्य परमाणु सयंत्र पर हमला कर के आनेवाले दस सालो तक ईरान को परमाणु क्षमता विकसित करने से रोकना भर है । पहले भी आकाश से वार करके इराक के तुवयथाह परमाणु सयंत्र जो बगदाद के दक्षिण में स्थित है,उसे बर्बाद करके  इजरायल अपनी मारक क्षमता का परिचय दे चुका है । यह हमला १९८१ में दिन के उजाले में इजरायल ने किया था । हालांकि ईरान का परमाणु कार्यक्र्म बीस अलग-अलग स्थानों पर चल रहा है लेकिन उनमें से मात्र एक या दो स्थान वैसे हैं , जहां हमला करके सयंत्र नष्ट कर देने के बाद ईरान के  परमाणु कार्यक्र्म की गति कम  हो जायेगी  और  दस वर्षों तक ईरान की परमाणु क्षमता जो बम बनाने के लिये आवश्यक है समाप्त हो जायेगी ।
 इन स्थानो में सबसे प्रमुख स्थान है नतांज जिसे असफ़हन के नाम से भी जाना जाता है यहां सेन्ट्रीफ़्यूज सुविधा उपलब्ध है जो परमाणु बम बनाने के लिये आवश्यक है । इजरायल का उद्देश्य इस सयंत्र पर हमला करके इसे नष्ट करना होगा । ईरान के इस संस्थान पर हमला करके नष्ट करना हालांकि इतना आसान काम नही है । इस सयंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा  जमीन के अंदर है तथा उसका निर्माण इस तरह से किया गया है कि आसानी से इसे क्षति नहीं पहुंचे । इसका निर्माण इजरायल की मारक क्षमता तथा अमेरिका की बंकर ध्वस्त कर देनेवाली मिसाईल को ध्यान में रखकर किया गया है । इरान का परमाणु कार्यक्रम देश के विभिन्न भागों में फ़ैला हुआ है तथा रुस की एयर डिफ़ेंस सिस्टम की सुरक्षा प्रणाली का उपयोग इसकी रक्षा के लिये होता है । लेकिन इन सबके बावजूद यह माना जा रहा है कि इजरायल न सिर्फ़ हमला करेगा बल्कि ईरान के परमाणु सयंत्र को ध्वस्त करने में भी कामयाब होगा । ऐसा मानने का कारण है इजरायल की क्षमता । तकनीकी  रुप से इजरायल एक अति विकसित देशों में माना जाता है । बहुत सारी तकनीक जो इजरायल के पास है, उसके बारे में दुनिया को पता भी नही है । इजरायल से संबंधित सैन्य मामलों के रक्षा विशेषग्यों का यहां तक मानना है कि इजरायल परमाणु बम का निर्माण कर चुका है लेकिन उसका भौतिक परीक्षण नही किया है ।

लक्ष्य के कठिन होने के अलावा इजरायल और  ईरान के बीच की दूरी भी इजरायल के लिये एक जटिल समस्या है । दोनों मुल्कों की सीमा  नही मिलती है । दोनो के बीच एक हजार मील का फ़ासला है । । इरान  अरब सागर  के उत्तर तथा कैस्पियन सागर   के बीच स्थित है और इसका क्षेत्रफल 16,48,000 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा है । इसकी कुल स्थलसीमा ५४४० किलोमीटर है और यह इराक (१४५८ कि.मी.), अर्मेनिया (३५), तुर्की (४९९), अजरबैजान(४३२), अफ़गानिस्तान ९३६) तथा पाकिस्तान ९०९ कि.मी.) के बीच स्थित है । वहीं इजरायल उतर में लेबनान , उतरपूर्व में सिरिया , पूर्व में जार्डन और दक्षिणपश्चमी दिशा में मिश्र से घिरा हुआ है । इन परिस्थितियों में युद्ध आकाश मार्ग से मिसाइल या जहाजों के द्वारा लडा जायेगा । यह भी तय है कि पहला हमला हर हाल में इजरायल हीं करेगा । ईरान अपने देश की जनता की तालियां बटोरने के लिये चाहें जितना हाक ले लेकिन आज की तारीख में वह भयभीत है तथा सामरिक दर्ष्टिकोण से इजरायल के मुकाबले कमजोर है । हमला करने के लिये इजरायल सबसे कम जोखिम भरा रास्ता चुनेगा और वह है मध्यम रेंज की जेरोको  II  और  III बैलिस्टिक मिसाईल । इस मिसाईल की भारवाहक क्षमता के बारे में रक्षा विशेषग्यों को विशेष जानकारी नही है । इजरायल की यह मिसाईल अगर अधिक भार लेकर ज्यादा दूर तक यात्रा करने में नही सक्षम होगी तो इजरायल के लिये लक्ष्य तक जाकर प्रभावशाली ढंग से परमाणु सयंत्र को क्षतिग्रस्त करना संभव नही है , वैसी स्थिति में दुसरा रास्ता बचता है हवाई हमला जहाजों के द्वारा । इजरायल के पास राम  ( थंडर ) एफ़ 15 I और एफ़  16 I सुफ़ा (स्ट्रोम ) अमेरिकन बंबर एयर क्राफ़्ट हैं जिनका उपयोग वह हमला के लिये करेगा ।

हवाई मार्ग के रुप में दो मुख्य विकल्प इजरायल के पास हैं ।

 एक सउदी अरब के आकाश मार्ग से होते हुये 800 मील का का सफ़र तय कर के फ़ारस की खाडी का ३०० मील का सफ़र और फ़िर ईरान के अंदर जाकर लक्ष्य पर हमला कर के ध्वस्त करना । हालांकि इजरायल के लिये यह आसान नही होगा क्योंकि ईराक पर हमला करने के लिये भी इजरायल ने सउदी अरब की हवाई सीमा का उल्लंघन किया था जिसके बाद सउदी अरब तथा जार्डन ने अपने हवाइ क्षेत्र की सुरक्षा की निगरानी बढा दी है और दोनो एक दूसरे के साथ सूचनाओं का आदानप्रदान भी करते हैं। इजरायल के पास बिना आवाज किये हमला करनेवाले युद्धक विमान भी नहीं है इसलिये सउदी अरब के राडार इजरायल के विमान का पता लगा लेम्गें लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या सउ्दी अरब विरोध करेगा ? ज्यादा संभावना यह है कि सउदी अरब अनजान बने रहने का दिखावा करेगा आखिरकार एक कट्टरपंथी ईरान का मजबूत होना सउदी अरब के राजतंत्र के लिये भी खतरा है और वह चाहेगा कि ईरान का परमानु कार्यक्र्म सफ़ल न हो । (लाल रंग में इस रास्ते को हमने दर्शाया है )

दुसरा रास्ता है सउदी अरब के आकाश मार्ग से ३००-४०० मील का सफ़र तय करते हुये इराक की आकाशिय सीमा में प्रवेश करना और फ़िर ५०० मील की दूरी तय कर के फ़ारस की खाडी के रास्ते होते हुये ईरान के अंदर घुसकर मार करना लेकिन राजनीतिक रुप से यह भूचाल पैदा करनेवाला होगा क्योंकि ईराक की हवाई सीमा का नियंत्रण अमेरिका के हाथ में है और इराक के रास्ते प्रवेश करने पर रुस और चीन अमेरिका को राजनितिक स्तर पर नीचा दिखाने के लिये  हो हल्ला मचायेंगें । हालांकि रुस और चीन भी नही चाहते की ईरान परमाणु संपन्न राष्ट्र बने और उसका कारण है ईरान की कट्टरपंथी सरकार । (ब्लू रंग में हमने इस रास्ते को दर्शाया है )

हमला करके वापसी भी एक बडी समस्या है । हवाई हमला होते हीं आसमान में गतिविधियां बढ जायेंगी और पुन: उसी रास्ते से वापस लौटना कथिन होगा । ईरान के हवाइ जहाज भी आनेवाले रास्ते को घेरने का प्रयास करेगें। इस हालात में आने के लिये अलग रास्ते का प्रयोग करना इजरायल के लिये सबसे बेहतर विकल्प होगा । एक और परेशानी है इधन की । दुबारा ईधन भरने की जरुरत पडेगी और इसके लिये भी दो विकल्प है । एक हवा में हीं इधन भरना और दुसरा किसी अन्य देश की सीमा में उतरकर । हालांकि इजरायल के युद्धक विमानों के बारे में कुछ भी नही कहा जा सकता क्योंकि वह दुनिया का एक अकेला राष्ट्र है जो अपनी क्षमता के आकडों को नही बताता है । रक्षा विशेषग्यों के अनुसार इजरायल के पास उपलब्ध एफ़ १५ एवं एफ़ १६ युद्धक विमान दो ईधन टैंक , दो अतिरिक्त पंखे से जूडे इधन टैंक तथा पर्याप्त हथियार के साथ आराम से एक हजार मील की यात्रा कर सकते हैं । अगर इजरायल ने अपनी तरफ़ से कोई भारी बदलाव इन विमानों में नही किया होगा तो हवा में युद्ध की शुरुआत हो जाने की स्थिति में जब आकाश में टकराव होने लगेगा तब युद्धक विमान को अपने ईधन के टैंक को गिराये बगैर लडना मुश्किल होगा और इधन से भरे टैंक को गिरा देने के बाद लक्ष्य तक जाकर वार करना और लौटना भी जोखिम भरा कदम होगा । इजरायल के सामने ईधन भरना भी एक समस्या है । हालांकि इजरायल की  हवाई सेना एक मजबूत सेना मानी गई है लेकिन अभी हालतक इजरायल ने जो भी सामरिक तैयारी की थी , वह अपने आसपास के दुश्मन अरब राष्ट्रों को ध्यान मे रखकर किया ।  इधर उसने एक हजार मील से अधिक के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुये पांच बी ७०७ इधन टैंकर जहाज की खरीद की । ये टैंकर हवा में इधन भरने में किसी भी परिस्थितियों में सक्षम हैं लेकिन बी ७०७ हथियारयुक्त टैंकर नही है इसलिये हवा में ज्यादा देर तक रहना इसके लिये जोखिम भरा है ।

हमले के लिये अनुमानित दो रास्तों के बारे जानने के बाद यह साफ़ जाहिर है कि सउदी अरब वाले रास्ते में इधन भरना कठिन है क्योंकि पता लगने से बचने के लिये जहाज को नीचे आना पडेगा और यह सउदी अरब को अपनी न्यूट्रल छवि बनाये रखने के कारण मंजूर नही होगा ।  इन परिस्थितियों में इराक के आकाश में इधन भरना ज्यादा आसान होगा , वहां इस तरह की कोई समस्या नही होगी । यह काम रात मे होने पर पता लगने की समस्या भी नही होगी । इजरायल के टैंकर अमेरिकन एयरबेस जो इराक में है , उसका उपयोग कर सकते हैं।

इजरायलइरान युद्ध में अमेरिका की क्या भूमिका होगी इसे लेकर भी कयास लगाये जा रहे हैं । ऐसा माना जा रहा है कि युद्ध की शुरुआत में अमेरिका की कोई प्रत्यक्ष भागेदारी नही होगी । अमेरिका युद्धक विमानो को इधन भरने के लिये अपने नियंत्रण वाले इराक एयरबेस की सुविधा गुप्त रुप से उपलब्ध करा सकता है , (जैसा की भारत ने इराकअमेरिका युद्ध के दौरान किया था हालांकि सरकार हमेशा इससे इंकार करती रही है ) । अमेरिका की भागेदारी निर्भर करती है कि इजरायल पहले हमले के दौरान कितनी क्षति ईरान को पहुंचाता है । पहले हमले के बाद क्षति पहुचाना या लक्ष्य को ध्वस्त करना इजरायल के अकेले बस की बात जब नही रहेगी तब  उस हालात में राजनीतिक बदनामी झेलते हुये भी अमेरिका न सिर्फ़ इजरायल के विमानों को इराक के रास्ते जाकर हमला करने और इराक के एयरबेस के उपयोग की अनुमति प्रदान करेगा बल्कि हालात गंभीर होने यानी ईरान द्वारा मुर्खतापूर्ण हरकत करते हुये इजरायल पर उसके क्षेत्र में घुसकर हमला करने की स्थिति में अमेरिका सामने आ जायेगा । वैसे दुनिया की एकमात्र ताकत अमेरिका हीं है जो इतने बडे पैमाने पर हवाइ युद्ध लडने की क्षमता रखता है । इराक के साथ दसो वर्षो तक ईरान ने युद्ध लडा था इसलिये इराक के लिये भी एक परमाणु संपन्न ईरान ज्यादा खतरनाक है ।

रुस और चीन की भूमिका : इन दोनों देशों की कोई प्रत्यक्ष मदद ईरान को नही मिलने जा रही है । इरान के साथ सबसे बडी गलती यह है कि वह रुस एवं चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य मंचों पर मिल रही      राजनितिक मदद को वक्त पडने पर सामरिक मदद के रुप में देख रहा है । इराक ने भी यही गलती की थी , अंतिम क्षण तक इस गलतफ़हमी में सद्दाम हुसैन रहें कि अमेरिका एक हजार मील दूर आकर उनके उपर हमला नही करेगा और अगर किया भी तो मित्र राष्ट्र मदद करेंगें । लेकिन हुआ इसके उलट , अमेरिका ने एक बार नही दोदो बार हमला किया और मित्र राष्ट्रो से कोई मदद इराक को नही प्राप्त हुई । भारत ने तो अमेरिका का साथ दिया ।

इरान के द्वारा जवाबी हमला करने की संभावना नगण्य है ।वह सिर्फ़ अपने परमाणु सयंत्रों के बचाव तक सिमित रहेगा । इराक या सउदी अरब के रास्ते जाकर इजरायल के उपर हमला करना उसके लिये मुमकिन नही है। सउदी अरब इजाजत नही देगा और इराक के हवाइ क्षेत्र पर अमेरिका का अधिकार है । रह गई किसी दुस्साहस की बात तो वैसे हीं कदम का अमेरिका को इंतजार रहेगा ताकि उसे बहाना मिले और वह ईरान को इराक की तरह तबाह  कर दे । कहने को तो यह तबाही अमेरिका के द्वारा की हुई मानी जायेगी लेकिन इसका वास्तविक दोषी इरान खुद है ।ईरान को किसी भी तरह के शांतिपूर्ण कार्य के लिये परमाणु उर्जा की जरुरत नही है । ईरान का परमाणु कार्यक्र्म बम के निर्माण के लिये है ।  दुनिया का कोई भी प्रजातांत्रिक राष्ट्र नही चाहता कि एक कट्टरपंथी सरकार के पास परमाणु हथियार हो । पाकिस्तान से ईरान की तुलना नही कि जा सकती है । पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क भले हो ; लेकिन कभी भी वहां कट्टरपंथी सरकार का या धार्मिक मुल्लाओं का शासन नही रहा । सेना भी अगर सता में आई तो प्रजातांत्रिक रुप से चुनी हुई सरकार के भ्रष्टाचार के कारण ।

कट्टरपंथी सरकार हमेशा दुनिया के लिये खतरा होती हैं । हमने गुजरात में कट्टरपन्न का अंजाम देखा है । एक तस्वीर आपको दिखाता हूं । जिस तरह इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ सता में आये थें अगर उसी तरह किसी भी वजह से नरेन्द्र मोदी दिल्ली की सता पर आ जायें तो सबसे पहला काम देश के संविधान  का खात्मा और हिंदु राष्ट्र की घोषणा होगी । उसके बाद भारत का परमाणु हथियार का उपयोग कब पाकिस्तान के खिलाफ़ होगा यह कोई नही जानता क्योंकि कट्टरपंथी सता हमेशा धार्मिक नजरिये से हर मसले को देखती है ।

ईरानइजराय्ल युद्ध से बचाव का मात्र एक रास्ता रह गया है , वह है ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों पर रोक तथा संवर्धित यूरोनियम को दुसरे राष्ट्र को सौंप देना । हालांकि इसमे यह खतरा भी है कि धार्मिक कट्टरपन के नशे की आदी ईरानी जनता वहां के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद को नकार दे लेकिन अहमदीनेजाद के पास अब ईरान को संभावित युद्ध की लपेट से बचाने के लिये यही एकमात्र रास्ता बचा है । वैसे भी युद्ध में पराजय के बाद उसका ठिकरा अहमदीनेजाद के सिर पर हीं डालकर वहां के सर्वोच्चय कट्टरपंथी नेता अयातुल्लाह सैयद अली होसेनी खमेनी अपनी सता बचा सकता है । इस तरह चाहे युद्ध हो या ईरान अपने परमाणु कार्यक्र्मों को त्याग दे , हर हालात में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद को सता से हटना तय है । अच्छा है देश को बचाते हुये परमाणु कार्यक्र्म त्याग दे। रुस भी इसी प्रयास में लगा हुआ है लेकिन अहमदीनेजाद के वक्तव्यों से नही लगता कि ईरान शांति  चाहता है ।





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