हमारे चाचा को भी पकडो



हमारे चाचा को भी पकडो

देश घोटालों से ग्रसित है, चाहे केन्द्र की बात करें या राज्य सरकारों की । कोई राजनीतिक दल स्वंय को पाक- साफ़ कहने की स्थिति मे नही है । इधर सीबीअई ने भी अब क्लर्क , चपरासी को छोडकर आंग्रेजी बाबू यानी आइएएस अधिकारियों को जेल भेजने की कवायद शुरु कर दी है। बाबू नाराज हैं , भारत के प्रजातांत्रिक जंमींदारो को यह अखर रहा है । कल आंध्र प्रदेश के बाबूओ की संस्था ने अपनी विशेष आम सभा में सीबीआई की कार्यशैली की आलोचना करते हुये कहा कि उनसे ज्यादा मंत्री जिम्मेवार  हैं भ्रष्टाचार के लिये । बाबूओं को शासन करने की ट्रेनिंग दी जाती है , इसलिये बडे सलीके से बात करना जानते हैं ये। १५० से ज्यादा आइएस अधिकारियों ने इस विशेष आम सभा में शिरकत की । संस्था के अध्यक्ष एस भालेराव , उपाध्यक्ष प्रशांत महापात्रा तथा सचिव जे रेमंड पीटर ने जोर  देते हुये कहा कि विभाग के मंत्री जिम्मेवार होते है किसी भी गलत निर्णय के लिये आइएएस नहीं , क्योंकि आइ ए एस - विभागीय सचिवों को तो पावर डेलीगेट होने की स्थिति में हीं निर्णय का अधिकार मिलता है । एक पुराने रिटायर्ड मुख्य सचिव के माधव राव ने और विस्तार से अपने प्रजातांत्रिक जमींदारो का बचाव करते हुये कहा कि वर्तमान कैबिनेट व्यवस्था के तहत मुख्यमंत्री, मंत्री तथा सचिव को अपने से उपर वाले को रिपोर्ट करनी पडती है , सचिव प्रत्येक सप्ताह मंत्री को रिपोर्ट करते हैं इसलिये मंत्री अपनी जिम्मेवारी ने नही बच सकते कि उन्हें गलत निर्णय की जानकारी नही है । मजेदार बात यह है कि भारत के इन नव जमींदारों ने लाल बहादुर शास्त्री के द्वारा इस्तीफ़ा देने की घटना को भावनात्मक रुप देते हुये उदाहरण दिया कि स्वंय दुर्घटना कि जिम्मेवारी लेते हुये उन्होनें रेलवे मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था । इन अधिकारियों के कहने का अर्थ यह था कि ये जिम्मेवार नहीं हैं गलत निर्णय के जिसके कारण भ्रष्टाचार हुआ है बल्कि मंत्री जिम्मेवार हैं। इनकी आम सभा की बातें पढकर बस एक हीं शब्द मेरे मुह से निकला बडे शातिर हैं साले। माल खुद खाना चाहते हैं और सजा मंत्री को मिले यह इनकी मंशा है । एक बार बहुत पहले यह बात उठी थी कि आइ ए एस , आइ पी एस को व्यवहारिकता का ग्यान नही होता है , मैने अपने एक ब्लाग में लिखा था । आइ एस को ट्रेनिंग के दौरान किसी भी राज्य के विभाग में एक साल के लिये क्लर्क के रुप में कार्य करने की ट्रेनिंग तथा आइ पी एस को सिपाही के रुप ट्रेनिंग देने की व्यवस्था होनी चाहिये । जिस राज्य में ये ट्रेनिंग ले वहां इनकी पोस्टिंग न हो ।
 मंत्री किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में कोई कार्य करने का आदेश भर प्रदान कर सकता है , लेकिन उसके बाद आधिकारियों की जिम्मेवारी बनती है यह देखना कि उस व्यक्ति विशेष के लिये नियमों में ढील तो नही  दी गई  । अगर नियमों में किसी भी प्रकार की ढील दी जाती है तो जिम्मेवार हर हालत में अधिकारी हीं होगा। आइ ए एस आजकल दलाल की भूमिका मे हैं। वैसे भी इन्हें योग्य मानना मुर्खता है। आइ ए एस के कैरियर को देखने से यह साफ़ पता चल जाता है कि ये नव जंमीदार किसी विषय के विशेषग्य  नहीं होतें। अधिकांश , समाजशास्त्र, संस्कर्, भूगोल और इतिहास जैसे विषय में आइ ए एस की तैयारी करते हैं (  Jack of all master of non .  They are Jack of all trades . ) .  तैयारी के दौरान हीं इन्हें भ्रष्टाचार की लत पड जाती है । अधिकांश दिल्ली में रहकर तैयारी करते हैं , लायब्रेरी की सुविधा तथा सस्ते दर पर भोजन और निवास के लिये ये जे एन यू के कोर्स में दाखिला ले लेते हैं, वहां कोर्स की पढाई न करके , आइ ए एस की तैयारी करते हैं। संसाधनों के दुरुपयोग के कारण , विश्वविद्यालय द्वारा छात्रावासों में अक्सर जांच की जाती है और अगर कोई छात्र आइ ए एस की तैयारी करता हुआ पाया जाता है तो उसे निकाल बाहर कर दिया जाता है । इत्तेफ़ाक से मुझे भी जे एन यू में वक्त गुजारने का मौका मिला है , पढने के लिये नही बस यूं हीं महीनों रहा हूं वहां।
आइ ए एस व्यवस्था भ्रष्टाचार को पैदा करती है। इनका आम जनता से हमेशा मालिक जैसा व्यवहार रहता है , दिखाने के लिये यह अपने कार्य को बडी शिद्दत के साथ करते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि वह सब मात्र एक दिखावा होता है और उसके मूल में भ्रष्टाचार एक बडा कारक रहता है । आजकल तो मुख्यमंत्रियों को अपने मंत्री के उपर भी विश्वास नही रहा , डरते  हैं सभी मुख्यमंत्री , कब धोखा दे देगा मंत्री कोई ठीक नही । डायरेक्ट आइ ए एस के माध्यम से लेनदेन करने में ज्यादा सुरक्षा है ।
बिहार में तो आइ ए एस राजनेताओं की तरह कार्य कर रहे हैं । रमैया जो पटना के कमिश्नर हैं , इसका उदाहरण हैं। भ्रष्टाचार में अग्रणी , नीतीश के खासमखास । नीतीश , आइ ए एस का उपयोग राजनीतिक कार्यों के लिये करते हैं, दिखावा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग और अपने नाक के नीचे पटना में बैठाये हुये हैं , रमैया और संजय सिंह कलक्टर को। दोनो भ्रष्ट हैं। संजय सिंह का पटना स्थित निवास गया से अवैध  रुप से ले जाये गये बालू और स्टोन चिप्स से हुआ है। दोनो गया में भी कमिश्नर तथा कलक्टर के रुप में पदास्थापित रहे हैं। कोबरा बटालियन के लिये जमीन की खरीद में दोनो ने एक गुंडे का रौल किया था, वैसा गुंडा जो पैसे लेकर जमीन खाली करवाने का धंधा करता है ।
 कोबरा बटालियन के लिये जमीन की खरीद होनी थी , एक भाजपा नेता की जमीन थी जिस पर नक्सलवादियों का कब्जा था। संजय सिंह और रमैया ने जमीन खाली करवाई । कौडी के मोल भी कोई नही था उस जमीन को लेने के लिये तैयार , करोडो का सौदा हुआ । पैसा गया सरकार का , बंटवारा हुआ संजय सिंह , रमैया तथा एक पत्रकार के बीच । रमैया ने गया के प्राचीन पशु मेला भुसुंडा की जमीन के फ़ैसले में घोटाला किया  ।
रमैया के भैया जी बहुत प्रसिद्ध हैं । भैया जी खासे प्रसिद्ध हैं । गया में पदस्थापना के दौरान सब्जी के ट्रक में छुपाकर नोट भेजते थें रमैया । गया से एक सांध्य दैनिक का प्रकाशन शुरु हुआ था, मैं वहां कार्यकारी संपादक था । मैने उसमें लिखा पटना के कलक्टर संजयसिंह भ्रष्ट है। हंगामा मच गया । स्वनाम धन्य चमचे पत्रकारों ने भडकाया मुझे केस  में फ़साने के लिये । मैं जानता था चोरो की इतनी हिम्मत नही है। नीतीश को सब पता है लेकिन कार्रवाई नही होगी । संजय सिंह रिश्तेदार हैं । रमैया राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करनेवाले। नेताओं को भ्रष्ट बनाने की शुरुआत भी अधिकारियों ने की । आज जब अपना किया उन्हें भोगना पड  रहा है तो चिल्ला रहे हैं । हमारे चाचा को पकडो । इधर जनता है,  जो कहती है चाचा चोर भतीजा पाजी , चाचा के सिर पे जूता बाजी । लेकिन न तो चाचा को कुछ हो रहा है और न हीं भतीजे को .
पटना के कलक्टर संजय सिंह  और आयुक्त के पी रमैया के  भ्रष्टाचार की कहानी 


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