गया नगर निगम की संपत्ति की लूट



गया नगर निगम की संपत्ति की लूट
उप मेयर मोहन श्रीवास्तव की नई चाल
मोहन श्रीवास्तव की संपत्ति की जांच और जप्ती की मांग
कौन है कमांडर नाम का दलाल ?
लूट के मौन साक्षी हैं गया की जिलाधिकारी और कमिश्नर
नीतीश खामोश क्यों ?
गया नगर निगम का अन्तर्राष्ट्रीय स्थल में होने के कारण एक विशिष्ठ स्थान है । केन्द्र की सरकार द्वारा करोडो रुपया यहां के विकास के लिये हर वर्ष आवंटित किया जाता है । विदेश की संस्थायें भी करोडो रुपये गया के विकास के लिये दे रहीं है । लेकिन मात्र एक आदमी ने पुरे नगर निगम को भ्रष्टाचार के अड्डे में तब्दील कर दिया है । हालांकि इस भ्रष्ट्राचार के खेल में पार्षदों का बहुमत उसके साथ है । अधिकांश पार्षदों के अंदर नैतिकता नही है । आधा से ज्यादा पार्षद महिला हैं , प्रजातंत्र के निचले स्तर पर महिला आरक्षण ने भ्रष्ताचार को चरम पर पहुंचाने का काम किया है और इसका श्रेय जाता है नीतीश कुमार को । राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार जो विधायकों तक सीमित था उसे गांव स्तर तक फ़ैलाने का पाप नीतीश कुमार ने किया है । गया नगर निगम में कुछ दिन पूर्व ४० टेंपो टिपर की खरीद की गई । निगम के पास उन टेंपो के संचालन के लिये संसाधन नही है । टेंपो के रख रखाव , तेल तथा ड्राईवर के खर्चे के लिये तकरीबन सात लाख रुपये प्रतिमाह की आवश्यकता है उसके बाद भी अपने कर्मचारियों की बदौलत नगर निगम नगर की सफ़ाई करने में असफ़ल हो चुका है । एकमात्र विकल्प बचता है किसी सक्षम एजेंसी को ठेके पर यह कार्य दिया जाय । अभी निगम क्षेत्र के ४-५ वार्डों में रैम्की नाम का एक संगठन सफ़ाई का कार्य करता है । संगठन के कार्य की बहुत प्रशंसा तो नही की जा सकती है लेकिन निगम के मुकाबले उसका कार्य ठीक –ठाक है । हालांकि रैम्की नाम के इस संगठन को भी निगम से हुये भुगतान में से १५ प्रतिशत कमिशन देना पडता है और जब कमिशन देना होगा तो कभी भी सही काम की आशा नही की जा सकती है । मोहन श्रीवास्तव ने सुरेन्द्र यादव के मंत्री पद पर रहते हुये अरबों रुपये कमायें । नगर निगम को भ्रष्ट बनाने में मोहन श्रीवास्तव हीं मुख्य है । नगर निगम के पास शहर मे अरबों की संपति है । शहर के प्रमुख बाजार में दुकान तथा खाली जमीन है जिनका बाजार मुल्य अरबों में है । मोहन श्रीवास्तव ने उन संपतियों को बेचने की योजना पर कार्य करना शुरु कर दिया है । हालांकि बिहार नगर पालिका अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निगम को किसी भी संपति को बचने या लीज पर दे्ने के पहले राज्य सरकार की पूर्वानुमति आवश्यक है लेकिन आज तक निगम ने हमेशा बिहार नगर पालिका अधिनियम की धज्जियां हीं उडाई है । नियमत: निगम के बोर्ड को राज्य सरकार के द्वारा विकास कार्य के लिये दी गई राशि को सरकार के दिशा निर्देश और जिलाधिकारी के आदेश के अनुसार खर्च करना है । नगर निगम सिर्फ़ अपनी आय का मालिक है , परन्तु भ्रष्ट पार्षदों को मिलाकर मोहन श्रीवास्तव राज्य सरकार से प्राप्त राशि की भी लूट कर रहे हैं , चुकि जिलाधिकारी को निगरानी रखने का दायित्व है अत: इस लूट को न रोक पाने के दोषी वह भी हैं । नगर निगमों पर प्रमंडलीय आयुक्त का भी नियंत्रण है इस कारण से नगर निगम की लूट को न रोक पाने के दोषी वह भी हैं। हालांकि गया की जिलाधिकारी वंदना प्रेयसी तथा मगध आयुक्त विवेक सिंह के संबंध में भ्रष्टाचार के संबंध में कोई शिकायत नही है परन्तु नगर निगम में फ़ैले भ्रष्टाचार को न रोक पाने के दोषी तो जिलाधिकारी तथा प्रमंडलीय आयुक्त दोनो हैं। नगर निगम के भ्रष्टाचार के दोषी सिर्फ़ मेयर और उप मेयर हीं नही है बल्कि वैसे सारे पार्षद तथा पार्षद पति हैं जो इस खेल में शामिल हैं। इसके अलावा एक पार्षद का पुत्र असद परवेज उर्फ़ कमांडर दलाल की भुमिका निभाता है । पूर्व के एक नगर आयुक्त का लाखो रुपया हडप जाने का आरोप भी कमांडर पर लगा हुआ है लेकिन भ्रष्ट दलालों को इस से कोई असर नही पडता है । नगर विकास विभाग के मंत्री हैं प्रेम कुमार लेकिन उनकी भी भुमिका संदिग्ध है । ऐसा सुनने में आया है कि प्रेम कुमार को किसी मुकदमे में एक न्यायिक दंडाधिकारी के मदद की जरुरत है और मोहन श्रीवास्तव अधिकारियों से लेकर न्यायिक अधिकारी यानी जजों तक अपनी पहुंच रखते हैं । भ्रष्टाचार का आलम यह है कि अधिकांश उच्च पदों पर आसीन अधिकारी तथा न्यायाधिश पैसा, शराब और लडकी के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं और शायद यही कारण है कि मोहन श्रीवास्तव जैसे लोग सफ़ल माने जाते हैं।

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