निगमानंद की ह्त्या के पाप का दोषी है उत्तराखंड उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश








निगमानंद की ह्त्या के पाप का दोषी है उत्तराखंड उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीशभाजपा , कांग्रेस दोनो हैं गुनाहगार
खनन माफ़ियाओं के साथ सांठ-गांठ का आरोप उत्तराखंड उच्च न्यायालय के दो जजों पर लगा था। इस संबंध में उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को मातर् सदन के द्वारा पत्र भी भेजा गया था , परंतु उक्त दोनो महान मुख्य न्यायाधिशों के कान में जूं भी नहीं रेंगी जबकि दिल्ली मे हुये लाठिचार्ज पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने सुओ मोटो यानी अपने स्वेच्छा से सं्ग्यान लिया और दिल्ली तथा भारत की सरकार को नोटिस जारी कर दी। ये दोनों यानी उतराखंड के मुख्य न्यायाधीश बारेन घोष और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया अपनी जिम्मेवारी से नही भाग सकते । जब उतराखंड के दो न्यायाधिशों के खिलाफ़ खनन माफ़िया से सांठ-गांठ का आरोप लगा था और इस संबंध में इन दोनो के पास शिकायत दर्ज हुई थी तो इन्होनें कोई कार्रवाई क्यों नही की । अगर समय रहते इन्होने कार्रवाई की होती तो शायद आज निगमानंद जी हमारे बीच होतें। ये दोनो न्यायाधीश कोई बहाना नही बना सकते हैं, क्यों नही की कार्रवाई ? उतराखंड का मुख्य न्यायाधीश बारेन घोष को तो जज होना हीं नही चाहिये । वह जहां रहा , वहां विवाद पैदा किया। बिहार में उच्च न्यायालय का जज रहते हुये बिहार मीडिया के संपादक को एक झुठे हत्या के केस में फ़साया था । आज भी उसकी सीबीआई से जांच हो तो पता चलेगा कि यह काम बारेन घोष ने किसके कहने पर किया था।बिहार बार एसोसियेशन के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह के कहने पर बारेन घोष ने यह किया था । जब बारेन घोष जम्मू –काश्मीर का मुख्य न्यायाधीश बना तो उसने वहां सोपोर में दो मुस्लिम महिलाओं की नहर में डुबने से हुई मौत के मामले में जम्मू काश्मीर के सभी आला पुलिस अधिकारियों को अभियुक्त बनाकर जेल भेज दिया था तथा उनपर महिलाओं के साथ बलात्कार करके हत्या कर देने और उसके बाद शव को नहर में फ़ेक देने का आरोप लगाया था। बारेन घोष ने निचली अदालत को पुलिस अधिकारियों की जमानत याचिका सुनने पर भी रोक लगा दी थी , जो भारत के कानून के खिलाफ़ था । बाद में उच्चतम न्यायालय ने उसके आदेश को रद्द किया था। सीबीआई की जांच में खुलासा हुआ की दोनो महिलाओं की मौत पानी में डुबने से हुई है । सीबीआई ने दोनों महिलाओं के फ़ेफ़डे की जांच कराई जिसमें नहर के मिट्टी के अंश पाये गयें। पुलिस अधिकारी तो बच गयें लेकिन उस कांड के कारण पुरा कशमीर अस्त – व्यस्त रहा तथा कई लोगों को जान से हाथ धोना पडा। बारेन घोष को इसके लिये सजा होनी चाहिये थी । जज का अर्थ यह नही है कि काल्पनिक उपन्यास की तरह फ़ैसले दे। फ़ैसलों का ठोस आधार होना चाहिये । बारेन घोष पर उतराखंड के मुख्यमंत्री के साथ साठ-गांठ का आरोप भी लगा है । बारेन घोष सरकार के जहाज और हेलीकाप्टर पर घुमने का आनंद पुरे परिवार के साथ उठाते हैं। ऐसा जज सरकार के खिलाफ़ क्या कर सकता है । निगमानंद की मौत की जांच हो, संसद के सदस्य या सीबीआई इसकी जांच करे , या फ़िर नागरिक कमेटी बनाकर जांच कराई जाय और बारेन घोष तथा उन दो न्यायाधिशों को भी जांच के दायरे में लाया जाय । खनन माफ़िया और अधिकारी मिलजुलकर गंगा को तबाह करने में लगे हैं। ये अपराधिक कर्त्य करने से भी बाज नही आते हैं। मातर् सदन गंगा को बचाने के लिये लगातार आंदोलन कर रहा है । उससे जुडे संत क्रमिक अन्शन करते आ रहे हैं लेकिन सरकार से लेकर न्यायालय तक किसी को गंगा की परवाह नही है । हां गंगा के नाम पर आनेवाले पैसे को खाने-पचाने से परहेज नही है उनको निचे एक विडियो है जिसे देखने से पता चलेगा कैसे गुंडागर्दी करते है प्रशासन के अधिकारी । भाजपा के मुख्य मंत्री निशंक को पद छोड देना चाहिये । निगमानंद जी ने पहले भी ७३ दिनों तक अनशन किया था। २७ अक्टूबर २००९ को रात्री साढे नौ बजे , तह्सीलदार पुरन सिंह की उपस्थिति में अनशन पर बैठे स्वामी दयानंद को खनन माफ़िया के गुंडो की मदद से जबरदस्ती आश्रम से उठा लिया गया यह सबकुछ हरिद्वार के जिलाधिकारी की जानकारी में हुआ। दयानंद जी को थाने में टार्चर भी किया गया । निशंक की सरकार ने बार-बार वादा कर के उसे पुरा नही किया । हिंदुओं की पार्टी होने का दावा करनेवाली भाजपा अब क्या कहेगी , एक संत के खुन से रंगा है उसका दामन। कांग्रेस भी कठघरे में है । पुरी तरह गांधीवादी सत्याग्रह करनेवाले की तरफ़ देखा भी नही और एक पाखंडी संत रामदेव के आगे पुरी कांग्रेस नंगे खडी नजर आई। यहां दिये गये विडियो जरुर देखें।


टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें



















Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १