रामदेव की गिरफ़्तारी का राज क्या है





रामदेव की गिरफ़्तारी का राज क्या है
क्या यह सुनियोजित था
रामदेव को कपडे उतार कर देनेवाली महिला कौन थी
रामदेव को ढोंगी कहा गांधी जी के पौत्र तुषार गांधी ने

रामदेव को कपडे उतार कर देनेवाली महिला कौन थी यह यक्ष प्रश्न है । रामदेव अपनी मांद में जाने के बाद फ़िर से पुराने संत के चोंगे में लौट आये हैं । बयान भी संतो वाला देना शुरु कर दिया है। रामदेव ने कहा है कि उन्होने सरकार को अपनी गिरफ़्तारी के लिये माफ़ कर दिया लेकिन लाठीचार्ज की निंदा की है । रामदेव का शिष्य या सखा बालकिशन फ़रार है । रामदेव कह रहे हैं वह मिशन पर लगा हुआ है । कौन सा मिशन यह नही बता रहे हैं । वह बालकिशन भी खुद को संत कहलाता था। रामदेव तथा सरकार के बीच सत्याग्रह के पहले हीं समझौता हो चुका था और सत्याग्रह सिर्फ़ एक दिखावा था लोगों को भ्रमित करने के लिये । रामदेव सरकार को टैक्स नही देते हैं, गुरु का क्या हुआ नही बताते हैं, फ़ूड प्रोसेसिंग विभाग से सैकडो करोड का अनुदान ले चुके हैं । सुबोधकांत सहाय ने अनुदान दिलाने में अहम भुमिका अदा की है । अब दो प्रश्न अनुतरित हैं। एक – रामदेव को उस अफ़रा-तफ़री में महिला के वस्त्र कहां से मिलें। कोई महिला सैकडों लोगों की भीड में नग्न होकर तो अपने कपडे उतारकर देगी नही , तो क्या पहले से हीं कपडे की व्यवस्था थी। क्या कोई महिला अतिरिक्त कपडे के साथ वहां उपस्थित थी ? कौन थी वह महिला ? उस महिला को सामने लाने की जरुरत है । कुछ चैनलों पर तीन महिलाओं को दिखाया जा रहा है , जो हरिद्वार से आई थीं , उन्होनें हीं रामदेव को कपडे दियें , अपनी चुनरी दी , चेहरा छुपा कर भागने के लिये । वस्त्र भी ऐसा जो रामदेव पर फ़िट आये। कुर्ते का ग्ला छोटा था यानी मर्द के पहनने योग्य । महिलाओं का वक्ष होता है वे इस तरह के गले वाला कुर्ता नही पहनतीं। सलवार और समीज दोनों बाबा के नाप से बनवाये गये लगते थें। यह महिला के कपडे पहनकर भागने वाला ड्रामा पुरानी फ़िल्मों की याद दिला देता है । जब महिला के वस्त्र पहनकर फ़िल्म का हिरो पुलिस की नजर से फ़रार हो जाता था। दुसरा प्रश्न – बालकिशन कहा है ? यह वही बालकिशन हैं जिसने सत्याग्रह के पहले सरकार से लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किये थें। क्या बालकिशन रामदेव के कालेधन से संबंधित कागजातों को गायब करने के मिशन पर लगा है , या इस डर से भाग गया कि पुछताछ होगी तो वह टिक नही पायेगा । रामदेव और बालकिशन के बीच कौन सा रिश्ता है , इसका अभी खुलासा बाकी है । रामदेव की स्थिति धोबी का कुता न घर का न घाट का जैसी हो गई है । कांग्रेस ने रामदेव को भिंडरवा्ले की तर्ज पर बढाया , भाजपा के हिंदु वोटबैंक में छेद करने के लिये । अब भाजपा लाठीचार्ज के बाद आंदोलन कर रही है ताकि रामदेव के खिलाफ़ जांच हो जाय और रामदेव का असली चेहरा जनता के सामने आ जाये। रामदेव को भाजपा ने बली का बकरा बना दिया है । कांग्रेस और भाजपा दोनों कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना की तर्ज पर काम कर रहे हैं। रामदेव के पीछे जो भ्रष्ट व्यवसायियों की लाबी है , वह सबकुछ समझ रही है । वह टकराव नही चाहती उसका उद्देश्य मात्र भ्रष्टाचार के खिलाफ़ चल रही जांचो को प्रभावित करना और खुद को बचाना भर है , जैसे सुभाषचन्द्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटवानेवाले बि्रला और बजाज का उद्देश्य आजादी के बाद समाजवाद को रोकना था अन्यथा जब आजादी प्राप्त हुई तो सारे रजवाडों का विलय भारत में हो गया परन्तु उसी तर्ज पर निजी फ़ैक्टरियों का और संपतियों का नही हुआ । रजवाडो की संपतिया तो सरकारी हो गई थी लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से खरबों की संपति बनाने वाले बिरला और बजाज की संपति को कुछ नही हुआ । ग्यारह लाख रुपया चंदा देनेवाला इमानदार है तो फ़िर इस मुल्क के कोई बेईमान नही है । हमारे गया शहर में भी एक डालमियां परिवार है । खुब दान देता है , मंदिरों में , धार्मिक आयोजनों में, लेकिन अपने ग्राहकों से धर्मादा भी काटता है । उसके यहां के सभी कर्मचारियों का भविष्यनिधी और जिवन बीमा नही होता है , सिर्फ़ कुछ कर्मचारियों का किया जाता है सरकारी कागजात ठीक-ठाक रखने के लिये । आप कह सकते हैं बहुत बडा शोषक और टैक्स चोर है वह परिवार । जिले के सभी आला अधिकारी उस परिवार के मित्र हैं। इसी तरह के टैक्स चोरों को संरक्षण रामदेव जैसे लोग देते हैं। रामदेव के व्यवसाय की जांच जरुरी है । सत्याग्रह के दौरान पुलिस की कार्रवाई भी रामदेव को शक के दायरे में खडा करती है , कहीं सबकुछ सुनियोजित तो नही था ? रामदेव के इशारे पर सत्याग्रह खत्म करवाने की कार्रवाई तो नही हुई ? इतने सभ्य तरीके से पुलिस को व्यवहार करते कभी नही देखा था । लोगों को मेहमान की तरह उठा रही थी पुलिस । हां जब पथराव होने लगा तो आंसुगैस के गोले छोडे गयें। रामदेव की हरकत की तरह सबकुछ रहस्मय है , धरने की शुरुआत से पुलिस द्वारा सत्याग्रह को समाप्त कराने तक ।

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