काश रामदेव , देवानंद बन जातें

काश रामदेव, देवानंद बन जातें
सत्याग्रह के नाम पर चंदा वसूली
अन्ना के बाद रामदेव
हाई-टेक धरना,लाखों का खर्च
गांधी सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत में यकीन करते थें । ट्रेन के तीसरे दरजे में सफ़र और कपडों में सादगी । कांग्रेस के अधिवेशन में स्वेच्छा से अस्थायी पाखाने को साफ़ करने का जिम्मा गांधी लेते थें। आज गांधीवादी कहलानेवाले अन्ना प्लेन से चलते हैं। बिसलरी का पानी पीते हैं । उनके भी गुरु हैं रामदेव अरबों की संपति , दवाओं का कारोबार , टीवी चैनल के मालिक । यह सारी संपति कहां से आई नही बताते हैं। हां यह जरुर बोलते हैं सरकार जांच करा ले । अन्ना के पास भी करोडो की जमीन है लेकिन खुद के नाम पर नही। महाराष्ट्र के अहमदनगर के लोगों को सब पता है । चार अप्रील को अन्ना ने एक नये कानून को पास कराने के नाम पर ड्रामा शुरु किया था एक हफ़्ते के अंदर बंद कर दिया । पांच दिन तक चले अन्ना के ड्रामें के लिये लगे शमियाने का खर्च था पांच लाख और पानी पर भी चार-पांच लाख खर्च हुये थें। तकरीबन ३२ लाख रुपये खर्च हुये थें। अब रामदेव ने अनशन की शुरुआत करने की घोषणा की है और ४ जून से अनशन पर बैठ रहे हैं। रामदेव वैसे विवादास्पद व्यक्ति हैं लेकिन एक काम उन्होनें अच्छा किया है जिसकी प्रशंसा होनी चाहिये । वह काम है लोगों के अंदर योग के नाम पर स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा करना । योग गुरु कहलाने वाले रामदेव वस्तुत: योग के नाम पर व्यायाम सिखाते हैं लेकिन उसकी भी सराहना होनी चाहिये । रामदेव हजारो करोड के मालिक हैं और यह रकम इमानदारी से नही हासिल की गई है । दवाओं का व्यापार करते हैं यानी व्यवसायी भी हैं। । इस सत्याग्रह में भी रामदेव व्यवसाय कर रहे हैं। लाखो रुपया चंदा के नाम पर वसूला जा रहा है ।रामदेव के गुरु का क्या हुआ किसी को नही पता । गुरु की संपति के मालिक रामदेव कैसे बन गयें यह भी किसी को नही पता । गुरु गायब हैं लेकिन रामदेव जो उनकी संपति के वारिस बने बैठे हैं कभी भी गुरु का पता लगाने की कोशिश नही की ।आस्था चैनल के मालिक को डराकर चैनल बेचने के लिये बाध्य किया गया और न जाने कौन सा भय पैदा किया गया की वह हिंदुस्तान छोडकर चला गया तथा रामदेव के डर से आना भी नही चाहता है । आस्था चैनल को विशुद्ध व्यवसायिक रुप दे दिया रामदेव नें। एक संत संपति का संचय नही करता अगर संपति दान में मिलती भी है तो उसे लोक कार्य में खर्च कर देता है परन्तु रामदेव दिन दुगुनी रात चैगुनी संपति बढाने में लगे हैं। खैर बुरा आदमी भी अच्छा बन सकता है अगर बनना चाहे । देवानंद की एक फ़िल्म थी गाईड आर के नारायन की लिखी कहानी थी । देवानंद एक बुरा आदमी था लेकिन लोगों की आस्था ने उसे अच्छा बना दिया । उसने अकाल की मार झेल रहे गांव में बारिश के लिये अपनी जान दे दी। रामदेव न तो संत हैं और न हीं साधु । हाल के समय में दो आदमियों ने अकूत दौलत कमाई । एक के सिर पे प्रणव मुखर्जी का हाथ था , वह थें धीरु भाई अंबानी । आज भी अगर धीरु के संपति कैसे बढी इसकी जांच हो तो रिलायंस का साम्राज्य बिखर जायेगा। दुसरे व्यक्ति हैं रामदेव । रामदेव को करोडपति बनाने में सुबोधकांत सहाय का सहयोग रहा है । फ़ुड प्रोसेसिंग के मंत्री रहते हुये रामदेव कि कंपनियों को सैकडो करोड का सरकारी अनुदान दिया था । सुबोधकांत सहाय से रामदेव के रिश्ते के कारण हीं उन्हें रामदेव को मनाने के लिये लगाया गया है । रामदेव नेपाल की सरकार से मिली सैकडो एकड जमीन को भी बेचकर पैसा कमा चुके हैं। रामदेव और बालाकर्ष्णन नाम के उनके तथाकथित शिष्य के साथ क्या संबंध है यह भी वैसा हीं रहस्य है जैसा तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और उनकी सखा शशिकला ,जिसने जयललिता के लिये अपने पति तक को त्याग दिया । रामदेव अकूत दौलत के मालिक हैं और चोला है संत का । वैसे जो मांगे रामदेव ने रखी हैं वह न सिर्फ़ जायज हैं बल्कि हर इमानदार आदमी के दिल आवाज है । अन्ना के साथ यह नही था । अन्ना कुछ एलीट क्लास वालों के बहकावें यह समझ बैठे हैं कि एक नया कानून बन जाने से सारी समस्या दूर हो जायेगी और भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा जबकि अन्ना का लोकपाल भ्रष्टाचार की एक नई संस्था भर बनकर रह जायेगी। हां व्यक्तित्व के मामले में अन्ना , रामदेव से अच्छे हैं। उन्होने समाज कि लिये छोटे स्तर पर हीं सही लेकिन कुछ किया है । रामदेव की मांग का समर्थन करना चाहिये और यह आशा भी कि गाईड फ़िल्म के देवानंद की तरह आनेवाले समय में रामदेव खुद में सुधार लायेंगे तथा अपनी भ्रष्टाचार से कमाई दौलत को राष्ट्र के लिये दान देकर संत का काम करेंगें। विदेश में जमा कालाधन वालों का नाम बताने , भ्रष्टाचारियों के लिये आजीवन कारावास, कालाधन को राष्ट्रीय संपति घोषित करने जैसी मांग पर अमल करने के लिये बहुत समय की दरकार नही है। सरकार चाहे तो एक हफ़्ते में अध्यादेश ला सकती है । कालाधन वालों का नाम बताने के लिये तो किसी अध्यादेश की भी जरुरत नही है । सरकार को सिर्फ़ आयकर विभाग द्वारा निर्गत नोटिस को सार्वजनिक करने की जरुरत है क्योंकि सरकार पहले हीं कह चुकि है कि आयकर विभाग विदेश में जमा कालेधन वालों पर कार्रवाई कर रहा है । सरकार चाह्ती है कि कालाधन धारकों को जुर्माना तथा टैक्स लगाकर उन्हें स्वेच्छा से कालाधन घोषित करने के लिये प्रेरित करे लेकिन यह गलत है । पहले भी ऐसा हो चुका है । इससे कालाधन कमाने वालों का मनोबल बढेगा । कालाधन भ्रष्टाचार से हुई आय है उसपर देश का अधिकार है । अगर कालाधन धारकों को जुर्माना तथा टैक्स लगाकर उसे घोषित करने के लिये कहा जाता है तो यही बात बैंक डकैती करने या लूटपाट करनेवालों पर लागू होनी चाहिये । लूटपाट करो , जुर्माना भरो, संपति तुम्हारी । हां प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी वाली मांग गलत है । यह नई पीढी को शिक्षा के क्षेत्र में कमजोर करने का कार्य करेगा। अंग्रेजी सिर्फ़ अंग्रेजों की नही रह गई । दुनिया में सबसे अच्छी अंग्रेजी बोलनेवाले हिंदुस्तान के बंगाली समाज के लोग मानेजाते हैं। सभी अच्छी पुस्तकें अंग्रेजी में हैं । सारे रिसर्च भी अंग्रेजी में हैं। रामदेव को चीन से सबक लेना चाहिये । कट्टर भाषावाद के कारण चीन में अंग्रेजी जाननेवाले बहुत कम हैं परिणाम है कि चीन के छात्रों को विदेश में काम नही मिल पाता है । और अब चीन अपने छात्रों को अंग्रेजी के अध्ययन के लिये प्रेरित कर रहा है .एक और समस्या है । वह समस्या संप्रदायिक्ता की है । जो लोग रामदेव के समर्थक हैं उनमें से अधिकतर हिंदुवादी विचारधारा के हैं। कभी गायत्री शक्तिपीठ सेजुडे लोग आज रामदेव से जुड गये हैं। रामदेव को इस तरह के लोगों से बचना होगा । रामदेव के बयान और प्रेस से उनकी वार्ता से यह तो स्पष्ट है कि रामदेव के पीछे एक ग्रुप है जिसमें काफ़ी पढे-लिखे लोग हैं। यही कारण है कि जब रामदेव से व्यक्तिगत वार्ता के दरम्यान पत्रकार प्रश्न पुछने लगते हैं तो वे कोई तार्किक जवाब नहीं दे पाते क्योंकि जितना उन्हें सिखाया जाता है , वहांतक तो वह धाराप्रवाह बोल जाते हैं लेकिन उसके बाद जब प्रश्नों की बौछार होती है तब भेद खुल जाता है । रामदेव को उन लोगों के भी नाम का खुलासा करना चाहिये । जनता को यह जानने का अधिकार है कि रामदेव के कोर ग्रुप में कैसे लोग हैं । अनशन तबतक चलना चाहिये जबतक भ्रष्टाचार की सजा बढाने, कालेधन को राष्ट्रीय संपति घोषित करने का अध्यादेश सरकार नही ला देती है तथा विदेशों में जमा कालेधन धारकों का नाम सार्वजनिक नही करती । विदेशों में जमा कालेधन धारको का नाम सार्वजनिक करने की मांग को मानने में सरकार को समस्या नही होनी चाहिये । हम आशा कर सकते हैं कि रामदेव गाईड के देवानंद बनकर इस अनशन का संचालन करेंगें । वैसे भी हम एक्दम ईमानदार आदमी की राह नही देख सकते । इमानदार आदमी आम आदमी की तरह होगा , दिल मे गुस्सा, कपडों में सादगी , वह अनशन करते हुये मर भी जायेगा तो कोई असर नही पडनेवाला । आजतक, स्टार न्यूज, एनडीटीवी, आईबीएन लाईव जैसे सभी चैनलों को भी टीआरपी चाहिये जो आम आदमी को अनशन पर बैठे हुये दिखाने से नही मिलेगा। ये टीवी चैनल तो बलात्कार भी सेलीब्रिटी के साथ हो तभी बार-बार दिखाना पसंद करते हैं। । भारत की जनता गुलाम देश की गुलाम मानसिकता वाली है , इसलिये रामदेव के मांग का समर्थन करना उचित है लेकिन कुछ शर्तों के साथ । अगर रामदेव मांग पुरी होने के पहले अनशन भंग करते हैं तो इनके साथ भी वही व्यवहार होना चाहिये जो भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देनेवालों के साथ हो।जनता को खासकर जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हैं , उन्हें इसबात के लिये भी तैयार रहना चाहिये की अगर रामदेव कोई बहाना बनाकर पांच – सात दिन के अंदर अनशन भंग करते हैं तो उनको घेर ले और जूतों से पिटाई करे। हमें रामदेव नही बल्कि गाईड का देवानंद चाहिये । रामदेव लोगों की आपमें आस्था है , आप भी उनके विश्वास में आस्था रखें . चंदा वसूली का वीडियो यहां दिया हुआ है ।


Comments

  1. आपको बुरा तो लगेगा लेकिन आप इतना जान लें कि अंग्रेजी से ज्यादा नुकसान देश का किसी ने नहीं किया है। अगर आप धैर्य रखें तो कुछ दिनों में ही एक किताब पूरी कर रहा हूँ जो बताएगी कि अंग्रेजी क्या है? आप(संभवत: वकील हैं क्योंकि मैं नहीं जानता यह आलेख ने आपने ही लिखा है।)वकील हैं और यह पेशा और इसकी भाषा ही लगभग जनविरोधी है। अंग्रेजों की बनाई हुई यह अंग्रेजी व्यवस्था भारत का बहुत नुकसान कर चुकी है और करती रहेगी। किसी अंग्रेजी वाले ने देश को कुछ दिया भी है, इसमें संदेह है। एक-दो नाम से कुछ नहीं होने का। विदेशभक्ति छोड़िए। ज्यादा अभी नहीं कहूंगा, किताब बहुत जल्दी आपको पढ़ने को मिलेगी। अभी छपेगी तो नहीं लेकिन आपको पढ़ने के लिए मिल जाएगी।

    अंग्रेजी की इसी मानसिकता ने देश को डुबाया है और भारत में पिछले 150 सालों में कितने बड़े वैज्ञानिक निकले हैं, खुद सोच लें जबकि वैज्ञानिकों की भाषा हमारे यहाँ अंग्रेजी ही है।

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  2. चंदन जी पहली बात तो आपने ऐसा कुछ नही कहा जिसका बुरा माना जाय । हां मैं वकील हूं लेकिन कुछ हटकर करता हूं , मैं न्यायपालिका के बारे में भी उसी तरह लिखता हूं। जो बुरा है उसे बुरा हीं कहना चाहिये। आपकी बात सच है कि अंग्रेजी ने देश को नुकसान पहुंचाया है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी का बहुत बडा योगदान है । यह तो अंग्रेजीदां भारतीय हैं जो अंग्रेजी बोलने के बाद अपने आपको सबसे योग्य समझ बैठते हैं जबकि यह मात्र एक भाषा है इसका ग्यान से या बुद्धिमता से कोई संबंध नही है । भाषा आपके भाव और विचार को शब्दों के माध्यम से प्रकट भर करती है । मुझे आपकी पुस्तक का इंतजार रहेगा।

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