दारुल उलेमा देवबंद रा्ष्ट्रद्रोही संगंठन है

दारुल उलेमा देवबंद रा्ष्ट्रद्रोही संगंठन है
सलमान रश्दी पहले भी भारत आते रहे हैं , लेकिन इसबार जयपुर विवादोत्सव में उनके आने को लेकर के देवबंड नामक संगठन ने जोरदार हंगामा किया , चुनाव सामने था, केन्द्र से लेकर राज्य की सरकार इन सढियल उल्लेमाओं के आगे नंगी खडी नजर आइ । इस पूरे प्रकरण ने देश के बुद्धिजिवियों के चेहरे पर पडे नकाब को उतार कर रख दिया। हुसैन के लिये रो रो कर टब भरनेवाले साम्यवादियों कान में रुई डालकर सोये नजर आयें। एक नया लेखक चेतन भगत जो हर विषय पर अपनी राय रखने का शौकिन है, उसने भी राजनीतिक बातें करना और उल्लेमाओं के पक्ष में बोलना शुरु कर दिया । देवबंद जैसी संस्थाओं को प्रतिबंधित करने की जरुरत है । आर एस एस से ज्यादा खतरा देवबंद जैसी संस्थाओं से है। ऐसा नही है कि सैटेनिक वर्सेज में सिर्फ़ इस्लाम की चर्चा है , हिंदु धर्म के उपर भी अच्छा कटाक्ष किया है सलमान रश्दी ने। एक जगह यह लिखा है  कि कुछ औरतों को  गनेश  का मुखौटा लगे  गीब्रील फ़रिश्ता के साथ सेक्स करना ज्यादा आनंद दायक लगता है । गब्रील फ़रिश्ता  फ़िल्मों में हिंदु देवताओं का चरित्र निभाता है ,
शाहबानों के मामले में भी केन्द्र की सरकार इन संप्रदायिक शक्तियों के आगे हार गई थी , न्यायपालिका ने इज्जत रखी । इन कट्टरपंथियों को जवाब देने का सबसे अच्छा तरीका है , वह काम जरुर करो जिसके लिये ये हंगामा करते हैं। भारत अफ़गानिस्तान नही हो सकता और न यहां तालिबान का शासन स्थापित हो सकता है । वैसे तो दुनिया के सभी धर्म पुरुषवादी हैं , लेकिन इस्लाम में तो औरतें सिर्फ़ भोग की वस्तु हैं। एक साथ मर्द और औरत नमाज नहीं पढ सकते हैं। जिस मां की कोख से ये मौलवी पैदा लेते हैं , उसी मां को सिर्फ़ बिस्तर गर्म करने की चीज समझते हैं। कुरान या कोई भी धार्मिक किताब इंसान के दिमाग की उपज है । दुनिया की आधी आबादी को चाहिये की स्वबसे पहले मंदिर , मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे पर कब्जा करे और वहां स्थापित पुरुष भगवान को उठाकर नदी  में दफ़न कर दे । मोहम्मद साहब नामक एक शख्स भगवान का दूत बन जाता है, अपने मन से एक किताब लिखता है और अफ़वाह फ़ैलाता है कि अल्लाह ने आकाश से कहा वही मैने लिखा। इसी तरह के  कामलोलूप मौलानों के कारण आज अफ़गानिस्तान की औरतें नर्क का जिवन गुजारने के लिये बाध्य हैं।कोई फ़तवा जारी करता है कि बिना बुर्के के न बाहर जायें, कोई पब में डांस कर रही लडकियों को सडको पर दौडा दौडा कर पिटता है । लक्ष्मी का पैर कभी विष्णु नही दबाता । मुस्लिम महिलाओं पर ज्यादा जिम्मेवारी है। जहां भी मौका मिले इन दढियल मौलानाओं को दे दनादन देना शुरु करें। कांग्रेस अगर यह समझ रही है कि संप्रदायिक खेल के सहारे सता में काबिज रहेगी तो यह उसकी भूल है । बदलाव आ रहा है, उसके खेल को लोग समझने लगे हैं। भाजपा से ज्यादा खतरनाक है कांग्रेस । क्रांति  जब आती है तो सिर्फ़ सता का परिवर्तन नही होता , जनता का शोषण करनेवालों को जिंदा समुंद्र में दफ़न भी किया जाता है । वक्त है , सता का लोभ छोडकर देवबंद जैसी संस्थाओं को देशद्रोही करार देते हुये प्रतिबंध लगाये । किसी की भावना आहत हो , इस आधार पर बलात्कार करने की अनुमति नही दी जा सकती है ।


रश्दी से हार गई सरकार



मशहूर लेखक सुहैल सेठ ने शनिवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर सटीक  टिप्पणी करके रुश्दी विवाद की आग को और भड़का दिया है। सेठ ने गहलोत को कमजोर मुख्यमंत्री करार देते हुए उनसे तुरन्त इस्तीफे की मांग कर डाली।

सेठ ने कहा राज्य सरकार रुश्दी की सुरक्षा की गारंटी नहीं ले पाई। रुश्दी मामले में साबित हो गया की सरकार का मुखिया लचर है। सेठ ने कहा की पिछली सरकार के दौरान भी जयपुर में फेस्टिवल हुआ था, तब ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ। स्पष्ट है कि सरकार ही रुश्दी को नहीं आने देना चाहती थी और अब बात रुश्दी पर ही डाल कर जिम्मेदार बता कर पल्ला झाड़ रही है।


इधर संप्रदायिक तत्व सलमान रश्दी के समर्थकों को गिरफ़्तार करने की मांग कर रहे है लेकिन उन्हें रखने की जगह कहां है । जेले भर जायेंगी  और  गिरफ़्तारी देने के लिये जो भीड सडकों पर उमडेगी , तुम्हारी दाढी नोच लेगी , आग से मत खेलो । भारत न तो अफ़गानिस्तान बनेगा न मिस्त्र ।


रुश्दी समर्थकों को गिरफ्तार करो




सैटेनिक वर्सेज बढ़ने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। हैदराबाद से संसद सदस्य और मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलीमीन (एमआईएम) के अध्यक्ष असादुद्दीन ओवैसी ने उन लेखकों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है, जिन्होंने शुक्रवार को सैटेनिक वर्सेज के अंश पढ़े।

आखिर क्या है किताब में



सैटेनिक वर्सेज का नाम ही पहले विवाद का कारण है। सैटेनिक वर्सेज यानि कि शैतान की आयतें। पवित्र कुरान की आयतों में विश्वास करने वाले मुस्लिम समाज को उपन्यास के नाम में ही पहली खराबी नजर आई। सूत्रों के अनुसार विरोध का दूसरा और बड़ा कारण था सैटेनिक वर्सेज में पैगंबर मोहम्मद साहब का अपमानजनक समझा जाने वाला चित्रण। किताब में मोहम्मद पैगंबर साहब के साथ साथ इस्लाम, कुरान और मक्का के संबंध में भी काफी विरोधाभासी बातें की गई हैं।




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