जयपुर में सैटेनिक वर्सेज का पाठ







जयपुर साहित्य महोत्सव में सैटेनिक वर्सेज का पाठ  

रश्दी न आयें लेकिन उनकी आवाज गुंजी । यह आवाज अशोक गहलोत , मनमोहन से लेकर सता के तलुये चाटने वाले जयपुर साहित्य महोत्सव के आयोजकों के गाल पर तमांचा है जोरदार तमाचा। मुझे तमाचा खाने के बाद अपनी गाल सहलाता मनमोहन सिंह, अशोक गहलोत और आयोजक नजर आ रहे   है , आह क्या दर्श्य है । वैसे कल महोत्सव में साहित्यकारों ने विरोध दर्ज करते हुये सैटेनिक वर्सेज के कुछ अंशो का पाठ किया । यह जवाब था अशोक गहलोत , मनमोहन और इस्लामिक कट्टरपंथियों को।
मैने भी सैटेनिक वर्सेज को अपने साइट पर पोस्ट किया है । सरकार द्वारा सैटेनिक वर्सेज को बैन करने के खिलाफ़ प्रतिकार है । कट्टरपंथियों को जवाब भी है। विरोध दर्ज करानेवाले साहित्यकारों की फोटो हम यहां दे रहे हैं । वैसे तो देश में धर्मनिरपेक्ष कोई राजनीतिक दल नही है । कुछ हिंदु कट्टरवाद को बढावा देते हैं और कुछ इस्लामिक कट्टरवाद को । बडे कायराना ढंग से सलमान रश्दी के मामले में कांग्रेस सरकार ने घुटने टेक दिये। कट्टरपंथियों की आवाज देवबंद की एक धमकी ने केन्द्र से लेकर राजस्थान सरकार तक को झुका दिया , साथ हीं साथ जयपुर साहित्य उत्सव के आयोजकों की भी असलियत को उजागर कर दिया । आयोजको ने सरकार के दबाव में रश्दी से संबंधित जानकारी अपने वेब साइट पर से हटा दी। यह चटुकारिता की पराकाष्ठा थी । उस महोत्सव में भाग लेनेवाला कोई भी व्यक्ति अब साहित्यकार होने का दावा नही कर सकता है । राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रश्दी के आगमन को कानून व्यवस्था के लिये संकट करार दिया और उससे एक कदम आगे बढते हुये यह भी बयान दिया कि राजस्थान की जनता रश्दी के आगमन के खिलाफ़ है । अशोक गहलोत आज अगर जनमत संग्रह इस मुद्दे पर करायें तो उनकी सरकार गिर जायेगी । कांग्रेस के कदम से एक बात तो साफ़ है कि देश में मुस्लिमों की आवाज कट्टरपंथी हैं , उदार विचार के मुसलमानों के लिये कांग्रेस पार्टी के शासम में कोई जगह नही है । भाजपा से बेहतर कांग्रेस नही है, बल्कि बुरी है । भाजपा तो कम से कम यह कहती है कि वह हिंदुवादी दल है लेकिन कांग्रेस तो धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढकर संप्रदायिकता की बात करती है । सलमान रश्दी आयें या न आयें , यह मायने नही रखता लेकिन हम कुछ कट्टरपंथियों के आगे आत्मसमर्पण कर दें यह शर्मनाक है । लेकिन राजनीति का स्वरुप बदल गया है , अगर अपनी बेटी का भी सौदा करना पडे सता के लिये तो गलत नही है। दिल्ली , राजस्थान की सरकारों ने तथा जयपुर साहित्य सम्मेलन वालों ने यही किया है । मैने अभीअभी जयपुर साहित्य त्सव के वेब साइट पर जाकर खरी खोटी सुनाई है। आप भी सुनायें। वैसे वहां भी अच्छे साहित्यकार विरोध कर रहे हैं .  हरी कुंजरु, अमीतव कुमार , रुचीर जोशी और जीत थयाली ने सैटेनिक वर्सेज की कुछ पंक्तियों को पढकर अपने विरोध का इजहार किया । हालांकि नपुंसक आयोजको नें इन सब को रोका भी । मैने महोत्सव के वेब साइट पर जाकर खरी खोटी सुनाई है। आप भी सुनायें। इस महोत्सव के आयोजक भडुवें हैं।
आप भी पढें सैटेनिक वर्सेज                                 यह लिंक है


जयपुर महोत्सव का भी लिंक दे रहा हूं । वहां कांटेक्ट पर क्लिक करें और गाली सुनायें नपुंसक आयोजको को ।

जयपुर महोत्सव


टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

  1. मदन जी जब तक जिंदा कौमें हैं तब तक यह आवाज गुंजती रहेगी और उन मुर्दों को कब्र में भी यह आवाज सुनाई देगी जो जिंदा होने का दाबा भर करतें है..

    ReplyDelete

Post a Comment

टिपण्णी के लिये धन्यवाद

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १