नक्सली हमले में 13 जवान शहीद


नक्सली हमले में 13 जवान शहीद



गढ़वा ( झारखंड ) : झारखंड के भंडरिया थाना क्षेत्र में शनिवार पूर्वाह्न माओवादियों द्वारा किए बारूदी सुरंग विस्फोट में 13 जवान शहीद हो गए। लेकिन ये घटना इस इलाक़े के हिंसक इतिहास की एक कड़ी मात्र है. झारखंड में रांची से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित ये इलाक़ा माओवादियों का गढ़ है और नक्सल हिंसा प्रभावित पलामू, लातेहार जैसे ज़िलों से सटा है. बंधुआ मज़दूरीऔर ज़मींदारों की निजी सेनाओंके लिए कुख्यात रहे इस इलाक़े में सामंतवाद के खिलाफ़ लामबंद हुए खेतीहर मज़दूरों के आंदोलनों को माओवादियों का समर्थन मिला और समय के साथ माओवादियों ने इलाक़े में अपनी पैठ जमा ली. विस्फोट के बाद माओवादियों ने घायल 11 जवानों के सिर में गोली मारकर उनकी हत्या की और हथियार लूट लिए। इस दौरान घायल थाना प्रभारी रामबलि चौधरी व चालक सुनील को वज्रवाहन में डालकर जिंदा जला दिया गया। घटनास्थल के पास से गुजर रहीं जिला परिषद अध्यक्ष सुषमा मेहता, परिषद सदस्य हीरवंती देवी और उनके अंगरक्षक को माओवादियों ने अगवा कर लिया है।

घटना में गंभीर रूप से घायल दो पुलिस जवानों को इलाज के लिए हेलीकॉप्टर से रांची भेजा गया है। पुलिस टीम एक विवाद को निपटाने के सिलसिले में वज्रवाहन से बड़गड़ गांव जा रही थी। वाहन में थाना प्रभारी समेत 15 पुलिसकर्मी सवार थे। पुलिस जैसे ही बड़िगांवा जंगल के ललमटिया गांव पहुंची, वैसे ही माओवादियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट किया। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि वज्रवाहन उछलकर घटनास्थल से 50 फुट दूर जा गिरा। विस्फोट स्थल पर करीब पांच फुट गहरा गढ्डा हो गया। घायल जवान गाड़ी से निकलते, इससे पहले ही नक्सलियों ने उन्हें कब्जे में ले लिया। इसके बाद 11 जवानों के हथियार छीनकर उनके सिर में गोली मार दी गई। दो घायल जवान अचेतावस्था में पड़े रह गए। घटना की सूचना मिलने पर एसपी एस माइकल राज और सीआरपीएफ के कमांडेंट आरके डगर के नेतृत्व में सुरक्षा बल मौके पर पहुंच गए।

नक्सलियों ने यह काम प्रशासन द्वारा उनके खिलाफ़ चलाये जा रहे अभियान के विरोध में किया । घटनास्थल पर माओवादियों ने पर्चा छोड़कर घटना की जिम्मेदारी ली है। कोयल शंख जोनल कमेटी के सब जोनल कमांडर खुदीराम के दस्ते ने घटना को अंजाम दिया है। दस्ते में 50 वर्दीधारी नक्सली शामिल थे। सभी अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। पर्चे में ग्रीन हंट जैसे तमाम ऑपरेशन बंद करने की चेतावनी दी गई है।

बचे बीडीओ

पुलिस के वज्रवाहन से महज 50 मीटर आगे चल रहे भंडरिया के बीडीओ वासुदेव बाल-बाल बच गए। वह पुलिस के साथ बड़गड़ जा रहे थे। वहां पर निर्माणाधीन स्वास्थ्य केंद्र के स्थान का विरोध करते हुए गांव के प्रधान रामदास मिंज ने दुकानें और कामकाज बंद करा दिया था।

कुछ वर्ष पहले इसी स्थान पर एक डी एस पी अमलेश कुमार सहित छह जवानों की भी हत्या बारुदी सुरंग लगाकर कर दी थी

नक्सलियों के बीच से वारदात की दास्तां


नक्सली  जिला परिषद अध्यक्ष, सदस्य व उनके  अंगरक्षक को भी घेरे में लिये हुये थें  । अंगरक्षक की पिस्तौल एक नक्सली के हाथ में थी। विस्फोट स्थल पर चार जवानों के शव पड़े थे। करीब 50 फुट दूर पुलिस का वज्रवाहन पड़ा था। सात जवानों के खून से लथपथ शव वाहन के पास पड़े थे। कुछ दूरी पर दो घायल जवान कराह रहे थे। दो-तीन नक्सली उन्हें इंजेक्शन लगा रहे थे। कह रहे थे, तुम्हें छोड़ रहे हैं बताने के लिए कि पुलिस चुपचाप हत्याएं नहीं करे। फर्जी मुठभेड़ न करे। ग्रीन हंट समेत तमाम ऑपरेशन बंद करे। अब बारह बज रहे थे। नक्सली पुलिस विरोधी नारेबाजी करने लगे। सड़क पर आते-जाते वाहनों को घटनास्थल से करीब सौ फुट दूर ही रोका जा रहा था। रुके लोगों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। वहां रुके सभी लोगों से नक्सली पहचान भी पूछते जा रहे थे।  इस तरह के वारदात की आशंका किशन जी की मौत के बाद हीं से थी और नक्सलियों ने चेतावनी भी किशन जी की हत्या के समय दी थी ,लेकिन यह प्रशासन की लापरवाही है कि उसने उनकी बातों को हल्के में लिया । मरनेवाला नक्सलवादी हो या पुलिस का जवान , दोनो इसी देश की संतान हैं। नक्सल समस्या के मूल में आर्थिक एवं सामाजिक विषमता है दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नेता इस बात को समझते हुये भी समाधान नहीं करना चाहतें क्योंकि मरने वाले नेता नही होते हैं। देश के अनेको प्रदेश हैं जहां नक्सल समस्या नही है उसका कारण है सामाजिक समरसता । एक मजदूर हथियार क्यों उठाता है, यह सोचने की बात है । मेरा अपना अध्ययन है कि जिन गांवों में लोग मिलजुल कर रहते हैं और वक्त जरुरत एक दुसरे की मदद करते हैं , वहां नक्सलवाद नही पैदा होता है । बिहार में शोषण है। एक जात दुसरे से नफ़रत करती है । यह नफ़रत फ़ैलाने का काम राजनीतिग्य करते हैं लेकिन खामियाजा मजदूर को भुगतना पडता है चाहे वह पुलिस का मजदूर हो या नक्सल का । नक्सल प्रभावित हर पंचायत का  मुखिया नक्सलियों के साथ मिलजुल कर काम करता है । नक्सली मुखिया के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं बोलते हैं और मुखिया नक्सलियों को सुविधा मुहैया कराता है । नक्सली भी सिद्धांत की बात भले करें लेकिन इस तरह की हरकत उनके सिद्धांत के खोखलेपन को दर्शाती है  । नेताओं से पैसे लेकर चुनाव में काम करना , भ्रष्ट मुखियाओं को संरक्षण प्रदान करना , और पुलिस के जवानों को मारना कभी सिद्धांत नही हो सकता ।





टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १