मैं भारत का गद्दार बनना पसंद करुंगा



मैं भारत का गद्दार बनना पसंद करुंगा

भगत सिंह, आजाद जैसे लाखो क्रांतिकारी भारत के गद्दार थें , ये भारत नामक देश के खिलाफ़ नही थें , इनकी लडाई भारत की सरकार से थी । आज भी बहुत सारे लोग हैं जिनके उपर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है , इनकी खिलाफ़त भी देश से नही है , बल्कि देश की सरकार और कानून से है। कोई भी मुल्क जो स्वराज का दावा करता हो , उसे एक भी कानून बनाने के पहले लाख बार सोचना चाहिये , कानून जिसके हित के लिए बनाने की बात है, उसे पसंद है या नही वह कानून । सोशल नेटवर्किंग साईटों पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी का अर्थ समझ में नही आता । जिन सामग्रियों को आपतिजनक मानकर सरकार प्रतिबंध का यह खतरनाक खेल खेल रही है , वह हिंदु धर्म के कुछ देवी देवताओं और इस्लाम धर्म के खिलाफ़ पोस्टिंग है, वहीं कांग्रेस की आलोचना भी। कांग्रेस और भाजपा इन्हीं दो दलों के खिलाफ़ साइटो पर पोस्टिंग मिलेगी , साफ़ जाहिर है कि ये दोनो दल प्रतिबंध का गेम खेल रहे हैं। सोशल साइट्स राजनीतिक परिवर्तन का नया मंच बनकर उभर रहे हैं। पूंजीवाद के खिलाफ़  इन साइट्स पर अधिकांश पोस्टिंग है । लोगो का मन बदल रहा है। सरकार और मुख्य विपक्षी दल भाजपा जो पूंजीवाद के समर्थक हैं,  उनके लिये यह खतरे की घंटी है । ब्लाग पर भी प्रतिबंध की बात उठ रही है । सरकार  स्वंय कुछ नही करना चाहती , वह इन साइटों को यह जिम्मेवारी देना चाह  रही है कि ये साईट सरकार के सेसरशिप को लागू करें। ये निर्णय लें,  कौन सी सामग्री पोस्ट होगी और कौन सी नही । सरकार एक चोर की तरह इशारे से बतायेगी, सोनिया के खिलाफ़ है हटाओ, अडवाणी की बाबरी है, मत छापो । सोशल साइट्स को यह अधिकार कैसे दिया जा सकता है कि वह निर्णय ले क्या छपना चाहिये और क्या नही । सामान्य मापदंड के अनुसार अश्लील   सामग्री नही पोस्ट होती है। और अगर किसी सामग्री पर कोई आपति दर्ज करता है तो उसे हटा दिया जाता है । यह सारी व्यवस्था रहते हुये सरकार यह क्यों चाहती है कि जो सरकार को पसंद हो वही पोस्ट हो ? बिना सेंसरशिप लागू किये , सेंसरशिप लागू करना चाह रही है सरकार । सरकार की मंशा भी साफ़ नही है , वह चाहती है कि सेंसरबोर्ड की भूमिका सोशल साइट्स निभायें । यह एक गहरा षडयंत्र है। न्यायपालिका भी इसका हिस्सा बन गई है । सुरेश कैत नामक दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को यह समझ में नही आया कि उनका आदेश अप्रत्यक्ष रुप से सेंसरशिप को बढावा है । उस जज ने एक कदम आगे बढते हुये सोशल साइट्स को चेतावनी देने के साथ चीन का उदाहरण भी दिया कि चीन के जैसा  कदम उठाया जा सकता है यानी वेब साइट्स को बैन किया जा सकता है । । सुरेश कैत के पास जानकारी का अभाव है , उन्हें शायद यह नही पता कि चीन में लोकतंत्र नही है। वहां सरकार की नीतियों के खिलाफ़ आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नही पोस्ट कर सकते हैं। भारत को चीन  जैसे तानाशाह मुल्क बनाने का प्रयास करनेवाली किसी भी कार्रवाई का विरोध होना चाहिये चाहें वह कार्रवाई सुरेश कैत जैसे जज के आदेश के रुप में हीं क्यों न हो । भारत में कानून है , अगर कुछ भी किसी भी माध्यम से प्रकाशित होता है जो अश्लील हो, धार्मिक भावना को ठेस पहुचाने वाला हो या देश के हित के खिलाफ़ हो , उसे प्रकाशित करनेवाले पर मुकदमा किया जा सकता है , यह मुकदमा तभी हो सकता है जब वह सामग्री प्रकाशित हुई हो यानी प्रकाशन एक अनिवार्य शर्त है। सरकार क्यों चाहती है कि प्रकाशन से पहले हीं सामग्री पर कैंची चलाई जाये । कौन इस बात का निर्णय करेगा कि जो सामग्री है , वह आपतिजनक है या नही ? सरकार की और न्यायपालिका की इस तरह की बेजा हरकत के खिलाफ़ हमारे जैसे लोगों के पास एक हीं उपाय रह जायेगा , अपनी बात को प्रकाशित करने के लिये उन साइट्स का उपयोग करें जिनका संचालन भारत की सरकार के विरोधी देश या संगठन करते हैं ? क्या सरकार यह पसंद ्करेगी कि हिंदु धर्म के खिलाफ़ वाले लेख तालिबान जैसे संगठन के वेब साइट्स पर और इस्लाम के खिलाफ़ वाले लेख ईसाइ धर्म के कट्टर और अतिवादी विचारवाले वेब साईट्स पर प्रकाशित हो ? मुझे कोई अंतर नही पडेगा । अगर मेरे ब्लाग को या लेख को जिसे बिना मुझसे पुछे आपतिजनक माना जायेगा , उसका प्रकाशन मै किसी भी वेब साईट्स पर करना पसंद करुंगा चाहे वह वेब साइट भारत विरोधी हीं क्यों न हो । मैं गद्द्दार बनना पसंद करुंगा , वैसे भी इस मुल्क से मुझे एक पैसे का लगाव नही है । जातीय आरक्षण के कारण हमारे जैसे अति सामान्य परिवार के बच्चे शिक्षा और नौकरियों से वंचित रह जाते हैं। उनकी जगह पर करोडपति , आइ ए एस के बच्चे नौकरी पा जाते है क्योंकि उनकी जाति के लिये आरक्षण है। कौन इस तरह की व्यवस्था को पसंद करेगा जहां दक्षिण अफ़्रिका की तरह रंगभेद  जैसा जातिभेद हो ।

आप भी अगर अभिव्यक्ति की आजादी चाहते हैं तो अभी से विरोध करना शुरु करें , काला बिल्ला लगायें, झंडा फ़हरायें, विरोध हर हालात में दर्ज करायें ।

नीचे वह समाचार है जो सरकार के खतरनाक इरादे को दर्शाता है ।

केंद्र सरकार ने पटियाला हाउस कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की

- भारत आधारित कंपनियों की ओर से पेश हुए वकील

केंद्र सरकार ने आपत्तिजनक सामग्री को लेकर फेसबुक इंटरनेशनल, गूगल इंटरनेशनल सहित दस विदेशी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। केंद्र सरकार की लिखित अनुमति मिलने के बाद पटियाला हाउस के महानगर दंडाधिकारी सुरेश कुमार की कोर्ट ने इन साइटों को समन जारी कर दिया है। साथ ही विदेश मंत्रालय को समन तालीम करवाने का निर्देश दिया है।

उधर बीती सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जिस 21 सोशल नेटवर्किंग साइटों को कोर्ट में पेश होने का समन जारी किया था, उनमें से याहू इंडिया को छोड़कर सभी की ओर से उनके वकील पेश हुए। याहू इंडिया की ओर से उनका एक प्रतिनिधि पेश हुआ। पटियाला हाउस कोर्ट में अगली सुनवाई आगामी 13 मार्च को होगी।

एक पत्रकार की याचिका पर शुक्रवार को समन जारी होने के बाद जिन कंपनियों के वकील या प्रतिनिधि पेश हुए उनकी ओर से कहा गया कि इसमें से 11 सोशल नेटवर्किंग साइट ही भारत आधारित हैं, बाकी 10 विदेशों से नियंत्रित हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कोर्ट ने जिन विदेशी सोशल नेटवर्किंग साइटों को समन भेजा है उनमें फेसबुक इंटरनेशनल, गूगल इंटरनेशनल, यू ट्यूब, ऑरकुट, याहू इंटरनेशनल, बोर्ड रिकॉर्डर, माईलॉट, एक्स-बी, ट्रापिक्स और ब्लॉग स्पॉट शामिल हैं। सभी को भारतीय दंड संहिता के तहत सम्मन जारी किया गया है। जो साइट पर गलत तथ्य डालने, धार्मिक आधार पर विद्वेष फैलाने, किसी धर्म को चोट पहुंचाना, लोगों की भावनाओं को आहत करना शामिल है। बीती सुनवाई के दौरान फेस बुक, गूगल, याहू, यूटयूब सहित करीब 21 सोशल नेटवर्किग साइटों के प्रतिनिधियों को समन जारी करते हुए केंद्र सरकार को इनके खिलाफ उचित कार्रवाई कर 13 जनवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था यह सभी अश्लील सामग्री बेचने व सार्वजनिक प्रदर्शन करने में लिप्त हैं। कोर्ट ने साफ किया अगली तारीख पर कंपनियों के जिम्मेदार लोग व्यक्तिगत रूप से पेश हों।











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Comments

  1. उघाड़ कर रख दिया बॉस, सही है कि इस जातिभेदी देश में गददार कहलाना ही श्रेष्कर है.

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