चुरु मुर्गे की छ्ठ

सुबह जैसे हीं निंद खुली चुरु मुर्गे ने फ़टाफ़ट दडबे में बंद सभी मुर्गो को उठाना शुरु कर दिया , अरे कमबख्तों जल्दी उठो , बजे गये हैं , बाग देनी है , पता है आज छठ है , सभी मुर्गे भी फ़टाफ़ट उठ गयें। एक साथ बाग देने लगे। वाह क्या शमां बंधा था अभी आधा घंटा भी नही हुआ था कि छठ के गीत मुर्गों को सुनाई पडने लगें। चुरु का चेहरा तो यूं चमकने लगा जैसे उसे अमरत्व का बरदान मिल गया हो उधर उसकी पुरानी बीबी निकरी ने भी मुस्कुराते हुये बडे रोमांटिक अंदाज से उसे देखा तो चुरु भुनभुनाने लगा यह मुरुख है , छठ मे ऐसे देखती है , चुरु कुछ बोला नही , उसको रुकु याद गया , जब से रुकु बिका है , चुरु निकरी को ज्यादा प्यार करता है , रुकु  की उम्र हीं कितनी थी , खा खाकर मस्त हो गया था।  सावन अभी खत्म हीं हुआ था , एक सुंदर सा जोडा आया , मोटरसायकिल से कल्लू की दुकान पर आया आगे मर्द बैठा था पिछे गोद में एक बच्चे को लिये एक औरत बैठी थी जो शायद उसकी बीबी थी, वह बच्चा चुरु को अपने रुकु जैसा हीं प्यारा लग रहा था। , अब वह कितने नम्बरवाली बीबी थी , उसे क्या पता , हां उसका मालिक कल्लू  आपस में कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ बाते करता है , उनकी बातों से चुरु ने अंदाज लगाया था कि इंसानो में शादी वादी का कोई नियम है , एक हीं से शादी कर सकते हैं, उसी के साथ जिंदगी भर रहना पडता है  दया आती है चुरु को इंसानो पर उस औरत ने रुकु को बडी हसरत से देखा और अपने साथ आये मर्द से कुछ कहा , मर्द ने कल्लू को रुकु को निकालने के लिये कहा , चुरु समझ गया , बस रुकु की  जिंदगी आज भर हीं थी , निकरी भी समझ गई थी अब रुकु नही बचेगा , निकरी चुरु के पास आकर सट कर खडी हो गई शायद कह रही हो बचा लो रुकु को , अब चुरु क्या बोलता , मुर्गे रहते तो उनसे लड जाता लेकिन ये तो इंसान हैं फ़िर हम मुर्गे पैदा भी इन्हीं के लिये होते हैं। कल्लू ने दोनो पंख पकड कर रुकु को दरबे से निकाल लिया। रुकु चिखता रहा , फ़डफ़डाता रहा ,  चुरु  भी चिल्लाता रहा , मन हीं मन वह शंकर भगवान को याद करता रहा , सावन वाले शंकर भगवान को  सावन में उसने देखा था , बोल बम बोलते हुये इंसान एक जत्थे में  कहीं जाते थें कल्लू अपने दोस्तों से बात करता था , उसकी बात से चुरु ने अंदाज लगाया था कि  ये लोग कहीं जाते हैं , जहां कोई शंकर नामक के एक भगवान रहते हैं। पैदल जाते हैं, चुरु का मालिक भी जाता था , मालिक भी उस एक माह तक  किसी मुर्गे को नही बेचता था सावन कहते थें उस एक माह को चुरु भी उस माह जब भी कोई जत्था इंसानों का निकलता था , उनके साथ हीं बोल बम , बोल बम यानी अपनी भाषा  में कुकुडु कु कुकडु कहने लगता था।  लेकिन आज सावन शायद खत्म हो गया था , उसका मालिक कल्लु भी सुबह सुबह दुकान खोलकर बैठ गया था रुकु को थोडी दूर पर पडे हुये अपने तख्त पर ले जाकर कल्लू ने रुकु की गरदन मरोड दी , कुछ देर तक रुकु का गर्दन से अलग हुआ धड छ्टपटाता रहा फ़िर  शांत हो गया चुरु ने निकरी की तरफ़ देखा , उसके आंख के आंसुओं को देखा , कुछ नही बोला , बस सोचने लगा क्या शंकर भगवान एक माह के लिये रहते हैं उस जगह जहां ये सब उनसे मिलने जाते हैं बोल बम , बोल बम करते हुये ? क्या उनके डर से एक माह तक ये इंसान हमे नही मारते और खाते हैं? छ्ठ में भी चुरु ने पिछली बार देखा था चारपांच दिन तक किसी मुर्गे को कल्लू ने नहीं मारा था , चुरु को लगा था छ्ठ मईया भी शंकर भगवान जैसी कुछ हैं , इनसे सब डरते हैं चुरु इसलिये हीं आज बांग दे रहा था , वह भी छठ मईया की पूजा कर रहा था बांग देकर उसने कल्लू को बात करने सुना था , जो कुछ मांगोगे छ्ठ मईया देती हैं इसबार चुरु  मांग रहा था , मईया तुम सावन वाले शंकर भगवान की तरह छोड कर नहीं जाना तुम भी पिछले साल पांच दिन बाद चली गई थी , उसके बाद इंसानो की भीड लग गई  थी यहां।  तुम अगर चली गई तो फ़िर इंसान हमको मार कर खाने के लिये ले जाने लगेंगें। तुम यहीं रहना जबतक तुम रहोगी हमारी जान बची रहेगी चुरु को लगता है मईया उसकी बात मान लेगी।


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