प्रभात खबर गया की धोखाधडी

प्रभात खबर की गैरकानूनी हरकत
गया से प्रकाशन गैर कानूनी है
अखबार के प्रकाशन का एक कानून है , उसे प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन आफ़ बुक्स एक्ट १८ ६७ के नाम से जाना जाता है अखबार जहां से प्रकाशित होता है वहां के जिलाधिकारी या अनुमंडलाधिकारी के माध्यम से अखबार के नाम के रजिस्ट्रेशन के लिये एक आवेद्न महानिबंधक्  प्रेस दिल्ली को देना पडता है उसके बाद जब अखबार का नाम रजिस्टर्ड हो जाता है तब उसका प्रकाशन शुरु किया जाता है अगर डेली अखबार है तो उसके प्रथम प्रकाशन के तीन माह के अंदर एक और आवेद्न तथा अखबार की एक प्रति निबंधक दिल्ली को भेजनी पडती है  प्रभात  खबर ने अपना प्रकाशन बिहार के गया जिले से शुरु किया है लेकिन अभीतक टाईटल भी रजिस्टर्ड नही करवाया है टाईटिल कोड रजिस्टर्ड होने के बाद एक कोड नंबर मिलता है उस कोड नंबर का उल्लेख अपने अखबार की घोषणा में हर हालत  में होना चाहिये । प्रखात खबर गया इस नियम का पालन नहीं करता है ।

सरकारी विग्यापन निकालना भी धोखाधडी है

 चलिये यह काम अधिकांश अखबार करते हैं क्योंकि इस कानून के तहत बिना निबंधन के अखबार निकालने की सजा मात्र दो हजार जुर्माना और या छह माह की जेल है लेकिन प्रभात खबर ने तो हद कर दी उसके गया से प्रकाशित हो रहे संस्करण में सरकारी विग्यापन भी छप रहा है । सरकारी विग्यापन चाहे डिएवीपी के द्वारा दिया गया हो या राज्य सरकार की किसी भी संस्था या विभाग के द्वारा। विग्यापन अखबार को तभी दिया जा सकता है जब उसके प्रकाशन की अनुमति मिल चुकी हो। प्रभात खबर गया  ने तो अभी तक अपना टाईटिल कोड  भी रजिस्टर्ड नही करवाया है ।

अभी प्रभात खबर, गया  अगर सरकारी विग्यापन निकाल रहा है तो , इसका अर्थ है वह धोखाधडी कर रहा है । सरकार के विभाग भी बिना यह देखे की प्रभात खबर गया का निबंधन है या नही , उसे विग्यापन दे रहे हैं। अखबार के निबंधन के कानून में जो नियम है , उसके अनुसार हर वर्ष मई माह में अखबार को अपना स्टेटमेंट आर एन आइ को  देना पडता है । प्रभात खबर गया क्या देगा कि उसने निबंधन के पूर्व हीं विग्यापन निकालना शुरु कर दिया ।

अखबारी कागज का मामला

 अब एक धोखाधडी की बात पर आता हूं। प्रभात खबर का गया संस्करण उस कागज पर छपता है जो सरकार अखबार को कम दाम पर उपलब्ध कराती है । अभी प्रभात खबर , गया को कागज का कोटा नही मिल रहा है फ़िर कैसे वह अखबारी कागज पर छपाई कर रहा है ? मतलब साफ़ है किसी और अखबार के कागज के कोटे का इस्तेमाल प्रभात खबर गया के संस्करण में किया जा रहा है जो  अपराध है ।

कोर्ट नोटिस का प्रकाशन

 प्रभात खबर , गया संस्करण मे   कोर्ट की नोटिस भी छापी जा रही है अमूमन कोर्ट की नोटिस में किसी मुकदमे में हाजिर न हो रहे व्यक्ति के बारे में यह सूचना रहती है कि वह एक निर्धारित तारीख तक न्यायालय में उपस्थित हो अन्यथा उसके खिलाफ़ एक तरफ़ा सुनवाइ की जायेगी । अब जब अखबार का प्रकाशन हीं गैरकानूनी है तो फ़िर न्यायालय के आदेश से प्रकाशित कोर्ट नोटिस का क्या अर्थ है ? और क्या उस नोटिस के आधार पर न्यायालय कोई निर्णय ले सकती है ?  अब अगर कोई व्यक्ति उस अखबार में छपे कोर्ट नोटिस को किसी मुकदमे में आधार बनाता है तो वह गलत होगा प्रभात खबर ने सिर्फ़ सरकार को धोखे में रखकर लाखो का विग्यापन ले रहा है बल्कि न्यायालय को भी धोखा दे रहा है यह धोखाधडी का खेल सरकारी अधिकारियों की जानकारी में हो रहा है न्यायालय को यह पता है या नही कि एक गैरकानूनी रुप से प्रकाशित अखबार में अति महत्वपूर्ण कोर्ट नोटिस भी प्रकाशित की जा रही है

 प्रभात खबर गया को बियाडा में जमीन का आवांटन






















न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड  पटना  को बियाडा गया में जमीन का आवांटन किया गया है । उसी जमीन पर स्थापित है प्रेस जहां छपता है प्रभात खबर गया का संस्करण । वह जमीन न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड  जो प्रभात खबर का प्रकाशक है , उसके एक शंभू नाथ पाठक नाम  के व्यक्ति को आवंटित हुई है ।
आवंटन प्रेस और समाचार पत्र के प्रकाशन के लिये हुआ है । लेकिन जब प्रभात खबर गया आवांटन के समय अस्तित्व में हीं नही था फ़िर आवांटन कैसे हुआ । न्यूट्रल हाउस और शंभुनाथ पाठक का पता पटना का है । मामला पेचीदा है। अगर पटना के प्रभात खबर के लिये बियाडा में जमीन आवांटित हुई तो फ़िर गया का प्रभात खबर कैसे  उसका उपयोग कर रहा है । अगर सुरेश चाचान प्रकाशक हैं और न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस के लिये गया से प्रकाशन कर रहे हैं तो फ़िर शंभुनाथ पाठक की क्या हैसियत है ? दुसरी बात शंभुनाथ ने गैरकानूनी तरीके से अखबार के प्रकाशन की अनुमति कैसे दे दी। बहुत बडा गोलमाल है । यह मामला अब बियाडा जमीन आवांटन से भी जुडेगा । बियाडा के जमीन के आवांटन से संबधित  मामला पटना उच्च न्यायालय में चल रहा है । नीतीश सरकार को उच्च न्यायालय में यह भी बताना होगा कि जब आवांटन किसी और व्यक्ति के नाम से है फ़िर न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड के सुरेश चाचान किस हैसियत से वहां से प्रभात खबर का प्रकाशन कर रहे हैं। अब चाहकर भी प्रभात खबर गया कोई कागजात अपने बचाव के लिये नही तैयार कर सकता है । प्रभात खबर  के लिये कहीं गया से प्रकाशन कानूनी लफ़डे की वजह न बन जाये। उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय  तक मामला जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है ।
 इसी तरह की हरकत हिंदुस्तान अखबार ने किया है मुंगेर में जिसके कारण हिंदुस्तान अखबार पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश मुंगेर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने दिया है




हिंदुस्तान अखबार की शोभना भरतिया , अक्कु श्रीवास्तव पर मुकदमा का आदेश

बिहार के मुंगेर जिले के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मनोज कुमार सिन्हा ने 5 नवंबर की शाम ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए द हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्स लिमिटेड (एचएमवीएल) की अध्यक्ष शोभना भरतिया (नई दिल्ली), प्रकाशक अमित चोपड़ा, दैनिक हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक (नई दिल्ली) शशि शेखर, दैनिक हिन्दुस्तान (पटना) के कार्यकारी संपादक अकु श्रीवास्तव, दैनिक हिन्दुस्तान (भागलपुर संस्करण) के उप-स्थानीय संपादक बिनोद बंधु और मुद्रक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 471 और 476 व प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 8बी., 14 और 15 के तहत मुंगेर कोतवाली में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश पारित कर दिया।

मुंगेर के सामाजिक कार्यकर्ता मंटू शर्मा ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मनोज कुमार सिन्हा की अदालत में 18 अक्ततूवर, 2011 को द हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्स लिमिटेड की अध्यक्ष शोभना भरतिया, हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर, पटना संस्करण हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक अकु श्रीवास्तव और हिन्दुस्तान के भागलपुर संस्करण के उप-स्थानीय संपादक बिनोद बंधु के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 471 और 474 और प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 8 बी., 14 और 15 के तहत परिवार-पत्र दायर किया था। इस मुकदमे में वादी मंटू शर्मा की ओर से मुंगेर के वरीय अधिवक्ता अशोक कुमार-द्वितीय ने बहस की। बहस में सहयोग वरीय अधिवक्ता काशी प्रसाद, अजय तारा और बिपिन मंडल ने किया। परिवाद-पत्र में वादी मंटू शर्मा ने आरोप लगाया था कि सभी अभियुक्तगण देश के बड़े मीडिया हाउस मेसर्स हिन्दुस्तन टाइम्स लिमिटेड, जो बाद में बदलकर मेसर्स हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्स लिमिटेड किया गया है, के संपादकीय बोर्ड और प्रबंधन के अधिकारी हैं। यह कंपनी देश के विभिन्न भागों में हिन्दी में दैनिक हिन्दुस्तान शीर्षक से समाचार पत्र को प्रकाशित कर रही है।

परिवाद-पत्र में आगे वादी शर्मा ने आरोप लगाया है कि किसी भी समाचार पत्र के प्रकाशन के पूर्व प्रकाशक को प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की विभिन्न धाराओं के तहत प्रदत्त प्रावधानों का पालन कानूनी बाध्यता है और इन कानूनी बाध्यता का उल्लंघन दंडनीय अपराध है। वादी ने परिवाद-पत्र में आगे आरोप लगाया है कि अभियुक्त नंबर-एक शोभना भरतिया देश के विभिन्न स्थानों से दैनिक हिन्दुस्तान का प्रकाशन कर रही है और विधिवत कार्यालय का संचालन कर रही है। जिन-जिन नगरों में दैनिक हिन्दुस्तान का नगर संस्करण प्रकाशित होता है, वहां के लिए स्थानीय संपादक नियुक्त रहते हैं जो प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 5(1) के अन्तर्गत है। अभियुक्त गण अपने समाचार पत्र दैनिक हिन्दुस्तान के माध्यम से निजी क्षेत्रों के अतिरिक्त केन्द्र और राज्य सरकारों से विज्ञापन प्राप्त कर करोड़ों-करोड़ का आर्थिक लाभ उठा रहे हैं।



टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १