जानवर का हत्यारा नही हो सकता है अल्लाह



जानवर का हत्यारा नही हो सकता है अल्लाह

कुरबानी जो मांगे वह अल्लाह नही , कुरबानी जो दे वो इंसान नही

आज मुसलमानों का त्योहार बकरीद है इस की खासियत है धर्म के नाम पर जानवर की हत्या करना और उसे अल्लाह के लिये कुरबानी करार देना है अधिकतर मुसलमान इस तरह की जीव हत्या को न्यायोचित ठहराने के लिये तरह तरह का तर्क देते हैं। यह हिंदु धर्म के उन तर्को की तरह हीं है जो देवी को खुश करने के लिये बकरा या भैंसा की बली देने वाले देते हैं। इस अमानवीय धार्मिक परंपरा से जूडा हुआ एक किस्सा है जिसे तर्क के रुप में पेश किया जाता है इस्लाम में एक हजरत इब्राहीम सलाम थें जिनकी परीक्षा लेते हुये अल्लाह ने कहा था , अगर तुम मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो अपनी सबसे प्यारी चीज को मेरे लिये कुरबान करो। हजरत महोदय ने अपने बेटे इसमाईल को हीं कुरबान करने के लिये चुना और चला दी तलवार अल्लाह इनसे बहुत प्रसन्न हुआ और इनके बेटे की जिंदगी बख्श दी तथा उसके बदले किसी जानवर की कुरबानी करने के लिये कहा . किसी मुसलमान में यह हिम्म्त तो है नही कि अपने बेटे को कुरबान करे इसलिये यह रास्ता  अख्तियार कर लिया आज के दिन इनके सबसे पवित्र धार्मिक स्थल मक्का में भी जानवर की हत्या कुरबानी के नाम पर की जाती  है   क्या खाक हज करोगे किसी जीव को मारकर धर्म करना , यह तो पाप है जिस किसी धर्म में इस तरह की परंपरा है , वह गलत है मुझे लगता है कोई ईश्वर हत्या से खुश नही हो सकता यह पाखंड है अगर कोई ईश्वर हत्या से प्रसन्न होता है तो उस ईश्वर को फ़ेक दो समुंद्र में , लेकिन पहले उससे साक्षात बात करो , मौलवी और पंडे पुजारी की बात में मत आओ ईश्वर  के इन दलालो को अलग रखो जब बात करो ईश्वर से ये दलाल सांसद और विधायक की तरह हैं जो दावा करते हैं तुम्हारी आवाज होने का लेकिन होते नहीं।   अपना भी एक उदाहरण दे देता हूं एक बार मैं अपने दोस्तो के साथ पूरे परिवार को लेकर कामख्या गया एक महाराज जी थें मेरे साथ सारा खर्च दोस्तों का था। उनलोगों को बडी आस्था थी अपने महाराज जी के उपर , मुझे चाहते थें मैं भी उनके जैसा बन जाउं। यही कारण था कि अपने पूरे परिवार के साथ वे लोग धार्मिक स्थल पर जाते थें और मेरा परिवार भी साथ होता था , खर्च वही लोग वहन करते थें। एक कुंदन शरण थें , इनके पिता जी गया के अच्छे अधिवक्ता थें। एक रमेश प्रसाद थें सोना का व्यवसाय था लेकिन सर्वहारा की बात करने का शौक था एक अरुण महथा थें, जमीन का व्यवसाय करते थें। एक उमाकांत चौबे थें प्रशासनिक सेवा में हैं शायद कहीं एस डी वगैरह हैं। कामाख्या में पहाड के उपर यानी कामाख्या मंदिर के उपर एक आश्रम था जिसमे कोई नही रहता था , वही डेरा जमा तकरीबन २५-३० लोग थें बच्चो सहित मेरे दो बच्चे , तीन और चार साल के,  हमारे साथ थें। नवरात्री का समय था। महाराज जी के साथ एक महिला भी रहती थीं एक प्रकार से तंत्र साधना करते थें वह महाराज जी महिला का रिश्ता तो महाराज जी हीं बता सकते थें लेकिन मेरी नजर में सेक्स का संबंध अवश्य था। कामाख्या में एक दिन बलि चढाने की बात उठी , बकरा आया और बली चढी मैने भरपेट गाली दी उस महाराज को , देवी को मैं आज भी इस प्रथा का खुलेआम विरोध करता हूं जीव की बलि लेनेवाला तो अल्लाह हो सकता है और हीं देवी अगर अल्लाह कुरबानी मांगता है तो वह शैतान है , राक्षस है अगर देवी को बलि चाहिये इसका अर्थ वह देवी नही राक्षसनी है इनको फ़ेक दो समुंद्र में या बदल दो यह जिव हत्या की प्रथा


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Comments

  1. lekhak ji shayad apko ye bayan baji drna shobha nahi deta hai apni khai manaye ki ye ye bat apne us madhyam se kahi jise koi padta nahi warna is tarah ki tippadi karke aap bahut badi musibat mol lelete
    kisi bi jati ya dharm ke khilaf bolna kanunan jurm hai behatar hoga aap apna kam kre

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  2. श्रीमान जी डरने की बात न करें और यह भी न कहें कि किसी के धर्म पर टिपण्णी न करें, धर्म चाहे कोई हो , वह हत्या नही सिखाता है , इस्लाम जैसे अच्चE धर्म को मुल्लाओं ने दुनिया भर में बदनाम कर दिया । मुझे पता है इस लेख के आधार पर धर्मांध कुछ भी कर सकते हैम, मुकदमा से लेकर हत्या तक लेकिन लिखना बंद नहीं करवा सकतें। आप अगर इस्लाम को मानते हैम तो उसे खुद समझने का प्रयास करEm जो मुल्ला मौलवी कह दे उसी को अल्लाह की बात न मान लें .

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  3. जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।

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