किशन जी की मौत देश के लिए सदमा

किशन जी की मौत देश के लिए बडा सदमा
क्या एनकाउंटर फ़र्जी था ?

किशन जी अपराधी नहीं थें हीं उनका संघर्ष गलत था रास्ता हिंसा का था , जो भारत के कानून के हिसाब से गलत था। लेकिन एक प्रश्न जिसका जवाब कोई सरकार नहीं दे पाती, वह है कि आखिर क्या कारण  है कि हल छोड  के मंगरु उठा लेता है हथियार । किशन जी का एनकाउंटर फ़र्जी था , यह विवाद भी पैदा हो चुका है । उनके शरीर पर २० जख्मों के निशान पाये गये हैं। मेरा अपना अनुभव है कि पुलिस और सीआरपीएफ़ फ़र्जी मुठभेड करने में माहिर होते हैं। । एक घटना यहां बताता हूं जिसकी खोजबीन मैने की थी और साक्ष्य भी है। विगत विधानसभा चुनाव के दरम्यान गया जिले के बोधगया क्षेत्र से एक ढाबानुमा होटल से चार आदमियों को सीआरपीएफ़ ने उठा लिया , उस समय गया के एस एस पी थें अमित लोढा , उन्होने फ़ोन पर यह स्वीकार किया की चार आदमियों को पुछताछ के लिये हिरासत में लिया गया है । नियमत: बोधगया थाने में मुकदमा दर्ज होना चाहिए था जो नही हुआ । उन चारो को गया के आईटीआई कैंप में पुछताछ के नाम पर पाच दिन तक रखा गया । जिलाधिकारी के यहां चुनाव संबंधित प्रेस कांफ़्रेस में मैने एस एस पी लोढा से पुछा क्या पाच दिन तक बिना कोई मुकदमा दर्ज किए किसी को गिरफ़्तार कर के थाने के वजाय सीआरपीएफ़ के कैंप में रखा जा सकता है ? उनका जवाब था हां । अमित लोढा को बिहार सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक से अनेको पुरुस्कार मिला है । उन चारो का क्या हुआ , पता नही चला , हालांकि बात में गया के विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीणों की लाश बरामद हुई , पुलिस के अनुसार नक्सलवादियों ने हीं मुखबीर कहकर उनकी हत्या की थी । किशन जी के मामले में सीआरपीएफ़ के डायरेक्टर जेनेरल का कहना है कि यह फ़र्जी मुठभेड नही थी । कैसे विश्वास किया जा सकता है उनकी बात पर जबकि पहले से हीं सीआरपीएफ़ की विसवश्नियता संदिग्ध है । नक्सलवाद दिल्ली और मुंबई में नही है , यह उन्हीं क्षेत्रो में है जहां भयानक स्तर तक गरीबी , भुखमरी , बेरोजगारी और अत्याचार है । सबसे मजेदार बात है कि नक्सलवाद ग्रसित क्षेत्रों में अपराध कम होते हैं।  एक तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चोरी , डकैती, बलात्कार करने की हिम्मत अपराधी नहीं कर पाते हैं। इनकी अपनी जन अदालत लगती है , इसकी तुलना ग्राम सभा से की जा सकती है । लेकिन जहां ग्राम सभायें पक्षपात और भ्रष्टाचार से ग्रसित हैं वहीं नक्सलियों की जन अदालत में अभीतक इन बुराइंयों का प्रवेश नही हुआ है ।   अगर मेरा बस चले तो मैं यह कानून बना देता कि भ्रष्टाचारियों को आम जनता मार दे , उसके बाद मारने वाले यह साबित करें कि जिसे मारा वह भ्रष्ट था। सरकार की तरफ़ से जांच के लिये सभी सुविधा उपलब्ध कराई जाती । अगर किशन जी गलत थें, उनकी लडाई गलत लोगों के लिये थी , तो इस देश की  नब्बे प्रतिशत जनता गलत है ममता बनर्जी की प्रशंसा करनेवाले गदहे से भी बडा गदहा हैं। ममता बनर्जी एक अराजक व्यक्तित्व हैं। पांच साल शायद हीं वह पुरा कर पायें। किशन जी की मौत पर भी विवाद है उनकी मौत की न्यायिक जांच होनी चाहिये पी बी सावंत जैसे जज से। मैं किशन जी को सलाम करता हूं। उन्हें मारनेवाले को कायर और नपुंसक मानता हूं। अगर सता यह समझती है कि हत्या करवा कर जनता की आवाज को दबाया जा सकता है तो वह गलतफ़हमी की शिकार है एक किशन जी को मारोगे हजार किशन जी पैदा होंगें।

 किशन जी के भाई ने उनका शव देखने के बाद जो कहा , उसे हम यहां दे रहे हैं ।


किशनजी की मौत को लेकर विवाद गहराया, जांच शुरू



कोलकाता।नक्सली नेता किशनजी की मौत जिस मुठभेड़ में हुई थी, वह असली थी या फर्जी, इसे लेकर विवाद गहराता जा रहा है। बहरहाल, इसकी जांच शुरू हो गई है और इस पर से पर्दा तभी उठेगा जब यह पूरी हो जाएगी। जांच और विवादों के बीच यह सत्य साबित हो गया है कि मुठभेड़ में मारा गया शख्स किशनजी ही है।

किशनजी की भतीजी दीपा राव ने शनिवार को उनके शव की पहचान कर ली। इसके बाद उनके शव को कोलकाता लाया गया जहां कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले में पेडापल्ली स्थित उनके घर ले जाया गया।

दीपा नक्सली विचारक व तेलुगू क्रांतिकारी कवि वरवर राव के साथ किशनजी के शव की पहचान करने और उसे ले जाने पहुंची थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने शुक्रवार को किशनजी के परिवार के साथ विचार-विमर्श के बाद सभी औपचारिकताएं पूरी होने पर उनका शव आंध्र प्रदेश भेजे जाने का निर्णय लिया था।

शव की पहचान करने के बाद दीपा ने कहा, "मैंने अंतिम बार उन्हें 1985 में देखा था। शव बिल्कुल मेरे पिता व भाई से मिलता जुलता है लेकिन वह बहुत ही भयावह लग रहा है। उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया है।"

वरवर राव ने आरोप लगाया, "उसे गुरुवार से एक दिन पहले ही पकड़ लिया गया था। उन्होंने उसे काटा, जलाया, और उसके बाद उसे गोलियों से भून दिया। उसके शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां जख्म न हो। उन्होंने उसे 24 घंटे तक हिरासत में रखा और उसे यातना दी।"

वरवर राव ने पत्रकारों से कहा, "वर्ष 1991 से मैंने किशनजी को कई बार देखा है। पिछले 43 सालों में मैंने कई शव देखे हैं लेकिन ऐसा शव कभी नहीं देखा। किशनजी को काटा गया है, जलाया गया है और फिर गोलियों से छलनी किया गया है।"

उन्होंने कहा, "शरीर का कोई अंग नहीं बचा है, जहां चोट न हो। उन्हें (किशनजी) 24 घंटे हिरासत में रखा गया और प्रताड़ित किया गया।"राव ने किशनजी की मौत के लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, "ममता बनर्जी ने किशनजी की हत्या की है।"

समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मोहन सिंह ने भी आरोप लगाया है कि मुठभेड़ असली नहीं थी। सिंह ने शनिवार को कहा, "जिस तरह से किशनजी के मारे जाने की खबर सामने आई है, ऐसा नहीं लगता कि किशनजी किसी मुठभेड़ में मारा गया.. यह एक फर्जी मुठभेड़ है।"

इस बीच मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने किशनजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है तो सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने इसकी न्यायिक जांच कराने की मांग की।

धनबाद में पत्रकारों से बातचीत के दौरान स्वामी अग्निवेश ने कहा, "हम किशनजी की मौत की न्यायिक जांच की मांग करते हैं..पुलिस ने दावा किया है कि वह मुठभेड़ में मारा गया जबकि दूसरी तरफ अन्य लोग इसे एक फर्जी मुठभेड़ करार दे रहे हैं।"

आरोपों के बीच किशनजी की मौत की पश्चिम बंगाल पुलिस के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने जांच भी शुरू हो गई। सीआईडी के उपमहानिरीक्षक के.जयरामन ने आईएएनएस से कहा, "जी हां, एक जांच शुरू की गई है। जब भी कोई बड़ा अपराधी मारा जाता है, इस तरह के आरोप सामने आते हैं। इसलिए हम आरोपों के पीछे की सच्चाई का पता करने के लिए हर कोणों से जांच करेंगे।"

किशनजी की हत्या किए जाने के विरोधस्वरूप नक्सलियों की ओर से किए गए 48 घंटे के बंद का जंगलमहल में आंशिक असर रहा। आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के पेडापल्ली कस्बे में भी लोगों ने किशनजी के मारे जाने के विरोध में शनिवार को बंद रखा। किशनजी इसी कस्बे का निवासी था। हैदराबाद से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे के लोगों ने किशनजी के मारे जाने के शोक में स्वेच्छा से बंद रखा। दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान, और निजी शिक्षण संस्थान बंद रहे।

प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में तीसरे नम्बर का नेता किशनजी पेडापल्ली में ही पैदा हुआ था और नक्सली आंदोलन से जुड़ने के लिए 35 वर्ष पहले ही घर छोड़ दिया था।

नक्सली विचारक और प्रमुख रणनीतिकार किशनजी कानून की पढ़ाई करते समय ही भूमिगत हो गया था और उसके बाद उसने अपने कस्बे या परिवार की तरफ कभी नहीं झांका। स्थानीय लोगों और विभिन्न संगठनों के नेताओं ने शनिवार को किशनजी के भाई अंजानेयुलू के घर जाकर शोक संवेदना व्यक्त की।



किशन जी की श्रंद्धाजली में दो गीत



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