सरकार को पसंद हैं विदेशी दामाद



सरकार को पसंद है विदेशी दामाद

रिटेल क्षेत्र में विदेशी पूंजी : कांग्रेस की ताबूत में अंतिम कील

मनमोहन को मैं गोर्बाचोव का बडा  भाई मानता हूं। गोर्बाचोव ने अपने  शासनकाल में संयुक्त सोवियत गणराज्य को टुकडे- टुकडे  में बांट दिया था सोवियत संघ के खात्मे के साथ हीं , अमेरिका दुनिया का एकक्षत्र शक्तिशाली देश  बनकर उभरा उसे चुनौती देनेवाले राष्ट्र का पतन हो चुका था अमेरिका ने वहां पूंजीवादी व्यवस्था कायम कर दी। रुस सोवियत संघ का सबसे बडा देश था रुस की आर्थिक व्यवस्था का  पतन हो गया रुबल का भारी अवमूल्यन हुआ स्थिति ऐसी गई की भारत के जिलाधिकारी यानी कलक्टर जैसे अहम पद वाले अधिकारी के वेतन से अपने  परिवार की दो जून की रोटी का जुगाड करना मुश्किल हो गया भ्रष्टाचार पनपा रुस की औरतों को घर चलाने के लिये वेश्यावर्ति करनी पडी गोर्बाचोव को जो करना था , उसने कर दिया लेकिन उसके किये का फ़ल आज भी रुस को भोगना पड ही  है। मनमोहन के किये का फ़ल भारत को भोगना पडेगा हालांकि पूंजीवाद की कट्टर समर्थक तो भाजपा भी है कांग्रेस से ज्यादा अमेरिका के करीब भाजपा है। भाजपा समझती है कि अमेरिका मुसलमानों के खिलाफ़ है , इसलिए  उसका समर्थन भाजपा के लिये फ़ायदेमंद है। अमेरिका का दबदबा तभी तक है , जबतक पूंजीवाद है वस्तुत: पूंजीवाद का आधार हीं व्यक्तिवाद है। पूंजीवाद में समाज का कोई स्थान नहीं होता है समाज के हक को सहायता का नाम दे दिया जाता है ताकि अपने हक को भी दुसरे की दया समझे समाज एक राष्ट्र के नागरिक होने के अधिकार के तहत जिन चीजों पर नागरिकों  का बुनियादी अधिकार है , उसे दान के नाम पर दिया जाता है जहां तक भारत की बात है , यहां के राजनीतिक दलों के पास अपनी कोई सोच नही है। चाहे मनमोहन हों या प्रणव या फ़िर भाजपा के यशवंत  सिंहा ये सारे लोग अमेरिका परस्त बन चुके हैं। राजनिति में निर्णायक स्तर पर आम जन से जूडे नेता नही हैं। सता के शीर्ष पर जनता से हमेशा दूर रहनेवाले नेताओं का कब्जा है और यही कारण है कि उन्हें जनता की बुनियादी जरुरतों का भी पता नही हम पहले हीं विदेशी वस्तुओं के लिये सबसे उम्दा बाजार हैं हम यह भी नही देखतें कि  किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए देश के बाजर में ्बिना किसी शर्त के प्रवेश  करने का अधिकार दे देने से क्या हानि होगी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शोषण का एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। अमूमन कंप्यूटर चलाने वालों को प्रिंटर की जरुरत पडती है किसी कंपनी का प्रिंटर खरिदने का अर्थ यह नही  है कि एक पेंच की भी जरुरत हो तो उसी कंपनी से खरीदना पडे जबकि वह बाजार में सस्ते दाम पर उपलब्ध हो। आप एच पी या सैमसंग का प्रिंटर खरीदेंगे तो उसका रिफ़ील नही होगा एक नया इंक कार्टिज खरीदना पडेगा इंक भरवाने में जितना पैसा लगेगा , उससे दस गुणी किमत है कार्टिज की यानी सौ रुपया में इंक मिलेगा तो कार्टिज की किमत होगी एक हजार से डेढ हजार रुपया भारत की सरकार तो पैंट खोलकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे अपना पिछाडा कर के खडी है , मार लो मेरा नही है, यह तो जनता का है कल शरद पवार की पिटाई हुई सभी दल आलोचना कर रहे हैं, उन्हें भय है कि कहीं हमारे नेताओ की भी पिटाई हो। शुतुरमुर्ग बनने से काम नही चललनेवाला यह कहने से भी काम नही चलेगा कि कानून है एक इंक और सब्जी के लिये कानून की कितनी लडाई लडेगी जनता
 पिटाई से फ़ायदा होगा अगर सबलोग सडकों पर उतर जायें और पिटाई शुरु कर दें तो राजनीतिक दल और उसके नेताओं को अहसास होगा अब जब भारत दिवालियेपन के कगार पर खडा है तो सरकार विदेशी पूंजी को लाने के लिये रिटेल क्षेत्र के लिये ्पैंट उतार कर खडी हो गई। बडी कंपनियां किसी देश में जब प्रवेश करती हैं तो सबसे पहले वहां प्रतिस्पर्द्धा समाप्त करती है। इसके लिये अनैतिक तौर तरीके अपनाती हैं। अपने सामान को घाटा  सहकर सस्ते दाम तक वर्षों बेचती हैं , छोटे छोटे व्यवसायी घाटा सहते सहते हार मान लेते हैं और अपनी दुकान बंद कर देते हैं। आज स्थिति यह है कि जितना बडा माल उतना हीं महंगा वहा बिकने वाला सामान जनता को अपना तत्कालीन लाभ छोडकर आगे आना होगा रिटेल क्षेत्र में किसी  भी विदेशी दुकान को नही खोलने देना होगा। चाहे जो किमत अदा करनी पडे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गलत हरकत पर रोक लगानी होगी सामान मेरे देश में बेचोगे तो तकनीक की जानकारी देनी होगी बाजार में खुलेआम मिल रहे किसी भी पार्टस की किमत से एक पैसा ज्यादा नही लेना होगा। भारत बहुत हीं खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है विदेशी पूंजी यहां कमाने के लिये आती है वह सरकार की  दामाद है जिसे हमेशा दहेज चाहिये हरविंदर जैसों का स्वागत करना होगा अगर हम आज चुप बैठ गयें तो आनेवाले कल में भारत के हालात भी सोवियत संघ  जैसा हो जायेगा सिर्फ़ देश का विघटन होगा बल्कि औरतों को घर चलाने के लिए वेश्या बनना पडेगा

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