कहने को आदर्श करने को समझौता


कहने को आदर्श करने को समझौता


देश में भ्रष्टाचार है । राजनीति में अपराधी है। जनता का आक्रोश था अन्ना का आंदोलन । जनता कराह रही है । वह अच्छे लोगों को राजनीति में देखना चाहती है । और भी बहुत सारी बाते। सुनने में , पढने में अच्छा लगता है । फ़ेसबुक जैसे वक्त बर्बाद करनेवाले साइट्स पर इस तरह की बहस अक्सर दिखती है । अरुण साथी ने लिखा पहली बार लोकतंत्र के महापर्व को नजदीक से देखा। दबंगई, शराब, पैसा । मैं छात्र जिवन से देखता आ रहा हूं। अरुण साथी का लिखा देखकर मन हुआ थोडा मैं भी शेयर कर दूं अपने अनुभव को ।

अभी नगरपालिकाओं का चुनाव हुआ बिहार में । शुरुआत चुनाव आयोग से हो तो ज्यादा उचित है। इस संस्था पर लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेवारी है। बिहार चुनाव आयोग के मुख्य अधिकारी यानी आयुक्त हैं हेमचंद्र सिरोही । कभी विवादास्पद आई ए एस अधिकारी रह चुके हैं। महेशसरिता नामक दो समाजसेवी कार्यकर्ताओं की हत्या के साथ जुडे हैं इनके तार । इनसे आशा तो नही थी कि अच्छा काम कर सकते हैं लेकिन लगा समय के साथ आया बदलाव अंगुलीमाल और वाल्मिकी का मन बदल सकता है तो शायद चुनाव आयुक्त जैसे पद पर बैठा व्यक्ति कम से कम पद की गरीमा के लिये हीं सही सुधर गया हो । लेकिन ऐसा नही हुआ। निष्पक्ष चुनाव के लिये निष्पक्ष अधिकारी जरुरी है । सरोही का पक्षपात देखा, संप्रदायिक आधार पर निर्णय लेते और पैरवी सुनते देखा  । इस चुनाव में जातिवाद , संप्रदायिकता, शराब , पैसा , दबाव , भय, बाद में सबक सिखाने की धमकी जैसा सबकुछ दिखा । बेरोजगार नौजवानों को उत्साहित कर के लडने के लिये ललकारते देखा । नये लडके नही समझ पाते हैं दुमुहे नेताओं को । एक घट्ना सुना देता हूं। अभी बिहार के काबीना मंत्री हैं । जितन राम मांझी । मांझी कभी कांग्रेस मे थें। सांसद का चुनाव था । गया लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थें। एक दलित वर्ग का लडका जिसका नाम मिथलेश उर्फ़ बिलैया था और वह बेलदार  जाति का था , इनके चुनाव में कार्य कर रहा था। अपराधी किस्म का  था । गरीब था। चुनाव के लिये बम बनाते समय बम फ़ट गया । उस लडके का एक हाथ बेकार हो गया । ईलाज के लिये थोडा बहुत पैसा मांझी जी ने दिया था , वह लडका दुबारा बम बनाते हुये मर गया । दलबदल कर के मांझी मंत्री पद का उपभोग कर रहे हैं। मेरे साथ एक संस्था में भी रहे हैं मांझी । एक अपने साथ बिति हुई सुना देता हूं । जयकुमार पालित कांग्रेस के पढे लिखे अच्छे नेता माने जाते हैं । वर्तमान में एन आई टी कुरुक्षेत्र के चांसलर हैं । जन शिक्षण संस्थान चलाते हैं। यह वाक्या उसी जन शिक्षण संस्थान से जुडी है । मानव संसाधन मंत्री थें अर्जुन सिंह । सरकार ने श्रमिक विद्यापीठ  संस्था की स्थापना की योजना शुरु की थी । पालित जी की एक अन्य संस्था थी बेड्स यानी बिहार एडुकेशनल डेवलपमेंट सोसायटी । उसी के तहत श्रमिक विद्यापीठ  का काम शुरु हुआ । संस्थाओं के निर्माण के संबंध में थोडी बहुत जानकारी रखता हूं । श्रमिक विद्यालय के सभी कागजात मैने तैयार किया । पालित जी के पास कंप्यूटर नही था । करीब बीस वर्ष पहले की बात है । कोयरीबारी में अरुण महथा मेरे मित्र थें उनके बेटे के पास था। रात को बारह बजे तक जगकर काम करता था। पालित जी भी वहीं आते थें । आपस में विचार विमर्श होता था। पालित जी ने कहा तिवारी जी आपको दिल्ली मे हीं रहना है । वहीं रहकर सारा काम आप संस्था का संभालेंगे। मुझे भी प्रसन्नता हो रही थी । पट्ना से लेकर दिल्ली तक मैं और पालित जी मात्र दो आदमी श्रमिक विद्यापीठ के लिये जाते थें।बस से चलते थें, ठेला पर नास्ता करते थें यानी काम के लिये आराम की चिंता त्याग दी थी ।  इतेफ़ाक से अर्जुन सिंह हट गयें । माधवराव सिंधिया आयें । खैर श्रमिक विद्यापीठ की अनुमति प्राप्त हो गई। पालित जी पहले चेयर्मैन बने। मैं जहां था वहीं रह गया। पालित जी चाहते थें मैं चमचागिरी करुं , प्रार्थना करुं , उन्हे उनके वादे की याद दिलाउं। मुझसे यह सबकुछ  नही हो सकता था। आज भी उनसे मेरे परिवारिक संबंध हैं । मेरे साथ एक ऐसा भी वक्त आया है जब मैं अपने जिंदगी के सबसे बुरे दौर (  आर्थिक नही ) से गुजर रहा था , पालित जी एवं उनकी पत्नी रेणुका पालित ने स्वंय आगे बढकर मेरे परिवार का साथ दिया ।  श्रमिक विद्यापीठ जन शिक्षण संस्थान में बदल गया । पालित जी का टर्म पुरा होने के बाद उनकी पत्नी चेयरमैन बनी और अभी वर्तमान में उनका बेटा  चेयरमैन है । राजनेता पहले अपने परिवार और रिश्तेदार को देखते हैं उसके बाद शायद जनता या समर्थको को । वैसे उनके अपने परिवार से हीं नही बचता तो समर्थको का क्या भला करेगें।

हां तो बात हो रही थी कथनी और करनी की । अभीतक एक भी नेता मुझे नही मिला जो वाकई आदर्शवादी हो । लेकिन समर्थक तो उससे भी खराब हैं । मैं भी उन्हीं में खुद को शामिल मानता हूं । वैसे समर्थक की जो परिभाषा आजकल है उसके लिहाज से मैं किसी का समर्थक नही हूं , परन्तु जब आप किसी के पक्ष में कार्य करते हैं तो समर्थक हीं बन जाते हैं । इस चुनाव में  मैं  पुरी तरह अलग रहना चाहता था लेकिन ऐसा हो न सका । इसका दोषी कुछ हदतक प्रशासन भी है। उसने मुहल्ले के हीं एक उम्मीदवार पर क्राईम कंट्रोल के तहत जिलाबदर का नोटिस निर्गत कर दिया । वकील होने के नाते मैंने काम किया । आदेश हुआ चुनाव के दिन थाने में बैठने का । जिलाधिकारी के न्यायालय में काम करता हूं । उनके आदेश का पालन जरुरी लगा और मैंने सुबह  में हीं उसे थाने मे बैठ जाने के लिये भेज दिया । जिलाधिकारी ने जिलाबदर का आदेश नही दिया होता तो मेरा चुनाव से अलग रहने का निश्चय पुरा हो जाता । वैसे जिलाधिकारी के आदेश का असर साफ़ दिखा । किसी की हिम्मत नही हुई चुनाव के दौरान हंगामा करने की । मै अपने मुहल्ले का मुकदमा नही लेता हूं । दोनो पक्ष परिचित होते हैं इस कारण से । मुहल्ले के क्लायंट घर का समझकर बहुत दिमाग खाते हैं । डांट भी नही पाता हूं ।

शायद मैने समझौता किया अपने आदर्शो के साथ  चुनाव में बाहर निकलकर । बहुत कठिन है निष्पक्ष रहना । चुनाव आयुक्त सिरोही की भी इसी तरह की कोई मजबुरी रही होगी ।






टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

  1. bahut kathin he dagar panghat ki

    ReplyDelete
  2. Hello Revolutionary Gentleman!

    Anyhow came across this media site and found many thing very interesting except few!!! I don't know who the big personality you are, but believe, you are involved in many good things and well wisher for our society.

    Being a resident of India(Bihar), I always think about 1. My brothers and sisters who don't even a good environment for their study provided the fact that they are very laborious and of course intelligent. They can excel everywhere but due to the fact that no podium is available there so their talents die after some time or in mid way.

    2. Our rural or even urban areas do not get the basic infrastructure like un-interrupted electricity, pure water, health protection and moreover some of them don't get even shelter.

    3. Our parents talk about the dowry if son is there and on the contrary they complain this system if daughter is there. Why our society is following double standard?

    And many more...

    If the person like you, educate the people in the way which they can grab then our society will must change and in these whole thing our youth can play the major role.

    Currently, when I see the infrastructure of United states then get the setiments for our land and just starts thinking can we get our system as strong as here is!!!

    I don understand, it will be tough to make the change and its not a short task but the people like you can be a cause of change!!!

    Please don't take my message in any other way and apologise if it caused any irrelvancy :(

    My e-mail id is:gautam0012000@gmail.com

    ReplyDelete

Post a Comment

टिपण्णी के लिये धन्यवाद

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १