एक क्रांतिकारी का अपहरण


एक क्रांतिकारी का अपहरण

छ्तीसगढ के सुकमा जिले के जिलाधिकारी एलेक्स पाल मेमन का अपहरण नक्सलवादियों ने कर लिया है । मेनन भले हीं आइ ए एस हों लेकिन उनकी विचारधारा हमेशा क्रांतिकारी रही है । समाज के वंचित तबको के लिये कार्य करना उनके लिये जनून की तरह था । जिलाधिकारी जैसे पद पर रहते हुये मोटरसायकील से आदिवासियों के बीच रात बिरात कभी भी चले जाना , उनकी समस्याओं को समझना और उसका निराकरण करने का प्रयास करना उनकी आदत थी। क्रांतिकारी सिर्फ़ वही नहीं होते जो हथियार उठाते हैं , बल्कि वैसे सारे लोग जो व्यवस्था की खामियों के खिलाफ़ किसी भी स्तर से संघर्ष कर रहे हों , वे क्रांतिकारी हैं। मेनन को मैं चे गुएवारा मानता हूं। भारत में साम्यवादी विचारधारावाले नेता जिनमें नक्सली भी शामिल हैं, उनमें से कितनों ने चे को पढा है या समझा है मुझे नही पता। साम्यवादी शायद मार्क्स से शुरु होकर माओ तक अटक जाते हैं। चे ने न सिर्फ़ अमेरिकी बल्कि सोवियत संघ के सा्म्राज्यवाद की  भी  आलोचना की है । फ़िदेल कास्त्रो को सता के शीर्ष पर स्थापित करने के बाद मंत्रीपद का त्याग करके क्रांतिकारियों के साथ रहकर चे ने संघर्ष किया था । दुनिया के साम्यवादी इतिहास में चे जैसा कोई दुसरा साम्यवादी नही मिलता। सोवियत संघ और फ़िदेल कास्त्रो की आलोचना करने के कारण हीं चे को अपनी जिंदगी गवानी पडी। सी आई ए के द्वारा पकडे जाने के बाद न तो सोवियत संघ ने और न हीं फ़िदेल कास्त्रो ने चे को बचाने का प्रयास किया । चे को गोली मार दी गई। लेकिन चे की मौत ने सोवियत संघ  के साम्राज्यवादी चेहरा और फ़िदेल कास्त्रो के तानाशाही विचारधारा को उजागर कर दिया। मेनन के अंदर कुछ करने की , समाज में बदलाव लाने की चाह थी, अन्यथा क्या जरुरत थी मोटर सायकील से कभी भी आदिवासियों के पास जाकर उनके दुख दर्द में शामिल होने की । मेनन का अपहरण नक्सलवादियों के लिये एक धब्बा है जिसे चाह्कर भी वे नही मिटा पायेंगें। जब भी वे क्रांति की बात  करेगें उनके सामने मेनन खडा नजर आयेंगे । अधिकारी  होने का मतलब बुरा होना कतई नही होता। ढेर सारे लोग व्यवस्था में रहकर परिवर्तन के लिये कार्य कर रहे हैं , उनमें चपरासी से लेकर अधिकारी तक और  नेता भी शामिल हैं। मेरे जैसे करोडो लोग हैं जो नक्सलवादियों की समस्या से सहानुभूति रखते हैं और जरुरत पडने पर उसे उठाते भी हैं। मेनन के अपहरण ने हमारी भावनाओं को भी चोट पहुंचाई है । यह मायने नही रखता कि नक्सलवादी मेनन के साथ क्या सलूक करेंगें , उन्होने चे का अपहरण किया है । एक अधिकारी जो अपने स्तर पर वंचितों के लिये कार्य कर रहा था , उसका अपहरण करना यानी क्रांति को बाधित करना है । मेनन अपना एक ब्लाग भी चलाते थें। हम उस ब्लाग का पता दे रहे हैं। मैने भी ईमेल भेजा है । वह भी दे रहा हूं। नक्सलवादियों को अगर अपने चरित्र की परवाह है तो उन्हें न सिर्फ़ मेनन को अविलंब रिहा करना चाहिये बल्कि अपहरण करने वाले अपने कर्त्य के लिये क्षमा भी मांगनी चाहिये । एक बात याद रखे नक्सलवादी , अगर इसी तरह क्रांतिकारियों का अपहरण करते रहें तो आनेवाले दिन में एक नया आंदोलन पैदा हो जायेगा जो न सिर्फ़ व्यवस्था के खिलाफ़ होगा बल्कि नक्सलवादियों के भी खिलाफ़ होगा और उस तरह के आंदोलन में मेनन जैसे लोग शामिल होगें। वह आंदोलन नक्सलियों के गढ में घुस जायेगा । नक्सलियों को भागना पडे्गा । आप भी मेनन के ब्लाग को पढे तथा अपना विचार प्रकट करें ।



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Comments

  1. Naxalwadi (Maoists) bhi sashastra krantikari hi hai. Kya hamein unke hetuo ka pata hai is apaharan k piche ke ? Nahi na ! Shayad Menon jaise krantikari wichardhara se mel rakhne wale afsar ko wo apni baatien batana chahte ho. Logo ki samasyaon se rubaru karana chahte ho. Ho sakta hai k wo Menon ko hakikat dikhana chahte ho jo we kabhi apne daayre k andar na dekh pate.

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  2. हां यह भी एक संभावना हो सकती है । लेकिन फ़िर उन्हें मेनन को सम्मान के साथ विदा करना चाहिये ।

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