हम पहले भी बेशर्म थे, इधर कुछ ज्यादा हो गए हैं।

एक मित्र हैं मेरे नीरज सिंहा जी , बेबाकी इनकी पहचान है । जो सही है वह चाहे कितना भी कडवा हो बोल देते हैं । कागजी शेर नही हैं ,  जमीन पर संघर्ष  करते हैं। इन्होने अपने फ़ेसबुक पर लिखा है जो मुझे सटीक लगा आपके सामने वह प्रस्तुत कर रहा हूं ।


हम पहले भी बेशर्म थें

हम पहले भी बेशर्म थे, इधर कुछ ज्यादा हो गए हैं। भ्रष्टाचार पर हमारी बेशर्मी खुलकर बहने लगती है। भ्रष्टाचार हमारी रगों में है, भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र भी है। हम कहने को नैतिक समाज होने की दुहाई देते हैं। हम कहने को कहते हैं कि यहां कभी रामराज था। कहने को कहते हैं कि आजादी के बाद देश में भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गई है। न हम आजादी के पहले कम भ्रष्ट थे और न ही आजादी के बाद ज्यादा हो गए हैं। लोग कहते हैं कि गांधीजी की अगुआई में देश में आदर्शवाद था। लोग सादगी पसंद थे। पैसे का लोभ कम था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 1935 इंडिया एक्ट के तहत जब 1937 में 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनी थीं तब कांग्रेसी मंत्रियों के आचरण और भ्रष्टाचार से दुखी हो कर गांधी जी ने कहा था, 'भयंकर भ्रष्टाचार से समझौता करने की जगह पूरी कांग्रेस को अच्छे से दफन करने के लिए मैं किसी भी हद तक जाऊंगा।' गांधी जी ने 1939 में ये बात कही थी।

जवाहर लाल नेहरू भी खिसियाकर बोले थे, 'कालाबाजारियों और भ्रष्टाचारियों को सबसे नजदीक के खंभे से लटका देना चाहिए।' नेहरू जी की पार्टी आज भी सत्ता में है और समाज के स्तर पर हमारी बेशर्मी का हाल ये है कि अब सरकार के खजाने को 11 लाख करोड़ का चूना लगने की बात खुद कैग कर रहा है। 2G मामले मे 1.76 लाख करोड़ के घोटाले का खुलासा इसी कैग ने किया था। और कॉमनवेल्थ गेम्स में 76 हजार करो़ड़ के घोटाले का मामला सामने आ चुका है। ए राजा और सुरेश कलमाड़ी जेल भी जा चुके हैं। लेकिन इन घोटालों के खुलासे के पहले ही भ्रष्टाचार से आजिज आकर सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई 2007 में टिप्पणी कर डाली थी कि भ्रष्टाचार से निपटने का एक ही तरीका है कुछ लोगों को पास के लैम्पपोस्ट से लटकाना पड़ेगा। अब सोचिए अगर आज नेहरू जी जिंदा होते तो क्या करते?

नेहरू की कैबिनेट में भी खाऊ बैठे थे। ए डी गौरवाला की रिपोर्ट इस ओर साफ संकेत देती है। 1951 में गौरवाला ने योजना आयोग की अपनी रिपोर्ट में लिखा था, 'ये स्पष्ट था कि नेहरू की कैबिनेट में कुछ मंत्री भ्रष्ट थे और ये बात सबको पता थी।' गौरवाला ने अपनी रिपोर्ट मे लिखा, 'कुछ काफी ऊंचे पदों पर बैठे नौकरशाहों ने उनसे कहा था कि सरकार ने ऐसे लोगों को बचाने के लिए सारे घोड़े खोल दिए थे।' इस बात की तस्दीक संथानम कमेटी की रिपोर्ट भी करती है। 1964 में अपनी रिपोर्ट में संथानम ने लिखा कि पिछले 16 सालों में अत्यंत ऊचें पदों पर बैठे कुछ मंत्री गलत तरीके से अमीर होते गए। गांधी जी और नेहरू जी के जमाने में ऐसे भ्रष्टाचारियों को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता था। लोग इतने बेशर्म नहीं थे। शर्म का एक आवरण जिंदा था। यही कारण था कि नेहरू जी ऐसे लोगों को लैम्पपोस्ट से लटकाने की बात किया करते थे। लेकिन उनके जाते ही कांग्रेस में और सरकार में शर्म की दीवार ढह गई।

इंदिरा गांधी ने सरकार और सारी संस्थाओं को पंगु कर दिया। इंदिरा गांधी के कभी सलाहकार और दोस्त रहे रोमेश थापर ने प्रणय गुप्ते से एक इंटरव्यू में कहा था कि इंदिरा गांधी जब देश के पटल से गायब हुईं तब तक उन्होंने साऱी संस्थाओं को तहस नहस कर दिया था। जेपी का आंदोलन महंगाई के खिलाफ कम और इंदिरा गांधी के भ्रष्टाचार के खिलाफ ज्यादा था। इंदिरा गांधी के बाद कुछ बचा ही नहीं। गौरवाला नेहरू की कैबिनेट के कुछ मंत्रियों से परेशान थे लेकिन राजीव गांधी और नरसिंहराव की सरकारों ने सारी हदें पार कर दीं। 1995 तक भ्रष्टाचार के कारोबार ने एक निहायत मजबूत तंत्र खड़ा कर लिया था। नरसिंहराव के समय में चंद्रास्वामी और अदनान खाशोगी की प्रधानमंत्री से दोस्ती कोई शर्म की बात रह ही नहीं गई थी। ये लोग सरकार की नीतियां भी तय करने लगे। पूर्व गृह सचिव एन एन वोहरा ने 1995 में लिखा, 'एक माफिया तंत्र समानांतर सरकार चला रहा है जिसने राजसत्ता को असरहीन कर दिया है।'

वाजपेयी के जमाने में बीजेपी के वो नेता सत्ता में थे जिनके पीछे उस आरएसएस का हाथ था जो राजनीति मे शुचिता की वकालत किया करती थी। और देश की राजनीति के चाल, चरित्र और चेहरे को बदलने का दावा करती थी। लेकिन सत्ता का चरित्र ऐसा कि जब तहलका के पत्रकारों ने रक्षा दलाली का भंडाफोड़ किया तो बजाय रक्षा के दलालों और घोटालेबाजों पर कार्रवाई होने के पत्रकारों को जेल भेजने की कोशश की गई। अनिरुद्ध बहल आज भी अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। तहलका को फाइनेंस करने वाली कंपनी फर्स्ट ग्लोबल पर इतने छापे पड़े कि वो दीवालिया हो गई। जब कि रक्षा सौदों में दलाली की पूरी तस्वीर देश ने देखी। पार्टी के अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण ने कैमरे पर पैसे लिए। बंगारु आज भी आजाद हैं। साथ ही आजाद घूम रहे हैं दिलीप सिंह जूदेव। जूदेव भी कैमरे पर पैसे लेते पकड़े गए थे। जब कहीं कोई कार्रवाई नहीं होगी, उलटे पैसे लेने वाले जूदेव को सांसद बनने का मौका दिया जाएगा तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई संसद के अंदर बैठे बीजेपी और कांग्रेस के नेता लड़ेंगे ये उम्मीद हम कैसे पाल लें?

हम पत्रकारों को ये बताने की जरूरत नहीं है कि हर राज्य के मुख्यमंत्री का एक कोटा फिक्स कर दिया जाता है उसे आलाकमान तक पैसे पहुंचाने ही होते हैं। तर्क होता है कि पार्टी चलाने और चुनाव लड़ने के लिए पैसों की जरूरत होती है। सोचिये जब पैसे उगाहने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के सिर पर होगी तो भ्रष्टाचार पर लगाम कौन लगाएगा? और जब अन्ना और उनकी टीम कहती है कि देश की कैबिनेट में चौदह मंत्री दागी हैं तो उन्हें पागल कहा जाता है। कौन हैं ये कहने वाले? लालू यादव और मुलायम सिंह यादव। लालू चारा घोटाले में जेल जा चुके हैं। और मुलायम के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में तीन साल से फैसला सुप्रीम कोर्ट में रिजर्व है। ऐसे में मेरा तो ये मानना है कि हमें भी इस बेशर्मों की लाइन में खड़े हो जाना चाहिए और अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, विनोद राय और जनरल वी के सिंह को भ्रष्ट घोषित कर खुद को ईमानदार होने का सर्टिफिकेट हासिल कर लेना चाहिए। क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का नाटक करने वाले ये लोग असल में देशद्रोही हैं और राजा, सुरेश कलमाडी, मधु कोड़ा, कनिमोड़ी जैसों को भारत रत्न से सम्मानित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेनी चाहिए। जय हो बेशर्म समाज की!


टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete

Post a Comment

टिपण्णी के लिये धन्यवाद

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १