गया के कांग्रेसी नहीं चाहते की केन्द्रीय विश्वविद्यालय गया में खुले



गया के कांग्रेसी नहीं चाहते की केन्द्रीय विश्वविद्यालय गया में खुले

किसी भी शहर में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो सिर्फ़ अपनी राजनीतिक गोटियां सेकना जानते हैं। केन्द्र ने गया में केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने का निर्णय लिया , नीतीश कुमार चाहते थें कि मोतिहारी में यह खुले और बस यहीं से राजनीति शुरु हो गई । गया के चवन्नी छाप कांग्रेसियों ने बगैर कारण न सिर्फ़ नीतीश कुमार का पुतला दहन शुरु कर दिया बल्कि कुछ अनपढ छाप कांग्रेसी जिनका काम चुनाव के समय गया से चुनाव ल  रहे कांग्रेसी उम्मीदवारों से पैसा उतारना रहा है, उन सब ने उस जगह जहां केन्द्रीय विश्वविद्यालय खुलना है जाकर शिलान्यास तक कर दिया । इन कांग्रेसियों ने यह भी प्रयास किया कि अन्य दलों के नेता भी उनके साथ आयें लेकिन जब इस तरह के सार्वजनिक हित का  काम करना हो तो पार्टी लाईन से उपर उठकर सोचना पडेगा । गया के इन कांग्रेसियों को यह भी अक्ल नही है । अभी पता चला कि कांग्रेस के पूर्व विधायक अवधेश सिंह और संजय सहाय नीतीश कुमार से मिलने गये थें लेकिन उन्होने गया में केन्द्रीय विश्वविद्याल्य की स्थापना से इंकार कर दिया । मैने भी नीतीश जी एक पत्र  लिखा था तथा लेख भी लिखा था । मेरा मानना है कि मोतिहारी में भी विश्वविद्यालय खुले लेकिन गया की किमत पर नही। गया में कांग्रेस समाप्त प्राय है। वेश्याओं के दलाल , रखैलों की औलाद , वेश्यागामी नेता गया कांग्रेस में हावी हैं। इन नेताओं को कोई शरीफ़ आदमी अपने परिवार के साथ बैठाना भी पसंद नही करेगा । अवधेश सिंह का चरित्र सबको पता है । बगैर वेश्या के नहीं रह सकतें । मोहन श्रीवास्तव के बारे में मुझे एक राजद विधायक ने बताया था कि वह उनका खास इसलिये था क्योंकि उन्हें कम उम्र की नाबालिग लकियों की सप्लाई करता था । एक और चवन्नी छाप निगम का पार्षद है । उसकी मां वेश्या थी । व्ह भी राजद के शासनकाल में राजद के गुंडों की सेवा में रहता था तथा पैर छूकर दंडवत करता था । यही है गया में कांग्रेस का सच । पढाइलिखाई से इनका कोई वास्ता नही रहा । इस तरह के कांग्रेसियों द्वारा जो हरकत की जा रही है तथा एकदो अच्छे कांग्रेसी नेता जो इन्हें फ़्रांट  पर रखकर लडाई लडने का दिखावा कर रहे हैं उससे लगता है कि कांग्रेसियों को केन्द्रीय विश्वविद्यालय गया में खुले या न खुले इससे मतलब नही है बल्कि इसकी आड में ये राजनीति कर रहे हैं । मजेदार बात यह है कि जब राजद के शासनकाल में गया में कांग्रेस संघर्ष कर रही थी तो इनमें से अधिकांश चवन्नी छाप गंदे चरित्र के नेता राजद में थें और आतंक के पर्याय माने जाते थें ।



टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १