सरकार के विरोध का मतलब पागलखाना


आप अगर जागरुक हैं, सरकार की नीतियों से सहमत नहीं है लेकिन सिर्फ़ कानूनी तरीके से विरोध प्रकट कर रहे हैं तो आपकी जगह जेल नही  पागलखाना है । यह सच है चीन का । अपने साथ गुजरे हुये इस तरह के क्षण को बताते हुये ली जींपींग़  की आंखे छलग गई । ली ४७ वर्षीय राजनीतिक कार्यकर्ता हैं । ली को बीजींग के चोयांग्य जिला मनोचिकित्सालय में सात माह तक भयानक यातना से गुजरना पडा । अन्य कैदियों की भांति ली को अस्पताल के बगीचे में टहलने , लाईब्रेरी का उपयोग करने या किसी से मिलने की आजादी नही थी , उन्हें पुलिस ने एक फ़र्जी नाम से पागलखाने में भर्ती किया था ।



 ली ने बताया किमुझे पता था कि हर वक्त मेरी गतिविधियों पर कैमरे से निगाह रखी जा रही है । किसी भी तरह का विरोध या गुस्सा प्रकट करने पर मुझे और ज्यादा दिन तक वहां कैद रहना पडेगा , बाहर निकलने की योजना बनने तक मैं एकदम शांत रहा

 चीन का प्रशासन,  वैसे लोग जिन्हें वह विरोध या समस्या पैदा करनेवाला समझता है परन्तु जो किसी भी प्रकार के अपराध में लिप्त नहीं हैं, को जबर्दस्ती पागलखाने में भर्ती कर देता है । सरकार से असहमति रखनेवाले, राजनीतिक कार्यकर्ता, कम मजदूरी या मजदूरी न मिलने के खिलाफ़ आवाज उठानेवाले , संपति जप्ती के खिलाफ़ आवाज उठानेवाले और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने के लिये यह आम कदम है जो चीन के अधिकारी उठाते हैं ।

मानवाधिकार संस्थाओं के विरोध के बाद अब एक नया कानून बनने जा रहा है जिसमें यह प्रावधान होगा कि कौन सी स्थिति में इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति को पागलखाना भेजा जायेगा । इस कानून के तहत पागलखाने में भर्ती मरीज तथा उसके परिजन को अपील करने का अधिकार हासिल होगा ।



मानवाधिकार की वकालत करनेवाली एक संस्था ने अभी हाल हीं में ९०० लोगों का पता लगाकर उनके नामों की एक सूची जारी की है जिन्हें जबर्दस्ती बगैर किसी कारण के पागलखाने में रखा गया है । संस्था का कहना है कि यह सूची बाल्टी की एक बूंद भर है यानी लाखो लोग मात्र सरकार की नीतियों के विरोध के कारण पागलखाने में हैं । सामान्य पागलखानों के अलावा चीन का जन सुर्क्षा विभाग अलग से भी पागलखाना को संचालित करता है जिसमें उन व्यक्तियों को रखा जाता है जिनसे ज्यादा खतरा हो , इस तरह के पागलखानों को अंकांग कहते हैं ली को भी इसी पागलखाने में रखा गया था ।

चीन में मनोचिकित्सक को अच्छी नजर से नही देखा जाता है । परन्तु फ़ोक्सकोन नामक आईपैड बनाने वाली कंपनी के तकनीकी कर्मचारियों द्वारा आत्महत्या करने की घटना तथा छात्रो के बीच बढ रही चाकूबाजी के कारण लोग अब इन्हें सम्मान देने लगे हैं ।

आजकल यातनादायक पागलखानों में बंद ज्यादातर वैसे चीनी हैं जिन्होनें अपने आप को स्वस्थ बताया है तथा मुकदमा भी लड रहे हैं ।  

हु गोहोंग नामक एक फ़ैक्टरी के कर्मचारी को सिर्फ़ इसलिये दो दो बार पागलखाने जाना पडा कि क्योंकि उसने अपने फ़ैक्टरी से मुआवजे की मांग की थी । उसे बताया गया कि वह पारानायड डिल्यूसन नामक बिमारी से ग्रसित है । उसके माथे में, अंगुठे में , तलवे में  बिजली की सूई चुभाकर झटके दिये जाते थें ।

उसने भी बताया कि जब उसे बिजली के झटके दिये जाते थें तो उसे बेड से बांध दिया जाता था और उसे दो घंटे तक ऐसा चक्कर आता था जैसे वाशिंग मशीन में बैठा हो । यह सबकूच मात्र यातना देने के लिय था , इनका इलाज से कोई वास्ता नही था ।

डाक्टरो का व्यवहार भी इन बंदियों के साथ जेल के कैदोयों से बेहतर नही रहता है ।

यह सच है उस चीन का जिसके दिवाने और प्रशंसक हैं हमारे देश के नेतागण । चीन के विकास का विकास वस्तुत: मनवता के प्रति अपराध की किमत पर हो रहा है । सस्ता लेबर और कैदियों की मेहनत की बदौलत  विश्व का सबसे विकसित देश होने की राह पर चल रहे चीन के सच को जानने के बाद भी अगर कोई भारत में इस तरह के विकास की बाद करता है तो निश्चित रुप से वह देशभक्त नही हो सकता ।

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Comments

  1. कम्युनिज्म से कोई उम्मीद बेकार है। मगर जब तक उसके खिलाफ क्रांति होती है,कई पीढ़ियां तकलीफ में जान गंवा चुकी होती है।

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