लेस्बियन जोड़े ने दिखाई हिम्मत ,रचाई शादी :: Weldon brave heart

अल्मोड़ा। नैनीताल में विवाह रचाने के बाद समलैंगिक जोड़ा पर्यटन नगरी की सैर को पहुंचा। कोलकाता व हल्द्वानी की इन युवतियों ने कहा कि शारीरिक रिश्ते मायने नहीं रखते, प्यार-मोहब्बत की दुनिया सबसे बड़ी है। दोनों ने सामाजिक रूप से अस्वीकार इस रिश्ते की पैरवी करते हुए समलैंगिक संबंधों को वैध ठहराए जाने की पुरजोर वकालत भी की। दोनों दिल्ली में कोरियोग्राफर के रूप में आगे की जिंदगी बिताने के सुनहरे सपने बुन रही हैं।
एक-दूजे की हुई देवी चटर्जी व परिषा शुक्रवार को रानीखेत पहुंचीं। उन्होंने गोल्फ ग्राउंड का लुत्फ उठाया और पहाड़ी वादियों की सैर भी की। इस दौरान जागरण से रूबरू समलैंगिक जोड़े ने इस कदम को जायज ठहराते हुए कहा कि उन्हें समाज या सरकार का डर नहीं। आधुनिक समाज में युवतियों को खुद के लिए फैसला लेने का अधिकार होना चाहिए।
खुद को पत्नी व देवी चटर्जी को पति का दर्जा देने वाली परिषा ने कहा कि उनकी जैसी कई और युवतियां हैं, जो स्वेच्छा से समलैंगिक हैं। सरकार को उनके हक में ठोस निर्णय लेना चाहिए, ताकि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकें। देर शाम दोनों दिल्ली रवाना हो गईं।

शादी की राह में कानून का रोड़ा
नयना देवी मंदिर में एक-दूसरे के गले में माला डाल परिषा और देवी चटर्जी ने जीवनसाथी बनने का संकल्प तो ले लिया, मगर इन्होंने जहां कदम रखा है, वह रास्ता पार करना आसान नहीं। इस पर बहस शुरू हो गई है। जानकारों के अनुसार कानूनी, सामाजिक चुनौतियां इतनी हैं कि रिश्ते को नाम मिलना आसान नहीं होगा। इस अनोखे तरह के बंधन के लिए मनोवैज्ञानिक जीन को जिम्मेदार मानते हैं, जिसका आज तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका।

किसने, क्या-कहा
नयना देवी मंदिर में रोज सैकड़ों दर्शनार्थी आते हैं। शाम के समय भीड़भाड़ भी रहती है। जहां तक शादी का सवाल है तो मंदिर में शादियों की अनुमति नहीं है। दर्शन के बहाने किसी ने एक-दूसरे के गले में माला डाल दी हो तो इससे मंदिर ट्रस्ट का कोई लेनादेना नहीं।
-राजीव लोचन साह, अध्यक्ष, नयना देवी मंदिर ट्रस्ट।

यह शादी नहीं है। लिव इन रिलेशनशिप को तक शादी नहीं कहा जा सकता। शादी के लिए कानून बना है। हिंदू मैरिज एक्ट में एक बालिग लड़की से ही बालिग लड़के का विवाह हो सकता है। यह तो समलैंगिक है। जिसके लिए कोई कानून नहीं।
-मनोज चंद्र पंत, अधिवक्ता, नैनीताल हाई कोर्ट।

काफी साल पहले इस तरह के रिश्ते को मानसिक बीमारी कहा जाता था। इस तरह का स्वभाव जीन की वजह से बनता है। इंसान की अपनी पसंद है और वह पसंद को ही चुनता है। इसे बदल पाना संभव नहीं। इसीलिए कई देशों में समलैंगिक रिश्तों की मान्यता दी गई है।

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