वह

स्टेशन पर बार-बार घोषणा  हो रहा थी लेकिन  उसका सबकुछ समाप्त हो गया था । घर  जाने के लिए उठी , कदम  लड़खड़ा गए  जैसे पैर चिपक गए हो जमींन से , किसी ने पत्थर से जुडी  जंजीर से बाँध दिए हो पाँव । कैसे कदम  आगे बढाये जब पाँव ही साथ न दे  उसी बेंच पर बेजान इंसान की तरह बैठ गई ।  सबकुछ लुट चुका था उसने खो दिया था उसे।

वह यही तो था ,यहीं  था सिर्फ सिर्फ आधे घंटे पहले। वह हमेशा की तरह ट्रेन पकड़ने के लिए जल्दी में थी ।उसकी मोनोटोनस दिनचर्या यही थी  । किचेन , बच्चे को को ड्रॉप करना , जल्दी जल्दी तैयार होकर लोकल पकड़ने के लिए भागते  हुए स्टेशन पहुचना  और लोकल ट्रेन की महिलाओं के लिए आरक्षित  एकमात्र   एसी  कोच में बैठने की जगह सुनिश्चित करना ।
इस भागम भाग की दिनचर्या उसकी जिंदगी थी ,आदि हो चुकी थी उसकी ।

ट्रेन के आगमन की घोषणा  हो रही थी कि  उसकी नजर उसपे पड़ी,वही , शे की प्रिंट वाली टी  शर्ट, टोपी और चेहरे पर शरीर को ,बेंधने  वाली कुटिल मुस्कान जिसे फेसबुक पर देखकर भी   उसके अंदर चिडचिडा हट का भाव उतपन्न हो जाता था । घृणा की हद तक नफ़रत करती थी उससे ।  


वह सीधे चलते हुए उसके पास आया ,  हैलो कैसी हो  आप । बेशर्म की तरह पूछा ... उसका पुछना वस्तुत:  जबरदस्ती बात करने के लिए बाध्य करने जैसा था । ढीठ ।

चाहकर भी सार्वजनिक स्थल पर कठोर व्यवहार वह नहीं कर सकती थी ।

हल्का मुस्कुराई । ठीक हूँ .... बस मेरी ट्रेन आनेवाली हीं होगी .... किसी तरह से उससे छुटकारा चाहती थी ।

तुम दूसरी ट्रेन भी पकड़ सकती हो .... इतनी दूर से बस तुमसे कुछ बात करने आया हूँ ।

नहीं नहीं .... मैं लेट होना नहीं चाहती ।

ओके ओके लेकिन एकदिन लेट होने से आसमान नहीं गिर जाएगा ।

आफिस से लौटकर आती हूँ तो तुमसे बात करती हूँ । लेकिन यह बताओ तुमने मुझे तलाशा कैसे ? वाकइ उसे आश्चर्य हुआ । आखिर वह स्टेशन पर कैसे पहुचा उसे तलाशते हुये ।

 
हाहाहा प्लेटोनिक दोस्त को सबकुछ पता होता है ।

उसने जवाब दिया .... मुर्ख ....इस गलतफहमी में  रहता था .... इसी तरह चिढाता था .....समझता था कि  मुझे उसकी मूर्खतापूर्ण बाते आनन्द देती है । मै प्रसन्न   होती हूँ  लेकिन मैं किसी भी तरह उसे बर्दाश्त  करती थी। 

अगर यह  भीडभाड़ वाली जगह नहीं होती तो शर्तिया एक तमाचा जड़ देती

उसने मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचा "  अच्छा बेटा बस दो तिन मिनट  में ट्रेन आ जायेगी " झेलती हु तुमको तबतक ।उसने निचले होठो को उपरी होठो पे कसते हुए सोचा ।

वह न जाने क्या क्या मूर्खतापूर्ण बके जा रहा था ।

उसकी निजी जीवन के विषय में  अनेको प्रश्न ,जैसे परिवार का सदस्य हो और बहुत दिन बाद मुलाक़ात हुई हो । नानसेन्स ।
हुंह।  जाहिल ।

ट्रेन प्लेटफार्म पर प्रवेश कर रही थी ...... उसे राहत महसूस हुई .... बस कुछ पल में इस इडियट से छुटकारा मिल जाएगा ।

ओके तुमसे बाद में बात करुँगी ..... आफिस से लौटकर तुम्हे फोन करुँगी ..... मेरे पास है न तुम्हारा नम्बर ।

वह आगे बढ़ी लेकिन झट से उसने कलाई पकड़ ली ।

उसे झटका सा लगा .... इसका दुस्साहस तो देखो .... इच्छा हुई एक जोरदार थप्पड़  जड़ देने की .... लेकिन वह हिम्मत न कर सकी ... उसके बस की यह बात नहीं थी ।

पूरी जिंदगी कभी भी वह नहीं कर पाई ।

जब भी कोई परेशानी वाली परिस्थिति आई .... उसने लड़ने.. जुझने की बजाय खुद को अलग कर लिया । यह उसकी आदत में शुमार हो चुका था ।

लेकिन , लेकिन मै इस ट्रेन को नहीं छोड़ सकती ... तुम समझते क्यों नहीं ।
प्लीज थोड़ा समझो ।

बस एक बार इस ट्रेन को न पकड़ो ... बस एक बार ....
एकंबार मुझसे बाते कर लो ....सिर्फ एकबार ।

फिर मै जिंदगी में कभी नहीं आउँगा । अंतिम बार है यह।

विश्वास करो ... दुबारा मुझे अपने आसपास भी नहीं पाओगी .. सच्ची .... विशवास करो ... वर्चुअल वर्ल्ड में भी नहीं ।

ओह वाकई इसे झेलना मुश्किल है ... उसने सोचा ।

फिर उसने विनती की ..... हम शाम को भी तो बाते कर सकते हैं ... आफिस से आने के बाद ।
विशवास तो करो .... मै तुम्हे फोन करुँगी ।

वह मुस्कुराया ... तुम नहीं कर सकती ... अगर करोगी तो मै उठाउंगा फोन तब न बाते होंगी ।
तुम्हे पता है .... मुडी  हूँ  ...... अक्सर मै अनजान नबर की काल नहीं रिसीव करता ।

ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी हो चुकी थी । तेज कदमो से लोग चढ़ने के लिए बढ़ रहे थे । धक्का मुक्की करते हुए प्रवेश कर रहे थे ।

उसने फिर एकबार समझाने का प्रयास किया । लेकिन उसने उसने हाथ नहीं छोड़ा ... बल्कि  कठोरता बढ़ गई थी ।

ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी .... वह देखती रही .... ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली ।

अब उसका धैर्य जवाब दे चुका था ।वह गुस्से में फट पड़ी ।

वाकइ तुम बहुत घटिया इंसान हो ।
दुसरे को तुम अपना बंधुआ मजदूर समझते हो .... नौकर.... हर समय तुम्हारे इशारे पर नाचने के लिए तैयार ।

वह फिर हसा ।

हहहह ... तुम मुझे नहीं समझ सकती ।

वह खामोश रही ।

वह बेंच पर बगल में बैठ गया ।

गुस्से को दबाते हुए उसने व्यंग से पूछा ... काफी लोगे ।

नहीं बस बस सिर्फ बाते करो ।

मै उतनी दूर से सिर्फ मिलने आया हूँ ..... बहुत जरुरी था ... अन्यथा नहीं आता ।

ऐसी भी क्या क़यामत आ रही थी जिसे रोकना जरूरी था ... उसने सोचा ।

लफ्फाज है .... यूहीं बक रहा है ।

तुम्हारे पति कैसे हैं .. बच्चा कैसा है ।
तुम मुझसे नफरत क्यों करती हो... क्यों चिढती हो मुझसे ?
क्या गलत किया है मैंने ?
प्रश्नों की झड़ी लगा दी ।
मुझे माफ़ कर दो ।
मै शान्ति से नहीं रह सकता जिंदगी के बाद भी तड़पता रहूंगा अगर तुमने माफ़ नहीं किया तो ।
सुन रही हो न ।

हा... हा .... सुन रही हूँ ... विश्वास करो ... मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है । उसने समझाना चाहा । विश्वास दिलाना चाहा हालांकि वह जानती थी कि झूठ बोल रही है लेकिन वह स्टेशन पर  किसी तरह  का सिन नहीं क्रियेट करना चाहती थी ।

तुम झूठ बोल रही हो । मुझे बहला रही हो ।

बस इतना बोल दो कि तुमने मुझे माफ़ कर दिया ।

ओके ओके बाबा ... माफ़ कर दिया ।
अब हम अच्छे दोस्त है ।
मै आपको अनब्लाक कर दूंगी फेसबुक पर ।
दुबारा उसने झूठ बोला । वह किसी तरह से इससे झुटकारा चाहती थी । अंदर ही अंदर गुस्से से  उबल रही थी ।

मैंने अनब्लाक करने के लिए कहा क्या ? अब इसकी जरुरत नहीं है । उसने जवाब में कहा था।
बस मै बहुत खुश हूँ ।तुमने मुझे माफ़ कर दिया ।

मुझे पता है अब तुमको मुझसे कोई शिकायत नहीं रहेगी । तुम मुझे अपना सबसे अच्छा दोस्त मानोगी ।

वह मन ही मुस्कुराई अपनी चालाकी पर ।
मुर्ख उसकी बाद को सच समझ रहा है ।

इंतजार करो । मै अब बहुत खुश हूँ । काफी लाता हूँ दोनों दोस्त सिप करेंगे ।
वह उठा और देखते ही देखते भीड़ में खो गया ।

बमुश्किल तिन चार मिनट हुए होंगे

अचानक यह घोषणा होने लगी । कोई ट्रेन आज नहीं चल पाएगी ।
अभी जो ट्रेन खुली थी वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई है ।
लेडिज कम्पार्टमेंट सहित दो बोगी का एक भी पैसेंजर के बचने की संभावना नहीं है । यह बात फ़ैल चुकी थी स्टेशन पर ,अफरा तफरी का माहौल था । 

वह स्तब्ध रह गई । एकदम शून्य ।
लगा जैसे उसकी साँसे थम गई हों दिल की धड़कन की आवाज कानो तक गूंज  रही थी ।
वह बेंच पर बैठी थी ।

मोबाइल पे काल थी । देखा । पति का है ।
राहत मिली ।

कहाँ हो तुम ?

उधर से आवाज आई ।

मै ...  मै स्टेशन पर हूँ ।
देर हो गई थी ट्रेन छुट गई थी । मुझे कुछ नहीं हुआ ।
एक सांस में वह सबकुछ कह गई ।

मैंने टीवी पर देखा ।
जिस ट्रेन से तुम रोजाना आफिस जाती थी उसका भयानक एक्सीडेंट हुआ है ।
भगवान की कृपा थी जो ट्रेन छुट गई ।

घर पहुचो ।
मै भी आ रहा हूँ
समझ सकता हूँ तुम्हारी मनोदशा ।
तुमसे बात होने के पहले मेरी भी स्थिति वही थी । बहुत घबराया हुआ था ।
भगवान का बहुत बहुत शुक्र है ।

हाँ..... भगवान ने बचाया । वह बुदबुदाई ।

अब उसे  वह याद आ रहा था ।
आधे घंटा गुजर चुका था । कहकर गया था काफी लाने जा रहा हूँ ।
उसकी मुर्खता ने आज उसे बचाया था ।उसे धन्यवाद कहना चाहती थी ।
आधा घंटा और इंतजार । वह नहीं आया ।
एक घंटा गुजर चुका था ।
नहीं आएगा ।

मुडी है ।

खैर फेसबुक पर उसका नम्बर मिल जाएगा ।

फोन कर लेगी ।
लेकिन नम्बर कहाँ था । उसने तो उससे झूठ बोला था ।
पहली बार अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था उसे।
एक घंटा से ज्यादा होने जा रहा था ।
अब वह कुछ ठीक महसूस कर रही थी ।

धीरे धीरे थके कदमो से वह स्टेशन से बाहर आई ।

घर पहुच कर सबसे पहले उसने कम्प्यूटर आन किया
जल्दी से उससे चैट करना चाहती थी । उसका शुक्रिया अदा करना चाहती थी । उसकी मुर्खता ने आज उसे बचाया था ।

अब वह रिलेक्स महसूस कर रही थी ।

फेसबुक पर लागिन करने के बाद उसने ब्लाक लिस्ट में उसे तलाशा

अनब्लाक किया ।

उसके वाल पर गई ।

उसका फोन नम्बर प्रोफायल पर था ।

वह उससे माफ़ी मांगना चाहती थी। अपने व्यवहार के लिए .... कठोर .... अपमानित करने वाले शब्दों के लिए ... अपनी अशिष्टता के लिए । बस वह माफ़ी मांगना चाहती थी ।

ओह ! लगा दुनिया ख़त्म हो गई ।

उसकी वाल शोक संदेशो से भरी पड़ी थी ।

वह दुनिया को विदा कर चुक था ।
दो दिन पहले उसकी मृत्यु हो गई थी ।
बिहार के किसी अखबार का स्कैन कापी लगा था ।
उसकी लाश नदी के किनारे पाई गई थी ।

चटाई पर लेटा हुआ । मुस्कुराता हुआ ।

समाचार था ....वह नार्मल डेथ थी .... आत्महत्या नहीं ।

उसने स्वंय मृत्यु का चयन किया था .... निमंत्रण दिया था ।
कम्प्यूटर की स्क्रीन धुंधली दिख रही थी ।
ओह !!!

अपने एक पोस्ट पर कभी उसने लिखा था 

""Body comes later , body may not involve, body will melt, may vaporise , body would be burnt but the conscience will never die ""

.क्रमश:..............

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