मीरा : एक अबूझ पहेली

मीरा और कृष्ण के प्रेम में शरीर का तत्व ढूढने वालो को पढ़कर आश्चर्य होता है ।
पाश्चात्य दर्शन कभी भी अध्यात्म को नहीं समझ पाए थे ।
कबीर रैदास  और मीरा सिद्धार्थ महावीर के  बीच के अंतर को समझने के लिए मीमांसा और अद्वैत का अंतर समझना होगा ।

सेक्स के साथ यानी पारिवारिक-संसारिक  जीवन के संग अध्यात्म को समझने का  का दर्शन है मीमांसा ।
संसार के त्याग का दर्शन है अद्वैत ।

आज भी अध्यात्म को पाश्चात्य दर्शन के नजरिये से समझने का प्रयास करने वाले नहीं समझ पायेंगे । कुछ हद तक सुकरात और प्लूटो ने " platonic love " की परिभाषा में भारतीय  अध्यात्म के तत्वों को सन्निहित / शामिल करने का प्रयास किया है लेकिन वह मात्र प्रेम के  आदर्शवादी स्वरुप का चिंतन भर है  जहां शरीर से शुरू होकर प्रेम / लव मानसिक समर्पण का रूप धारण करता है । उनके प्लेटोनिक लव में भी अध्यात्म का अभाव है ।  एक महिला है #nilu kumari उनके  पोस्ट और उसपर चल रही बहस  फेसबुक पर पढ़ रहा था । और अजीब अजीब तर्क वितर्क  पढ़कर मुस्कुरा रहा था ।  चलिए कभी हास्य का आनन्द भी लेना चाहिए ।
उक्त पोस्ट और कमेंट को ही मैंने आज ब्लाग  का विषय बनाया है ।

#पोस्ट
""मिराबाई का व्यक्तित्व मुझे अजीब लगता है । प्रेम मे जो जैसा चाहे होने के लिए आजाद है पर मै इसे आम औरतों के लिए कतई आर्दश नही मानती । मिरा का भी कोई दर्द रहा होगा । उनके पास स्वतंत्रता का ज्यादा विकल्प नही था तो अपने आप को भक्ति मे डुबा लिया । इतना सुन्दर गाने वाली कवि ह्रदय तो रही ही होंगी । सौभाग्य से उन्होंने इंसान की जगह एक मुर्ति चुना , जहाँ कोई प्रतिक्रया नही होना था ।उनके जमाने मे कृष्ण जैसे पुरूष दुर्लभ ही रहे होंगे , जिनमें महिलाओं के प्रति कृष्ण जैसा सखा भाव होगा । इसी कमी ने उन्हें इस तरह कृष्ण प्रेमी बना दिया होगा ।""

कमेन्ट सैकड़ो है उनमे कुछेक को जिनका विषय से संबंध की सार्थकता झलकती है और जो सारगर्भित है उन्हें नीचे दे रहा हूँ । उसके बाद अपना विचार लिखूंगा ।

वेदान्त गुरु:
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी।
मीरा माँ ने भी कृष्ण को(मूर्ती नहीं) चाहा आप कैसे कह सकती हैं कि कृष्ण ने उन्हें नहीं चाहा होगा?

Nilu Kumari:
वेदान्त गुरु, मै अपने बात का अन्तिम सत्य होने काकोई दावा नही करती

वेदान्त गुरु
मीरा और कृष्ण भक्ति का ऐसा संगम है जहाँ आपको दो अलग अलग होने का भेद ही नहीं रह जाता, ये भक्ति और प्रेम का चरम है।मीरा ही कृष्ण और कृष्ण ही मीरा ये भाव आज भी जिसके अंदर जाग जाए उसे उस ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं और यही सच्चे अर्थों में वैराग्य कहलाता है।शायद

Satya Gupta:
Jeevan ka saar hi prem va bhakti hai. nahi to dunia ki har cheej me man uljhega aur bikhrao ki sthiti hogi.

Veer Pratap Singh Sisodia::
मीरा के जीवन को पढे बिना उनके बारे मे ऊलजलूल बातें बनाना उनका अपमान करना है, एक सात वर्षीय बालिका की स्वतंत्रता के क्या विकल्प हो सकते है?
मीरा को जबसे समझ आई तब से वो कृष्ण के प्रति आसक्त थी

Poonam Dixit::
मीरा को बचपन से कृष्ण ने आकर्षित किया । इसलिए यह कहना उचित नहीं की उनको कोई पुरूष ढंग का नहीं मिला इसलिए उन्होंने मूर्ति चुनी।

Poonam Dixit::
लगन लगी है जिसको उसकी ( कृष्ण)

वो जाने या फिर ये जाने।

Poonam Dixit::
मीरा ने तो विवाह भी किया घर वालों के कहने पर। लेकिन पति को सच्चाई बता दी ।कि केवल कृष्ण के प्रति पति भाव रखती है। । पति ने भी पूरा साथ निभाया।

तो कैसे मान लिया जाये कि उनको उत्कृष्ट पुरूष नहीं मिला जो पत्नि को सहेली मान कर व्यवहार नहीं कर सका।।

Poonam Dixit::
जो ज्यादा चार वेदों के ज्ञाता हैं वो फिर से नयी कर्म योग पर आधारित गीता की रचना कर दे।।

कृष्ण को निकम्मा साबित करने के लिए।

Narendra M Chaturvedi
पूनम जी आपने ठीक से पढ़ा नहीं।
निकम्मा तो नीलू जी की पार्टी का लोगो है। श्रीकृष्ण एक मात्र पुरुष है बाकी सब महिला यानी गोपी भाव....?

Nilu Kumari
Poonam Dixit, कुछ लोग मानते हैं की सृष्टि ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ है , जरूरी तो नही की मै भी मान लुँ

Nilu Kumari
Narendra M Chaturvedi, आपका कमेन्ट कुछ ज्यादा हार्श है

Poonam Dixit
बिल्कुल मत मानिए जी।।सृष्टि का निर्माण और विकास अलग विषय है।

लेकिन तर्क को खारिज नहीं कर सकती जो मैने मीरा जी के विषय में रखा।

Nilu Kumari::
हम व्यस्क होने पर भी प्यार करने के लिए उसी छवि को खोजते है जो हमारे बचपन मे प्यारा रहा हो । मैने यहाँ प्यार को सेक्सुअलिटि से जोडकर नही देखा है । इसलिए मैने बचपन और व्यस्क वाले प्यार को अलग करने की जरूरत नही समझी Poonam Dixit

Poonam Dixit::
आपने कहा उनके पति ने सखा जैसा व्यवहार नहीं किया। पर उनके पति उनकी हर भावना का सम्मान किया फिर भी आकर्षित नहीं हुई मीरा।

क्योंकि प्रेम के लिये उन्होंने पहले ही कृष्ण को चुन लिया था।

दूसरी बात मीरा सामाजिक जीवन जीने वाली नारियों के लिए आदर्श नहीं है वो आध्यात्मिक जीवन जीने वालों के लिए आदर्श है।

Poonam Dixit::

मीरा कि आप सामान्य गृहस्थ नारियों से तुलना नहीं कर सकती।

वो आध्यात्मिक जीवन जीने वाली संतो की श्रेणी में आती है क्योंकि।

जैसे भगवान बुद्ध गृहस्थी छोड कर सन्यासी हुये और आप उनकी तुलना किसी सामान्य गृहस्थ से करो।

तो ये गलत तुलना होगी।

मै फिर कहती हूँ

जिसको लगन लगी है उसकी ( कृष्ण)

वो जाने या फिर ये जाने।

DrBhudev Sharma
माफ़ कीजिये आप सब व्यर्थ के तर्क कर रहे हैं

DrBhudev Sharma
वो तो भक्ति में समर्पण की पराकाष्ठा थी

DrBhudev Sharma
सांसारिक था ही नहीं

Narendra M Chaturvedi
व्यर्थ नहीं नास्तिको के लिए पूनम जी का तर्क उचित है।

DrBhudev Sharma
मीरा एक एतिहासिक व्यक्तित्व हैं
मीरा का विवाह हुआ था
और उन्होंने शरीर से उसे निभाया भी
किन्तु उनके पति की जल्दी ही मृत्यु हो गयी
राजनैतिक कारणों से उन्हें घर भी छोड़ना पड़ा
परन्तु ये सब अलग बात है
और उनके श्रीकृष्ण भक्ति में समर्पण
अलग बात है
भक्ति और काम (sex) को जोड़ा न जाये

Pradeep Sharma
जाकी फ़टी कभी न हो बिबाई..वो क्या जाने पीर पराई...

Pradeep Sharma
लगता हँ यहाँ पर भक्ति समर्पण को सेक्स से जोड़ा जा रहा हँ...जय हो

DrBhudev Sharma
भक्ति और काम को जोड़ा न जाये
मीरा श्री कृष्ण की भक्ति पति भाव से करती थी
पर इसका अर्थ ये नहीं है की वे उनसे कोई शारीरिक सम्बन्ध बनाने की इच्छुक थी

DrBhudev Sharma
सूफीवाद में भी
अल्लाह को प्रेमिका के रूप में पाने की इच्छा रक्खी जाती है
पर वहां भी शारीरिक मामला नहीं है
ये अध्यात्म की बातें है

Narendra M Chaturvedi
मेरे तौ गिरधर गोपाल दूसरौ न कोई,
जाकै सिर मोर मुकट मेरौ पति सोई,

Sumant Bhattacharya::
Nilu Kumari.सच ही पकड़ा है आपने..स्त्री अध्येता सिमोन द बाऊवर ने कहा है,,एक वक्त ऐसा आता है जब स्त्री सिर्फ ईश्वर से संवाद करती है....क्योंकि पुरुष समाज उसके मनोभावों को समझ नहीं पाता..और वो समझा नहीं पाती..

Abhay Kishore
आदर्श प्रेमी को पूर्व स्थापित परिभाषा को ठुकराना होगा ।

Poonam Dixit
फिर पुरूषों के लिए क्या स्थिति है वो क्यों आध्यात्म में झुकता है Sumant Bhattacharya ji

Poonam Dixit
भगवान बुद्ध ने घर छोडा माने उनकी पत्नी नहीं समझ पायी इसलिए।

मीरा तो बचपन से आध्यात्मिक थी तो पुरूषों को समझने समझाने का अर्थ ही नहीं।

Sumant Bhattacharya::
Poonam Dixit पुरुष का आध्यात्म जीवन क्षेत्र ही रहता है। वो यदि आध्यात्मिक होता है तो अपने आध्यात्म का प्रयोग जीवन में करता है..समाज में अपनी प्रतिष्ठा और मजबूत करता है,,निर्णयों में हस्तक्षेप करता है...जबकि आध्यात्म को समर्पित हुई एक भी महिला को समाज के निर्णय में हस्तक्षेप करते नहीं देखा गया है...इतिहास साक्षी है। अब आपने गौतम बुद्ध का जिक्र किया..आप समझ सकती हैं कि गौतम ने अपने आध्यात्म से कितना सशक्त हस्तक्षेप किया....जबकि विश्व के किसी भी मानव समूह के इतिहास में महिला आध्यात्म का हस्तक्षेप दुर्लभ है।

DrBhudev Sharma
आध्यात्म और शरीर दो अगल अस्तित्व हैं

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit कितना बड़ा फर्क है,,पुरुष आध्यात्मिक होते हुए भी सत्ता का केंद्र बना रहता है..और महिला आध्यात्मिक होते ही वैराग्य का केंद्र बन जाती है,.जिसकी आराधना तो हो सकती है,,सम्मान तो मिल सकता है लेकिन वो हस्तक्षेप नहीं कर सकती,ईसा से लेकर पैंगबर मोहम्मद..कृष्ण, गौतम, कबीर, रैदास.गांधी , मार्टिन लूथर या फिर कोई भी क्यों ना हो ,.सब पुरुष थे और इन सबने अपने आध्यात्म से मानव समाज पर हुकूमत की....अब यह हुकूमत ऐसे नहीं तो वैसे ही सही....पर की तो

nilu kumari::
पुरूष जब अध्यात्म की ओर उन्मुख होता है तो सबसे पहले स्त्री के प्रेमिका और पत्नी version को नकारता है । गौतमबुद्ध, तुलसीदास और न जाने कौन Poonam Dixit, Sumant Bhattacharya

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit निजी तौर पर मैं हर आध्यात्म को पुरुषवादी ही पाता हूं..मार्क्स ..फ्रायड ..आइंस्टीन सभी मूलतः आध्यात्मिक थे..और उन्होंने अपने आध्यात्म से समाज में शीर्ष स्थान हासिल किया.....यह कटु सच है मानव सभ्यता के विकास का...पर सच तो हमेशा कटु ही होता है ना...जो अप्रिय है,,वो ही सच है।

Abhay Kishore
प्रेम स्त्रियों के हिस्से में और
प्रेम का व्यापार पुरुषों के हिस्से में आया है ।

Nilu Kumari
संजय कोटियाल, ही Poonam Dixit के गुढ प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं ।

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari जी, सच कहा आपने...पुरुष के लिए महिला सिर्फ वर्जिनिटी है,.प्रकृति की तरह,.जैसे पुरुष एवरेस्ट की ऊंचाईयों से लेकर सागर की अतल गहराइयों की ओर आकर्षित होता है..ठीक वैसे ही पुरुष के लिए स्त्री एक रहस्य है....जैसे ही पुरुष महत्वाकांक्षी और महत्वाकांक्षी होता है,.वो स्त्री से विमुख होता जाता है,. फिर उसके पास स्त्री के स्तर पर मनोभावों को साझा करने का आकर्षण लुफ्त हो जाता है। एक स्त्री से दूसरी स्त्री,,फिर तीसरी स्त्री के पास पुरुष इसी वजह से जाता है क्योंकि वो हर स्त्री में प्रकृति का रहस्य देखता है..वर्जिनिटी तलाशता है........यह मेरा नहीं,,सिमोन की स्थापना है और बतौर पुरुष मैं खुद को सिमोन के इस विश्लेषण से सहमत पाता हूं।

Poonam Dixit
वो तो है ही । क्योंकि हम खुद मीरा जैसी नारी को नकार रहे हैं कि वो सामान्य नहीं थी और दूसरी तरफ बुद्ध को गृहस्थी त्यागने पत्नी को छोडने के बाद भी महान बता रहे हैं।

फर्क तो खुद हमने शुरू किया तो नारी को समाज हो या आध्यात्म पुरूष के समान अधिकार और सम्मान मिलता कैसे।

DrBhudev Sharma
भाई आप लोग भारतीय आध्यात्म में विदेशी तत्व डाल रहे हैं

Pratima Rakesh
मीरा को भक्ति के नाम पर आजादी मिली परिवार से इतर गीत संगीत में डूब जाने की!

DrBhudev Sharma
आध्यात्म ईश्वर से जुड़ा है
मार्क्स जब धर्म को ही नहीं मानते तो ?
आध्यात्म कैसा

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit मैंने कभी अपनी वॉल पर लिखा था..कबीर ने भारतीय समाज को इतना गरियाया...फिर भी भारत भूमि पर आज भी कबीर जिंदा है,.जबकि गौतम बुद्ध मध्य भारत में इतना लोकप्रिय हुए ..सत्ता केंद्रों के चहेते बने. बावजूद मध्य भारत से गायब हो गए,..कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत के नैतिक मानदंडों में कबीर के मुकाबले बुद्ध बेहद कमजोर साबित हुए......क्योंकि गौतम रात में सोती अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़ पलायन कर गए,,जबकि कबीर ने ना सिर्फ घर के दायित्वों का निर्वहन किया,,बल्कि बुद्ध की तरह कभी हाथ पसार कर जीवन यापन भी नहीं किया.................

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma आप संदर्भ से काट कर देख रहे हैं..धर्म अफीम है,यह मार्क्स का आधा वाक्य है,,पूरा वाक्य मैं आपसे सुनना चाहूंगा...फिर विमर्श में आपके साथ आगे बढना मेरे लिए आसान होगा

DrBhudev Sharma
मार्क्स फ्रायड आइंस्टीन
ये सब विद्वान है
पर आध्यात्म से इनका कुछ लेना देना नहीं

DrBhudev Sharma
मार्क्स धर्म विहीन समाज की कल्पना करते हैं

Sumant Bhattacharya
Pratima Rakesh कौन सा नृत्य संगीत...लोकसंगीत...चोली और घाघरा पहन कर नृत्य करने की क्या आजादी थी मीरा को.....रामकृष्ण परमहंस को जैसे भगवद अवस्था में जाने की आजादी थी क्या वह किसी महिला आध्यामिक को मिली कभी....................रोमा रोलां ने लिखा..यदि परमहंस फ्रांस के किसी नगर में होते तो उन्हें यकीनन किसी मानसिक केंद्र में भर्ती करा दिया जाता।

Poonam Dixit
हो सकता है। उस हिसाब से मीरा जी आदर्श है आध्यात्म में । उन्होंने भी अपने पति के मृत्यु के बाद घर का त्याग किया। और बल्कि सब कुछ खोल कर पति को बताया अपने मनोभावों के बारे में।

जबकि बुद्ध जी ने बिना बताए अचानक पलायन किया।

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma बेहतर होता कि धर्म के बारे में मार्क्स की धारणा और स्थापना को आप रखते,.फिर बात करते। खंडित वाक्यों और सूचनाओं पर क्या विमर्श करूं,..आपसे बाद में मुखातिब होता हूं..धैर्य रखिए थोड़ा

DrBhudev Sharma
मार्क्स वाद फेल ही इसलियें हुआ
क्योंकि धर्म विहीन समाज व्यवहारिक नहीं है

DrBhudev Sharma
सर आप गलत तर्क दे रहे हैं

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit क्या हो सकता है,.मुझे अब आपकी बात समझ नहीं आ रही है....मीरा ने पति की मृत्यु के बाद घर त्यागा..तो यह तो स्थापित मान्यताओं के हिसाब से ही किया मीरा ने.....काशी और वृंदावन की असंख्य विधवाएं मीरा ही तो हैं...मधुबनी पेंटिंग के पीछे विधवाओं को परित्यकताओं का ही तो दर्द है..मैंने मधुबनी पेंटिंग पर अपनी टाइम लाइन पर लंबा तप्सरा लिखा है..कोलकाता हाईकोर्ट की ओर से काशी के घाटों पर विधवाओं की स्थिति का जायजा लिया था..उसकी रिपोर्ट का निचोड़ भी कहीं टाइम लाइन पर दिया था....

Poonam Dixit
मीरा जी को भी उस समय तो पागल करार दे ही दिया गया था । लेकिन लोगों ने समझा भी और समझना चाहिए भी था क्योंकि भारत की आत्मा ही आध्यात्म है

DrBhudev Sharma
सर आप गलत तर्क दे रहे हैं
भारतीय प्रतीकों को यूरोपीय चश्मे से नहीं पढ़ा जा सकता
दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर है

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma जी..हो सकता है..आप अपनी स्थापना दीजिए ना..और पहले मैं समझना चाहूंगा ..धर्म के बारे में मार्क्स ने क्या कहा है....दूसरे..भारत के बारे में मार्क्स के सिर्फ तीन लेख है..उनमें धर्म को लेकर क्या सोचते हैं मार्क्स ..इन बिंदुओं के स्पष्ट होते ही मैं आपके प्रश्नों पर आऊंगा..उससे पहले नहीं

Pratima Rakesh
मीरा के कृष्ण प्रेम को मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखिए तो किशोरावस्था का वर्जित निष्फलित प्रणयसाफ तौर पर झलकता है! इसे personification कहते हैं!

DrBhudev Sharma
सर मार्क्स को धर्म की कोई जरुरत नहीं है
अब आप बताएं आप क्या कहना चाहते हैं

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit पागल आपका शब्द है..ऐसा कोई शब्द मीरा के लिए कहीं इस्तेमाल नहीं हुआ है..इसके लिए भगवद अवस्था कहा जाता है। Poonam Dixit हर लिखे को यूं ही मत उठा लिया करो बंधु...

Pratima Rakesh
Sumant Bhattacharya सिमोन दी बोउवा का उदाहरण गलत परिप्रेक्ष्य मे दे रहे हैं!

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma मैं तभी विमर्श करूगा आपसे जब आप तथ्यात्मक होंगे,.अब आप मित्रों से जारी मेरे विमर्श में अनावश्यक व्यवधाना डाले..मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगा

Sumant Bhattacharya
Pratima Rakesh कैसे...स्पष्ट करो ना...............

DrBhudev Sharma
रही बात मीरा की
तो वो राजघराने से थी
उनकी विधवा जैसी कोई समस्या नहीं थी
और ना ही वो बनारस गयी थी

Sumant Bhattacharya
Tribhuwan Singh हस्तक्षेप विनम्रता से भी किया जा सकता है....

DrBhudev Sharma
अब आप बताएं आप क्या कहना चाहते हैं

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma मुझे आपसे कुछ नहीं कहना...आपसे विदा

DrBhudev Sharma
सर दास कैपिटल कोड करूँ क्या

DrBhudev Sharma
आपके पास उत्तर नहीं है सर

Poonam Dixit
आप बुद्ध से कबीर की तुलना कर रहे हैं जिन्होंने सामाजिक जीवन भी जिया मै भी मीरा को कबीर के समतुल्य ही रखती हूं जिन्होंने सामाजिक जीवन भी जीया और आध्यात्मिक भी बाद में सामाजिक जीवन के कार्य खत्म होने पर गृह त्याग किया।

फिर उनको क्यो नही आध्यात्म की पराकाष्ठा के रूप में स्वीकार कर नहीं पूजते । सिर्फ इसलिए कि वो नारी थी ।
और उनको केवल सामन्य नारी घोषित कर कमियाँ निकाली जाती है।

DrBhudev Sharma
अध्यात्म केवल भारत की देन है विश्व को

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma मैं क्यों दू आपको उत्तर..मैं हरेक के उत्तर देने को बाध्य तो नहीं हूं ना...

DrBhudev Sharma
आपके पास उत्तर नहीं है सर

DrBhudev Sharma
मीरा ने घर राजनैतिक कारणों से छोड़ा था

Sumant Bhattacharya
DrBhudev Sharma जी महोदय आपने बिल्कुस सही पहचाना मुझे...मुझे आपने निरुत्तर कर दिया...आपके सामने मैं नत हूं,..आपका ज्ञान असीम है,.अकाट्य है..मैं मूढ़ ही भला,,और मुझे मू़ढ़ मित्रों से संवाद करने दीजिए..

DrBhudev Sharma
बस आपसे अनुरोध है
मीरा की भक्ति को कलंकित न करें

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit मैं तुलना नहीं, नैतिक मानदंडों की समीक्षा कर रहा हूं,,कमेंट को दुबारा पढ़ें।

Poonam Dixit
पागल ही कहा था दिवानी कहा था जन साधारण ने। उस समय के लोगो ने। मै मानती हूं मीरा खुली आंखों से समाधिस्थ रहती थी ।

मीरा मेरे लिए आदर्श है।

Nilu Kumari
DrBhudev Sharma, आप क्या कह रहें हैं ?

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit दोनों ही शब्द इस्तेमाल नहीं हुए थे..और दीवानी का कोनोटेशन क्या है आपकी समझ में

DrBhudev Sharma
Nilu Kumari ji मार्क्स फ्रायड आइंस्टीन
ये सब विद्वान है
पर आध्यात्म से इनका कुछ लेना देना नहीं

DrBhudev Sharma
रही बात मीरा की
तो वो राजघराने से थी
उनकी विधवा जैसी कोई समस्या नहीं थी
और ना ही वो बनारस गयी थी

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari तुम्हारी वॉल पर कुछेक एक मनोरंजन सामग्री भी हैं.....फिलर की तरह बजते रहते हैं,

Poonam Dixit
मैं भी मीरा को तुलना योग्य नहीं मानती । फिर क्यों इतना स्थान न मिला उनको जितना कि आध्यात्मिक पुरूषों को दिया गया।

केवल पुरूष होने के कारण।

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari माफ करना .इन महोदय को ब्लॉक कर रहा हूं...विमर्श की शालीनता से कोसो दूर हैं यह महोदय...

DrBhudev Sharma
ज्ञान होना अच्छी बात है पर उसका अभिमान होना बुरी बात

DrBhudev Sharma
It is your choice

Poonam Dixit
प्रयोग किया गया जन मानस द्वारा खुद राज घराने उन्हें पागल करार देकर मारना चाहते थे। जैसे मुझे ज्ञात है।

DrBhudev Sharma
जब जबाब नहीं होता
तो अक्सर लोग ऐसा ही करते हैं

DrBhudev Sharma
उनके देवर राजनैतिक कारणों से उन्हें मारना चाहते थे

DrBhudev Sharma
उन्होंने स्वेच्छा से घर छोड़ा

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit यही तो मैं तब से कह रहा हूं.......कि आध्यात्म पर पुरुषों का वर्चस्व है....कहीं अतीत में गार्गी..लोपामुद्रा या भारती का जिक्र मिलता है. जो सभा और समीतियों में सक्रिय हिस्सा लेती थी..समाज के लिए तय किए जाने वाली बौदिध्क प्रक्रियाओं में सक्रिय हस्तक्षेप करती थी...फिर ऐसा क्या हुआ जो महिला आध्यात्म सिर्फ सम्मानीय और पूज्यनीय तो रहा...अनुकरण योग्य नहीं माना गया...कभी कबीरपंथ, रैदासी.मूलकदासी..नानकपंथी..की तरह सुना कभी मीरापंथी...। यदि ऐसा नहीं है तो उनका आध्यात्म व्यापक जगत का स्वीकार्य हिस्सा क्यों नहीं बना।

ilu Kumari
DrBhudev Sharma, Poonam Dixit मै रेशन्लिस्ट हुँ । इसलिए मेरे लिए प्रश्नो से परे कोई नही है

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit जी, हम दोनों सोच एक सा ही रहे हैं.संदेह, प्रश्न और शंकाएं भी वही हैं,.फिर विवाद किस बिंदू पर है..एक पंक्ति सवाल पूछो..एकदम सटीक..मैं अब बिखर रहा हूं तु्म्हारी सोच और शंकाओं को रुक कर समझना चाहता हूं पहले

DrBhudev Sharma
Nilu Kumari ji तथ्य तथ्य होते हैं
उन्हें नाकारा नहीं जा सकता

DrBhudev Sharma
अगर आप सच नहीं जानना चाहती तो आपको भी BYE

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari कसम से..तुम्हारा फिलर मजेदार है................एकदम.%^%^%&^^^% नंबर वन। तुम्हारी अनथक शोध और खोज को सलाम Nilu Kumari जी.

Manoj Upadhyay
कुछ नहीं...बड़े करें तो शौक और छोटे करें तो निंदा....यही हमारा समाज रहा है सब दिन..

DrBhudev Sharma
Sumant Bhattacharya ji महोदय कितना बड़ा विद्वान समझ रहे हैं आप अपने आपको
मीरा के माँ बाप का नाम तक पता नहीं होगा आपको

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari जी अपने अपने मित्र को रोको....रूठ कर वो चले जा रहे हैं..........मना लो भाई.,.ख्याल करो उनका..अकाट्य तथ्य हैं उनके पास,.बहुत ही बेशकीमती..जाने ना पाए

Sumant Bhattacharya
नाम था चिरमिखी दास..और श्रीमती चिरमिखी दीदी.......कोई शक

Poonam Dixit
यही तो मैं आपसे और पुरुष समाज से और नीलू जी से पूछ रही हू क्यो मीरा को उनके आध्यात्म के साथ स्वीकार नहीं करते ।

क्योंकि पुरूषों को हर जगह अपना केवल वर्चस्व स्थापित करने की आदत पड गयी और औरते भी इसी मानसिकता और मानदंडों को हर स्तर पर मानने लगी।

इसलिए मीरा के आध्यात्म को वो ऊंचाइयां नहीं दी समाज ने।

दूसरी बात वैदिक काल के बाद संघर्षों का सिलसिला शुरू हुआ होगा और पुरूष को बलशाली धीरोदात्त नायक जिसमे अतुल्य बल की कल्पना की जाने लगी थी और नारी को उसकी हर इच्छा पूरी करने वाली रमणी के रूप में देखा जा रहा था जिसकी खुद की कोई पहचान नहीं थी ।

इसलिए मीरा जैसी स्वतंत्र औरत आध्यात्मिक नारी को समाज स्वीकार नहीं कर पाया होगा।।।

DrBhudev Sharma
दूसरों को फिल्लर समझना
इसमे कौन सी महानता है

Sumant Bhattacharya
यकीन ना हो तो Nilu Kumari जी से पूछ लें आप..और तो और आधुनिक मीरा Poonam Dixit भी बता देंगी

DrBhudev Sharma
अपने मियां मिट्टू बन रहे हैं आप

DrBhudev Sharma
ज्ञान पर किसी का एकाधिकार नहीं है

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit फिर इस बिंदु पर मैं सिमोन का आश्रय लूंगा..जो कहती है कि महिलाओं को दो आजादी चाहिए...देह से आजादी और आर्थिक आजादी...यह हासिल करते ही वक्त के साथ बौदि्धक आजादी महिला खुद ही हासिल कर लेगी या फिर पुरुष समाज को उसकी बौदि्धक आजादी को स्वीकार्य करना ही होगा..अभी भी महिलाओं आर्थिक स्वतंत्रता की पहली सीढ़ी पर हैं..भारत में थोड़ा सा वक्त इंदिरा गांधी का रहा.जब उन्होने अपने राजनीतिक आध्याम से जबरदस्त हस्तक्षेप किया

Nilu Kumari
ये पुरूष कितने लडाकु होते हैं  । देखिए महिलाएं कैसे शांति से अपनी बात रख रही हैं

Sumant Bhattacharya
संजय कोटियाल,भाई आइए .आपका हस्तक्षेप जरूर है

Poonam Dixit
Sumant Bhattacharya जी मजाक न उडावा हो आधुनिक मीरा कह कर।

उनके चरण की धूल भी नहीं है।

बाकी पिटना है तो आपको बताओ

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari माफ कीजिएगा मोहतरमा..आपकी वॉल है अनुशासन रखना आपको होगा..हम कोई लड़ाके वड़ाके नहीं है...वू तो बस ऐंवी ही तवज्जो दे दी,,वरना हमसे बतियाने के लिए बुकिंग करानी होती है.....पीडब्लूडी वाले लल्लन जी हैं हम ...हां बताए देते हैं

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit जिन मित्रों से मेरी समझ का स्तर विकसित हो चला है.उनके साथ बीच बीच में हल्की फुल्की शरारत करता रहता हूं,.आपको बुरा लगा तो चरण स्पऱ्स माते

DrBhudev Sharma
ज्ञान पर किसी का एकाधिकार नहीं है
आप मार्क्स के चश्मे से मीरा समझाना चाहते हैं
जो किसी भी प्रकार स्वीकार्य नहीं
आगे Nilu Kumari जी की इच्छा
वो अगर आप ही को अंतिम सत्य मानती हों
तो आप समझते रहिये और वो समझती रहें
मै तो चला

Poonam Dixit
खैर अब चले हम ।

हाथ भी दर्द हो गया। जल्दी टाइप करते बनता नहीं है हमसे । और सुमंत जी ठहरे हाई स्पीड वाले । खी खी खी

Rajendra Prakash Agarwal
मीरा की भक्ति में मुझे तो पलायनवाद ही दिखायी देता है. या यह गम्भीर किस्म का रूढ़ीवाद है. जिसमे समय और समाज का मुकाबला करने का साहस नहिं वह नायक तो हो ही नहीं सकता.

संजय सुदर्शन
बहुत ही अपरिपक्व स्टेटस है. लेखन में विषय वस्तु की जानकारी ना के बराबर जान पड़ती है. ऐसे विषयों पर समुचित अध्ययन की आवश्यकता होती है...

Poonam Dixit
नहीं बचवा सुमंत जी हमको बुरा नहीं लगता।। हां आप जरूर पिटने से डर रहे हैं लगता

Nilu Kumari
Rajendra Prakash Agarwal, का एक शानदार विचार आ गया

Sumant Bhattacharya
Poonam Dixit तुम एक पोस्ट डालो और फिर देखो,तुमसे पिटने के लिए कितने तैयार हो जाते हैं

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari ..और सिमोन ने क्या कहा...यदि कोई महिला सिमोन को नहीं पढ़ती तो वो कभी नहीं समझ सकती है कि महिला क्या होती है,.बायबल ,गीता है सिमोन का सेकंड सेक्स....और जरा इस हरियाणवी Poonam Dixit के तेवर देख अब आप बताएँ कि कौन लड़ाकू होते हैं.....यहां तो मारपीट पर बात आ गई,..मैं डर गया .सहम गया..जाकर अपनीवॉल पर दुबकता हूं..

Nilu Kumari
संजय कोटियाल, जल्दी आईए , आप ही धर्म , ज्ञान और विज्ञान सबका संतुलन साध सकते हैं

Nilu Kumari
Pratimaji , Superb गजब बात कह दी आपने

Prem Prakash
कृष्ण के सखा भाव पर दो शब्द और नीलू जी..........
कृष्ण जैसा दुर्लभ पुरुष भला सुलभ कब रहा है..!

Nilu Kumari
Sumant Bhattacharya, मैने पढा है, पर जब 20 साल की थी । एक बार 2018 मे फिर पढुँगी, चालीस का होकर ।शायद बेहतर समझ पाऊँ ।

Sukhdev Dewasi
Dosto ...pls aap sab ...meeraji bahut hi bahadur ...nek ...shahashi thi ...unhone smaj ke dakiyanishi aadarso ko tor kar bhagtn bani jiski bhagti se jehar aamrt ho jaye use aap hari hue nari nahi kahege..me marvar se meeraji ke yaha se hu..marvar viro ki nagri he ..yaha pnaa dhay , rani padmni', rahi hada (bundi) anek satiya hue ue pls kisi ke bare me kuch lkhne se pehle ye jarur tay kar le ki aap use kitna jante ye .aap surdas ji tulsidas ji or miraji ki bhagti par sval khare nahi kar sakte ..

Sumant Bhattacharya
Nilu Kumari वो तो ठीक है..पर उम्र यूं ही नहीं बता देनी चाहिए थी....

Nilu Kumari
Prem Prakash, कुछ लोग हिन्दु धर्म का पेटेंट करा लिया है ,राम , कृष्ण का भी यही लोग ठेका ले लिया है

संजय कोटियाल
आऊंगा पक्का Nilu Kumari जी । अभी काम पर हूँ । नारीवादी मीरा बाई को मेरा प्रणाम हार्दिक । जय श्री कृष्ण । जय लोकतंत्र । अभी इतना ही हिंट ।

Nilu Kumari
Tribhuwanji, आपका इतिहास ज्ञान क्या कहता है ?

Pratima Rakesh
Sumant Bhattacharya पहले मीरा के personified Love क् बारे में विचा व्यक्त करो मे रा comment पढो!

Vijay Baghla
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है आप ने मीरा के व्यवहार का..शायद ये कारक रहा होगा..फेसबुक पे हमारा व्यवहार भी तो इन्ही कारको से निर्देशित रहता है ..बेशक सब के साथ नहीं ..पर कहीं न कहीं तो है ही..!!

संजय कोटियाल
उफ़ इतना फिलोसोफी और इतना साइकोलॉजी । मुझे तो लगता है मीराबाई से कई लोगो को जलन रहती है जिसमे स्त्री पुरुष दोनों शामिल हैं ।
एक बात समझ नहीं आती । मीराबाई अपने समय की स्त्री । राजपूताना परिवार से । अलग निकली । अलग चली । कहानियां जो भी हों साथ जुडी या देह त्याग की । पर अभी हम लोग रह रहे हैं लोकतंत्र के एक माहौल में । गला फाड़ फाड़ कर दुहाई भी दे देते हैं कि स्त्री को भी अपने मन की करने देना चाहिए । यू नोव अपने पंख पसार कर अपनी दिशा खुद ढूंढे । वो उड़ान सीरियल भी अच्छा था जो छोटे में देखा था ।
तो बात मीराबाई की है । मने बेचारी ने आध्यात्मिक होकर गड़बड़ कर दी शायद । अब पेंटर या नृत्यांगना होती तो शायद एक नायिका बन जाती अलग तौर पर । पर उसने तो प्रेम कर लिया । उसका प्रेम ही फेमस हो गया । बस सामने कोई नहीं था । अजब प्रेम रहा । सूरदास के सामने भी कोई नहीं रहा पर प्रेमी रहे । रसखान वगैराह भी । क्या कहा पुरुष थे । अहो ।
तो मने मीराबाई का वजन तो और बढ़ गया कि स्त्री होते अपनी अलग राह पर चली ? अब सोचता हूँ मीरा बाई के परिवार वालो का । सोचता हूँ कि नहीं समझाया होगा या खुद समझ गए होंगे ? समकालीन महात्मा लोग क्या कहते रहे ? मीरा बाई को दुःख था कोई वजह होगी । अपन अपना ख़ोपड़िया काहे खुरचे । अपन ठहरे लोकतांत्रिक ।
जियो मीरा बाई वो स्थान बना गयी इस देश में जो मेरी प्रेरणा नायिका है । अपना नमन । नारीवादियों को अपना पक्ष रखकर के शायद मुस्कुराती भी होगी ।

संजय कोटियाल
मीराबाई से प्रॉब्लम ये है कि वो आध्यात्मिक क्यों हो गयी । झांसी की रानी बन जाती । हिस्ट्री में अलग नाम होता । तब पूर्ण जुझारू होती । ये पुरुष स्त्री का चक्कर चला ऊपर । फेमिनिज्म स्त्री का पुरुषत्व ही लगता है । पुरुष का पुरुषत्व हिंसक और तानाशाह बना देता है । उसे स्त्रैय गुण चाहिए होते हैं जो अपना निर्माणकारी रवैय्या बना सके । भारत की पूर्णता तो अर्धनारीश्वर में है । आश्चर्य कैसा ।

Poonam Dixit
संजय जी बेहतरीन ।

मीरा जी को मैं भी आदर्श मानती हूं नारियों में आध्यात्म में । उनके जैसा कोई नहीं

Sanjay Bhalotia
मै एक ऐसा मुढ़ हूँ । जो परम लौकिक है । मुझे तो मीरा के व्यक्तिगत मे कविता मे आध्यात्म के दर्शन किसी भी तरह नही होते ।
अपनी स्वतंत्रता के लिये प्राण देना नितांत लौकिक है । जिस पति को नही चाहा उसे नही स्वीकारा ।
चमार रैदास को गुरु माना । सड़क पर नाची गायी । पंडीतो के ज्ञान के गर्व को नष्ट किया । सामंतवाद, को ऐसी खुली चुनौती संसार मे किसी ने नही दी । धर्माचार्यो की ऐसी तैसी किसी स्त्री ने नही की सारे सामंतकालीन संसार मे ।
स्त्री स्वतंत्रता की रक्षा के लिये हँसते हँसते जहर पिया ।
डरते हूई सत्ता ने नीच कर्म किया उसे मंदिर के अंदर गाड़ी दिया ।
एक अदद इंसान से और अधिक आशा ?

संजय कोटियाल
आपने देखा कि मंदिर के अंदर गाड़ दिया ?? Sanjay जी ? ये सूचना कहाँ से प्राप्त हुयी बाकी कमेंट में तो बौद्धिक क्षमता अच्छी लगी । मैंने भी वही बात की थी सामान्य स्तर की

Bhagwan Das Chechani
मै मीरा के चितौड़गढ मै रहता हु पहले मीरा के नाम की मात्रा का खयाल करो

हां तो अब उपरोक्त पोस्ट और उसके उपर फेसबुकिया विद्वानों के कमेन्ट पर मेरे विचार ::     मै    संजय सुदर्शन की इस टिपण्णी से सौ प्रतिशत इत्तेफाक रखता हूँ कि
""""बहुत ही अपरिपक्व स्टेटस है. लेखन में विषय वस्तु की जानकारी ना के बराबर जान पड़ती है. ऐसे विषयों पर समुचित अध्ययन की आवश्यकता होती है...""

"""पोस्ट पर मीरा के प्रेम की  बहुत हद तक सही व्याख्या #poonam_dixit , #DrBhudev Sharma ,prem prakash ,sukhdev dewasi ने की है । संजय कोटियाल ने भी अच्छा प्रयास किया है । सबसे घटिया या निम्न स्तरीय व्याख्या जिसे सतही कहा जा सकता है वह #Sumant_Bhattacharya नामक किसी व्यक्ति की है  ये  मार्क्स को सीमा द बोउआ को दार्शनिक बताते है यह वाकई हास्यातम्क है । ओउआ का contribution नारी liberation को sexual liberation से  संबंध स्थापित करने भर है चुकी उस ज़माने में सीमा live in relation में Sartre  के साथ रही इसलिए चर्चित व्यक्तित्व बनी । वस्तुत: इनका अपना स्वतंत्र वजूद बहुत उच्च स्तरीय विद्वानों का कभी नहीं रहा । इन्हें parasite of Sartre कहा जा सकता है ।""

दर्शन और philosophy दोनों का अर्थ एक नहीं है ।

दर्शन भारतीय संस्कृति की देन है और यह अध्यात्मक को स्वीकारने या नकारने से जुड़ा हुआ   है यानी चाहे चार्वाक हो या मंडन मिश्र या आदि शंकराचार्य उन्हें हर हालत में धर्म के अध्यात्मिक पहलू को touch करना पडेगा जबकि philosophy का अर्थ एक नई विचारधारा को   स्थापित करने वाला होता है अब जो wikipedia और नेट पर मार्क्स तथा सिमोन द बोउआ को पढेंगे उन्हें मीरा , बुद्ध, महावीर,शिव, अदि शंकराचार्य ,मंडन मिश्र सब एक जैसे दार्शनिक ही दिखेंगे ।

अध्यात्म के ज्ञान के लिए समाधि की अवस्था आवश्यक है । क्योकि सिर्फ समाधि की अवस्था में परामंन्द का बोध होता है और समाधि की अवस्था में प्राप्त  परमानन्द कुछ और नहीं बल्कि
संभोग के चरमोत्कर्ष के समय प्राप्त होने वाले आनन्द का निरंतर प्रवाह है यानी संभोग के क्षण के हजारवे हिस्से में जिस आनन्द को मनुष्य प्राप्त करता है वही समाधि की अवस्था में निरंतर प्राप्त करता है ।

मीरा के प्रेम में संभोग की जरूरत नहीं थी उन्हें सम्भोग के क्षणिक  आनंद अबाधित रूप से प्राप्त था ।

sumant bhattacharya नेटजीवी बुद्धिजीवी है चुकि इस पोस्ट पर वह nilu kumari के प्रवक्ता के रूप में था इसलिए जिक्र उसका भी कर दिया ।

पोस्ट वाली ने इस व्यक्ति को फेसबकिया विद्वान घोषित किया था । nilu kumari ने अपनी एक पोस्ट में दो व्यक्तियों को विद्वान् की श्रेणी में रखा जिन्हें वे पढने योग्य समझती है । एक #samar_anarya दुसरा इस भट्टाचार्य को । समर वस्तुत:संघर्ष की देन है निसंदेह उसके पोस्ट में सार होता है पढने योग्य पोस्ट करता है परन्तु इस भट्टाचार्या को यह कहते हुए कि इसकी वाल पे महिलाए ज्यादा विजिट करती है जो इसकी विद्वता को दर्शाता है , विद्वान घोषित करना आश्चर्य वाली बात थी और एक पल के लिए मुझे भी अचंभित किया था । खैर अपना अपना विचार है ।

nilu kumari  जी आप बहुत हद तक निष्पक्ष लेखन करती हो अच्छा लगता है पढ़ना परन्तु अभी भी आप अपरिपक्व हो । इस तरह प्रमाण पत्र बाटती  चलोगी तो हास्य की पात्र बन जाओगी ।

गुस्सा न होकर सोचे और मीरा बाई जैसे व्यक्तित्व पर लिखने के पहले थोड़ा अध्ययन कर ले। flatterer कभी भी विद्वान् नहीं हो सकता । उपर उक्त भाताचार्या के कमेन्ट उसे flatterer
स्थापित करते है । खैर आपकी पोस्ट का हिस्सा होने के कारन वह मेरे ब्लाग में स्थान पा गया उसकी भी किस्मत चमक गई । ""घूरे के दिन फिरते है ""

वर्त्तमान में तिन भारतीय दार्शनिको को पढ़े : उनके स्थानानुसार नाम दे रहा हूँ ।
1. अरबिंदो
2. कृष्णमूर्ति
3. रजनीश ।

बेहतर हो सबसे सुलभ रजनीश से शुरू करे अन्यथा बाकि का दर्शन आपके उपर से गुजर जाएगा ।

नोट: DrBhudev Sharma को मैंने फेसबुक पर ब्लाक किया है जिसका कारन उनका कट्टर जातिवादी होना और lack of humour है । nilu kumari ने मुझे ब्लाक कर रखा है कारण शायद मेरा harsh होना या बहस का  etiquette न होना हो सकता है  । परन्तु पोस्ट की इस ब्लाग में व्याख्या पूर्णत: निष्पक्ष है इसीलिए मैंने ब्लाक होने का खुलासा कर दिया ।

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