प्रभात खबर सरकारी भोंपू क से नीतीश , ख से नीतीश , ग से नीतीश नीतीश नाम जपना , सरकारी माल अपना पत्रकारिता और अखबार सिर्फ़ एक व्यवसाय नही हैं , प्रतिबद्धता है , समाज के प्रति लेकिन भुमंडलीकरण के इस दौर में सबके मायने बदल रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं, संवेदनशीलता दम तोड रही है , वैसी परिस्थिति में पत्रकारों का दायित्व बढ जाता है । सता ने मीडिया की और मीडिया ने सता की जरुरतों को समझ लिया है । दोनो के सामने अपने प्रतिद्वंदी से आगे रहने की चुनौती है । दोनो ने हाथ मिला लिया है । लेकिन इन सबके वावजूद जब कोई अच्छा पत्रकार सता से हासिल शराब पीकर नाले में गिरा नजर आता है तो तकलीफ़ होती है । अखबारों के साथ भी यही स्थिति है । बिहार में यह कुछ ज्यादा दिख रहा है । लालू को सता से बाहर करने में मीडिया की भूमिका से इंकार नही किया जा सकता । लालू ने गलती की थी , उनको मीडिया मैनेजमेंट की जानकारी नही थी । नीतीश बुद्धिमान निकलें, सबसे पहले मीडिया को मैनेज किया , फ़ल भी मिला , काठ की हांडी फ़िर आग पर चढी और खाना पहले से ज्यादा स्वादिष्ट बना । एक-दो अखबारों को छोडकर , ज्यादातर अखबारों कि यही स्थिति
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