आवारा कुत्तो से परेशान प्रभात खबर के पत्रकार





आवारा कुत्तो से परेशान प्रभात खबर के पत्रकार
अक्सर जब पाप और पुण्य की चर्चा होती है दार्शनिक भाव के साथ लोगों को यह कहते हुये सुना जाता है कि भगवान के घर मे देर है अंधेर नहीं, जो किया है उसका फ़ल यहीं भोगना पडता है ।यह चरितार्थ हो रहा है गया से निकलने वाले प्रभात खबर के रिपोर्टरो पर। उपर के आदेश पर सरकार के खिलाफ़ कोई समाचार नही छापना उनकी मजबूरी है। कुछेक रिपोर्टरो ने तो मुझसे यह स्वीकार किया है कि ब्लाक या अनुमंडल स्तर तक के भ्रष्टाचार के बारे मे ज्यादा लिखने की मनाही है ।अबतक बिहारनामक सांध्य दैनिक के कार्यकारी संपादक के पद पर काम करने के दौरान प्रभात खबर के रिपोर्टर मेरे पास स्वंय आते थें , सांध्य दैनिक में रिपोर्टर के रुप में काम करने की प्रार्थना के साथ । गया में भ्रष्टाचार चरम स्तर पर है , अखबार इसकी रिपोर्टिंग नहीं करते । सभी जीव ईश्वर की देन हैं । कुछ जीव सदियों से इंसान के मित्र माने जाते रहे हैं , उन्हीं में से एक जीव है कुता । दुनिया के हर मुल्क में इंसान के सबसे नजदीकी कुता को माना जाता है । गांव से लेकर शहर के मुहल्लों तक में कुत्तो का अपना ग्रुप होता है जो झुंड बनाकर घुमते रहते हैं तथा रात मे गांव के अंदर अवांछित तत्वों को देखकर भौकने लगते हैं । गांवों में यह परंपरा रही है कि हर घर एक कुते को खाना देता है , वह कुता उस घर का पालतू नही होता , दिन भर गांव मे घुमता रहता लेकिन खाने के समय अपने अन्नदाता के घर चला आता है । पहले शहरो मे भी यह परंपरा थी , अब महंगाई की मार ने इसे समाप्त कर दिया। ये कुत्ते अमूमन बगैर कारण किसी को नहीं काटते । सह अस्तित्व की भावना के साथ रहना इनकी आदत मे शुमार है । इधर दो दिनों से प्रभात खबर ने एक मुहिम चलाई है , गया के संस्करण में आवारा कुत्तों को शहर के लिये महामारी के रुप मे प्रस्तुत करने वाला समाचार प्रकाशित कर के। इसमे ऐसे लोगों के विचार भी छापा जा रहा है जिन्हें या तो कुत्तो ने कभी काटा है या उनकी संदिग्ध हरकत या तेज गति से रात मे मोटर साईकिल चलाने पर दौडा लिया है । यह भी छपा है कि प्रत्येक वर्ष बारह हजार लोगों को कुत्ते काट रहे हैं जिन्हे एंटी रैबिज का टीका लेना पडता है । पूरे समाचार को जिसे किस्तों में प्रकाशित किया गया है उसका लब्बोलुआब यह है कि मलेरिया , डेंगू, हैजा की तरह रैबिज ने महामारी का रुप ले लिया है । मेरा जन्म इसी गया शहर मे हुआ , अभी पचासा पार करने वाला हूं लेकिन इन पचास वर्षों मे पहली बार यह अहसास हुआ कि मैं खुद अपने शहर कि इतनी बडी समस्या से अवगत नही हूं , यह अहसास कराने के लिये प्रभात खबर को कोटि कोटि साधुवाद  । मेरा कुत्तो से कुछ ज्यादा लगाव रहा है , देश के सभी शहरों मे यहांतक कि  पर्यटन  स्थलों पर भी कुते मिलते हैं , हर ढाबा, गली, घर के आसपास। अभी दो दिन पहले दार्जिलिंग से लौटा हूं । दार्जिलिंग का प्रमुख स्थल जहां पर्यटक टहलने के लिये जाते हैं , वह है माल रोड जो चौरास्ता पे जाकर समाप्त होता है , वहां गाडियों का आवागमन प्रतिबंधित है । चौरास्ता पर पचासो की तादात मे कुते  रहते हैं , खेलते हुये , पर्यटको को निहारते हुये, कुछ मिल जाये खाने को इसकी आस लगाये हुये । एक और प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है दार्जिंलिंग में , टायगर हिल। यहां सुबह मे सूर्योदय देखने पर्यटक जाते हैं , वहं भी कुत्ते मिलते हैं । मैं एकबार वहां गया , देखा दो कुते  वहां शांत भाव से बैठे हुये थें , अचानक बिहार के  पर्यटकों के एक दल के सद्स्य ने एक कुत्ते को लात जड दिया । मैने तुरंत पुछा क्यों मारा ? मेरे पीछे बैठा है काट लेगा तब । तुम क्यों नहीं दुसरी जगह खडा हो गया । उस लडके को डांट लगाई , वहां जो दुसरे राज्यों के लोग तथा संवेदनशील पर्यटक थें उन्होने माना कि जानवरो के साथ भी अमानवीय व्यवहार नही करना चाहिये । गंगटोक के एम जी मार्ग का भी यही हाल है , वहां भी कुत्ते टहलते हैं  जबकि इस देश का सबसे साफ़ शहर गंगटोक माना जाता है , वहां पूरे शहर में सिगरेट पीना, गुटका खाकर थूकना , कागज फ़ाडकर सडक  पर फ़ेकना अपराध है । मेरे पास भी एक कुता है शैगी , आजतक उसे पट्टे  से नहीं बांधा , मेरे पास सोता है , एकाध बार उसका दांत भी चुभ गया , मैने मारा नही , उसने सारी कह दिया आंखो से । जिन मुहल्लों की चर्चा प्रभात खबर मे कुत्तो से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रो के रुप में की गई है उनसे मेरा आना जाना रोजाना है । पचास साल मे आजतक किसी कुत्ते ने नहीं काटा, बल्कि मैनें हीं कुता रुपी इंसानो को डांटा , उनका  कुत्तों के साथ कुते  जैसे व्यवहार के कारण । अपने मुहल्ले समीर तकिया में सडक के कुत्तों को मैं खाना देता हूं , रात मे अपने शैगी से छुपाकर । आवारा कुते मुझे नही काटते , शायद उनको पता है मैं अपने पेशे के साथ बेईमानी नहीं करता प्रभात खबर के रिपोर्टरो की तरह। प्रभात खबर ने जिन लोगों को कुता पिडित दर्शाते हुये उनके विचारों को प्रकाशित किया है , उनमे से ज्यादतर ने यह नही कहा कि उन्हें कभी कुत्तो ने काटा है । एकाध ने बताया कि वे जब तेज गति से मोटर साईकिल चलाते हैं तब कुत्ते उन्हें दौडा लेते हैं , क्या गलत करते हैं ? जो काम ट्रैफ़िक पुलिस या आम जनता को करना चाहिये वह काम कुते कर  रहे हैं। कुत्तो पर गुस्सा होने की बजाय अपने मोटर साईकिल की रफ़्तार क्यों नही सही रखते ? कुत्ते रात के समय रखवाली का काम करते हैं । इनसे चोर, छीनाजोरी करनेवाले, शराब पीकर आवारागर्दी करने वालों को हमेशा भय बना रहता है , मुझे नही पता प्रभात खबर के जिस रिपोर्टर ने यह लेख लिखा है वह उपरो्क्त श्रेणी का है या नही। प्रभात खबर के स्थानीय संपाद्क कौशल किशोर त्रिवेदी को इस लेख के प्रकाशन  की स्वीकर्ति देने के पहले यह पता लगा लेना चाहिये था । मेरा अपना  अनुभव रहा है कि अन्य जगहों की तुलना में गया या यों कहें कि बिहार के कुते  कुछ ज्यादा भौंकते हैं , कारण है यहां के लोगों का असंवेदनशील व्यवहार, कुतो या अन्य जानवरों के साथ अत्याचार । पहले आम  लोग समझदारी विकसित करें। धरती इंसानो की बपौती नही है । सभी जीवों का इसपे हक है । रैबिज के बारे मे भी जानकारी का अभाव है । रैबिज सिर्फ़ कुत्ते को नही होती बल्कि चुहा, बिल्ली को भी यह बीमारी होती है। रैबिज से ग्रसित जानवर या ईंसान की उम्र सीमा मात्र चौदह दिन है, उसके बाद उसे मर जाना है। रैबिज के लिये या कुत्ते काटने पर इंजेक्सन से ज्यादा कारगार ईलाज है जहां कुते ने काटा है , वहां डिटरजेंट को तुरंत लगाकर मलना । चारपाच बार लगातार ऐसा करने से रैबिज की संभावना समाप्त प्राय हो जाती है। इंजेक्सन की जरुरत तब है जब काटने वाले जानवर की मौत चौदह दिन के अंदर हो जाये। इन सभी एहतियात से ज्यादा आवश्यक है कि आप ईंसान की तरह हरकत करें , कुतों को तंग न करें । रैबिज से ग्रसित कुत्ते भी किसी को बगैर तंग किये नहीं काटते हैं । वे खुद बहुत कष्ट मे रहते हैं । रोशनी तथा पानी से भय खाते हैं । प्रभात खबर के रिपोर्टर भी गलत हरकत से बाज आयें , गया के कुत्तो ने उन्हें पहचान लिया है इसलिये अपने पेशे के साथ बेईमानी करने की सजा दे रहें हैं । 


टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें. our email : biharmedia@yahoo.com, tiwarygaya@gmail.com, tiwarigaya@gmail.com. phone: 0631-2223223, 8797006594. अगर व्यस्तता के कारण फ़ोन न उठे तो एस एम एस भेजने का कष्ट करें । हम स्वंय आपसे संपर्क करेंगे ।

Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि – भाग १