manvadhikar day


  विश्व मानवाधिकार दिवस पर विशेष



सरकारी एजेंसी बनकर रह गया मानवाधिकार आयोग
राज्य के किसी भी हिस्से में नहीं है मानवाधिकार न्यायालय
आयोग के अध्यक्ष भी नहीं डाल पाते सरकार पर दबाव
जब आयोग खुद पंगु तो पीड़ितों को क्या दे पाएगा न्याय









विनायक विजेता
पटना: देश भर में आज विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाएगा। मानवाधिकार दिवस मनाए जाने की  इस नौटंकी में देश में कथित रूप से राष्टÑीय और राज्य स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित कर लाखों रूपये बर्बाद किये जायेंगे लेकिन देश में आज भी मानाधिकार कानून मामले में देश पंगु बना हुआ है। देश में राष्टÑ्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन वर्ष १९९३ में हुआ। सुप्रीम कोर्ट के जज रंगनाथ मिश्र को इसका अध्यक्ष बनाया गया और इसी के साथ ही राष्ट्रिÑय मानवाधिकार कानून देश भर में लागू कर दिया गया। रंगनाथ मिश्र ने इस कानून के माध्यम से देश भर में लोगों को न्याय दिलवाने का प्रयास भी किया। लेकिन जब से आयोग में राज्य सरकार आयोग में नियुक्तियां करने लगी और आज देश भर में राष्टÑीय और राज्य मानवाधिकार आयोग खुद एक सरकारी एजेंसी बन कर रह गया है। आयोग खुद काफी लम्बे वक्त तक खुद की सुख सुविधाओं के लिए लड़ता रहा और फिर जब राजकीय नियुक्तियां इस आयोग में हुई तो आयोग सरकार के खिलाफ कोई भी निर्देश देने से कतराने लगा।  कई ऐसे मामले हैं जिनमें आयोग ने सरकार के खिलाफ कोई कायर्वाही नहीं की । जब आयोग और कमर्चारियों तथा पदाधिकारियों की नियुक्ति सरकारी स्तर पर होती है और वेतन भत्ते सरकार से उठाये जाते हैं तो जिसका खायेंगे उसका बजायेंगे की तर्ज पर यहां काम होना लाजिमी ही है। स्थिति यह के देश में १९९३ में लागू इस कानून के तहत आज तक किसी भी हिस्से में मानवाधिकार न्यायालय नहीं खोला गया। जबकि अधिनियम में हर जिले में एक मानवाधिकार न्यायायलय खोलने का प्रावधान है। पर अबतक न तो सरकार द्वारा इस दिशा में कोई पहल की गई न ही आयोग के अध्यक्षों ने इस तरफ सरकार पर दबाव बनाया।  सोचने वाली बात यह है कि जब ऐसे मामले में आयोग खुद ही पंगु बना हुआ है तो वह दूसरों को न्याय क्या दे पाएगा।  मानवाधिकार कानून के तहत जिलेवार प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी नहीं की गयी है । राज्य के थानों में आज भी प्रताड़ना का दौर जारी है, हिरासत में हो रही मौतों का सिलसिला थमा नहीं है, सरकारी मशीनरी कदम कदम पर मानवाधिकारों का शोषण कर रही हैं लेकिन आयोग के दायरे सीमित हैं। स्टाफ और सदस्य सीमित हैं, जिला स्तर पर कोई प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किये गये हैं और आयोग मात्र कार, ड्राइवर और भत्तों का कार्यालय बनकर रह गया है।  कुछ मामलों में आयोग कठोर रुख अपनाता भी है तो उसका पालन नहीं होता।

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