हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है


बिहार में पत्रकारिता जगत का शायद हीं कोई व्यक्ति हो जो विनायक विजेता को न जानता हो । अंतर हो सकता है समर्थक और विरोधी होने का । पत्रकारिता जगत का एक जाना पहचाना चेहरा , प्यार से मांगो तो जान हाजिर , लडोगे तो फ़ैसला तिहाड में । कभीकभी उनसे मुलाकात हो जाया करती है । विजेता जी के साथ कभी आप ध्यान की अवस्था में बैठें , मजा आयेगा । उनकी  तुकबंदी कहें, कविता कहें या विचार  ।वह है सबसे बडा कौन   लिखते समय भी सबसे बडा कौन की पंक्तिया याद आ रही है और मन्द मन्द  मुसकुरा रहा हूं ।
एक गजल इन्होने  फ़ेसबुक पर पोस्ट की है । यहां उसे दे रहा हूं ।


आप तो हल छोड  के मंगरु उठाये हथियार के दर्द को बयां कर रहे हैं विजेता सर जी ।

मदन तिवारी

 हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है
खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है
जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है
आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है
मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .

आपने चाँद सितारों पर ग़ज़ल लिखी है
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है

खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है
जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है

मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .

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