मनमोहन , प्रणव और चिदंबरम बन गये हैं नासूर


मनमोहन , प्रणव और चिदंबरम बन गये हैं नासूर

देश आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर

विनियोग यानी देश की कंपनियों को बेच डाला ; अब देश को बेचने की तैयारी

भाजपा की मंशा पर शक

रिटेल सेक्टर में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति देने के बाद अब सरकार और उसके नुमायंदे विदेशी पूंजी निवेश के फ़ायदे गिना रहे हैं । पहले उन फ़ायदों को देखें जो देश के रक्षक गिना रहे हैं

१। किसानों की उपज का ज्यादा मूल्य

२ जनता को सस्ते दर पर सामान की उपलब्धता यानी महंगाई में कमी

३ स्टोरेज क्षमता का विकास

४ आवागमन की सुविधाओं का विकास यानी सडक से लेकर रेल यातायात तक की सुविधा

५ एक करोड रोजगार के अवसर

सबसे पहले तो किसानो की उपज की किमत की बात करते हैं; विदेशी रिटेल कंपनियों पर यह बाध्यता नही है कि किस दर पर किसानों से खरीद की जायेगी और अगर वही प्रोडक्ट दुसरे मुल्क में सस्ते दर पर उपलब्ध होगा तो कंपनिया कहां से खरीद करेंगी या नहीं । वर्तमान में बहुत सारे उत्पाद भारत से सस्ता चीन में उपलब्ध है । विदेशी कंपनियां , दुसरे मुल्क से सामान की खरीद करेंगी । अगर कच्चा माल देश के अंदर से खरीदने की बाध्यता होगी तो विदेशी कंपनियां , प्रोसेस किया हुआ माल यानी अगर आलू की खरीद करनी हो और यह बाध्यता हो कि देश के अंदर से खरीद करनी है तो कंपनियां आलू की जगह पर उसका पावडर या प्रोसेस करके सुखा दिया गया आलू खरीदेंगी और उसका उपयोग आलू से निर्मित सामानों के लिये करेंगी ।

किसानों को किसी एक चीज के उत्पादन के लिये प्रोत्साहित करेंगी और जब ज्यादा मात्रा में उत्पादन होगा तब बाजार मूल्य से कम पर खरीद करेंगी जैसा की पंजाब में हुआ । वहां एक कंपनी ने किसानो को टमाटर पैदा करने के लिये प्रोत्साहित किया , एक साल तो ठिक रहा लेकिन जब किसानों ने दुसरे साल टमाटर ज्यादा मात्रा में पैदा किया तब उसकी किमत गिरकर ३० पैसे किलो हो गई ; विदेशी कंपनी जिसने किसानों से टमाटर की खरीद का वादा किया था , उसने भी तीस पैसे किलो हीं खरीदने की बात कही , किसानो नें प्रदर्शन करके अपना टमाटर सडकों पर बिखरा दिया । सरकार का यह वादा गलत है किसानो को कोई फ़ायदा नही होगा ।

अब रह गई जनता को सस्ते दर पर सामान उपलब्ध कराना ; यह विदेशी कंपनिया घाटा सहकर भी अपने शुरुआती दौर में करेंगी , लेकिन इसका उद्देश्य जनता को फ़ायदा पहुंचाना नही होगा बल्कि दुसरे छोटे दुकानदारों को समाप्त करना होगा । धिरेधिरे छोटे दुकानदार समाप्त हो जायेंगे तब इनके सामानों की किमत बढ जायेगी । उदाहरण है कोल्ड ड्रिंक्स । बचपन में लोकल स्तर पर उत्पादित कोल्ड ड्रिंक्स मिलता था । स्थानीय स्तर पर बना हुआ बिस्कुट मिलता था । एक बेंगड नाक का बुढा व्यक्ति था , सुबह सुबह घंटी बजाते हुये घर आता था , हमें उसका इंतजार रहता था, उससे बिस्कुट जो कुकिज जैसा लगता था, खरीदते थें।

स्टोरेज क्षमता का विकास : यह जनता की सुविधा के लिये नही होगा , बल्कि जमाखोरी के लिये होगा । जब फ़सल का समय, ये कंपनियां खरीद कर रख लेंगीं , बाद में उच्ची किमत में बेचेंगी।

आवागमन के विकास की बात मात्र एक छ्लावा है । मोबाइल टावर और हवाइ जहाज के मामले में हमने देखा है । समान दूरी की हवाई यात्रा के रेट में दोगुने का अंतर होता है । दिल्ली से मुंबई और पटना से मुंबई के बीच के किराये को देख ले सरकार , पता चल जायेगा ।

एक करोड रोजगार की बात भी धोखा है । बडी कंपनिया मशीनों से काम लेती हैं। यानी पहले से जितने आदमी एक काम में लगे हैं, उनकी संख्या में कटौती हो जायेगी । चार से पाच करोड खुदरा दुकानदार बेरोजगार होंगें वह अलग। वाल मार्ट की एक दुकान खुलने का अर्थ है कम से कम पाच हजार दुकानदार जिसमें ठेलावाले, सब्जी वाले से लेकर खुदरा दुकानदार शामिल हैं , बेरोजगार हो जायेंगें ।

अब प्रश्न यह है कि आखिर सरकार इसे लेकर इतनी बेचैन क्यों हैं। मैने पहले हीं लिखा था । पूंजीवाद अमेरिका में हीं दम तोड रहा है । अक्यूपाई वाल स्ट्रीट आंदोलन और इंग्लैंड की सडकों पर छात्रों तथा मजदूरों की हडताल ने यह स्पष्ट कर दिया है । यह आज नही शुरु हुआ । तकरीबन तीनचार साल पहले हीं अर्थशास्त्र की थोडी बहुत भी जानकारी रखनेवालों को यह पता चल गया था । इंग्लैंड में बेरोजगार छात्रों ने दुकानों में लूटपाट की , कारण बढती बेरोजगारी  और अमीरगरीब के बीच की खाई । वहीं अमेरिका में भी छात्र सडक पर उतर चुके हैं। भारत की अर्थव्यवस्था की जानकारी रखनेवालों को पता है । विदेशी पूंजी की निकासी हो रही है । हमारी अर्थ व्यवस्था उसी पर निर्भर हो गई है । विदेशी पूंजी को रोकने का एकमात्र रास्ता सरकार को नजर आ रहा है , उनकी पुरानी मांग , रिटेल में विदेशी निवेश को मान लेना। अगर सरकार नही मानती है तो भारत के हालात भी ब्राजील जैसा हो जाने का भय है । बस इसी भय के कारण मनमोहन लगातार कह रहे हैं कि सरकार पिछे नही हटेगी । अब उनको कौन समझाये कि उनकी सरकार न सिर्फ़ बार बार पिछे हटती है बल्कि पिछे मुडकर अपना पैंट उतारकर देशी  और विदेशी औद्योगिक घरानों के सामने खडा होने की आदत डाल चुकी है ।

एक और तर्क दिया जारहा है कि वाल मार्ट जैसी कंपनियों के आने से छोटे दुकानदारों को फ़ायदा होगा , छोटे दुकानदार अपनी दुकान के लिये वहीं से सामान खरीदेंगे । इस  तर्क ने तो सबकुछ साफ़ कर दिया । यह स्पष्ट हो गया कि छोटे दुकानदारों को वाल मार्ट जैसी कंपनियों के रहमो करम पर रहना होगा ।

विदेशी पूंजी निवेश का विरोध चाहे कोई कर रहा हो, उसका इस मुद्दे पर समर्थन करने की जरुरत है। हां भाजपा से सावधान रहते हुये , भाजपा का विरोध करना सबसे आश्चर्य जनक है और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसके पिछे भाजपा का अपना स्वार्थ है । संभावना तो यह दिखती है कि भाजपा दिखावे के लिए कुछ संशोधन करवाने  के साथ सरकार से सहमत हो जायेगी । देश की सार्वजनिक कंपनियों की बिक्री की दोषी भाजपा भी है । कांग्रेस और भाजपा , दोनों की आर्थिक नीतियां एक है । दोनो के शासनकाल में महंगाई , गरीबी और आर्थिक असमानता बढी है ।




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