गुप्तांगों में एसपी ने पत्थर भर डाले थे !


( इस लेख के अंत में हम एन डी टी वी की एक टीम की रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं , यह रिपोर्ट पत्रकारों ने डातेंवाडा के जंगलों के अंदर स्थित सोनी के गांव में जकर तैयार किया है तथा सोनी से हुई बातचीत भी इसमे है । उसको पढने से यह पता चल जायेगा कि सोनी सोडी परिस्थितियों की मारी हुई है । )
जज साहब अगर सोनी सोरी आपकी अपनी बेटी होती तो क्या उसके गुप्तांगों में पत्थर डालने वालों को भी आप पैंतालीस दिनों का समय देते? और क्या उससे ये पूछते कि आपने मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर क्यों डाले...

हिमांशु कुमार



माननीय न्यायाधीश महोदय ,

सर्वोच्च न्यायालय,

नईदिल्ली

यह पत्र मैं आपको सोनी सोरी नाम की आदिवासी लड़की के सम्बन्ध में लिख रहा हूँ, जिसके गुप्तांगो में दंतेवाडा के एस.पी. ने पत्थर भर दिये थे और जिसका मुकदमा आपकी अदालत में चल रहा हैІ उस लड़की की मेडिकल जाँच आपके आदेश से कराई गई और डाक्टरों ने उस आदिवासी लड़की के आरोपों को सही पाया और डाक्टरी रिपोर्ट के साथ उस लड़की के गुप्तांगो से निकले हुए तीन पत्थर भी आपको भेज दिये І

कल दिनांक ०२-१२-२०११ को अपने वो पत्थर देखने के बाद भी उस आदिवासी लड़की को छत्तीसगढ़ के जेल में ही रखने का आदेश दिया और छत्तीसगढ़ सरकार को डेढ़ महीने का समय जवाब देने के लिए दिया हैІ

जज साहब मेरी दो बेटियाँ हैं अगर किसी ने मेरी बेटियों के साथ ये सब किया होता तो मैं ऐसा करने वाले को डेढ़ महीना तो क्या डेढ़ मिनट की भी मोहलत न देता! और जज साहब अगर यह लड़की आपकी अपनी बेटी होती तो क्या उसके गुप्तांगों में पत्थर डालने वालों को भी आप पैंतालीस दिनों का समय देते? और क्या उससे ये पूछते कि आपने मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर क्यों डाले? पैंतालीस दिन के बाद आकर बता देना और तब तक तुम मेरी बेटी को अपने घर में बंद कर के रख सकते हो !

पत्थर डालने वाले उस बदमाश एस. पी. को पता है कि उसकी रक्षा करने के लिये आप यहाँ सुप्रीमकोर्ट में बैठे हुए हैं इसलिए वह बेफिक्र होकर खुलेआम इस तरह की हरकत करता है और आपके कल के आदेश ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है, कि इस तरह से हरकत करने वालों की रक्षा सुप्रीमकोर्ट लगातार उसी तरह करता रहेगा जिस प्रकार वो अंग्रेजों के समय से सरकारी पुलिस की रक्षा के लिए करता रहा हैІ

जज साहब ये अदालत उस आदिवासी लड़की की रक्षा के लिए बनायी गयी थी उस बदमाश एस.पी. के लिए नहीं І ये इस लोकतांत्रिक देश की सर्वोच्च न्यायालय है और इसका पहला काम देश के सबसे कमजोर लोगों की रक्षा सबसे पहले करने का है ! आपको याद रखना पड़ेगा कि इस देश के सबसे कमजोर लोग महिलायें, आदिवासी, दलित, भूख से मरते हुए करोडों लोग हैं और इस अदालत को हर फैसला इन लोगों के हालत को बेहतर बनाने के लिए देना पड़ेगाІ लेकिन आजादी के बाद से इन सभी लोगों को आपकी तरफ से उपेक्षा और इनकी दुर्गति के लिए जिम्मेदार लोगों को संरक्षण दिया गया हैІ

मेरे पिताजी इस देश के आजादी के लिए लड़े थेІ उन सभी आजादी के दीवानों के क्या सपने थे? उन लोगों ने कभी कल्पना भी की होगी कि आज़ादी मिलने के बाद एक दिन इस देश की सर्वोच्च न्यायालय एक आदिवासी बच्ची के बजाय उसपर अत्याचार करनेवाले को संरक्षण प्रदान करेगीІ

हमें बचपन से बताया गया इस देश में लोकतंत्र है.इसका मतलब है करोडों आदिवासियों, करोडों दलितों, करोडों भूखों का तंत्र І लेकिन आपके सारे फैसले इन करोडों लोगों को बदहाली में धकेलने वाले लोगों के पक्ष में होते हैं І आपको जगतसिंहपुर उडीसा में अपनी जमीन बचाने के लिए गर्म रेत पर लेटे हुए औरतें व बच्चे दिखाई नहीं देते? उनके लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ता अभय साहू को जमीन छीनने वाले कंपनी मालिकों के आदेश पर सरकार द्वारा गिरफ्तारी आपको दिखाई नहीं देती?

आपकी अदालत में गोम्पाड गांव में सरकारी सुरक्षाबलों द्वारा तलवारों से काट डाले गये सोलह आदिवासियों का मुकदमा पिछले दो साल से घिसट रहा हैІ इस अदालत में उन आदिवासियों को लाते समय मुझे एक नक्सलवादी नेता ने चुनौती दी थी और कहा था कि इन आदिवासियों की हत्या करने वाले पुलिसवालों को अगर तुम सजा दिलवा दोगे तो मैं बंदूक छोड़ दूँगाІ

लेकिन मैं हार गयाІ इस अदालत में आने के सजा के तौर पर पुलिस ने उन आदिवासियों के परिवारों का अपहरण कर लिया और वे लोग आज भी पुलिस की अवैध हिरासत में हैं І आपने दोषियों को अब तक सजा न देकर इस देश की सरकार को नहीं जिताया, आपने मुझे चुनौती देने वाले उस नक्सलवादी को जीता दियाІ अब मैं किस मुंह से उस नक्सलवादी के सामने इस देश के महान लोकतंत्र और निष्पक्ष न्यायतंत्र की डींगे हांक सकता हूँ? और उसके बन्दूक उठाने को गलत ठहरा पाऊँगा ?

अगर इस देश में तानाशाही होती तो हमें संतोष होता, हम उस तानाशाही के खिलाफ लड़ रहे होते, परन्तु हमसे कहा गया कि देश में लोकतंत्र है ! परन्तु इस तंत्र की प्रत्येक संस्था, विधायिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका मिलकर करोडों लोगों के विरुद्ध और कुछ धनपशुओं के पक्ष में पूरी बेशर्मी के साथ कार्य कर रहे हैंІ इसे हम लोकतंत्र नहीं लोकतंत्र का ढोंग कहेंगे और अब हम लोकतन्त्र के नाम पर इस ढोंगतंत्र को एक दिन के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं І

आज मैं प्रण करता हूँ कि आज के बाद किसी गरीब का मुकदमा लेकर आपकी अदालत नहीं आऊंगाІ अब मैं जनता के बीच जाऊंगा और जनता को भड़काऊगा कि वह इस ढोंगतंत्र पर हमला करके इसे नष्ट कर दें ताकि सच्चे लोकतन्त्र की ईमारत खड़ी करने के लिए स्थान बनाया जा सकेІ

अगर आप इस लड़की को इसलिए न्याय नहीं दे पा रहे हैं कि उससे सरकार नाराज हो जाएगी और उससे आपकी तरक्की रुक जायेगी І तो ज़रा इतिहास पर नजर डालिए ! इतिहास गलत फैसला देने वाले न्यायाधीशों को कोई स्थान नहीं देता І सुकरात को सत्य बोलने के अपराध की सजा देने वाले न्यायाधीश का नाम कितने लोगों को याद है?

जीसस को चोरों के साथ सूली पर कीलों के साथ ठोक देने वाले जज को आज कौन जानता है? आपके इस अन्याय के बाद सोनी सोरी इतिहास में अमर हो जायेगी और इतिहास आपको अपनी किताब में आपका नाम लिखने के लिए एक छोटा सा कोना भी प्रदान नहीं करेगा І

हाँ अगर आप संविधान की सच्ची भावना के अनुरूप इस कमजोर, अकेली आदिवासी महिला को न्याय देते हैं तो सत्ताधीश भले ही आपको तरक्की न दें लेकिन आप अपनी नजरों में, अपनी परिवार के नजरों में और इस देश के नजरों में बहुत तरक्की पा जायेंगेІ

अगर आप इस पत्र को लिखने के बाद मुझे गिरफ्तार करते हैं तो मुझे गिरफ्तार होने का जरा भी दुःख नहीं होगा क्योंकि उसके बाद मैं कम से कम अपनी दोनों बेटियों से आँख मिलाकर बात तो कर पाउँगा,और कह पाउँगा कि मैं सोनी सोरी दीदी के साथ होनेवाले अत्याचारों के समय डर के कारण चुप नहीं रहा, और मैंने वही किया जो एक पिता को अपनी बेटी के अपमान के बाद करना चाहिए थाІ (जनज्वार ब्लाग पर प्रकाशित , यह ब्लाग मुसाफ़िर बैठा का है , आदमी अच्छे हैं लेकिन जातिवाद से ज्यादा प्रभावित है और हर मामले को दलित चश्में से देखने के आदि हैं , मेरा इनके साथ इस मुद्दे पर विरोध भी रहा है हालांकि जब बिहार सरकार ने इन्हें बर्खास्त किया तो मैने बिहार सरकार के कदम के  खिलाफ़ सांध्य दैनिक अबतक बिहार , जिसका मैं कार्यकारी संपादक था , लिखा था )

अब हम घटना के बारे में बताते हैं ; बिहार मीडिया

सोनी सोडी जो पैंतीस वर्ष की एक स्कुल टीचर है, उन्हें चार अक्टूबर २०११ को दिल्ली  से  तथा उनके २५ वर्षीय भतीजे लिंगाराम कडोपी को उनके गांव समेली, डांटेवाडा , छतीसगढ से ९ सितंबर को गिरफ़्तार किया गया । इन दोनो पर नक्सलवादियों को मदद पहुंचाने का अभियोग था । उन अभियोगों में से एक यह भी था कि इन दोनो ने इस्सार नामक एक माइनिंग कंपनी से १५ लाख रुपये वसूल कर नक्सलवादियों तक पहुंचाया ।

पहले भी लिंगाराम को वर्ष २००९ में विशेष पुलिस दल में भर्ती हो जाने के लिये बाध्य करने के लिये ४५ दिन तक पुलिस हिरासत में रखा गया था और जब न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल हुई तो छोडा गया .

सोनी सोडी ने वनवासी चेतना आश्रम नाम के एक गांधीवादी संस्था से प्रशिक्षण प्राप्त किया है लेकिन छ्तीसगढ में पुलिस बलों द्वारा की जा रही हिंसा की यह विरोधी रहीं हैं , साथ हीं साथ नक्सलवादियों के द्वारा हो रही हिंसा का भी इसने विरोध किया है । सोनी के पति  माओवादियों को मदद पहुचाने के नाम पर जेल में हैं वहीं इनके पिता के पैर में नक्सलवादियों ने जून २०११ में गोली मार दी थी .

अपने भतीजे की गिरफ़्तारी का विरोध करने और कानून मदद के उद्देश्य से सोनी , अपने तीन बच्चों को अपने रिश्तेदारों के पास छोडकर किसी तरह से जंगल और पहाड के रास्ते एक हफ़्ते में दिल्ली जहाम दिल्ली और छतीसगढ पुलिस ने उसे एक बस स्टैंड से गिरफ़्तार किया।

छ्तीसगढ भेजे जाने के खिलाफ़ सोनी ने न्यायालय में आवेदन दिया था लेकिन न्यायालय ने उस आवेदन को खारिज कर दिया तथा दो दिन के ट्रंजीट रिमांड पर उसे छतीसगढ महिला पुलिसकर्मियों के साथ ब्जेजा गया जहां सोनी से गहन पुछताछ हुई । १० अक्टूबर को सोनी को दातेंवाडा के एक अस्पताल में चोट की शिकायत पर भर्ती कराया गया । सोनी ने अभियोग लगाया कि उसे मानसिक रुप से प्रताडित किया गया है और वह बात में अपने चोट के बारे में डिटेल्स रुप से बतायेंगी । सोनी को बगल के जगदलपुर केअस्पताल में भेजने का आदेश हुआ तथा उसके रिमांद की अवधि १७ अक्टूबर तक बढा दी गई । इलाज के बाद से सोनी जेल मे है ।

सोनी की तलाशी के क्रम में पिपुल्स यूनियन आफ़ सिविल लिबर्टी की राष्ट्रीय सचिव कवीता श्रीवास्तव के जयपुर निवास पर छापेमारी करके पुलिस ने उनके परिवारवालों को भी प्रताडित किया ।

कविता ने इस वर्ष मार्च में माओवादियों के द्वारा बंधक बनाये गये पांच पुलिस अधिकारियों को छुडाने के लिये पहल की थी ।

सोनी ने अपने परिवार को लिखे गये पत्रों में अभियोग लगाया था कि उसे छतीसगढ के एस पी अमीत गर्ग  की उपस्थिति में आठ और नौ अक्टूबर की रात्री में उठाकर के नंगे करके एलेक्ट्रिक शाक लगाया गया । गुप्तांग में पत्थर डालने का भी अभियोग लगा है । मामला जब उच्चतम न्यायालय तक गया तो कलकता में मेडिकल जांच का आदेश हुआ । मेडिकल जांच में गुप्तांग में पत्थर पाये गयें । अब यह देखना है कि न्यायालय क्या करती है । कल सुनवाई के बाद न्यायालय ने सोनी को छ्तीसगढ जेल में रखने का आदेश दिया तथा छ्तीसगढ सरकार को जवाब देने के लिये ४५ दिन की मोहलत दी । उपर का लेख एक लेखक हिमांशु का लिखा हुआ है । तथा जनज्वार ब्लाग पर प्रकाशित हुआ है ।


A reporter's account of Soni Sodi, arrested for being a 'hard-core Naxal'
Sameli, Chhattisgarh: I do not know whether Soni Sodi, arrested by the Delhi Police with remarkable alacrity this week, was actually a Maoist or even a Maoist sympathiser. She, the Chhattisgarh Police claims, was allegedly channeling protection money to the Maoists from the corporate giant Eassar.

I had met Soni Sodi at her home in Samali near the Chhattisgarh - Andhra border. It is virtually the line of control where the writ of the state ends and that of the Maoists' begins.

The meeting sticks in my mind for two reasons - that day India was playing Sri Lanka in the Cricket World Cup finals and Hridayesh Joshi, my colleague from NDTV India couldn't stop cursing me for having chosen such a bad time to meet the Maoists. Secondly, April 6, 2010 was just a few days away - this would be the first anniversary of the tragic massacre of 76 jawans at Chintalnar by the Maoists in a single encounter. We were hoping to interview the Maoist commander who had led the strike.

Our over ground contact had indicated to us that we should be reach Palnad by 8 am after which we would be guided to our destination. After several near-disasters including being questioned by a stray police patrol as to what we were doing in that area - it is easy to make out who is a local and who isn't - we did manage to meet up with our guide who identified himself as Kopa.



An hour into the straight road to Sameli from Palnad, our guide Kopa announced that we were now safe and that the police rarely ventured that far. The Koya Commandos - the Special Task Force of the Chhattisgarh Police - he said had been seen in the recent past. But the Koyas, he said, came only at night. It was mid-afternoon and Kopa's point was that we were out of reach of the police and safe for the moment.

Another half hour through the bumpy road showed us deep trenches had been cut in at least three places so that land mines could be laid at short notice.

And then we reached Sameli and were taken straight to Soni Sodi's house. Although I am a television reporter and am expected to barge into offices and houses with or without the permission of people who occupy them, I confess I am not good at it and have no intentions of honing these skills. Hesitantly, I asked Soni whether we - Hridayesh Joishi, my colleague from NDTV India, Xavier Thomas our camera person and I could come in. Even before Soni could answer, Kopa said "Dada ne bola hain bhiayalog yeanhi rahenga aaj raat." (Dada has said these people will stay here tonight.) Soni got us some water and never uttered a word.

The men in the Maoist cadre are referred to as "Dada" and the woman cadre as "Didi" by the locals. About an hour later during which Soni quietly cooked for us, Kopa left to inform the Maoist camp that we had arrived. Almost immediately, Soni became more relaxed, the quiet tension in the air lifted slowly.

She told us how her father had been beaten up and attacked by Maoists. She said her husband Anil Bhutana had been wrongly charged and locked up by the Chhattisgarh police. Bhutana, the Chhattisgarh police say, was part of the Maoist group that tried to kill local politician Avdesh Gautam. Soni said the police rarely brought him to court for hearings. Bhutana's bail was pending for months at the local district court, she said. "Either the judge is absent or had too many cases to hear, the bail plea hasn't been heard even once in the last six months" she claimed.

She also told us about how a relative of hers - who ferried villagers from the local market to nearby villages in two jeeps that he owned - was constantly being pressured by the Maoists to fetch supplies and ferry cadres around. She said that she didn't keep a telephone because the Maoists suspected villagers with phones of leaking information to the police. "If the police were to pass by, the Maoist look-up the people who have telephones first," she said.

She also told us about how women Maoist cadres are sterilised because the party says so. And, also how villagers including her and her daughter have to be present at party meetings every now and then at short notices and carry out orders and tasks as asked. Nonetheless, the police, she said, expected them to not only pass on information about Maoist movements but also oppose them.

Sameli is a typical tribal village with about 30 houses at the most. People depend on forest produce like Mouha. It had a PDS outlet but had to be closed because the state couldn't protect it from the Maoists. Chintalnar, where 76 CRPF jawans were killed in 2009 is hardly half an hour away through the forest that adjoins Sameli. And, seven kilometres down Sameli is Jagargunda. It has a Salva Judum Camp - one of the few existing today. The entire village of Jagurgunda stays behind a concertina-wire fence with gun-mounted guard posts at regular intervals. A road link to Jagargunda is non-existent. Supplies - from rice to fuel - are airlifted every three to six months. In short it is a state-controlled island in Maoist territory.

As night fell, the Sangam members - the People's Militia in Maoist terminology - descended. Those who constitute the Sangam are worst-trained both in terms of ideology and warfare but are known for their brutal methods of dealing with people. Earlier, about five years ago, they used to be armed with bows and arrows and sickles. Now they mainly carry locally made bolt-action rifles and country-made guns. They also form the first ring of defence in Maoist-liberated areas.

Soni's chatty mood vanished. She kept ordering her daughter to hurry with the food that was being cooked for the Sangam members and us. The Sangam members got busy checking our equipment and our authenticity. Some from the group were sent to watch the road to make sure that a police party wasn't following us.

After dinner, we were taken to another house. There, on a battery-powered television set, we watched India beat Sri Lanka with some of the Sangam members standing guard over us. For sure they did clap and shout when India took the last Sri Lankan wicket. Before dawn, Soni was back with a kettle of tea for all of us. She apologised that she didn't have any sugar to go with it.

By 4 am, we started our trek inside the forest with Soni and her daughter in tow. She too had been summoned to the Maoist camp. At the camp we met the local commander who claimed that he had led the Chintalnar strike the year before. He identified himself as Comrade Badru. After our interview was done, Soni was called aside. I do not know what instructions or orders were passed on to her. On our way back, she asked us whether we could ask someone in Delhi to ensure that her husband in produced in the court on every hearing and whether the Chhattisgarh police could be asked to argue the bail plea at least? We did pass on the message to the Chhattisgarh Police. But the Chhattisgarh Police was more interested in knowing how we had reached the Maoist camp.                   

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