गीता का उपदेश खतरनाक है
गीता का उपदेश खतरनाक है
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अभी रुस की एक अदालत में भारत के ग्रंथ गीता को बैन करने के लिये मुकदमा चल रहा है । बैन करने के लिये जो कारण बताया गया है , वह है इसका आतंक को बढावा देना । देशभर में और यहांतक संसद में भी इसके विरोध में आवाज उठ रही है । ऐसा लगता है कि रुस में गीता के बैन होते हीं कयामत आ जायेगी । गीता की आलोचना बहुत पहले से हो रही है । रुस में चल रहे इस मुकदमें के विरोध में वैसे लोग सबसे आगे हैं जिन्होने कभी गीता को पढा भी नही है ।
मैने भी गीता नही पढी थी । मैं धर्म में आस्था नही रखता । मेरा मानना है कि दुनिया के सभी धर्म मानव – मानव के बीच भेद पैदा करने और एक संप्रदाय को दुसरे संप्रदाय से लडाने का कार्य करते हैं। हालांकि धार्मिक न होने का अर्थ यह नही कि धर्म का विरोधी । मैं , इश्वर का अस्तित्व है या नही है , बताने के स्थिति में नही हूं , इसलिये न तो धर्म को मानता हूं और न हीं इश्वर के अस्तित्व से ईंकार करता हूं।
सर्वप्रथम अपने पिता की मर्त्यु के समय मैने गीता का पाठ किया । मेरे पिता जी की मर्त्यु होने के बाद मुझे हीं किर्या क्र्म करना था । मैं अपने पिताजी के बहुत नजदीक था। उन्हें कर्मपुरुष मानता हूं । मैने नगर निगम के सफ़ाई कर्मचारियों की हडताल के दरम्यान , अपने पिता को सडक पर झाडू लगाते देखा है । सुबह चार बजे से छह बजे तक ्जितनी दुरी तक संभंव था , वे झाडू लगाते थें, मैं उस समय नौजवान था , मुझे अपने पिता को झाडू लगाते देखकर शर्मिंदगी महसूस होती थी । बडे होने के बाद समझ पाया कि यह उनका सफ़ाई के प्रति रुझान और शायद हडताल के प्रतिकार का अपना तरीका था।
घर के सभी लोगों को लगता था , कैसे मैं मर्त्यु के बाद सारे कर्म करुंगा । एक दिन भी व्रत न करनेवाला और दुसरों की नजर में धर्मविरोधी । मैं धार्मिक न था और न हूं , लेकिन दुसरे के विश्वास का सम्मान करता हूं। मैनें क्रिया कर्म को धार्मिक आस्था के साथ करने का निश्चय किया क्योंकि वह मुझे अपने पिता की धार्मिक प्रतिबद्धता के सम्मान के लिये करना था । एक समय खाना , नमक का उपयोग खाने में न करना , लकडी की चौकी पर सोना, दोनो समय आत्मा के लिये टंगे हुये घंटे में पानी देना। परिवार वालों ने कहा , आप उतरन दुसरे को देकर अपना काम काज कर सकते हैं , मैने मना कर दिया । एक समय खाना , वह भी नमक के बिना । मुझे दो दिन के अंदर हीं खाने में स्वाद महसूस होने लगा । कुछ लोगों ने सलाह दी सेंधा नमक का उपयोग किया जा सकता है , मैने उसकी जरुरत नही महसूस की । दो किताबों का भी पाठ किया जाता है । एक गीता , दुसरा गरुड पुराण सुबह शाम गीता पढने लगा । पंडित जी से गरुड पुराण सुनने लगा ।
गीता को पढने की शुरुआत करते समय मुझे लगा था , यह मेरे लिये एक अदभुत अनुभव होगा । गांधी तक गीता का पाठ करते थें।
पढ्ने के बाद गीता के शब्द शोषण के हथियार नजर आयें
अपना काम करते जाओ , फ़ल की बिना परवाह किये ।
यह तो यथास्थितिवादी वाली बात थी । नर्क और स्वर्ग की कल्पना की तरह । जिंदगी भर शराब, पर स्त्री गमन, जुआ से दूर रहो , स्वर्ग मिलेगा , जहां कोई काम करने की जरुरत नही । जमकर मदिरा का पान करो, कन्याओ का आंनद उठाओ ।
असमानता से उपजे जन आक्रोश को दबाये रखने की धार्मिक व्यवस्था । यही बात गीता में थी ।
गीता के श्लोक हिंसा को न्यायोचित ठहरानेवाले और वर्ग विभेदकारक थें। राज्य में हिस्सा न मिला तो अपने परिजनो को मारने में मत हिचको , समझ लो , वे तो पहले से हीं मरे हुयें हैं। देखो मेरे मुंह में।
एक तरफ़ , एक राजा को राज्य में हिस्सा न मिलने पर युद्ध करने का उपदेश , दुसरी तरफ़ वंचितों के लिये बिना फ़ल के कर्म करते रहने का पाठ । यह विरोधाभाष वर्ग विभेद का चित्रण करता था ।
उसी तरह गरुड पुराण था , अपने स्वजन की मौत के बाद , उनकी आत्मा की शांति के लिये अपना सबकुछ दान कर दो । गाय के सिंग , खुर सब सोने का बनाकर दान करो और हमेशा दान करते रहो ।
मुझे दोनो ग्रंथ शोषण को स्थापित करने और धार्मिक मान्यता प्रदान करने वाले लगें। हालांकि धर्माचार्यों से लेकर गांधीवादियों तक सब गीता का पाठ करते हैं , उसे महान ग्रंथ बताते हैं । विचारों के निर्माण में बाह्य तत्वों का सबसे ज्यादा असर रहता है । मौलिक विचार बहुत कठिन है । शायद यह भी एक कारण है , इनलोगों के द्वारा गीता को महान ग्रंथ बताने का ।
चर्चा के दौरान कई बार गीता के पाठों को अपने तरीके से समझाने का प्रयास लोगों ने किया ।
चावल का स्वाद खाने वाले को बताने की जरुरत नही । वह खाते हीं समझ जाता है ।
रुस में चल रहे मुकदमे का विरोध करने वालों को चाहिये पहले गीता को पढें ।
टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें
http://drambedkarbooks.files.wordpress.com/2009/03/thoo_brism_printable.pdf में गीता पर एक अध्याय देखिए।
ReplyDeletehttp://drambedkarbooks.files.wordpress.com/2009/03/truths-about-geeta.pdf
ReplyDeleteआपने जो लिंक दिया है , वह वस्तुत: हिंदु धर्म के खिलाफ़ बौद्ध धर्म का प्रचार है । मैने लिखा है , धर्म हमेशा तोडना सिखाता है और वह लेख एक अच्छा उदाहरण है । बौद्ध धर्म भी उन्हीं बुराइयों से ग्रसित है। वहां भी हिनयान पद्धति जादू टोना का हीं रुप है । अंबेदकर एक अच्छे व्यक्ति थें , दिक्कत तब हुई जब उन्हें राजनीतिक सफ़लता नही हासिल हुई , दो दो चुनावों में उनकी जमानत जप्त हो गई , हार ने उनके अंदर पूर्वाग्रह पैदा कर दिया । सब चीजों को अलग नजरिये यानी जाति और धर्म से जोडकर देखने लगे , बजाय हिंदु धर्म की बुराइयों को दूर करने के उन्होनें धर्म परिवर्तन का आसान सा रास्ता चुना , अपनी मर्त्यु के मात्र चालीस दिन पहले अंबेदकर ने बौद्ध धर्म अंगीकार किया। बौद्ध धर्म की जैसी व्याख्या अंबेदकर ने की है , उसे समझना कठिन है । एक शांति के धर्म को झगडे की जड बना दिया । नव बौद्ध धार्मिक कम और राजनितिक ज्यादा होते हैं । यही कारण रहा है कि इनका दुनिया के अन्य देशों के बौद्ध धर्मालवंवियों से कभी नही बनी। भीमराव सकपाल को अंबेदकर नाम एक ब्राह्मण शिक्षक ने दिया था । और बुद्ध के मर्त्यु के बाद उनके लाश के लिये हो रही मारपीट को एक ब्राह्मण ने हीं रोका था । खैर ये लोग अतिवादी हैं, दुर्भावना से ग्रसित होकर कभी भी कोई आलोचना नही करनी चाहिये । दुर्भाग्य से अंबेदकरवादी वही करते हैं ।
ReplyDeleteआज यहाँ आया तो देखा आपने कुछ कहा है। आपकी बातों से सहमत हूँ। यहाँ बस गीता की व्याख्या देखने के लिए लिंक दिया था। वरना अम्बेदकरवादी लोगों से हमें भी परेशानी होती है। जवाब मेल पर भी भेज देंगे तो पता चल जाएगा।
ReplyDeleteI had a good laugh to read your article.
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