भारत के सांसदो ने बेचा अपनी बेटियों को


भारत के सांसदो ने बेचा अपनी बेटियों को


हिजडे टीवी वालों ने और न हीं अखबारों ने उठाया इस मामले  को
किसी भी टीवी या अखबार ने नही दी कोई रिपोर्ट

कल लोकपाल के लिये हुई वोटिंग में सबसे गलत जो बात हुई वह थी , कारपोरेट सेक्टर को लोकपाल के अंदर लाने के लिये लाये गये संशोधन प्रस्ताव का गिरना।  मुझे न तो अन्ना से मतलब है और न हीं कांग्रेस से या भाजपा सहित अन्य दलों से , लेकिन संसद में लोकपाल के चर्चा के दौरान जो हुआ , उसके लिये देश न तो कांग्रेस को माफ़ करेगा और न अन्ना को । एक बात सबको ्पता है । पूंजीवाद के आगमान के साथ हीं सरकारी संस्थाओं की जगह प्रायवेट सं्स्थाओं ने ले ली । कारपोरेट घराने भ्रष्टाचार की जड हैं। चाहे वह टूजी घोटाला हो या कामन वेल्थ , इन सभी घोटालों के पिछे कारपोरेट घरानो का हाथ है । एक संशोधन आया था शायद वह दुरस्वामी का था , मुझे नाम याद नहीं । वह संशोधन पास नही हुआ । उस संशोधन में कारपोरेट घराने और मीडिया को लोकपाल के दायरे में लाने की बात थी । सीवीसी ने भी कारपोरेट घरानो को लोकपाल के दायरे में लाने की वकालत की थी । जिस तरह से वह संशोधन गिरा , मुझे लगा इन सांसदो को अगर कोई गोली भी मारे तो अफ़सोस करने की जरुरत नही है । ये साले देश के गद्दार है । यह ठिक है कि अन्ना चौकडी का लोकपाल प्रजातंत्र के खिलाफ़ था , संविधान की मूल भावना के खिलाफ़ था लेकिन इन सांसदो को यह तो बताना चाहिये कि कारपोरेट घरानों को लोकपाल के दायरे में लाने से कौन सी संवैधानिक अचदन पैदा होती । आज बहुत दुखी हूं। मैने देखा , मेरे देश की संसद और सांसद अपनी बेटियों को कारपोरेट घरानो के मालिक मुकेश , अनिल , टाटा, नारयन मुर्ति के बिस्तर पर भेजने के लिये बेचैन थें। मुझे वह सोनिया गांधी दिखी जो अपनी साडी उठाकर कारपोरेट घरानो को बुला रही थी । मुझे वह सुषमा स्वराज दिखी जो कारपोरेट घरानो का बिस्तर गर्म करने के लिये तैयार बैठी थी । मैं भी एक लडाई लड रहा हूं भ्रष्टाचार के खिलाफ़ । मैं अन्ना नही हूं लेकिन अन्ना जैसे से ज्यादा इमानदार हूं । अन्ना चौकडी ने भी इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नही व्यक्त की , क्योंकि वह भी कपडे खोलकर कारपोरेट घरानों के सामने खडी है । मैं यह लेख मनमोहन नामक उस नपुंसक को भी भेज रहा हूं जिसने कारपोरेट घरानो को बचाने केलिये सांसदो को हिजडा बनाया । अन्ना जैसे की ताकत भीड हो सकती है , मेरी ताकत मेरा अत्मबल है ।


Bring corporates under Lokpal to check graft, says CVC

New Delhi: As the Lokpal debate rages, the Central Vigilance Commission feels corporates should be brought under the purview of the proposed anti-corruption bill to check graft effectively.

It also favours that corruption in higher levels of bureaucracy and among political executives should be dealt with by the Lokpal provided there is a proper demarcation of work to avoid overlapping of powers with the CVC.

"Lokpal should cover corruption in higher bureaucracy and among political executives. There may also be a provision, as in UK bribery law, where a bribe giver is punished. We are also not against bringing corporates under the purview of Lokpal," Central Vigilance Commissioner Pradeep Kumar said in an interview.

At present CVC has no power to check corruption in private firms. However, the Commission refers cases of criminal conspiracy and corruption by government officials and private persons to the CBI.

"Lokpal may investigate cases of corruption involving political executives (ministers). In case they are found involved in wrong doings then action against them should be taken as per the law," he said.

Kumar, who took over the reins of country's top anti-graft body in July this year, cautioned that there should not be complexity in exercising powers by Lokpal to avoid delay in checking corruption.

"All civil servants are governed by departmental punishment rules. The CVC, in some cases, may impose penalty directly while it has to seek sanction for prosecution against senior officials. The Lokpal may look into these aspects (and simplify the process)," he said.

(Agencies)


टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

  1. शब्द अधिक कड़े हो गये हैं। मुकद्दमा चल सकता है! ( हास्य )

    ReplyDelete
  2. हां वाकई शब्द अधिक कडे हो गये हैं , मुझे ऐसे शब्दों के उपयोग से परहेज करना चाहिये लेकिन जब बात सही हो और आक्रोश पैदा हो तब इस तरह के हीं शब्दों का इस्तेमाल लोग करते हैं। रह गई बेटियों को सौपने या सोनिया -सुषमा के संबध में लिखी गई बात तो वह मुहावरे के रुप में है । मुकदमे की चिंता बहुत पहले त्याग चुका हूं ।

    ReplyDelete

Post a Comment

टिपण्णी के लिये धन्यवाद

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

भडास मीडिया के संपादक यशवंत गिरफ़्तार: टीवी चैनलों के साथ धर्मयुद्ध की शुरुआत