चैनलों के साथ इंटरनेट को भी पीसीआई के दायरे में लाना चाहते हैं काटजू


चैनलों के साथ इंटरनेट को भी पीसीआई के दायरे में लाना चाहते हैं काटजू

नई दिल्ली। भारतीय प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने नियामक संस्था को और अधिक अधिकार दिए जाने और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट को भी इसके दायरे में शामिल किए जाने पर जोर दिया है। इसके लिए उन्होंने संसद में एक विधेयक पेश करने का सुझाव दिया है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजी एक चिट्ठी में काटजू ने कहा कि कानून की धारा 14 (1) के तहत प्रेस काउंसिल को मिले अधिकार के तहत वह अखबार, न्यूज एजेंसी, एडिटर या पत्रकार की आलोचना या निंदा कर सकती है या चेतावनी दी सकती है। यह चिट्ठी सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक हुआ है। इस चिट्ठी में काटजू ने कहा, ' अनुभवों से साफ हुआ है कि सिर्फ चेतावनी, निंदा या आलोचना से सामान्य तौर पर संबंधित अखबार, न्यूज एजेंसी या एडिटर या पत्रकार पर कोई असर नहीं होता और उनमें इसकी अनदेखी करने का भाव रहता है।'

यह बयान  है माननीय काटजू महोदय का । श्रीमान चाहते हैं कि अभिव्यक्ति  के  हर माध्यम पर इनका नियंत्रण हो । इनको यह लगता है कि इंटरनेट पर अगर नियंत्रण नही रहा तो देश के सभी तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों का अपमान नेटवाले करते रहेंगें और ये कुछ नहीं कर पायेंगें। काटजू साहब उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज ्हैं। काटजू या अन्य कोई भी न्यायाधिश यह दावा नहीं कर सकतें कि उन्होने अपना कार्य ठीक से किया है । देश की जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों में से आधे निर्दोष है ।  इस तरह के कैदियों में बहुत सारे वैसे भी होंगें जिनकी सजा बहाल रखने का फ़ैसला काटजू महोदय ने दिया होगा। माननयीय काटजू महोदय , नेट पर मेरे जैसे वही लोग है जो निर्दोष लोगों को सजा देने वालों के खिलाफ़ बोलते हैं। अपने सतही कानून का हवाला देकर आप और आप जैसे कानूनविदों की गलत हरकत के खिलाफ़ आवाज उठानेवालों की आवाज दबाने का प्रयास बंद कर दें । आपको अपमान के अलावा कुछ नहीं मिलेगा , आपकी हैसियत कुछ माह या साल की सजा देने भर की है जिसकी हम प्रवाह नही करते । आपको हम अपने पोस्ट की समीक्षा का अधिकार नहीं दे सकते न हीं आप नैतिक रुप से हमारे पोस्ट की समीक्षा के अधिकारी हैं । जब आप जज के रुप में निर्दोष को सजा देने के अपने फ़ैसले की समीक्षा नही कर सकते तो हमारी समीक्षा की बात कहने की नैतिकता कहां है आपमें । बेहतर होगा वेतन लें , आंनद उठायें  और इस गफ़लत में रहना छोद दें कि आप न्याय करने की योग्यता रखते हैं ।

मदन  तिवारी : संपादक बिहार मीडिया





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