भडास को आर्थिक मदद चाहिये और सुशील को काम

bhadas4media.com  एक पोर्टल है जिसे यशवंत सिंह चलाते हैं । कुछ साल पहले इसको शुरु किया था इस उद्देश्य के साथ कि पत्रकारों के लिये एक कोना हो जहां वह अपनी भडास निकाल सकें चाहे वह मालिकों के खिलाफ़ हो या अपने हीं पत्रकार मित्रो के। पोर्टल अच्छा चलता है । रेटिंग भी ठिक है । उधर एक सुशील गंगवार हैं जो पहले दिल्ली में रहकर पत्रकारिता करते थें लेकिन पत्नी का तबादला मुंबई हो गया तो शिफ़्ट कर गयें। सुशील गंगवार भी आजकल आर्थिक परेशानी से गुजर रहे हैं । कभी उन्होने यशवंत को कहा था कि वे एक न्यूज पोर्टल शुरु कर रहे हैं , उसका न्यूज भडास पर लगा दे । यशवंत ने कहा भैया विग्यापन है यह , पांच हजार लगेंगें , तुम कमाओगे और मैं फ़ोकट में प्रचार करुंगा । सुशील भाई के पास भी मालपानी तो है नहीं , पत्नी के पैसे से खा पी रहे हैं वैसे पीते नहीं हैं । उनको बुरा लग गया , लिखमारा एक लेख यशवंत पर , मुझे फ़ेसबुक पर कहा मैने यशवंत पर लिखा है , यशवंत ने उस लेख को अपने भडास पर दे मारा । दोनो में शुरु हो गया गैंगवार , कुछ पत्रकार यशवंत की तरफ़ से कुछ सुशील की ओर से। आज यशवंत ने अपने भडास पर एक लेख लिखा है जिसके माध्यम से आर्थिक मदद की मांग की है जिससे भडास चल सके। उस लेख में सुशील के हमले का जवाब भी है ।  बहुत कम समय में अच्छा नाम कमाया है यशवंत ने । सुशील भाई को लगता है नाम है तो माल भी होगा। मैने देखा है । एक किराये का फ़्लैट, जहां दिल्ली की सडी हुई गर्मी में रहना मुश्किल है । पैसे का भी वैसा कोई श्रोत नही दिखता । हां कभी - कभी मीडिया हाउसों से या परिचित पत्रकारों से कुछ मिल जाता होगा। ले देकर ठिक ठाक हैं। मेरी नजर में दोनो फ़क्कड हैं । एक थोडा कम दुसरा थोडा ज्यादा । सुशील भाई का आरोप कहांतक सही है कि भडास पर पेड न्यूज छपती है , यह तो वही बता सकते हैं। मुझसे तो नही मांगा । हां थोडा अहंकार आ गया है यशवंत को चाहिये की उससे दुर रहें लेकिन मैं कौन होता हूं सलाह देनेवाला , मुझे गाली सुनने का शौक नहीं। दुश्मनों की तो एक टेढी बात मैं बर्दाश्त नहीं करता लेकिन दोस्तों के सामने कमजोर पड जाता हूं इसलिये दोस्त नहीं बनाता । खैर सुशील को लगता है मैं यशवंत का दोस्त हूं और यशवंत को लगता है सुशील मेरे कहने पर सब कर रहे हैं फ़िर भी मैं  दोनो की इस प्यार भरी लडाई का सिर्फ़ आंनद ले रहा हूं । आप भी मजा लें । और अगर जेब में कुछ मालपानी हो तो भडास को मदद करें । सुशील साइट बहुत सस्ते में बनाते हैं , उनसे साइट बनवाकर उनकी भी मदद आप कर सकते हैं। हालांकि मैने दोनो मे से किसी का पक्ष नही लिया है लेकिन इतना डर तो हैं हीं  कि दोनो सोचेंगे साला डिप्लोमेसी करता है । हां हां हां । आप लोग भी आनंद ले ।

यशवंत का लेख

Details


Published on Wednesday, 14 December 2011 17:41

Written by यशवंत

भड़ास4मीडिया के लिए अब तक दो बार आर्थिक मदद की अपील कर चुका हूं. दोनों पुरानी अपीलों को इन शीर्षकों पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं- (1) एचटी से मुकदमा लड़ने में आपका साथ चाहिए (2) विकीलिक्स और विकीपीडिया का मॉडल बनाम भड़ास4मीडिया की चिंता. इन दोनों अपीलों पर बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन इतने पैसे आ गए थे कि तात्कालिक संकटों से हम लोग उबर गए थे.

और, हमारे संकट कितने भारी होते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि पचास साठ हजार रुपये मिल जाने पर संकट खत्म हो जाते हैं. मतलब, अपन लोग की जरूरतें बहुत सीमित हैं. इन अपीलों के बाद जो कुछ मदद आई थी, उनमें से कुछ एक के बारे में भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित भी किया गया था, जैसे, इन शीर्षकों को क्लिक कर पढ़ें- (1) आपके संघर्ष में हमारी भी 'एक बंद मुट्ठी'! (2) आनंद की तरफ से भड़ास4मीडिया को 11111/- (3) शिबली व विजय की तरफ से हजार-हजार रुपये (4) भड़ास को दो हजार रुपये की भेंट.

इस बार फिर से भड़ास4मीडिया को मदद चाहिए. वजह ये है कि कुछ मीडिया हाउसों ने अपनी तरफ से आर्थिक योगदान देना बंद कर दिया है, इस कारण क्योंकि उनके खिलाफ कुछ खबरें भड़ास पर छप गईं. और, कुछ मीडिया हाउसों ने भड़ास4मीडिया के साथ हुए सालाना समझौते की मियाद पूरी होने के बाद कांट्रैक्ट बढ़ाने में कोई रुचि नहीं दिखाई. इस कारण जो महीने के डेढ़-दो लाख रुपये के खर्च हैं, वो पूरे नहीं हो पा रहे हैं. कुछ समय पहले एक सज्जन ने इस अनुरोध के साथ कि उनका नाम किसी भी रूप में कहीं भी कभी भी न आए, डेढ़ लाख रुपये का डोनेशन भड़ास4मीडिया को दिया था, जिससे फिलहाल इस महीने की गाड़ी चल रही है. असल संकट जनवरी महीने से शुरू होने वाला है.

भड़ास पर हफ्ते भर के लिए लगने वाले वैकेंसी संबंधी विज्ञापनों के एवज में दस से पंद्रह हजार रुपये लिए जाते हैं. इतने पैसे से काम चलने वाला नहीं. पुराने मीडिया हाउसों से कभी विज्ञापन के लिए कभी बात नहीं की गई, बल्कि कुछ जगहों से प्रस्ताव आए भी तो इसलिए इनकार करना पड़ा क्योंकि उसमें संस्थान के खिलाफ न प्रकाशित करने की शर्त निहित थी. नए मीडिया हाउसों में ज्यादातर चोर व चिटफंडिये, ब्लैकमार्केटियर हैं, ब्लैकमनी वाले हैं जिनसे विज्ञापन लेने का मतलब होने लगा है उनकी चोरी संबंधी खबरों को न प्रकाशित करना. तीसरे, अब यह समझ में आ गया है कि अगर आप निष्पक्ष ढंग से किसी पोर्टल, अखबार, मैग्जीन, चैनल का संचालन करते हैं और किसी को ओबलाइज नहीं करते, किसी की खबर नहीं रोकते तो आपको विज्ञापन मिलना मुश्किल है.

ऐसे में एक बड़ा सवाल मेरे सामने भी है कि लगातार आर्थिक संकट में इस भड़ास का संचालन कब तक किया जा सकता है. अभी तक इसलिए कर पाया क्योंकि इसे चलाने को लेकर मेरे अंदर जिद और जुनून था, भागदौड़ करने की उर्जा थी, पर यह सब कुछ कम से कम भड़ास को लेकर तो अब मेरे अंदर नहीं है. एक आदमी कब तक चढ़ जा बेटा शूली पर के अंदाज में शूली पर टंगा रहेगा. अब तक जो किया अपन के मन का पैशन था, घोषित विद्रोह था. पर करते झेलते इससे उब होने लगी है. किसी ने गोली भी नहीं मारी कि निपट जाता. किसी ने जेल भी नहीं भिजवाया कि उसी बहाने से इसे बंद कर पाता. और, लोग दे भी नहीं रहे कि इसे चलाते हुए खुश रह पाता.



---भड़ास4मीडिया का एकाउंट डिटेल---

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हिंदी पट्टी के लोग देने के मामले में हमेशा ही कृपण रहे हैं. यह सिर्फ मानसिकता की वजह से है. सांस्कृतिक व चेतनागत पिछड़ेपन की वजह से है. इनकम टैक्स के छापे के बाद चालीस पचास करोड़ रुपये सरेंडर कर देंगे लेकिन उस पैसे का उसके पहले किसी नेक काम में इस्तेमाल नहीं करेंगे, एक चवन्नी तक नहीं देंगे, भले ही रखे रखे नोट को चूहे खा जाएं. ये चोर मानसिकता है. चोर मानसिकता के लोग सिर्फ चोरी करने के जुगाड़ में रहते हैं, किसी दूसरे पर एक दमड़ी खर्च करने की भूल कभी नहीं करते.

इधर, अपन लोग हैं कि लाख सवा लाख रुपये हाथ में आ गए और अगर कोई पीड़ित परेशान पत्रकार मांगने के लिए आ गया तो बिना यह सोचे कि बंदा वापस करेगा या नहीं, उसे देने में कभी संकोच नहीं किया. इसी कारण अब भी भड़ास4मीडिया के कुल मिलाकर करीब लाख, दो लाख रुपये विभिन्न परेशानहाल पत्रकारों के पास पड़े होंगे. वे लोग जब अपनी बेरोजगारी या आर्थिक दिक्कत से मुक्त होंगे तो स्वयंमेव दे देंगे, ऐसा मानकर मैं चलता हूं और अतीत में लोगों ने ऐसा किया भी है, इसलिए मैं किसी पर शक नहीं करता. और, अगर कोई लौटाता भी नहीं है तो मैं यही सोच लेता हूं कि चलो, इतनी रकम न देने का निर्णय करके उस बंदे ने अपने लिए कुछ भी कभी भी मांगने का मेरा दरवाजा बंद कर लिया है.

बात को ज्यादा लंबा न करके, मूल मुद्दे पर वापस आता हूं. वर्ष 2012 के मार्च आखिर तक की डेडलाइन मैंने तय की है. जनवरी फरवरी और मार्च. इन तीन महीनों में भड़ास का संचालन सिर्फ और सिर्फ पाठकों के पैसे से करने का तय किया है. छोटी, बड़ी सभी तरह की रकम, गुप्त दान, डोनेशन, चंदा, भीख... सब कुछ आमंत्रित हैं. मार्च आखिर में तय करूंगा कि भड़ास4मीडिया का संचालन आगे जारी रखना है या फिर इसे बंद कर पैसे पैदा करने वाला कोई काम करना है, जैसे छोटा-मोटा बिल्डर, प्रापर्टी डीलर बन जाऊं, या गांव पर जाकर आर्गेनिक फार्मिंग में लगूं, या दिली इच्छा के अनुरूप संन्यास लेकर सूफी भड़ासी बैंड का गठन कर गांव गांव घुमूं गाउं मांगूं. बहुत सारे विकल्प हैं. और हर विकल्प में करने के लिए बहुत कुछ है.

रही भड़ास4मीडिया की तो सच कहूं, मीडिया में चोरकटई चिरकुटई की खबर छापते छापते मन भर गया है. जब तक देश की पालिटिक्स पवित्र नहीं होती, मीडिया ऐसे ही गंधाता रहेगा. टीस तब ज्यादा होती है जब लगता है कि उन लोगों के लिए यह सब कुछ कर रहा हूं जिन्हें बदले में कुछ देना कहना नहीं आता. तो ऐसे थैंकलेस लोगों के लिए कब तक लड़ा जा सकता है. अगर यही हाल रहा तो यह सोचकर कि मैंने अपना फर्ज निभा लिया, अपने हिस्से का संघर्ष कर लिया, अब दूसरे लोग आएं गाएं और भड़ास टाइप की कोई चीज बनाकर जंग जारी रखें, मेरी जगह लें, अपनी जगह बनाएं, मैं यहां से निकल लूंगा. यह सब लिखने कहने का आशय यह नहीं कि मैं आपको इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा हूं. दरअसल, बहुत दिनों से मैं कुछ कहना चाह रहा था आप लोगों से, मैं बात करना चाहता था आप लोगों से, सीधे और दो टूक. लेकिन वक्त नहीं मिल रहा था. मैं भी इसे टाल रहा था, यह मानकर कि संभव है, जो कुछ मन में चल रहा है वह प्री-मेच्योर इमोशन्स हों. लेकिन अब मैं कह देना चाहता हूं और सच कहूं तो यही चाहता हूं कि कोई मदद न करे ताकि मार्च के बाद नया कुछ करने की मेरी तमन्ना पूरी हो सके.

वैसे भी मैं किसी चीज से साल दो चार साल में बोर होने लगता हूं. भड़ास4मीडिया से भी बोर होने लगा हूं क्योंकि यहां सिर्फ लड़ते रहना है और हवा पानी पीकर जीते रहना है क्योंकि अगर आपने कुछ ठोस आहार खा लिया तो लोग चले आते हैं बताने कि अरे, आपने तो ठोस आहार खा लिया, कहां से लाए हैं पैसे? पिछले दिनों कुछ एक साथियों ने मुझे चोर, पेड न्यूज वाला, जाने क्या क्या कहा लिखा. उसे भी उतने ही प्यार से छापा जितने प्यार से बाकी सब छापता हूं. मुझे बुरा नहीं लगा, क्योंकि भड़ास उसे निकालने का हक ही नहीं है कि जो खुद अपने खिलाफ आने वाली भड़ास को सेंसर कर दे. तब मैंने कहा था कि उन पर मैं सफाई दूंगा, लिखूंगा, लेकिन अब लगता है कि छोड़ो यार. बुद्धि कम, पूर्वाग्रह ज्यादा वालों की संख्या काफी ज्यादा है और कितनों को कितने तरीके से मैं समझाता रहूंगा कि ये गलत बात है और वो सही बात है.

अगर वे आज तक मुझे और भड़ास को नहीं समझ सके तो आगे भी नहीं समझ पाएंगे और चाहूंगा कि वे ना ही समझें तो बेहतर. अगर उन्हें लगता है कि मैं चोर हूं तो मैं भी कह रहा हूं कि चोर हूं. उन्हें लगता है कि मैं पेड न्यूज करता हूं तो मैं भी कह रहा हूं कि पेड न्यूज करता हूं. मुझे किसी को सफाई नहीं देनी क्योंकि मैंने कभी कोई काम 'लोगों' की परवाह करके नहीं की और न ही 'लोगों' की अनुमति लेकर की, और 'लोगों' का काम होता है कहना. 'लोग' अगर इतने सयाने होते तो दुनिया में समस्याएं नहीं होतीं. चूंकि 'लोग' 'माकानाका साकानाका' टाइप के लोग हैं इसलिए अंधेरगर्दी कायम है हरओर. जिस दिन 'लोग' चेतना के स्तर पर ज्यादा लाजिकल, डेमोक्रेटिक, सेंसेटिव, साहसी और उदात्त हो जाएंगे, उस दिन यकीन मानिए, सब कुछ पटरी पर आने लगेगा. चोर इसलिए हैं क्योंकि इमानदार डरपोक हैं. लुटेरे इसलिए हैं क्योंकि साधु आंख मूंदे हैं.

क्या कह रहा था, क्या कहने लगा. जी, बात आर्थिक संकट की है. मुझे तत्काल डेढ़ लाख रुपयों की जरूरत है. फिलहाल ये पैसे मैंने एक मित्र से उधार ले लिए हैं. जिन दिनों भड़ास शुरू किया था, उन दिनों कार की किश्त के रूप में यहां वहां से जुटाए गए उधार मांगे गए पैसे को मैंने अपने घर चलाने के लिए लगा दिया क्योंकि भड़ास से करीब छह दस महीने तक कुछ नहीं मिला, सिर्फ लगता रहा. और, किसी से यह कहकर तो पैसे नहीं मांग सकता था कि घर में खाने को नहीं है, पैसे दीजिए. अब मांग सकता हूं यह कहकर लेकिन तब इतनी मजबूत मनःस्थिति नहीं थी. तब बहाना बनाता था कि कार की किश्त जमा करनी है, फिलहाल संकट में हूं, बाद में दे दूंगा. दोस्त लोग इस उस शहर के दे देते थे पांच दस बीस हजार. तो वो कार की किश्त करीब डेढ़ लाख बकाया है. फाइनल सेटलमेंट के लिए मैंने मन बना लिया है.

जाहिर है, ये खर्च मेरा निजी नहीं है. और, जो भड़ास का विशाल पाठकवर्ग है वह अगर यह जिम्मेदारी नहीं महसूस करता कि उसका भी योगदान इस पोर्टल के संचालन में होना चाहिए तो फिर मुझे कैसे आप पतित होने से रोक सकते हैं. मैं पतित हो सकता हूं. दलाल बन सकता हूं. लेकिन इस काम के लिए नहीं बनूंगा. अगर बनना होता तो बड़े बड़े अखबारों में ही दलाल के रूप में काम नहीं करता रहता. हां, जब बनना होगा तो मैं पेशा बदलूंगा. मैं दलाली को प्रोफेशन बना लूंगा. राडिया का काम बुरा नहीं था, राडिया ने गलत किया भी नहीं. गलती की बरखा दत्तों ने, गलती की वीर सांघवियों ने. दुर्भाग्य देखिए कि नीरा राडिया ने अपनी कंपनी बंद कर ली और बरखा दत्त को प्रमोशन मिल गया. गजब की उलटबांसी का दौर है. इस उलटबांसी में मुझे नहीं बनना. अगर बरखा दत्त अपना काम ठीक नहीं कर पा रहीं तो उन्हें नीरा राडिया वाले पेशे को अपना लेना चाहिए. अगर मैं अपना काम इमानदारी से नहीं कर रहा तो मैं बिल्डर या लाइजनर या पीआर वाला काम शुरू कर दूंगा और उसे प्रोफेशनली करूंगा.

भड़ास4मीडिया पर आज ही एक कविता प्रकाशित हुई है, नारायण बारेठ की कविता : ''क्या फरक पड़ता है, पेशा कैसा भी हो!''. पढ़िएगा जरूर. हर धंधे की अपनी नैतिकता होती है. एक जल्लाद की अपनी नैतिकता है. टाइम से आदमी को फांसी पर लटका देने की. एक रंडी की अपनी नैतिकता है. एक पत्रकार की अपनी नैतिकता है. लेकिन अगर पत्रकार रहते हुए कोई रंडीपना या जल्लादबाजी दिखाए तो उसे हर हाल में गलत कहा जाना चाहिए.

आखिर में... भड़ास4मीडिया चलाते चलाते मैं अंदर से बहुत बदल गया हूं. हर चीज के प्रति जो उत्सुकता उत्तेजना हुआ करती थी, गहरा अनुराग या प्रचंड घृणा हुआ करती थी, वो सब काफी कुछ खत्म हो गया है. किसी से कभी डरा नहीं और आज भी डरता नहीं, किसी के पास कुछ मांगने जाना नहीं है, किसी का मैं नौकर हूं नहीं, इसलिए मैं कोई बात छुपाता नहीं क्योंकि छुपाते हम तब हैं जब किसी भी प्रकार का किसी से कोई भय आशंका डर हो. मन में जो बुरे या अच्छे भाव हैं, सबको बक देना अपना शगल है. इसलिए अंदर सिवाय पवित्रता के कुछ नहीं है. ऐसे मनोभाव में मेरे लिए कोई भी निर्णय ले लेना बहुत आसान है क्योंकि भड़ास चलाते चलाते बहुत कुछ चलाना जान गया हूं. संतई, व्यापार, संगीत, पर्यटन.... का पूरा आनंद इस भड़ास4मीडिया के माध्यम से उठाया.

मुझे लगने लगा है कि इक्कीसवीं सदी में लोगों को चालीस वर्ष की उम्र में संन्यास शुरू मान लेना चाहिए. नहीं करोगे तो कैंसर या अस्थमा या ब्रेन हैमरेज या हार्ट अटैक से मारे जाओगे. मैं उनके लिए खासतौर पर कह रहा हूं कि जो इमोशनली, इंटेलीजेंटली थोड़े 'सुपरमैन' किस्म के लोग हैं. और ये संन्यास, उस ट्रेडीशनल संन्यास से अलग होना चाहिए जिसमें लोग जंगल वन में जाकर एकांत की धूनी रमाते हैं. यह संन्यास जड़ों की ओर लौटने वाला होना चाहिए. अपने गांवों में जाओ और उसे सजाओ संवारों. दूसरों ते गांवों में जाओ और वहीं खाओ काम करो पेड़ के नीचे सोओ गाओ मछली मारो धान रोपो नदी नहाओ.... भारत भ्रमण करो और खूब समझो, लोगों से खूब इंटरेक्ट करो.

मेरे मन में अब संन्यास फूट रहा है. मुझे यह महसूस हो रहा है. यह इसलिए भी हो रहा है, ऐसा मुझे लगता है कि कहीं कोई कुंठा नहीं है बाहर भीतर. कहीं कोई लालसा या घृणा नहीं है. प्यार करो तो ठीक, न करो तो ठीक. घृणा करो तो ठीक, न करो तो ठीक. सपोर्ट करो तो ठीक, न करो तो ठीक. ऐसी अवस्था डिप्रेसन के चलते भी आती है. और, ऐसी अवस्था मुक्ति के दौरान भी आती है. पर कुछ पेंच हैं जो कायम हैं. और, इसे मैंने खुद कायम कर रखा है. जैसे, कभी मन करता है कि अब मुंबई शिफ्ट हो जाऊं क्योंकि दिल्ली हिप्पोक्रेटों की नगरी है, झूठ ज्यादा बोलते हैं साले यहां, असल बात छिपाए रहते हैं मन में, और मुंबई प्रोफेशनल्स की, बुरी से बुरी बात हो तो भी सीधे सीधे वही बोलेंगे, कोई दुराव छिपाव लाग लपेट नहीं.

कभी लगता है कि छोड़ो भड़ास का मोह और इसे चलाने के लिए धन संचय का काम, निकलो अपनी नगरी, गांव गांव पहाड़ पहाड़ प्रांत प्रांत... और सुनो प्रकृति का संगीत.. देखो असीम आसमान बेहिसाब धरती अनंत जल-जंगल. इस दुविधा से मार्च महीने में उबरूंगा. भड़ास के लिए फिलहाल तीन महीने का एक्सटेंशन दिया है खुद को. और हां, अगर कोई मेरी तरह सोचता है, अगर उसे भी 'निर्वाण' की प्राप्ति होने लगी हो तो बताए, साथ साथ चलेंगे. मुझे गुरु और शिष्य, दोनों की तलाश है.

तीन महीने में मेरी इच्छा है कि भड़ास4मीडिया को आप लोग खुद चलाने लगें. तो आर्थिक जरूरतों के लिए भटकने के काम से मैं मुक्त हो जाऊंगा. भड़ास4मीडिया को चलाने का टेंशन कोई एक आदमी क्यों ले, जबकि यह पोर्टल सिर्फ और सिर्फ पब्लिक काज के लिए संचालित हो रहा है. इस पोर्टल के स्वभाव में पीआरगिरी आ ही नहीं सकता क्योंकि अब यह नेट यूजर हिंदी समाज के लिए जुनून, नशा, आदत, पैशन बन चुका है. ऐसा नशा जो किसी अन्य मीडिया में या किसी अन्य संस्थान या ब्रांड के लिए नहीं दिखता, बिलकुल अलग, अलहदा और जुदा सा जुनून है भड़ास के प्रति लोगों में.

आप सबसे अपील है, सोचें और सामने आएं. मैं इस पोर्टल के मालिकाना हक को भी छोड़ने को तैयार हूं, अगर कोई निवेश करना चाहे तो स्वागत है, कोई इस शर्त पर खरीदना चाहे कि इसके मूल स्वभाव और तेवर से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी तो बेचने के लिए तैयार हूं. सारे विकल्प खुले हैं. अगर सौ दो सौ लोग मिलकर कोआपरेटिव या ट्रस्ट बनाकर चलाना चाहें तो उनका भी स्वागत है.

मतलब, नए प्रयोगों के लिए तैयार हूं और उसकी शुरुआत यह सब लिखकर कर रहा हूं. आपके सुझावों का इंतजार रहेगा. पूरे तीन महीने का वक्त है, कोई भी निर्णय करने के लिए. मैं कोई भी फाइनल फैसला लूंगा तो पहले आपको सूचित कर आपसे राय मशवरा करूंगा फिर उस पर अमल करूंगा, यह मेरा वादा है. हां, लेकिन यह सच है कि भड़ास को आर्थिक मदद देने संबंधी यह मेरी तीसरी और आखिरी अपील है. तीन टिकट, महाविकट. तीन बार समझाना कहना काफी होता है. इसलिए आगे से नहीं.

मेरे इस लिखे से लोगों को दो तीन चीजें क्लीयर हो जानी चाहिए, नंबर एक- भड़ास प्राफिट में या मजे में नहीं है, जैसा कि लोग मानते हैं. इसे नो प्राफिट नो लॉस में बनाए रखा और जो कुछ हम लोग कर खा जी पा रहे हैं, वह भड़ास की वजह से है. नंबर दो, मीडियाकर्मियों के पक्षधर मीडिया पोर्टल्स का संचालन आर्थिक रूप से मुश्किल है, पीआर वाले पोर्टल्स चलते रहेंगे क्योंकि मालिकों की तरफ से उन्हें समय समय पर टुकड़े फेंक दिए जाते हैं (अनुराग बत्रा जिंदाबाद).

नंबर तीन- मार्केट इकोनामी ने पढ़े लिखे वर्ग को भयंकर कनिंग बना दिया है, खासकर हिंदी पट्टी के लोगों को, जो किसी से भी काम निकालने के लिए तत्पर रहते हैं और काम हो जाने के बाद पलटकर भूल से पूछने भी नहीं आते. और, ज्यादातर लोग खुद पीड़ित, याचक, भिखमंगा की मुद्रा बनाए रहते हैं इसलिए वे कभी सोच ही नहीं सकते कि उन्हें भी देने का संस्कार डेवलप करना चाहिए. ऐसे भिखमंगे समाज, संवेदनहीन समाज, थैंकलेस समाज से क्या उम्मीद करना और इनके लिए क्योंकर कुछ करना. इनकी नियति है मरना और कई बार मरने के बाद ही मुक्ति मिलती है, नया कुछ पैदा होता है. बाजार ने अवसरवाद को नैतिक मूल्य बना दिया है. मुश्किल, दुख, ब्रांडिंग में यशवंत और भड़ास याद आए. जहां सुख में आए नहीं कि भड़ास और यशवंत गए भांड़ में. उलटे कुछ लोग प्रवचन देने लगते हैं कि आपको ये करना चाहिए ये नहीं करना चाहिए.

लग सकता है लोगों को ये सब गुस्से में लिखी गई बातें हैं लेकिन जो मैं महसूस कर रहा हूं उसे लिख रहा हूं, भड़ास ही तो है, मानते हुए पढ़कर चल दीजिएगा. भाई दयानंद पांडेय ने भी कल लिखा, अदम गोंडवी के बहाने. इसको पढ़िए- बीमार अदम गोंडवी और फासिस्ट हिंदी लेखक : एक ट्रेजडी कथा. आपको सच में समझ में आ जाएगा कि इस हिंदी पट्टी की दुविधा और पाखंड का सच क्या है. लोग लेने के लिए पागल हैं, पाने के लिए नाक रगड़ रहे हैं, लेकिन कोई देने की बात नहीं कह रहा. भड़ास4मीडिया ने सैकड़ों क्या कई हजार लोगों का किसी न किसी रूप में भला किया होगा लेकिन एकाध को छोड़ दें तो किसी ने पलटकर नहीं पूछा होगा कि बॉस, भड़ास4मीडिया का खर्च चलता कैसे है.

हर बेरोजगार उम्मीद लगाए बैठा है यशवंतजी उसे नौकरी दिला देंगे. जिनकी नौकरी यशवंत जी ने लगवा दी, वे नौकरी मिलने पर भी भूले रहे कि यशवंतजी के संकट क्या हो सकते हैं. उनकी नजर में या तो मैं भगवान समान हूं जिसकी कोई जरूरत नहीं, हवा को शरीर में लेकर फूड में कनवर्ट कर देता हूं और आसमान में गदा उठाए उड़ता रहता हूं या फिर बहुत बड़े दलाल के रूप में हूं जो करोड़ों रुपये बनाए बैठा है और दिखा खुद को ऐसा रहा है कि बड़ा संकट है.

हां, कई बार यह जरूर हुआ है कि अगर किसी को किसी वजह से गरिया दिया तो उसने कलम उठाया और लिखने लगा मेरे खिलाफ. मैंने किसी को फेसबुक पर अपने वाल पर पीआरगिरी लगातार करने के कारण अपने फ्रेंडलिस्ट से आउट कर दिया, ब्लाक कर दिया तो वह खुन्नस में लिखने लगा कि यशवंत पेड न्यूज करता है. बेटा, तुम्हें यशवंत का अंदाजा ही नहीं है कि क्या चीज है. लाखों रुपये ठुकराता रहा हूं और आज भी ठुकराता हूं क्योंकि ये रुपये खरीदने और नीच दिखाने के लिए आफर किए जाते हैं. और, पांच हजार रुपये मुंह खोलकर मांगता हूं क्योंकि वो इमानदारी से मांगता हूं और वाजिब कारणों से मांगता हूं. इस महीन फर्क को तुम नहीं समझ पाओगे तो तुम कभी एक ईमानदार पत्रकार या ईमानदार एंटरप्रिन्योर नहीं बन सकोगे. खैर, हर व्यक्ति की अपनी सीमा होती है, करने और सोचने की. इसे मैं जानता महसूस करता हूं, इसलिए ऐ खुदा, उन्हें माफ कर, वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं. यह बहस बातचीत जारी रहेगी. आपके फीडबैक का इंतजार रहेगा.

जय हो

यशवंत

संस्थापक और संपादक

भड़ास ब्लाग

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम

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सुशील गंगवार का जवाब

क्या भड़ास ४ मीडिया डाट कॉम सकंट के दौर से गुजर रहा है ?



Sushil Gangwar - 09167618866

आज मीडिया के भगवान यशवंत सिंह का लेख भड़ास4मीडिया को अब आप लोग चलाइए, मैं चला चुका पढ़ा तो थोडा परेशान हुआ | मैंने पूरा लेख बड़े आराम और तसल्ली से पढ़ा | क्या भड़ास ४ मीडिया डाट कॉम सकंट के दौर से गुजर रहा है ? फ़ोन पर चिल्लाकर पेड़ न्यूज़ की वसूली करने वाले यशवंत सिंह को क्या हो गया है | फिर मै सोच में पड़ गया | परन्तु मै अपने मीडिया बंधुओ को कभी नहीं भूलता हु मुझे पिछले साल का सीन पूरा याद है |

मैंने कभी लेख खुन्नस में नहीं लिखा ,जो लिखा वह हकीकत थी | किसी ने कहा है अगर भीख - चंदा , मदद मागो तो सलीके से मागो | जब किसी से मदद ली जाती तो अपना अहंकार , क्रोध दूर- दूर तक नजर नहीं आना चाहिए |

मीडिया में एक बहस छिड़ जानी चहिये | पेड़ न्यूज़ को विज्ञापन माना जाये, ताकि पेड़ न्यूज़ करने वाले अपनी दूकानदारी ढंग से चमका सके | मुंबई में एक कहावत बोलते है मूर्ख बनके सबको मूर्ख बनाते रहो और अपना काम चलाते रहो | यह कहावत कुछ पत्रकारों पर सर चढ़के बोलती है |

यशवंत सिंह के पूरे लेख में खुलके नाम नहीं लिखा है मगर भड़ास जमकर निकाली है | देश आजाद हो चुका है हर इन्सान भड़ास निकाल सकता है |

पिछली साल मार्च के महीने में भडासी भाई ने बोला था यार तू तो साईट को बेच बेच कर माल बना रहा है हम चूतिया है जो तेरी न्यूज़ फ्री में लगाते रहे | तू ५०००/- रूपये दे |



अब क्या हुआ जो भड़ास ४ मीडिया को बेचना शुरू कर दिया या लोगो को इमोशनली ब्लैक मेल कर रहे हो | भाई ये पब्लिक है सब जानती है पब्लिक है | अगर दिल करे तो फ़ोन करके फिर से गरिया लेना ? खैर अभी पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त ?

 सुबह के तीन बजे होंगे निंद खुल गइ , नेट पर बैठकर कुछ लिखने की सोच रहा था कि देखा , फ़ेसबुक पर सुशील भी मौजूद हैं । बातें होने लगी , सुशील ने बताया कि उनके लिखे का जवाब यशवंत ने पोस्ट किया है । नीचे मैं अपने और सुशील के बीच हुई बातचीत दे रहा हूं ।

hi
Ram ram ji
kya haal hai
aaj aapke yashwant ji ka jabav aa gaya hai .
humne bhi likh diya boss ko .
इतनी रात तक जागने का मतलब ?
kaam sir ji
abhi mai 11-30 par lot kar aaya tha
bhadas ne apni bhadas aaj nikal di boss
खां से
aapne pada use .
कहां से
Mumbai me se hi ..
नही , क्या लिखा है ?
edar jaoo uski post hamari post mil jayegi .
dekho sir pado .
bada maja aayega . ?
टाईटिल क्या दिया है ?
bhadas 4 media ko ab aap log chaliye mai to chala .. ye bhadasi ne likha hai .
maine uska utter likh diya hai
kya bhadas 4 media sankat ke dour se gujar raha hai .
हां मैं पढ रहा हूं
usne naam nahi likha mera par khub achha likha hai .
Thoda sa preshaan hai .
पहले पढ लेता हूं
हां मैने पढ लिया
kaisa laga ..
Dard hai gusss hai ..
बस एक अनिर्णय की स्थित वाले मन की भडास है ।
He know well how to emotional blackmail of innocent indians .. ?
यह तो सही है कि भडास को चलाने के लिये आर्थिक मदद चाहिये
Ji haa
Mujhe bhi kosa hai usne .
Bhai ye batoo log kya chutiya hai jo apna paisa bhadas me lagaye . .. ?
यह भी सही है कि मदद अगर विग्यापन से नही होगी तो मीडिया हाउस से मिलेगी
Malik hai wo . Maje wo lega uske bachhe lege .. ?
Hum kya aalu chheelege . ?
Na trust an society na ngo ..
ऐसी बात नही है कि मजे लेता है, बस दाल रोटी चला रहा है , शायद आप नहीं मिले हैं
Bhadas or ghar ke kharche ke liye .
Fir enti eth kyo bhai .. ?
अब खर्चा तो चाहिये न
आप वहां मुंबई में है, सिर्फ़ पत्रकारिता या पोर्टल चलायेंगें तो खर्च चाहिये न
Bhai agar help magni hai to kisi se aap cheekh kar nahi le sakte hia ..
pyar se to ensaan jaan deta hai .
Bhai jaan hamari story alag hai . ?
aapko malum hai sab .. ..
Wife good earner . ?
मतलब मदद मागंने के लिये अपने स्वभाव को बदल देना चाहिये ?
Mai bhi bhai kaam karta hu .
Bilkul
Namra hona padega .
har kowi madad karega .
Ab danda dikhake to kaam nahi nikal sakte ho .
लेकिन इसे हीं तो पाखंड कहते हैं
क्या आप चाहते हैं आदमी पाखंड करे ?
twari mana ji mujhe aapse madad chahiye .
mai aapko danda dikhaoo to kya app meri help kargo .
Bolo sir ji .. ?
ओह आप डंडा की बात कहां से ले बैठें
maine kya likha wah aapne pada hai .
बात है स्वभाव की
mai janta hu sir ji aap use achhi tareeke se jante hai ..
mai janta hu ..
कोई प्लीज कह कर हेल्प मांगता है और कोई कहता है साले कुछ पाइसा है तो दे आजकल कडकी है
Magar uska tareeka galat tha mere sath maalik . ?
Mujhe eska gussa aaj tak hai .. ?
देखिये मैं तो व्यक्तिगत आलोचना से बचता हूं तबतक जबतक की आपका वह कार्य किसी को प्रभावित न करता हो
ji
ye baat hai .
mere ek baat samjh me nahi aati hai uski halat enti kharab hai . .
Mujhe lagta hai logo ko emotional blackmail karta hai . .
हां यह हो सकता है कि आपसे मांगने का तरीका गलत हो , उसे समझना चाहिये था एक बेरोजगार का विग्यापन है , जब आमदनी होगी तो दे देगा
wo vigyapan nahi mag raha tha . wah news lagane ke paise mag raha tha .
lafda ye hai boss..
Usne aaj saari baat apne lekh me likh daali hai .
kair hai media ka bhagwaan ..
लेकिन आपने तो कहा था कि विग्यापन के पैसे मांग रहा था
mera heading kya hai
sir ji
paid news..
maine kaha tha news laga the ek site shuru ki hai
to kahta hai 5000/- de .
ye baat thi .
Bhai mai pada likha mba hu .
ओह तब उसने कहा कि पैसे दो
ads or news me fark janta hu ..
Ji
ye baat last year march ki hai
jab bollywoodkhabar.com shuru ki thi
use lagta hai mere pass bahut paisa hai ..
mai PR kaam karta hu jam kar .
मतलब आप न्यूज की शक्ल में विग्यापन चाहते थें और यशवंत को वह विग्यापन दिख रहा था
wo to mai or meri wife janti hai meri earning kitni hia .
aap samjh nahi bhai
maine kaha ki news laga de .
wo bola 5000/- de ..
ab ye news hai yaa vighyapan .
हां हां हां
mere liye news hoga ..
मतलब एक दिन के न्यूज का पाच हजार
magar vah news ko hi vigypan samjkar kaam karta hai logo ke sath .
ek news ka 5000/-
mai thahra bahut bada chutiya .. .?
Meri khud fati huee hai mai kiski silu sir ji
हां हां हां
खैर और कुछ सुनाइये , इतनी रात को कहां गये थें ?
wo samjhta hai apne aapko prbhash joshi or tarun tejpal ..
वैसे मुंबई में ठंढ तो पडती नही है
sir ji kowi hospital me tha bharti bas dekhne gaya tha .
use .
Abhi to nahi pad rahi hai .
mujhe do din lag rahi hai thand ..
sir maine uka utter likha diya jara pado mujhe ye batoo theek hai kya ..
यहां तो आठ डिर्गी टेम्परेचर है
udhar to thand hogi na .
हां ठीक है मैने पढी है
वैसे आप भी हाथ धोकर पड गये हैं
सुशील भाई अपना काम करना चाहिये
Beta ne apne lekh me bahut likh diya hai mere baare me .
mai to sir ji apna kaam kar raha hu .
dekho guru ji .

मैं अपने साइट पर लिख रहा हूं
wo bada patrakar hai apne ghar ka ?
mere liye nahi hai ?
kya likh rahe hai .
likho meri post lekar likho kuchh .. ?




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Comments

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    By the way, how can we be in contact?
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