प्रभात खबर; शराब माफ़ियों की आवाज
प्रभात खबर; शराब माफ़ियों की आवाज
गया प्रभारी कंचन शराब माफ़िया के पे रोल पे
अवैध मत के लिये जिलाधिकारी भी शक के दायरे में
गया जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव कल संपन्न हुआ। उपाध्यक्ष पद पर शीतल यादव की जीत हुई जो जिले के शराब माफ़िया के रुप में चर्चित रहे हैं। प्रभात खबर ने तो इस चुनाव के नतीजे को मुख्यपर्ष्ठ पर प्रसारित किया हीं, अंदर के पेज पर जहां जिले का समाचार छपता है , उस पेज पर गया प्रभात खबर के प्रभारी कंचन ने प्रशंसा के गीत गुनागुनाकर रख दिया । पुरे समाचार में कहीं भी शीतल यादव की असलियत का जिक्र नही है , जबकि यही कंचन अन्य समाचारों में नेताओं की पुरानी उपलब्धि का बखान करने के आदि रहे हैं। जिला परिषद के उपाध्यक्ष पद पर विजयी शीतल यादव , नक्सलियों को हथियार सप्लाई करनेवाले बिंदी यादव के भाई हैं। बिंदी यादव गया के उन चुनिंदा हस्तियों में हैं जिन्होने पुरे १५ साल के राजद शासन के दौरान जिले को गुंडों के चरागाह के रुप में तब्दील कर दिया था। तथा फ़िलहाल नक्सलवादियों कों हथियार सप्लाई करने के केस में जेल मे हैं । इसबार भी राजद के टिकट पर बिंदी यादव ने चुनाव लडा था । राजद के उन पन्द्रह साल में हर गांव और मुहल्ले में नाजायक शराब की दुकाने खुल गई थीं जहां गैरकानूनी तरीके से बनाई गई देशी शराब की बिक्री होती थी। वह शराब बिंदी यादव के द्वारा तैयार करवाई जाती थी। कितने लोग उस शराब को पीकर सीधे भैरों से मिलने दुनिया से चले गयें। उसी कमाई से करोडो कमानेवाले बिंदी यादव बाद में जिला परिषद के अध्यक्ष बनें। बिंदी की पत्नी विधान पार्षद बनीं। बाद में भाई के पद चिंहों पर चलते हुये शीतल यादव ने शराब के धंधे में कदम रखा । शीतल यादव ने भी नाजायज शराब के धंधे से करोडों कमायें । शीतल की पत्नी भी पहले मुखिया थीं। इसबार भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में जिला पार्षदों की खरीद- बिक्री का खेल चला । प्रशासन गुंगा- बहरा बना रहा। बिहार का निर्वाचन आयोग वैसे भी अपनी विश्वसनियता गवां चुका है । उपाध्यक्ष के चुनाव में शीतल यादव ने एक मत से जीत हासिल की । वह जीत भी फ़ोटो देवी के मत को अवैध घोषित करने के कारण हुई । मत के अवैध घोषित करने का कारण था कि फ़ोटो देवी ने अपने मतदान पत्र को शीतल के प्रतिद्वंदी को दिखा दिया था यह कहते हुये की देखो तुमको हीं वोट दे रहे हैं। यहां एक प्रश्न उठता है , वह है प्रशासनिक व्यवस्था का । गुप्त मतदान की स्थिति में यह व्यवस्था रहती है कि मतदाता के अलावा दुसरा कोई मतदान कक्ष में न रहे । अब यह जिलाधिकारी हीं बता सकते हैं कि गुप्त मतदान के लिये क्या व्यवस्था की गई थी। यह भी जांच का विषय है कि क्या सिर्फ़ फ़ोटो देवी ने हीं अपने मत की गोपनीयता भंग की ? क्या किसी ने फ़ोटो देवी को उकसाकर ऐसा करवाया ? मतदान की गोपनीयता को अक्षुण्ण बनाये रखने की जिम्मेवारी किस अधिकारी की थी, और उसके उपर क्या कार्रवाई हुई। प्रभात खबर ने पहले से स्थापित पत्रकारिता की परंपरा और नैतिकता को खत्म करके एक नई शुरुआत की, चमचागिरी की पत्रकारिता का। स्थापित परंपरा के अनुसार अगर उच्च पदपर कोई निर्वाचित होता है तो अखबार उसकी जिंदगी के सभी पहलूओं को प्रकाशित करते हैं। अगर उक्त निर्वाचित व्यक्ति के परिवार का कोई सदस्य किसी भी कारण से कुख्यात, विख्यात या प्रख्यात है तो उस परिस्थिति में परिवार के उस सद्स्य के बारे में भी जिक्र किया जाता है । हाल हीं में संपन्न पुर्णिया का उप चुनाव इसका उदाहरण है , ्वहां से विजयी किरण केसरी के बारे में लिखते हुये अखबारों ने उनके पति राजकिशोर केसरी तथा उनकी हत्या का भी जिक्र किया था । पत्रकारिता का स्तर गिर चुका है, यह सबको मालूम हैं लेकिन गया के सभी बडे अखबारों के प्रभारियों पर अभी तक इस तरह का दाग नही लगा है । चाहें वह दैनिक जागरण के पंकज हो या कमल नयन , या हिंदुस्तान के सतीश मिश्रा और आज के कमलेश सिंह । जिस तरह की खबर कंचन ने प्रकाशित की है , उस तरह की खबर हजार पांच सौ रुपये लेकर छापी जाती है । अब यह तो कंचन हीं बता सकते हैं सच को दबाने की और पूर्वाग्रह से ग्रसित समाचार छापने के पीछे उनकी मजबूरी क्या थी।
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अवैध मत के लिये जिलाधिकारी भी शक के दायरे में
गया जिला परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव कल संपन्न हुआ। उपाध्यक्ष पद पर शीतल यादव की जीत हुई जो जिले के शराब माफ़िया के रुप में चर्चित रहे हैं। प्रभात खबर ने तो इस चुनाव के नतीजे को मुख्यपर्ष्ठ पर प्रसारित किया हीं, अंदर के पेज पर जहां जिले का समाचार छपता है , उस पेज पर गया प्रभात खबर के प्रभारी कंचन ने प्रशंसा के गीत गुनागुनाकर रख दिया । पुरे समाचार में कहीं भी शीतल यादव की असलियत का जिक्र नही है , जबकि यही कंचन अन्य समाचारों में नेताओं की पुरानी उपलब्धि का बखान करने के आदि रहे हैं। जिला परिषद के उपाध्यक्ष पद पर विजयी शीतल यादव , नक्सलियों को हथियार सप्लाई करनेवाले बिंदी यादव के भाई हैं। बिंदी यादव गया के उन चुनिंदा हस्तियों में हैं जिन्होने पुरे १५ साल के राजद शासन के दौरान जिले को गुंडों के चरागाह के रुप में तब्दील कर दिया था। तथा फ़िलहाल नक्सलवादियों कों हथियार सप्लाई करने के केस में जेल मे हैं । इसबार भी राजद के टिकट पर बिंदी यादव ने चुनाव लडा था । राजद के उन पन्द्रह साल में हर गांव और मुहल्ले में नाजायक शराब की दुकाने खुल गई थीं जहां गैरकानूनी तरीके से बनाई गई देशी शराब की बिक्री होती थी। वह शराब बिंदी यादव के द्वारा तैयार करवाई जाती थी। कितने लोग उस शराब को पीकर सीधे भैरों से मिलने दुनिया से चले गयें। उसी कमाई से करोडो कमानेवाले बिंदी यादव बाद में जिला परिषद के अध्यक्ष बनें। बिंदी की पत्नी विधान पार्षद बनीं। बाद में भाई के पद चिंहों पर चलते हुये शीतल यादव ने शराब के धंधे में कदम रखा । शीतल यादव ने भी नाजायज शराब के धंधे से करोडों कमायें । शीतल की पत्नी भी पहले मुखिया थीं। इसबार भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में जिला पार्षदों की खरीद- बिक्री का खेल चला । प्रशासन गुंगा- बहरा बना रहा। बिहार का निर्वाचन आयोग वैसे भी अपनी विश्वसनियता गवां चुका है । उपाध्यक्ष के चुनाव में शीतल यादव ने एक मत से जीत हासिल की । वह जीत भी फ़ोटो देवी के मत को अवैध घोषित करने के कारण हुई । मत के अवैध घोषित करने का कारण था कि फ़ोटो देवी ने अपने मतदान पत्र को शीतल के प्रतिद्वंदी को दिखा दिया था यह कहते हुये की देखो तुमको हीं वोट दे रहे हैं। यहां एक प्रश्न उठता है , वह है प्रशासनिक व्यवस्था का । गुप्त मतदान की स्थिति में यह व्यवस्था रहती है कि मतदाता के अलावा दुसरा कोई मतदान कक्ष में न रहे । अब यह जिलाधिकारी हीं बता सकते हैं कि गुप्त मतदान के लिये क्या व्यवस्था की गई थी। यह भी जांच का विषय है कि क्या सिर्फ़ फ़ोटो देवी ने हीं अपने मत की गोपनीयता भंग की ? क्या किसी ने फ़ोटो देवी को उकसाकर ऐसा करवाया ? मतदान की गोपनीयता को अक्षुण्ण बनाये रखने की जिम्मेवारी किस अधिकारी की थी, और उसके उपर क्या कार्रवाई हुई। प्रभात खबर ने पहले से स्थापित पत्रकारिता की परंपरा और नैतिकता को खत्म करके एक नई शुरुआत की, चमचागिरी की पत्रकारिता का। स्थापित परंपरा के अनुसार अगर उच्च पदपर कोई निर्वाचित होता है तो अखबार उसकी जिंदगी के सभी पहलूओं को प्रकाशित करते हैं। अगर उक्त निर्वाचित व्यक्ति के परिवार का कोई सदस्य किसी भी कारण से कुख्यात, विख्यात या प्रख्यात है तो उस परिस्थिति में परिवार के उस सद्स्य के बारे में भी जिक्र किया जाता है । हाल हीं में संपन्न पुर्णिया का उप चुनाव इसका उदाहरण है , ्वहां से विजयी किरण केसरी के बारे में लिखते हुये अखबारों ने उनके पति राजकिशोर केसरी तथा उनकी हत्या का भी जिक्र किया था । पत्रकारिता का स्तर गिर चुका है, यह सबको मालूम हैं लेकिन गया के सभी बडे अखबारों के प्रभारियों पर अभी तक इस तरह का दाग नही लगा है । चाहें वह दैनिक जागरण के पंकज हो या कमल नयन , या हिंदुस्तान के सतीश मिश्रा और आज के कमलेश सिंह । जिस तरह की खबर कंचन ने प्रकाशित की है , उस तरह की खबर हजार पांच सौ रुपये लेकर छापी जाती है । अब यह तो कंचन हीं बता सकते हैं सच को दबाने की और पूर्वाग्रह से ग्रसित समाचार छापने के पीछे उनकी मजबूरी क्या थी।
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