ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं’
‘ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं’
-विनायक विजेता
बिहार में बिहार औद्योगिक विकास प्राधिकार (बियाडा) के जमीन घोटाले ने मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले की याद ताजा कर दी है। बिहार के नेताओं और वरीय अधिकारियों द्वारा किए गए इस घोटाले ने ‘हमाम में सभी नंगे’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए स्व. हरिवंश राय बच्चन की चर्चित पुस्तक मधुशाला के उस अंश को भी पुन: गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया कि ‘ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं।’ नीतीश और उनकी सरकार चाहे जो भी सफाई दे पर इतना तो तय है कि इस मामले में उनकी गिरेंबा फंसती नजर आ रही है। कल तक की समाजसेवी और वर्तमान में समाज कल्याएा मंत्री परवीन अमानुल्लाह ने जिस तरह समाज कल्याण के बदले अपना कल्याण किया, शिक्षा मंत्री पी के शाही ने अपनी पुत्री का कल्याण कराया और कई अन्य राजनेताओं और अफसरों ने बहती गंगा में हाथ धोई यह एनडीए-टू के शासन काल के लिए एक कलंकित अध्याय ही माना जाएगा। लाभ पाने वाले राजनेताओं, अधिकारियों और बियाडा का यह तर्क कि आवंटित जमीन में आवेदक सिर्फ एक थे और उसी आधार पर उन्हे जमीन का आवंटन दिया गया, यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा। आखिर बिना विज्ञापन निकले उद्योग के लिए लायलित लोगों को यह कैसे पता चलेगा कि बियाडा की कौन जमीन कहां खाली है और कहां नहीं। इस सारे प्रकरण से यह भी आशंका है कि बियाडा ने खाली जमीन के लिए विज्ञापन या तो किसी ऐसे अखबार में दिया जिसका प्रसारण बिहार में नगण्य है या फिर अन्य आवेदकों के आवेदन आवंटियों ने अपने प्रभाव से वापस लेने को मजबूर कर दिया। जग जाहिर है कि राजधानी पटना और बिहार में आरएनआई से निबंधित सैकड़ों ऐसे अखबार हैं जिनका प्रकाशन सिर्फ सरकार विज्ञापनों के लिए ही होता है। ऐसा नहीं कि बियाडा का यह खेल कोई नया है। इस प्राधिकार ने पूर्व में भी सत्ता पक्ष से जुड़े और बेतिया के भाजपा सांसद संजय जायसवाल के साढू संजीव कुमार को बीते वर्ष फतुहा औद्योगिक इलाके में कौड़ी के भाव में लीज पर कई एकड़ जमीन दे दी। बियाडा ने संजीव कुमार को यह जमीन ‘टिस्कॉन’ नामक कंपनी के नाम पर दी । चौकाने वाली बात तो यह है कि संजीव ने इसी कंपनी के नाम पर कई बैंकों से करोड़ो रुपये लोन भी लिए पर अब इस कंपनी का नाम बदल कर ‘क्रिसकॉन’ कर दिया गया। बिहार में ऐसे एक उदाहरण नहीं। अगर बियाडा द्वारा आवंटित जमीनों की पूरी जांच हो तो यह तल्ख सच्चाई सामने आ जाएगी कि सत्तर प्रतिशत जमीनों का आवंटन राजनेताओ, अधिकारियों और उनके नाते-रिश्तेदारों के बीच किए गए।
बियाडा के ताजा मामले में हो सकता है कि नीतीश की जानकारी या उन्हें भनक लगे दिए बिना राजनेताओं और अधिकारियों ने लाभ उठा लिया हो। यह सही भी है कि अगर पी के शाही, अफजल अमानुल्लाह या कोई अन्य मंत्री या सांसद बियाडा के अधिकारियों को कहे कि अमुक आवेदक उनके नाते रिश्तेदार हैं तो अधिकारी इसके लिए मुख्यमंत्री से इजाजत लेने की हिमाकत नहीं करेंगे। अगर ऐसा है तो यह नीतीश के लिए और शर्र्मनाक है। मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले की आंच आने पर एक ओर जहां महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्ह्हान को अपनी कूर्सी छोड़नी पड़ी वहीं इस मामले में लाभ उठाए बिहार के मंत्री बेहयायी से अपने को पाक साफ करार देकर जनता की आंखों में धूल झोकने में लगे हैं। समाज सेवा करते करते समाज कल्याण मंत्री बनी परवीन पूर्व में सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां मांगने के लिए चर्चित रहीं हैं। क्या अब वो जनता को इसकी सूचना देंगी कि उन्होंने समाज कल्याण के बदले अपनी बेटी का कल्याण क्यों किया। नीतीश कुमार को चाहिए था कि इस मामले की जांच होने तक सभी आरोपी मंत्री का इस्तिफा लेते और दागी अधिकारियों का तबादला कर देते पर उन्होंने ऐसा न कर खुद अपने लिए संदेह और शक की बीज बो दी है।
लेखक विनायक विजेता बिहार के वरीय पत्रकार हैं
बिहार में बिहार औद्योगिक विकास प्राधिकार (बियाडा) के जमीन घोटाले ने मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले की याद ताजा कर दी है। बिहार के नेताओं और वरीय अधिकारियों द्वारा किए गए इस घोटाले ने ‘हमाम में सभी नंगे’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए स्व. हरिवंश राय बच्चन की चर्चित पुस्तक मधुशाला के उस अंश को भी पुन: गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया कि ‘ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं।’ नीतीश और उनकी सरकार चाहे जो भी सफाई दे पर इतना तो तय है कि इस मामले में उनकी गिरेंबा फंसती नजर आ रही है। कल तक की समाजसेवी और वर्तमान में समाज कल्याएा मंत्री परवीन अमानुल्लाह ने जिस तरह समाज कल्याण के बदले अपना कल्याण किया, शिक्षा मंत्री पी के शाही ने अपनी पुत्री का कल्याण कराया और कई अन्य राजनेताओं और अफसरों ने बहती गंगा में हाथ धोई यह एनडीए-टू के शासन काल के लिए एक कलंकित अध्याय ही माना जाएगा। लाभ पाने वाले राजनेताओं, अधिकारियों और बियाडा का यह तर्क कि आवंटित जमीन में आवेदक सिर्फ एक थे और उसी आधार पर उन्हे जमीन का आवंटन दिया गया, यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा। आखिर बिना विज्ञापन निकले उद्योग के लिए लायलित लोगों को यह कैसे पता चलेगा कि बियाडा की कौन जमीन कहां खाली है और कहां नहीं। इस सारे प्रकरण से यह भी आशंका है कि बियाडा ने खाली जमीन के लिए विज्ञापन या तो किसी ऐसे अखबार में दिया जिसका प्रसारण बिहार में नगण्य है या फिर अन्य आवेदकों के आवेदन आवंटियों ने अपने प्रभाव से वापस लेने को मजबूर कर दिया। जग जाहिर है कि राजधानी पटना और बिहार में आरएनआई से निबंधित सैकड़ों ऐसे अखबार हैं जिनका प्रकाशन सिर्फ सरकार विज्ञापनों के लिए ही होता है। ऐसा नहीं कि बियाडा का यह खेल कोई नया है। इस प्राधिकार ने पूर्व में भी सत्ता पक्ष से जुड़े और बेतिया के भाजपा सांसद संजय जायसवाल के साढू संजीव कुमार को बीते वर्ष फतुहा औद्योगिक इलाके में कौड़ी के भाव में लीज पर कई एकड़ जमीन दे दी। बियाडा ने संजीव कुमार को यह जमीन ‘टिस्कॉन’ नामक कंपनी के नाम पर दी । चौकाने वाली बात तो यह है कि संजीव ने इसी कंपनी के नाम पर कई बैंकों से करोड़ो रुपये लोन भी लिए पर अब इस कंपनी का नाम बदल कर ‘क्रिसकॉन’ कर दिया गया। बिहार में ऐसे एक उदाहरण नहीं। अगर बियाडा द्वारा आवंटित जमीनों की पूरी जांच हो तो यह तल्ख सच्चाई सामने आ जाएगी कि सत्तर प्रतिशत जमीनों का आवंटन राजनेताओ, अधिकारियों और उनके नाते-रिश्तेदारों के बीच किए गए।
बियाडा के ताजा मामले में हो सकता है कि नीतीश की जानकारी या उन्हें भनक लगे दिए बिना राजनेताओं और अधिकारियों ने लाभ उठा लिया हो। यह सही भी है कि अगर पी के शाही, अफजल अमानुल्लाह या कोई अन्य मंत्री या सांसद बियाडा के अधिकारियों को कहे कि अमुक आवेदक उनके नाते रिश्तेदार हैं तो अधिकारी इसके लिए मुख्यमंत्री से इजाजत लेने की हिमाकत नहीं करेंगे। अगर ऐसा है तो यह नीतीश के लिए और शर्र्मनाक है। मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले की आंच आने पर एक ओर जहां महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्ह्हान को अपनी कूर्सी छोड़नी पड़ी वहीं इस मामले में लाभ उठाए बिहार के मंत्री बेहयायी से अपने को पाक साफ करार देकर जनता की आंखों में धूल झोकने में लगे हैं। समाज सेवा करते करते समाज कल्याण मंत्री बनी परवीन पूर्व में सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां मांगने के लिए चर्चित रहीं हैं। क्या अब वो जनता को इसकी सूचना देंगी कि उन्होंने समाज कल्याण के बदले अपनी बेटी का कल्याण क्यों किया। नीतीश कुमार को चाहिए था कि इस मामले की जांच होने तक सभी आरोपी मंत्री का इस्तिफा लेते और दागी अधिकारियों का तबादला कर देते पर उन्होंने ऐसा न कर खुद अपने लिए संदेह और शक की बीज बो दी है।
लेखक विनायक विजेता बिहार के वरीय पत्रकार हैं
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