जब मै सुबह अख़बार पढती हूँ

जब मै सुबह अख़बार पढती हूँ
जब मै सुबह अख़बार पढती हूँ



जब मै सुबह अख़बार पढती हूँ
सुरु होती है खबर
तो सहम जाती हूँ ..... खबरको पढ़ कर


"नाबालिक की लुटी अस्मत ,दो किशोरियों समेत तीन की लुटी अस्मत,'दोस्त' ने लुटी अस्मत:, महिलाओं की लुटी अस्मत -

कार्ड बनने के नाम पर लुटी अस्मत, थाने में लुटी दो लड़कियों की अस्मत,35 वर्षीय विधवा से देर रात दुष्कर्म

दो किशोरियों समेत तीन की बलात्कार के बाद हत्या
दोस्तों ने बहला फुसला कर किसोरी का किया अपहरण
"

शायद मुझको ही दिखती है
ये खबर या फिर ये है समाज का दर्पणने
जब मै सुबह अख़बार पढती हूँ
सुरु होती है खबर
तो सहम जाती हूँ ..... खबरको पढ़ कर



उफ़ थर्रा जाता मन मेरा
काप जाती इंसानियत
या कहा जा रहे हम --------------2

मै जब सुबह अख़बार पढती हूँ
सुरु होती है खबर

तो सहम जाती हूँ
खबरको पढ़ कर


'' कलयुग के पिता ने बेटी को बनाया कुवारी माँ ''
''भाई ने बहन के साथ किया जिनह''

माली ही तोड़ देता है
अपने बाग का फूल
पिता ही बन जाता बेटी की अस्मत का लुटेरा
जिस भाई की कलई पे
बाधी थी कभी रखी
कर देता उसे रुसवा सरे बाजार
शर्मसार हो जाती तब इंसानियत

मै जब सुबह अख़बार पढती हूँ
सुरु होती है खबर
तो सहम जाती हूँ खबरको पढ़ कर


प्रेम के मोह मे फसा के यह भड़िये
कर देता सरे आम मासूम को नीलम
कही हवस पर चढती मासूम
तो कही ओनर किलिग़ के नाम पर
कत्लें होती बेटिया
तो कही परम्पराओ के नाम पर
कुर्बान होती बच्चिया
कही औरत को नगा घुमाते पुरुष
तो उसे आग में जला देते
प्रश्न उठता क्या ऐसे ही बनती है समाजिकता
टूटते मेरे सब भ्रम
हाय यह कब तक चलेगा महातांडव
नारीमुक्ति के सौ साल पर भी
नारी कैद में रहेगे
और पुरुष बर्बरता को बार बार ऐसे ही सहेगे

मै जब सुबह अख़बार पढती हूँ
सुरु होती है खबर

तो सहम जाती हूँ
खबरको पढ़ कर

अब इसलिए डरने लगा मेरा मन
नहीं करता अख़बार पड़ने को मेरा मन
लेकिन सोचती हूँ
क्या मेरे न अख़बार पढने क्या बंद हो जाएगी यह खबर
बंद हो जायेगी हैवानियत
शायद नहीं
पर मे हार नहीं मानुगी
मै अख़बार भी पढुगी
कोशिस करुगी
इस अत्याचार से लडू
और एक जनमत खड़ा करूगी
जानती हूँ,
एकदिन तब आयेगा
नया समाजवाद
जहाँ असहाए और निर्दोष की नहीं लुटेगी अस्मत
न होगे बलात्कारी
न होगे कोई आसू
जानतीं हूँ
एक दिन लाऊगी
एक नया जनमत
में अख़बार जरुर पढुगी
में अख़बार जरुर पढुगी








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