भीतर की खबर प्रभात खबर की लीड खबर बनती है
भीतर की खबर प्रभात खबर की लीड बनती है
स्कीम वाली ठगी से बढ गई प्रसार संख्या
बिहार का एकमात्र अखबार प्रभात खबर है जो अपने विचित्र हरकतों और समाचारों के कारण आजकल चर्चा में है ।
आज २४ जूलाई को प्रभात खबर ने अपने मुख्य पेज पर खुलासा शीर्षक के तहत एक समाचार निकाला है । “साथियों का करते हैं यौन शोषण “यह समाचार कोई अनजान सी महिला माओवादी के पुलिस के समक्ष दिये गये बयान पर आधारित है , जिसमें उक्त महिला माओवादी ने अपने पुरुष सहयोगियों पर यौन शोषण का आरोप लगाया है ।
लोहरद्ग्गा के एस डी पी ओ रामगुलाम शर्मा के द्वारा प्रभात खबर को दी गई जानकारी इस समाचार का आधार है जिसकी सत्यता की जांच अपने स्तर पर प्रभात खबर द्वारा नही की गई है । इस तरह का यौन शोषण का आरोप पहले भी लगता रहा है और माओवादियों द्वारा महिला सहयोगियों का यौन शोषण करने से संबंधित हजारो समाचार हिंदुस्तान के सभी अखबारों में छपते रहे हैं। सबसे बडी बात यह है कि लीड खबर का अर्थ उसके छपनेवाले दिन के महत्व का होता है । एक पुलिस अधिकारी के सामने किसी गिरफ़्तार अनाम से अपराधी का बयान क्या लीड खबर बनने की अहमियत रखता है ? खासकर वैसी स्थिति में जबतक की उक्त बयान देनेवाले को अखबार वालों के सामने न लाया गया हो । हां कभी-कभी अगर कोई आश्चर्यचकित कर देनेवाली नई बात अगर बयान में आये तो उसे लीड खबर बनाने के लिये सोचा जा सकता है । लेकिन यह यौन शोषण वाला समाचार तो सालो पुराना है , इसमें नया क्या था ? किस नजरिये से यह लीड खबर बनने की अहमियत रखता है , यह तो हरिवंश जी हीं बता सकते हैं।।
प्रभात खबर अब अपने समाचार पर ध्यान नही दे रहा है उसका कारण है , उसकी प्रसार संख्या में अचानक ईजाफ़ा हो जाना । बिहार के लाखों लोगों को उल्लू बनाकर एक स्कीम के तहत २०० रुपया सालाना देकर मात्र ४५ रुपया महिना पर अखबार पाने और उसके साथ एक गिफ़्ट मुफ़्त तथा २४०-२४० रुपया के दो विग्यापन कूपन । प्रसार संख्या बढाने के लिए चलाये गये अभियान के कारण प्रभात खबर की प्रसार संख्या में अचानक बढोतरी हो गई लेकिन समाचार के स्तर में भारी गिरावट आई है । पाठक मोबाईल कंपनियों के जाल की तरह फ़ंसा हुआ महसुस कर रहा है . यह पेड न्यूज से ज्यादा खतरनाक है ।
टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें
आज २४ जूलाई को प्रभात खबर ने अपने मुख्य पेज पर खुलासा शीर्षक के तहत एक समाचार निकाला है । “साथियों का करते हैं यौन शोषण “यह समाचार कोई अनजान सी महिला माओवादी के पुलिस के समक्ष दिये गये बयान पर आधारित है , जिसमें उक्त महिला माओवादी ने अपने पुरुष सहयोगियों पर यौन शोषण का आरोप लगाया है ।
लोहरद्ग्गा के एस डी पी ओ रामगुलाम शर्मा के द्वारा प्रभात खबर को दी गई जानकारी इस समाचार का आधार है जिसकी सत्यता की जांच अपने स्तर पर प्रभात खबर द्वारा नही की गई है । इस तरह का यौन शोषण का आरोप पहले भी लगता रहा है और माओवादियों द्वारा महिला सहयोगियों का यौन शोषण करने से संबंधित हजारो समाचार हिंदुस्तान के सभी अखबारों में छपते रहे हैं। सबसे बडी बात यह है कि लीड खबर का अर्थ उसके छपनेवाले दिन के महत्व का होता है । एक पुलिस अधिकारी के सामने किसी गिरफ़्तार अनाम से अपराधी का बयान क्या लीड खबर बनने की अहमियत रखता है ? खासकर वैसी स्थिति में जबतक की उक्त बयान देनेवाले को अखबार वालों के सामने न लाया गया हो । हां कभी-कभी अगर कोई आश्चर्यचकित कर देनेवाली नई बात अगर बयान में आये तो उसे लीड खबर बनाने के लिये सोचा जा सकता है । लेकिन यह यौन शोषण वाला समाचार तो सालो पुराना है , इसमें नया क्या था ? किस नजरिये से यह लीड खबर बनने की अहमियत रखता है , यह तो हरिवंश जी हीं बता सकते हैं।।
प्रभात खबर अब अपने समाचार पर ध्यान नही दे रहा है उसका कारण है , उसकी प्रसार संख्या में अचानक ईजाफ़ा हो जाना । बिहार के लाखों लोगों को उल्लू बनाकर एक स्कीम के तहत २०० रुपया सालाना देकर मात्र ४५ रुपया महिना पर अखबार पाने और उसके साथ एक गिफ़्ट मुफ़्त तथा २४०-२४० रुपया के दो विग्यापन कूपन । प्रसार संख्या बढाने के लिए चलाये गये अभियान के कारण प्रभात खबर की प्रसार संख्या में अचानक बढोतरी हो गई लेकिन समाचार के स्तर में भारी गिरावट आई है । पाठक मोबाईल कंपनियों के जाल की तरह फ़ंसा हुआ महसुस कर रहा है . यह पेड न्यूज से ज्यादा खतरनाक है ।
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भाई, इस तरह से तो सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार, वो भी आपके राज्य में, पुरानी बात है. फिर आप क्यों इस पर लेख पर लेख मारते जा रहे हैं? लगता है पत्रकारिता के शौक में कभी अखबारों के दफ्तरों के चक्कर काटे हैं और ऊट-पटांग हिन्दी देखकर किसी ने घास नहीं डाली. इसलिए खुन्नाये हुए हैं.
ReplyDeleteलगता है आप व्याकरण के विद्वान हैं , अगर आप व्याकरण तक हीं सिमित रह जायेंगें तो जिंदगी में अनाम के अलावा कुछ नही बन पायेंगें। रह गई मेरी बात तो आप नवभारत टाईम्स के ब्लाग पर जायें मेरे ब्लाग मिलेंगें।
ReplyDeleteलिंक दे रहा हूं । एक और सलाह डरने की जरुरत नही है अपने नाम के साथ टिपण्णी दें। आप जैसे डरनेवालों की आवाज हैं हम । http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/biharmedia/
व्याकरण? आपके तो हिज्जे तक दुरुस्त नहीं हैं....."सीमित" को "सिमित" लिख रहे हैं! हमें छोडिये हम अनाम ही ठीक हैं लेकिन आप इतना वाहियात लेखन करके पत्रकारिता का, जो लेखन की ही एक विधा है, स्तर कैसे उठा लेंगे? और वो भी तब जब आप एक दशक से ज्यादा ज़िंदा न रहने की इच्छा अपने प्रोफाइल में जताते हैं? क्यों अपने दिमाग को कष्ट दे रहे हैं. लिखना आपके बूते की बात नहीं है. अभी कुछ बरस के लिए खुराफात छोडिये, कुछ बढ़िया किताबें पढ़िए और सीखिए. उसके बाद यदि शक्ति बचे तो लिखने की सोचियेगा. इसे अनाम मित्र की शुभेच्छा समझें. हाँ दीवार में सर मारकर शहीद होने का निर्णय कर चुके हैं तो और बात है.
ReplyDeleteयार आपने मेरा रंग मिजाज नही समझा है । मेरी लडाई भ्रष्टाचार और पत्रकारिता में आई गिरावट से है । रह गई आपकी सलाह तो वह मैं मानने से रहा। जो ठान लिया सो ठान लिया । किताबे शायद आपने जितनी देखी नही होगी , उससे ज्यादा पढ चुका और अभी भी पढता हूं । धन्यवाद आप अपने उद्देश्य में सफ़ल नही होने जा रहे हैं। हा हा हा .
ReplyDeleteमान्यवर, आप पोर्न साहित्य पढ़ते होंगे. आपकी वेबसाईट पर लगी तसवीरें तो यही संकेत देती हैं. वो सब पढियेगा तो आपका यही हाल होगा. कुछ अच्छी किताबें पढ़िए, कुछ ज्ञान हासिल कीजिये. आपके लिए भी अच्छा रहेगा और आपके लेखन के लिए भी. अगर स्तरीय किताबों से अनभिज्ञ हैं तो अगले कमेन्ट के रूप में एक रीडिंग लिस्ट मुहैया करवा दी जायेगी. और हाँ, हंसना अच्छी बात है मगर दिल से हंसा कीजिये. यों ह़ा ह़ा ह़ा लिखने से आप अपनी कुंठा पर विजय न पा सकेंगे. आपका अनाम मित्र
ReplyDeleteचलिए एक अनाम मित्र तो मिला वरना यहां तो नामवाले भी मित्र बनकर धोखा हीं देते हैं। अब एक अनाम प्रेमिका की तमन्ना है , अगर आपकी नजर में हो तो बतायेंगें।
ReplyDeleteसबसे पहले मैं बेनामी मित्र से कहना चाहता हूं कि जिनमें इतनी साहस नहीं कि अपना चेहरा दिखा सके उनका काम ही सिर्फ दूसरों की तरफ उंगली उठाना है। रही बात मदन भाई की तो उनका धन्यवाद दिजिए की आपके अनर्गल टिप्पणी को भी प्रकाशित कर दिया। जनाब डरने वाले लोग कायर कहलाते है।
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण भाई, टिपण्णी को तो प्रकाशित करुंगा हीं क्योंकि यह सोचकर शुरुआत की है कि चाहे जैसी भी टिपण्णी ( गाली-गलौज छोडकर ) हो न प्रकाशित करना गलत होगा। फ़िर हमलोगों में और अखबारों में अंतर क्या रह जायेगा .
ReplyDeleteमदन जी को साधुवाद कि उन्होंने माना कि बेनामी टिप्पणियों में गाली-गलौज नहीं हैं. वैसे व्याकरण और हिज्जे तो साथी जी के भी दुरुस्त नहीं लगते. उदाहरण - "इतनी साहस नहीं", "दिजिये". यह और बात है कि उनकी इच्छा है कि यह निर्दोष टिप्पणियाँ भी प्रकाशित न की जाएँ. क्यों मदन जी, इस रवैये को तानाशाही ना कहा जाय? ह़ा ह़ा ह़ा ह़ा ह़ा
ReplyDeleteबेनामी जी, अरुण भाई का कहना सही है और यह इसे तानाशाही नही कहा जा सकता । नाम छुपाने का अर्थ कहीं न कहीं डर है । हमने जब यह कह दिया है कि आप को जो भी लिखना हो आप लिख कर भेज दें , अगर आप चाहेंगें तो हम आपका नाम प्रकाशित नही करेंगें। दुसरी बात यह सिर्फ़ न्यूज पोर्टल नही है , एक संघर्ष है भ्रष्टाचार के खिलाफ़ । आपकी सहभागिता जरुरी है । वैसे यह आपके उपर निर्भर है । समाचार के लिए ढेर सारे पोर्टल हैं , बिहार मीडिया आपकी आवाज है । इस पर आनेवालों की संख्या भी अच्छी खासी है । पत्रकार सहित सभी राजनेता और अधिकारियों तक हम आपकी आवाज पहुंचाते हैं।
ReplyDeleteऐसा है मान्यवर, मैं अपनी पहचान सार्वजनिक कर दूं तो आपके और साथी जी जैसों के लिए मुश्किल हो जायेगी. इसलिए यथास्थिति बनाए रखिये और आमोद-प्रमोद जारी रखिये. हा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteअब तो आप डराने लगे हैं मुझे मुश्किल मे मजा आता है । अगर आपको कोई भय न हो तो आप अपना नाम साएवजनिक कर सकते हैं । अगर डर लग रहा हो तो मेरे ईमेल पर भी अपना नाम बता सकते हैं। । प्रतिक्रिया के अलावा कुछ लेख भी भेजें। हां बेहिचक नाम सारवजनिक करें हम नही डरनेवाले। धन्यवाद । हहहह मैं यथास्थिति वाद के खिलाफ़ हूं
ReplyDeleteह़ा ह़ा ह़ा ह़ा जाने दीजिये. नाम से हमें जानने वाले लोग बहुत हैं इस दुनिया में. अचरज न होगा अगर आपके शहर और सूबे में भी बहुत से जाननेवाले निकल आयें. थोड़ी गुमनामी का सुख भी मिल जाय तो क्या हर्ज़ है.
ReplyDeleteहां आपने सही कहा । वैसे भी नाम हीं अहंकार है , बाकी शरीर और उसमें निवास करती आत्मा । नाम से मुक्ति अहंम से छुटकारा । यह प्रयोग भी कर चुका हूं , कभी फ़ुर्सत में लिखुंगा । लेकिन मेरे बेनाम दोस्त संवाद ने एक रिश्ता तो स्थापित कर हीं दिया है ।
ReplyDeleteअनावश्यक झगड़ा और फिर दोस्ती! अच्छी बात है।
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