जज पी डी दिनाकरन ने इस्तीफ़ा दिया
। सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी डी दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया है। वह भ्रष्टाचार और न्यायिक कदाचार के आरोपों के कारण महाभियोग का सामना कर रहे हैं। राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटील को भेजे दो पृष्ठ के इस्तीफे में उन्होंने कहा कि न्यायाधीच्चों की जांच समिति ने उन्हें अपना और अपनी प्रतिष्ठा का बचाव करने का पूरा मौका नहीं दिया। न्यायमूर्ति दिनाकरन ने कहा कि उन्हें लगता है कि सामाजिक रूप से दबे-कुचले और वंचित वर्ग में जन्म लेने के कारण उनके साथ ऐसा हो रहा है।
महाभियोग की कार्रवाई का सामना कर रहे वह उच्च न्यायपालिका के तीसरे न्यायाधीच्च हैं। ९० के दशक में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीच्च वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था, जबकि कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के विरूद्ध राज्यसभा के सभापति द्वारा नियुक्त तीन सदस्यों की समिति की जांच रिपोर्ट अभी लंबित है। दिनाकरन ने अभियोग लगाया है कि वे देश की न्यायिक व्यवस्था तथा राजनीति के शिकार हुये हैं। दिनाकरन की बातों को हल्के में नही लिया जा सकता । देश की सर्वोच्चय अदालत में अक्षम न्यायाधीश भरे पडे हैं। इन न्यायाधिशों की सक्रियता सिर्फ़ बडे मुकदमों में नजर आती है । आधे से ज्यादा सजायाफ़्ता इन अक्षम जजों के गलत फ़ैसले के शिकार हैं। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं । एक न्यायिक प्रक्रिया है डी नोवो ट्रायल ्मतलब किसी मुकदमें का दुबारा ट्रायल , मुकदमें के दुबारा ट्रायल यानी डी नोवो ट्रायल की सबसे अनिवार्य शर्त है कि अगर मुकदमें के गवाह अपने उस बयान से जो पुलिस के समक्ष दिया था , न्यायालय में पलट जाते हैं तभी डी नोवो ट्रायल पर विचार किया जा सकता है । बिहार की उच्च न्यायालय ने एक मुकदमें में डी नोवो ट्रायल का आदेश पारित किया जिसमें कोई भी गवाह अपने बयान से नही मुकरा था। सर्वोच्चय न्यायालय में जब मामला गया तो वहां के गदहों ने पटना उच्च न्यायाल्य के आदेश को सही ठहरा दिया । गदहा शब्द का जिक्र इसलिये किया कि कोई कानून का जानकार इस तरह का आदेश नही दे सकता ।अक्षम न्यायाधिशों के उपर कोई कार्रवाई भी नही हो सकती । टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें
महाभियोग की कार्रवाई का सामना कर रहे वह उच्च न्यायपालिका के तीसरे न्यायाधीच्च हैं। ९० के दशक में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीच्च वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था, जबकि कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के विरूद्ध राज्यसभा के सभापति द्वारा नियुक्त तीन सदस्यों की समिति की जांच रिपोर्ट अभी लंबित है। दिनाकरन ने अभियोग लगाया है कि वे देश की न्यायिक व्यवस्था तथा राजनीति के शिकार हुये हैं। दिनाकरन की बातों को हल्के में नही लिया जा सकता । देश की सर्वोच्चय अदालत में अक्षम न्यायाधीश भरे पडे हैं। इन न्यायाधिशों की सक्रियता सिर्फ़ बडे मुकदमों में नजर आती है । आधे से ज्यादा सजायाफ़्ता इन अक्षम जजों के गलत फ़ैसले के शिकार हैं। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं । एक न्यायिक प्रक्रिया है डी नोवो ट्रायल ्मतलब किसी मुकदमें का दुबारा ट्रायल , मुकदमें के दुबारा ट्रायल यानी डी नोवो ट्रायल की सबसे अनिवार्य शर्त है कि अगर मुकदमें के गवाह अपने उस बयान से जो पुलिस के समक्ष दिया था , न्यायालय में पलट जाते हैं तभी डी नोवो ट्रायल पर विचार किया जा सकता है । बिहार की उच्च न्यायालय ने एक मुकदमें में डी नोवो ट्रायल का आदेश पारित किया जिसमें कोई भी गवाह अपने बयान से नही मुकरा था। सर्वोच्चय न्यायालय में जब मामला गया तो वहां के गदहों ने पटना उच्च न्यायाल्य के आदेश को सही ठहरा दिया । गदहा शब्द का जिक्र इसलिये किया कि कोई कानून का जानकार इस तरह का आदेश नही दे सकता ।अक्षम न्यायाधिशों के उपर कोई कार्रवाई भी नही हो सकती । टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें
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