लालू यादव: मेरा कसूर क्या है
लालू यादव: मेरा कसूर क्या है
लालू यादव ने अपना मौन तोड दिया है । उन्होनें जनता के बीच जाने और यह पुछने का निर्णय लिया है कि उनका कसूर क्या है । विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद छह माह तक सरकार के खिलाफ़ कुछ भी नही बोलने का प्रण लिया था वह छह माह समाप्त हो गया । मुझे लगा था शायद उन छह माह में लालू यादव ने आत्म मंथन किया होगा। हालांकि यह सत्य है कि विधानसभा के अविश्वसनीय नतीजों का और भी कारण था । ई वी एम में गडबडी की गई थी । बडे पैमाने पर तकनीक का फ़ायदा उठाकर वोटों की चोरी की गई लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है कि लोगों के जेहन से राजद के अंतिम सात साल के आतंक की यादाश्त खत्म नही हुई थी ।
सुशील मोदी तो राजद के पन्द्रह साल के शासन को हीं खराब शासन मानते हैं जबकि उन पन्द्रह सालों के दरम्यान विकास पुरुष भी तकरीबन सात सालों तक राजद के अंग थें। खैर अभी चर्चा लालू जी के प्रश्न की हो रही है । सबसे पहले तो लालू यादव को याद रखना चाहिये की चुनाव के पूर्व जगह- जगह सभा करके उन्होनें कहा था “अब लालू भी बदल गया है और राजद भी “जनता को लगा शायद अब किसी अपराधी को राजद टिकट नही देगा लेकिन जब टिकट पानेवालों की सूची निकली तो सभी अपराधियों का नाम उसमे था।
गया के आतंक का पर्याय रहे बिंदी यादव को टिकट दिया गया था । अपहरण से लेकर जबरद्स्ती मकान कब्जा करने जैसे अपराधो का वह मुजरिम रह चुका है । न जाने किस खासियत के कारण उसे टिकट दिया गया । बिहार मीडिया ने एक लेख टिकट बटवारे के पहले प्रकाशित किया था “ हे लालू जी इसबार लाज रखना " टिकट बटवारे से यह साफ़ हो गया था कि न तो लालू बदले हैं न हीं राजद । यह दिगर बात है कि अपराधी उम्मीदवारों ने भी अच्छा खासा वोट लाया । वोट को खरीदा भी गया । सुदुर गांवों में पोलिंग पार्टी को प्रति वोट २०० से ५०० रुपये दिये गयें बोगस वोट के लिये।
अभी भी समय है , स्पष्ट शब्दों में अपने शासनकाल में हुई गुंडागर्दी के लिये जनता से माफ़ी मांगे। यह संकल्प ले की अपराधियों को टिकट नही देंगें। आपका बेटा भी काफ़ी सुलझे हुये दिमाग का है बेटे से राय लेने में शर्मिंदगी नही महसुस करनी चाहिये । आपके शासन में हुई खुलेआम गुंडागर्दी से ज्यादा बुरी स्थिति अभी है । शासन का आतंक कायम है । बिहार में अघोषित आपातकाल है । अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दिखाने के लिये तत्परता है लेकिन वह तत्परता किसी बीडीओ , क्लर्क , या राशन दुकानदार के खिलाफ़ कदम उठाने तक है ।
गया के आतंक का पर्याय रहे बिंदी यादव को टिकट दिया गया था । अपहरण से लेकर जबरद्स्ती मकान कब्जा करने जैसे अपराधो का वह मुजरिम रह चुका है । न जाने किस खासियत के कारण उसे टिकट दिया गया । बिहार मीडिया ने एक लेख टिकट बटवारे के पहले प्रकाशित किया था “ हे लालू जी इसबार लाज रखना " टिकट बटवारे से यह साफ़ हो गया था कि न तो लालू बदले हैं न हीं राजद । यह दिगर बात है कि अपराधी उम्मीदवारों ने भी अच्छा खासा वोट लाया । वोट को खरीदा भी गया । सुदुर गांवों में पोलिंग पार्टी को प्रति वोट २०० से ५०० रुपये दिये गयें बोगस वोट के लिये।
अभी भी समय है , स्पष्ट शब्दों में अपने शासनकाल में हुई गुंडागर्दी के लिये जनता से माफ़ी मांगे। यह संकल्प ले की अपराधियों को टिकट नही देंगें। आपका बेटा भी काफ़ी सुलझे हुये दिमाग का है बेटे से राय लेने में शर्मिंदगी नही महसुस करनी चाहिये । आपके शासन में हुई खुलेआम गुंडागर्दी से ज्यादा बुरी स्थिति अभी है । शासन का आतंक कायम है । बिहार में अघोषित आपातकाल है । अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दिखाने के लिये तत्परता है लेकिन वह तत्परता किसी बीडीओ , क्लर्क , या राशन दुकानदार के खिलाफ़ कदम उठाने तक है ।
उपर के किसी अफ़सर के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नही होती है । के पी रमैया , ्पटना का कमिश्नर इसका उदाहरण है । बियाडा जमीन आवंटन भी सामने है । लेकिन नीतीश के खिलाफ़ जंग के पहले आपको जनता से माफ़ी मांगनी पडेगी । मैने भी झेला है आपके क्षत्रपों का आतंक । आज नीतीश को बिहार को तबाह करते देख रहा हू। बातफ़रोशी के अलावा कुछ भी नही हो रहा है ।
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