प्रभात खबर सरकारी भोंपू

प्रभात खबर सरकारी भोंपू





क से नीतीश , ख से नीतीश , ग से नीतीश




नीतीश नाम जपना , सरकारी माल अपना



पत्रकारिता और अखबार सिर्फ़ एक व्यवसाय नही हैं , प्रतिबद्धता है , समाज के प्रति लेकिन भुमंडलीकरण के इस दौर में सबके मायने बदल रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं, संवेदनशीलता दम तोड रही है , वैसी परिस्थिति में पत्रकारों का दायित्व बढ जाता है । सता ने मीडिया की और मीडिया ने सता की जरुरतों को समझ लिया है । दोनो के सामने अपने प्रतिद्वंदी से आगे रहने की चुनौती है । दोनो ने हाथ मिला लिया है । लेकिन इन सबके वावजूद जब कोई अच्छा पत्रकार सता से हासिल शराब पीकर नाले में गिरा नजर आता है तो तकलीफ़ होती है । अखबारों के साथ भी यही स्थिति है । बिहार में यह कुछ ज्यादा दिख रहा है । लालू को सता से बाहर करने में मीडिया की भूमिका से इंकार नही किया जा सकता । लालू ने गलती की थी , उनको मीडिया मैनेजमेंट की जानकारी नही थी । नीतीश बुद्धिमान निकलें, सबसे पहले मीडिया को मैनेज किया , फ़ल भी मिला , काठ की हांडी फ़िर आग पर चढी और खाना पहले से ज्यादा स्वादिष्ट बना । एक-दो अखबारों को छोडकर , ज्यादातर अखबारों कि यही स्थिति है । बिहार के अखबारों में होड लगी है बडा और निष्ठावान चमचा बनने की । पहले दैनिक जागरण नंबर एक पर था । नीतीश चालीसा के अलावा कुछ नजर नही आता था । अब उसे प्रभात खबर ने पछाड दिया है । सरसरी नजर से देखने पर हीं लगता है जैसे यह सरकार के जन संपर्क विभाग द्वारा निकाला गया अखबार है । हालांकि इसकी संभावना तो पहले हीं बढ गई थी जब प्रसार की दौड में आगे बढने के लिये एक योजना प्रभात खबर ने शुरु की थी । २०० रु० देकर साल भर अखबार पायें ४५ रु० महिने की कीमत पर साथ में गिफ़्ट भी । योजना की शुरुआत होते हीं अखबार के कंटेंट में गिरावट आने लगी । पहले जब दैनिक जागरण चमचागिरी में लिप्त था तब जागरुक पाठक कहते थें कि प्रभात खबर निष्पक्ष लिखता है । प्रभात खबर के प्रसार को बढाने के लागू योजना पाठकों के लिये काल साबित हो रही है । शायद प्रभात खबर यह भुल गया कि प्रसार का संबंध समाचार के स्तर से है , हां यह सही है कि योजना के चक्कर में फ़ंसे पाठकों के लिये अब न निगलते बन रहा है और न उगलते । पैसे दे चुके हैं, वापस होगा नही , अखबार में नितीश के गुणगान के अलावा कुछ रहता नहीं करें तो क्या करें। यह कभी नन – बैंकिग कंपनियो द्वारा फ़ैलाये गये जाल की तरह है । प्रेस गिल्ड को इसपर विचार करने की जरुरत है । पाठक को बाध्य नही किया जा सकता जबर्द्स्ती पढने के लिये । अगर पाठक छोडना चाहे तो उसे पैसे लौटाने का विकल्प मिलना चाहिये , अच्छा तो होता इस तरह की स्कीम पर हीं रोक लगाई जाय । प्रभात खबर के सत्तर प्रतिशत में नीतीश का गुणगान रहता है । अब तो एक नामचीन पत्रकार जो अपने जुझारु तेवर के लिये जाने जाते थें सुरेंद्र किशोर , वह भी भाट जैसी हरकत करते नजर आ रहे हैं , लगता हीं नही यह आदमी पत्रकार भी रहा होगा । उनके लेख प्रशंसा में लिखे स्मार पत्र नजर आते हैं। फ़ारबिसगंज की घटना पेज तीन पर और चीन की यात्रा तथा ट्रेन की रफ़्तार मेन पेज पर , रहस्मय बिमारी से मरते बच्चों की खबर अंदर के पेज पर दो कालम में , अन्ना से मुलाकत और नीतीश का समर्थन पेज एक पर । उसके ठीक नीचे पेज एक पर सुरेंद्र जी भाटपन बखारते इस मुलाकात को मील का पत्थर बता रहे हैं ।सुरेन्द्र किशोर ,पटना में रहकर फ़्री लांसिंग करते हैं ,उनका अपना एक ब्लाग भी है www.surendrakishore.blogspot.com . । न तो अखबार ने और न हीं असंदर्भ को संदर्भ बतानेवाले सुरेंद्र किशोर ने एक बार भी यह लिखने का प्रयास किया कि नीतीश ने अन्ना को कोई समर्थन नही दिया , बल्कि अपनी पार्टी और गठबंधन से बात करने की बात कह कर मामले को टाल दिया । यह भी प्रश्न नही उठा पाये असंदर्भ को संदर्भ बतानेवाले भाटराजा सुरेंद्र किशोर कि लोकायुक्त को अधिकार युक्त करने का प्रयास करके नीतीश क्यों नही उदाहरण पेश करते हैं। किसने रोका है उन्हें बिहार में लोकायुक्त को सभी अधिकार यानी मुख्यमंत्री के खिलाफ़ जांच का अधिकार देने संबंधित कानून विधानसभा में बनाकर भारत सरकार के पास भेजने से । बिहार देश का सबसे पहला राज्य है जिसने सूचना के अधिकार के पर कतर डालें , उसे सीमित कर दिया मात्र एक प्रश्न पु्छने तक । यहां के सभी जिला सुचना पदाधिकारी को केरल उच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला देकर किसी सरकारी आदेश के औचित्य से संबंधित प्रश्न पुछने पर रोक लगा दिया है । अब कोई यह नही पुछ सकता कलक्टर से कि आपने गोली मारने का आदेश क्यों दिया । " क्यों" शब्द के साथ कोई प्रश्न नही पुछा जा सकता । ट्रेजरी घोटाला पर उच्च न्यायालय सरकार से नाराज है और बार – बार एसी डीसी बिल की जानकारी मांग रहा है लेकिन प्रभात खबर के लिये यह सब मुद्दा नही है । उसे पटना के पंच सितारा होटल में हुई हरित क्रांति का सेमिनार नजर आता है , सेमिनार में किसानों कि दशा पर सरकारी पैसे पर आकर के घडियालू आंसु बहाने वालों का देहात में किसानों के बीच जाने से बहाना बनाकर इंकार करना और गंगा में तैरते रेंस्तंरा में लजीज भोजन करने के बीच कोई संदर्भ सुरेन्द्र किशोर को नजर नही आता है । खैर पाठको को भी रुप बदलना आता है । पाठक जब रुप बदलता है तो अखबार के मायने हीं बदल जाते हैं । उसका उपयोग छोटे बच्चों की गंदगी और जूतों की धुल साफ़ करने में होने लगता है । शायद प्रभात खबर कि भी यही नियति है । रह गई सुरेन्द्र किशोर की बात तो वक्त की मजबुरी होगी अन्यथा ब्लाग तो ठीक-ठाक लिखते हैं।
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Comments

  1. Bihar Media - RJD & LJP ka Bhonpu. You will not succeed in your mission.

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  2. राजद के नेताओं के बारे में भी छपता है आप पढें ।

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