डेनमार्क ने भारत को दिखाया मानवाधिकार का आईना

डेनमार्क ने भारत को दिखाया मानवाधिकार का आईना
पुरुलिया हथियार ड्राप केस काफ़ीचर्चित रहा है। उक्त केस में डेनमार्क का कीम डेवी मुख्य अभियुक्त हैं जो डेनमार्क में रह रहा हैं। भारत की सरकार ने उसे प्रत्यार्पण के लिये डेनमार्क की सरकार से प्रार्थना की थी । वहां की सरकार ने अनुमति भी दे दी थी , परन्तु देनमार्क के एक न्यायाल्य ने प्रत्यार्पण पर यह कहते हुये रोक लगा दी कि भारत में मानवाधिकार की स्थिति दयनीय है। डेनमार्क के न्यायालय द्वारा लगाये गये रोक से तिलमिलाये विदेश मंत्री ने बयान दिया की इससे आतंकवाद और अपराध को बढावा मिलेगा साथ हीं साथ यह भी जोड दिया कि अगर कभी डेनमार्क के द्वारा इस तरह की प्रार्थना की जायेगी तो भारत का भी रवैया वही होगा यानी भरत भी डेनमार्क के अपराधियों का प्रत्यार्पण नही करेगा । विदेश मंत्री कर्ष्णा का यह वयान उनके दंभ को दर्शाता है साथ हीं साथ डेनमार्क के न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचानेवाला है । यह सच्चाई है कि भारत का रेकार्ड मानवाधिकार के मामले में अत्यंत दयनीय है । थानों में हत्या , जेल में हत्या, बलात्कार , आम आदमी के साथ पुलिस का अपराधी जैसा बर्ताव । सरकारी अधिकारियों को खुद को राजा समझना जैसे हजार कारण है । भारत को डेनमार्क के न्यायलय द्वारा दिये गये इस फ़ैसले से सबक लेना चाहिये । अगर मानवाधिकार के दर्श्टिकोण से देखें तो भारत वस्तुत: ईंसानों की रहने की जगह नही है । यहां आर्थिक तथा राजनैतिक रुप से सक्षम लोग हीं रह सकते हैं वह भी सरकारी अधिकारियों के रहमों करम पर । भारत भ्रष्टाचार , भुख , हिंसा से जुझ रहा है। मानवाधिकार का हनन देखना हो तो नक्सल क्षेत्रों में जाकर देखें । इस देश की राजधानी तक सुरक्षित नही है । दिल्ली में पुलिस थानों में पुछताछ के नाम पर पत्रकारों तक से मारपीट की जाती है अगर विदेश मंत्री को नही पता तो त्यागपत्र दे दें। डेनमार्क पर गुस्सा निकालने के बजाय भारत अपने में सुधार लाये । अभी तक २००४ में मानवाधिकार आयोग द्वारा दिए गये मुआवजा का भुगतान तक सरकार ने नही किया है और उस सरकार का विदेश मंत्री शेखी बघारते ह्ये कहता है कि दुनिया को पता होना चाहिये कि भारत का समाज खुला हुआ है और यहां पुरी पारदर्शिता है । अच्छा होता यह बात विदेश मंत्री ने मनमोहन सिंह तथा प्रणव मुखर्जी को बताई होती जो न्यायालय के आदेश के बावजूद कालाधन धारकों का नाम नहीं बताना चाहते हैं। विदेश मंत्री को विनायक सेन की निचली अदालत द्वारा दी गई सजा भी याद रखनी चाहिये जिसमें उच्च न्यायालय तक ने जमानत देने से ईंकार कर दिया था । सच्चाई से मुह मोडने से भारत अच्छा नही बन जायेगा । सच्चाई यह है कि भारत आज भी उपनिवेशिक काल में है , सिर्फ़ शासक बदल गये हैं।
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