सांपों ने की नवजात शिशु की रक्षा





सांपों ने की नवजात शिशु की रक्षा

अरुण साथी की रिपोर्ट

नवजात शिशु को कुंआ मे फ़ेंका,

सांपों के बीच रहे शिशु को गांव वालों ने बचाया। जाको रखे सांइयां मार सके न कोई।
बरबीधा के कुटैत गांव में जहां एक मां ने अपने बेटे को चालीस फिट गहरे कुंए में सांपों के बीच मरने के लिए फेंक दिया वहीं एक मां ने अपने बेटे को शौचालय में जा कर फेंक दिया जैसे की वह भी मल मुत्र की तरह त्याग्य हो? इस तरह की घटनाऐं हमारी समाज में जब भी घटती है तो इसमें हम उस मां को कोसते है जिसने कुंती कर तरह अपने कोख से जन का बच्चे को फंेक देती है, सच भी है कि यह निंदनीय ही नहीं बल्कि उस मां के मनुष्य होने पर सवाल खड़ी करती है पर इस सब के बीच जब कथित समाज में वह कुंवांरी मां अपने बेटे के साथ आ बैठती तो हमारा कथित सभ्य समाज भी राक्षसी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता?

ऐसा ही हुआ, जिसने भी सुना उसका कलेजा मुंह को आ गया। एक नवजात बालक दुधमुंह और उसे चालीस फीट गहरे सुखे कुंऐं में फेंक दिया गया और चार चार सांप के बीच एक दुधमंुहा बच्चा रो रहा है। हे भगवान। यह लोमहर्षक और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला मंजर था बरबीघा के कुटौत गांव का। इस गांव में बकरी चराने के क्रम में बच्चांे ने कुंऐ में से बच्चे के रोने की आवाज सुनी और जब झांक कर देखा तो एक दुधमंुहा बच्चा कुंऐं में फेंका हुआ है और उसके इर्द-गिर्द तीन चार सांप लोट रहे है। जंगल में आग की तरह यह खबर गांव मंे फैल गई और घीरे घीरे लोग जमा होते गए। गांव वालों ने संवेदना दिखाई और कुंऐं में सीढ़ी लगा कर बच्चे को बचाया। यह सांपो के बीच से बच्चे को निकालने का साहस किया विपिन कुमार ने। फिर गांव के ही एक महिला संजु देवी ने इस बच्चे को अपना लिया। यह बेटा था। प्रत्यक्षदर्शीयों की माने तो सांप बच्चे की रक्षा कर रहा था और जब बच्चा रोने लगता था तब वह हलचल कर उसे बहलाने की कोशिश करता। जब कुंए से बच्चे को निकालने के लिए विपिन कुंए में प्रवेश किया तो सभी सांप अलग हट गया।

बच्चे को कुंए से निकाल कर डा. रामानन्दन प्रसाद के पास उसका ईलाज कराया जहां उसे खतरे से बाहर बताया गया। गांव के लोग सावन के महीने में सांपों के बीच रहे इस बच्चे को भगवान शंकर की कृपा मान रहा है और इसलिए इस बच्चे का नाम शंकर रख दिया गया है।


वहीं तैलिक बालिका स्कूल के शौचालय में एक नवजात बच्ची को फेंक दिया गया और जब छात्राऐं शौचालय गई तो नवजात पर नजर गई और फिर भीड़ जमा हुई पर उसे किसी ने नहीं बचाया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

कुछ भी पर जहां एक तरफ एक मां ने अपनी कोख से जन्म देकर अपने ही बेटे को कुंए में मरने की नियत से फंेक दिया वहीं गांव के लोगों ने उसे बचा कर एक मां के आंचल में दे दिया है।
किसी शायर ने सच ही का है घर से मंदिर है बहुत दूर चलो यू कर लें, किसी रोते
हुए बच्चे को हंसाया जाए।

टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

Popular posts from this blog

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

origin and socio-economic study of kewat and Mehtar