भाजपा पेट्रोलियम की बढी किमत के पक्ष में
भाजपा पेट्रोलियम की बढी किमत के पक्ष में
केन्द्र की सरकार ने भ्रष्टाचार , मंहगाई और बेरोजगारी जैसे घावों से घायल जनता के घावों पर पेट्रोलियम के दामों में बढोतरी का नमक छिडका है वहीं भाजपा इसके खिलाफ़ पुरे देश में आंदोलन का ड्रामा कर के मिर्च छिडकने का काम कर रही है । एशिया में सबसे महंगा पेट्रोलियम पदार्थ हिंदुस्तान में है। मुल्य के ज्यादा होने का कारण ४५ से ५० प्रतिशत टैक्स का होना है । टैक्स केन्द्र और राज्य दोनो सरकारों द्वारा लगाये गयें हैं। चुकि मुल्य वर्द्धि केन्द्र सरकार द्वारा की गई है जिसके कारण आम जनता समझती है कि महंगे पेट्रोलियम पदार्थ की जिम्मेवार सिर्फ़ केन्द्र सरकार है लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल विपरित है । केन्द्र के अधीन पेट्रोलियम कंपनियां हैं इसलिये दाम केन्द्र द्वारा बढायें जाते हैं , अगर कोई कंपनी जो निजी क्षेत्र में हो , वह कम पर भी इन्हें बेच सकती है । राज्य सरकारें भी अपनी तेल कंपनी खोल सकती है और तेल का आयात – निर्यात , उत्पादन तथा वितरण कर सकती हैं। हालांकि भारत में गणराज्य सिर्फ़ केन्द्र की योजनाओं की राशि लेने और केन्द्रीय करों में हिस्सेदारी तक सिमित है । किसी भी राज्य ने आजादी के बाद से आजतक अपने राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिये नही सोचा है । खैर यह सबकुछ एक दिन में नही होनेवाला है । जनता को राज्यों में भी प्रगतिशील विचार और जनहित में काम करनेवाली स्वांलंबी सरकार की जरुरत है । पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स का एक बडा भाग राज्यों का है। राज्य सरकार अगर चाहे तो बढी हुई किमत से निजात दिला सकती है लेकिन राज्य सरकारें ऐस नही चाहतीं वे इस मुद्दे पर भी अपनी राजनीतिक रोटी सेकना चाहती हैं अन्यथा भाजपा अपने शासनवाली सरकारों को टैक्स हटाने के लिये कहकर एक विकल्प पेश कर सकती थी , दुर्भाग्य से राज्य सरकारें भी जनता के विरोध में काम कर रहीं हैं। भाजपा भी दोषी है इस महंगाई और पेट्रोलियम पदार्थों की बढी किमतों की । भाजपा और उसके सहयोगी दलों को नैतिक हक नही है मुल्यवर्द्धि के खिलाफ़ बोलने का । पहले खुद सही राह पर चले फ़िर आंदोलन की बात करे।
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